Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

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Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

Synopsis / शोध प्रारूपिका (लघु शोध व शोध के विद्यार्थियों हेतु)

किसी भी क्षेत्र में शोध करने से पूर्व मनोमष्तिष्क में एक तूफ़ान एक हलचल महसूस होती है, शोध परिक्षेत्र की तलाश प्रारम्भ होती है, विषय की तलाश से लेकर परिणति तक का आयाम मुखर होने लगता है और इसी मनोवेग वैचारिक तूफ़ान को शोध एक सृजनात्मक आयाम देता है एवं अस्तित्व में आता है शोध प्रोपोज़ल या शोध प्रारूपिका। हमारे शोधार्थियों में इसके लिए शब्द प्रचलन में है: —- Synopsis.

शोध को क्रमबद्ध वैज्ञानिक स्वरुप देने हेतु लघुशोध व शोध के विद्यार्थी सरलता से कार्य कर सहजता से इस परिणति तक ले जा सकते हैं, Synopsis के चरणों(Steps) को इस प्रकार क्रम दिया जा सकता है –

1. प्रस्तावना 2. आवश्यकता क्यों? 3. समस्या 4.उद्देश्य 5.परिकल्पना 6. प्रतिदर्श 7. शोध विधि 8. शोध उपकरण 9. प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि 10. परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव 11. प्रस्तावित रूपरेखा (शोध स्वरूपानुसार)

1. प्रस्तावना(Introduction)-

जिस तरह रत्नगर्भा पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त अयस्क परिशोधन से शुद्ध धात्वीय स्वरुप प्राप्त करते हैं उसी प्रकार हमारे मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते तथ्य प्रगटन के लिए अपने परिशुद्ध स्वरुप को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और हम अपनी क्षमता के अनुसार उसे बोधगम्य बनाकर उसका प्रारम्भिक स्वरुप प्रस्तुत करते हैं जो मूलतः हमारे विषय से सम्बन्ध रखता है, शीर्षक से जुड़ाव का यह मुखड़ा, भूमिका या प्रस्तावना का स्वरुप लेता है इसके शब्द हमारी क्षमता अधिगम स्तर और प्रस्तुति कौशल के अनुसार अलग-अलग परिलक्षित होता है इसमें वह आलोक होता है जो हमारे शोध का उद्गार बनने की क्षमता रखता है।

2. आवश्यकता क्यों?(Importance)-

यह बिंदु विषय-वस्तु के महत्त्व को प्रतिपादित करता है और उस पर कार्य करने के औचित्य को सिद्ध करता है कि आखिर अमुक चर को या अमुक पात्र या विषय वस्तु को ही हमने अपने अध्ययन का आधार क्यों बनाया? हमें देश, काल, परिस्थितियों के आलोक में अपने विषय और उसी परिक्षेत्र पर कार्य करने की तीव्रता का परिचय कराना होता है इसे ऐसे शब्दों में लिखा जाना चाहिए कि पढ़ने वाला उसकी तीव्रता को महसूस कर सके और उसका मानस सहज रूप से आपके तर्कों का कायल हो जाए।

3. समस्या(Problem)-

यहाँ समस्या या समस्या कथन से आशय शोध के ‘शीर्षक’ से है। शीर्षक संक्षिप्त, सरल, सहज बोधगम्य व सार्थक भाव युक्त होना चाहिए अनावश्यक विस्तार या अत्यधिक कठिन शब्दों के प्रयोग से बचकर उसे अधिक पाठकों की बोधगम्यता परिधि में लाया जा सकता है यह शुद्ध व भाव स्पष्ट करने में समर्थ होना चाहिए। शोध स्वरूपानुसार इसका उपयुक्त चयन व शुद्ध निरूपण होना चाहिए।

4. उद्देश्य(Objectives)-

उद्देश्य बहुत सधे शब्दों में बिन्दुवार दिए जाने चाहिए। तुलनात्मक अध्ययन में निर्धारित चर के आधार पर न्यादर्श के प्रत्येक वर्ग का दुसरे से तुलनात्मक अध्ययन करना, उद्देश्य का अभीप्सित होगा यह शोधानुसार क्रमिक रूप से व्यवस्थित किए जा सकते हैं।

5. परिकल्पनाएं(Hypothesis)-

परिकल्पनाओं का स्वरुप शोध के स्वरुप पर अवलम्बित होता है। सकारात्मक, नकारात्मक और शून्य परिकल्पना अस्तित्व में है लेकिन शोध हेतु शून्य परिकल्पना सर्वाधिक उत्तम रहती है, इसको भी क्रमवार तुलना के स्वरुप के आधार पर व्यवस्थित करते हैं। यदि ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ के लड़कों की ‘कम्प्यूटर के प्रति भय’ के आधार पर तुलना करनी हो तो इसे इस प्रकार लिखेंगे :

ग्रुप ‘A’ और ग्रुप ‘B’ के लड़कों में कम्प्यूटर के प्रति भय के आधार पर कोई सार्थक अन्तर नहीं है।

6. प्रतिदर्श(Sample)-

प्रतिदर्श या न्यादर्श शोध की प्रतिनिधिकारी जनसंख्या होती है यह समस्या के स्वरुप, शोधार्थी की क्षमता, समय व साधनों द्वारा निर्धारित होती है। शोध हेतु चयनित जनसंख्या का शोध स्वरूपानुसार विभिन्न वर्गों में वितरण कर लेते हैं जिससे परस्पर तुलना सुगम हो जाती है यह भी परिकल्पना निर्धारण में सहायक होती है।

7. शोध विधि(Research Method)-

इसका निर्धारण शोध शीर्षक के स्वरुप पर अवलम्बित होता है हिस्टॉरिकल रिसर्च या सर्वेक्षण आधारित शोध Synopsis के पूरे स्वरुप को प्रभावित करते हैं। शोध विधि, शोध की दिशा तय करने में सक्षम है।

8. शोध उपकरण(Research Tools)-

शोध स्वरूपानुसार ही इसकी आवश्यकता होती है कुछ प्रामाणिक शोध उपकरण मौजूद हैं एवं कभी आवश्यकता अनुसार खुद भी स्व आवाश्यक्तानुसार शोध उपकरण विकसित करना होता है। वर्णनात्मक शोध प्रबन्ध में इसकी आवश्यकता नहीं होती।

9. प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि(Used Statistical Method)-

जिन शोध के प्राप्य समंक होते हैं उनसे किसी निष्कर्ष तक पहुँचने में शोध की प्रवृत्ति के अनुसार सांख्यिकी का प्रयोग करना होता है यहां केवल प्रयुक्त सूत्र एवं उसमे प्रयुक्त अक्षर का आशय लिखना समीचीन होगा।

10. परिणाम, निष्कर्ष एवं सुझाव(Result, Outcome & Suggestion)-

इस भाग में केवल इतना लिखना पर्याप्त होगा कि ‘प्रदत्तों का सांख्यकीय विश्लेषण से प्राप्त परिणामों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जायेगा एवं भविष्य हेतु सुझाव सुनिश्चित किए जाएंगे।

11. प्रस्तावित रूपरेखा (शोध स्वरूपानुसार)(Proposed Framework)-

  • सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन
  • अध्ययन की योजना का प्रारूप
  • आकङों का विश्लेषण एवं विवेचन
  • शोध निष्कर्ष एवं सुझाव
जहां सांख्यिकीय विश्लेषण आवश्यक नहीं है उन वर्णनात्मक, ऐतिहासिक या विवेकनात्मक शोध में चतुर्थ अध्याय आवश्यकतानुसार परिवर्तनीय होगा।

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शोधसिद्धि की ओर अग्रसर.......

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  • दुष्‍यंत कुमार के साहित्‍य में व्‍यवस्‍थालोचना
  • देवराज ‘दिनेश’ का कृतित्त्व और कर्तृत्त्व
  • देशभक्ति काव्‍य परम्‍परा में मैथिलीशरण गुप्‍त का योगदान समीक्षात्‍मक अध्‍ययन
  • नई कवि‍ता की ऐतिहासि‍क पृष्‍ठभूमि और शमशेर बहादुर सिंह का रचना-संसार
  • नई कहानी में मध्‍यवर्गीय चेतना
  • नए काव्‍य प्रतिमानों के संदर्भ में नई समीक्षा
  • नक्‍सलबाड़ी आन्‍दोलन और समकालीन हिन्‍दी कविता
  • नज़ीर अकबराबादी की विचारधारा विविध आयाम
  • नज़ीर अकबराबादी के काव्‍य में आधुनिकता के आयाम
  • नन्‍ददास और सूरदास का तुलनात्‍मक अध्‍ययन काव्‍य, कला व भाषा की दृष्टि से
  • नबे दशक की हिन्‍दी-कहानी में पारिवारिक जीवन की अभिव्‍यक्ति
  • नयी कविता का वैचारिक परिप्रेक्ष्‍य और मार्क्‍सवादी आलोचना दृष्टि
  • नयी कविता का स्‍वच्‍छन्‍दतावादी मूल्‍यांकन
  • नयी कविता के अध्‍ययन में परिमलवत्त का योगदान
  • नयी कहानी आन्‍दोलन के संदर्भ में हिन्‍दी कहानी समीक्षा का विकास
  • नयी कहानी धारा और अमरकान्‍त की कहानियाँ
  • नयी कहानी में बिम्‍ब और प्रतीक
  • नरेन्‍द्र कोहली और रामकुमार भ्रमर के महाभारतमूलक उपन्‍यासों का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • नरेश मेहता के काव्‍य का भाषावैज्ञानिक अनुशीलन
  • नागार्जुन के उपन्‍यासों में चित्रित समाज के विविध आयाम
  • नागार्जुन के उपन्‍यासों में चित्रित सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष
  • नाटकों में यथार्थवाद
  • नामवर सिंह का आलोचना कर्म
  • नारी विमर्श के संदर्भ में मन्‍नू भंडारी का लेखन
  • नारी-विमर्श के संदर्भ में मन्‍ने भंडारी का लेखन
  • नारी-विमर्श के संबन्‍ध में रांगेय राघव के उपन्‍यासों का मूल्‍यांकन
  • नार्गाजुन की कविता में राजनीतिक अभिव्‍यक्ति का स्‍वरूप
  • नार्गाजुन के कथा साहित्‍य में युग-बोध
  • नासिरा शर्मा एवं मैत्रेयी पुष्‍पा के उपन्‍यासों की समाज चेतना का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • नासिरा शर्मा के उपन्‍यासों का मनोवैज्ञानिक अध्‍ययन
  • नासिरा शर्मा के कथा-साहित्‍य में मूल्‍य-बोध
  • निम्‍नमध्‍यवर्गीय जीवन और विनोद कुमार शुक्‍ल के साहित्‍य की अभिनवता
  • निराला का कथा साहित्‍य
  • निराला काव्‍य अपरा में अप्रस्‍तुत विधान
  • निराला काव्‍य में जनतांत्रिक मूल्‍य और स्‍वाधीनता की अवधारणा
  • निराला के कथा-साहित्‍य में स्‍वच्‍छन्‍दतावादी तत्त्व
  • निराला के काव्‍य में अभिव्‍यक्‍त मानववाद
  • निराला के गीत संवेदना और शिल्‍प
  • निराला के निबन्‍धों का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन
  • निराला साहित्‍य पर स्‍वामी विवेकानंद का प्रभाव
  • निराला साहित्‍य में नारी
  • निर्गुन निर्गुण साहित्‍य की सांस्‍कृतिक पृष्‍ठभूमि
  • निर्मल वर्मा के कथा साहित्‍य में जीवन-मूल्‍य
  • निर्मल वर्मा के कथा साहित्‍य में संवेदना एवं शिल्‍प
  • पंडित गोकुलचंद्र शर्मा के काव्‍य में आधुनिकता का स्‍वरूप
  • पंडित नथाराम शर्मा गौड के नाट्यालेख
  • पंत का काव्‍य शिल्‍प
  • पंत के ‘’लोकायतन’’ में चित्रित आधुनिक जीवन और कला का अध्‍ययन
  • पछादों के लोक गीतों का अध्‍ययन (मुरादाबाद जनपद की अमरोहा और सम्‍भल तहसीलों के परिप्रेक्ष्‍य में)
  • पदमसिंह शर्मा कमलेश व्‍यक्तित्त्व और कृतित्त्व
  • पद्माकरोत्तर रीतिकाव्‍य
  • पद्मानन्‍द महाकाव्‍य का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन
  • पद्मावत एवं रामचरितमानस में चित्रित लोकजीवन का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • परमांनन्‍द सागर का भाषा वैज्ञानिक अध्‍ययन
  • परमानंद सागर राधातत्त्व और लीलारस
  • परम्‍परा एवं मौलिकता के निकष पर ‘महासमर’ का मूल्‍यांकन
  • परम्‍परा और प्रगति का संदर्भ तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का व्‍यतित्व और कृतित्त्व
  • पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोकगीतों का सामाजिक अध्‍ययन
  • पृ‍थ्‍वीराज रासो का काव्‍यशास्‍त्रीय अनुशीलन
  • प्रगतिशील आलोचना परंपरा में अरुण कमल और राजेश जोशी का आलोचना कर्म
  • प्रगतिशील काव्‍य धारा और अरुण कमल की कविताएँ
  • प्रगतिशील चेतना के परिप्रक्ष्‍य में पं० रामचन्‍द्र शुक्‍ल का पुनर्मूल्‍यांकन
  • प्रगतिशील हिन्‍दी आलोचना और शिवदान सिंह चौहान का आलोचना-कर्म
  • प्रगतिशीलता और केदारनाथ अग्रवाल की कविताएँ
  • प्रताप नारायण मिश्र और हिन्‍दी नवजागरण की चिन्‍ताएँ
  • प्रतापनारायण मिश्र का रचना कर्म
  • प्रबोध चन्‍द्रोदय नाटक के हिन्‍दी रूपान्‍तर और अंत धार्मिक संवाद
  • प्रभा खेतान का कथा साहित्‍य एवं स्‍त्री मुक्ति का प्रश्‍न
  • प्रभा खेतान के कथा साहित्‍य में स्‍त्री-विमर्श के विविध आयाम
  • प्रभा खेतान के साहित्‍य में वैचारिक आयाम
  • प्रमुख पंचायती फैसले और मीडिया एक समाजशास्‍त्रीय अध्‍ययन (पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विशेष संदर्भ में)
  • प्रमुख हिन्‍दी समाचार पत्रों में सामाजिक सरोकार एक विश्‍लेषणात्‍मक अध्‍ययन
  • प्रयोगवादी कविता के विकास में दूसरा सप्‍तक के कवियों की भूमिका
  • प्रयोगवादी-काव्‍य में द्वन्‍द्व (तार-सप्‍तक तक)
  • प्रवासी हिन्‍दी कहानी काव्‍य में संस्‍कृति (अमेरिका के विशेष संदर्भ में)
  • प्रवासी हिन्‍दी कहानी संवेदना और मूल्‍य संकट (अमेरिका के विशेष संदर्भ में)
  • प्रवासी हिन्‍दी साहित्‍य स्‍त्री मुक्ति का संघर्ष एवं उनके अनुभव
  • प्रसाद और डॉ० रामकुमार वर्मा के नाटकों में राष्‍ट्रीय-चेतना का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • प्रसाद के नाटकों में प्रयुक्‍त सांस्‍कृतिक शब्‍दावली का ऐतिहासिक अध्‍ययन
  • प्रसाद के नाटकों में विषयतत्व और उनकी नाटकीय अभिव्‍यंजना
  • प्रसाद साहित्‍य के आदर्श पात्र
  • प्रेमचंद की कहानियों में स्‍त्री-जीवन का यथार्थ
  • प्रेमचंद के उपन्‍यास साहित्‍य में परिवार की अवधारणा
  • प्रेमचंद के उपन्‍यासों में मध्‍यवर्ग दशा और दिशा
  • प्रेमचंद के कथा साहि‍त्‍य में ग्रामीण स्‍त्री (भारतीय सामंतवाद और उपनिवेशवाद के विशेष संदर्भ में)
  • प्रेमचंद के कथा साहित्‍य में दलित चेतना
  • प्रेमचंद के साहित्‍य में दलित चेतना का स्‍वरूप
  • प्रेमचंदोत्तर उपन्‍यास साहित्‍य में नूतन नारी की परिकल्‍पना
  • प्रेमचंदोत्तर उपन्‍यासों में प्रगतिशीलता
  • प्रेमचंदोत्तर हिन्‍दी उपन्‍यास में नैतिक बोध
  • प्रेमचंद्रोत्तर हिन्‍दी कहानी एक विश्‍लेषणात्‍मक अध्‍ययन
  • प्रेमचन्‍द और पसाद के उपन्‍यासों की भाषा का तुलनात्‍मक भाषावैज्ञानिक अनुशीलन
  • प्रेमचन्‍द और प्रसाद की जीवन दृष्टि और कहानी-कला
  • प्रेमचन्‍द और भीष्‍म साहनी के उपन्‍यासों का तुलनात्‍मक भाषावैज्ञानिक विवेचन
  • प्रेमचन्‍द का कथेत्तर साहित्‍य
  • प्रेमचन्‍द की कृतियों के सिनेमाई रूपान्‍तरण का अनुशीलन
  • प्रेमचन्‍द के उपन्‍यासों का समाजशास्‍त्रीय अध्‍ययन
  • प्रेमचन्‍द के उपन्‍यासों में संर्दभित सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्‍कृतिक संस्‍थाओं का स्‍वरूप
  • प्रेमचन्‍द के उपन्‍यासों में स्‍त्री-चेतना
  • प्रेमचन्‍द के कथा साहित्‍य में परिवार
  • प्रेमचन्‍द के कथा साहित्‍य में सामासिक संस्‍कृति
  • फणीश्‍वरनाथ रेणु के कथा साहित्‍य का सामाजिक एवं राजनीतिक अध्‍ययन
  • बलदेव वंशी के काव्‍य मे जीवन मूल्‍य
  • बिलग्राम के मुसलमान कवियों का हिन्‍दी साहित्‍य को योगदान (1600 से 1800)
  • बीसवीं शताब्‍दी का हिन्‍दी आत्‍मकथा साहित्‍य
  • बीसवीं शताब्‍दी के नाटकों में प्रतिबिम्बित सामाजिक-चेतना
  • बीसवीं शदी के हिन्‍दी उपन्‍यासों पर अंग्रजी उपन्‍यासों का प्रभाव
  • बीसवीं सदी की हिन्‍दी कहानी प्रवृत्तिगत अध्‍ययन (महेश दपर्ण द्वारा सम्‍पादित प्रतिनिधि कहानियों के  संदर्भ में)
  • बीसवीं सदी के अंति‍म दशक की प्रमुख स्‍त्री कथाकारों की कहानियों में स्‍त्री जीवन
  • बीसवीं सदी के अंति‍म दशक के उपन्‍यासों में जीवन मूल्‍य
  • बुद्धकालीन समाज और धर्म (बौद्ध, जैन और ब्राह्मण साहित्‍य के परिप्रक्ष्‍य में)
  • ब्रज के 17 वीं शताब्‍दी के ब्रजभाषा के अज्ञात कवि (रसिकदास) परिचय व कृतित्त्व
  • ब्रज तथा खड़ी बोली के संधिस्‍थलीय क्षेत्र का भाषा-सर्वेक्षण
  • ब्रजभाषा एवं लोकगीतों में नारी-विमर्श (एक तुलनात्‍मक अध्‍ययन)
  • ब्रज-भाषा काव्‍य में निकुञ्ज्ज-लीला का स्‍वरूप
  • ब्रजलोक काव्‍य में कृष्‍ण का स्‍वरूप
  • भक्‍त शिरोमणि सूरदास एवं महाराष्‍ट्र सन्‍त एकनाथ के श्रीमद्भागवत पुराण के प्रभाव के संदर्भ में
  • भक्‍त-कवि हरिराय जी व्‍यक्तित्त्व और कृतित्त्व
  • भक्ति आन्‍दोलन और कबीर का सामाजिक दर्शन
  • भक्ति कालीन सूफ़ी काव्‍य कवि कल्‍पना, आख्‍यान पद्धति एवं काव्‍य रूपक
  • भक्तिकाल में रीतिकाव्‍य की प्रवृत्तियाँ और सेनापति का विशेष अध्‍ययन
  • भक्तिकालीन कवियों का भाषायी परिवेश
  • भक्तिकालीन कवियों की सामाजिक दृटि और उनके आदर्शो का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • भक्तिकालीन संत और सूफ़ी कवियों का दार्शनिक अनुशीलन
  • भक्तिकालीन सामाजिक संदर्भ और मीरा
  • भक्तिकालीन सूफ़ी काव्‍य में लोक संस्‍कृति मिरगावती, पद्मावत, मधुमालती के विशेष संदर्भ में
  • भक्तिकालीन हिन्‍दी सूफ़ी काव्‍य स्‍त्री जीवन (मृगावती, मधुमालती, पद्यावत और चित्रावली के विशेष संदर्भ में)
  • भगवत रावत का काव्‍य संसार संवेदना और शिल्‍प
  • भगवतीचरण वर्मा के कथा साहित्‍य में समाज और संस्‍कृति
  • भवानी प्रसाद मित्र का साहित्‍य संवेदना और शिल्‍प
  • भवानीप्रसाद मिश्र के काव्‍य में विश्‍व दृष्टि के विविध आयाम
  • भारत विभाजन का ऐतिहासिक  यथार्थ एवं हिन्‍दी उपन्‍यास
  • भारत विभाजन के संदर्भ में हिन्‍दी पत्रकारिता सर्वेक्षण एवं मूल्‍यांकन
  • भारत विभाजन सम्‍बन्‍धी हिन्‍दी, उर्दू तथा पंजाबी कहानियों का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • भारतीय काव्‍यशास्‍त्र में औचित्‍य सिद्धान्‍त का विवेचनात्‍मक अध्‍ययन (प्राचीन से आधुनिक चिन्‍तन तक)
  • भारतीय मध्‍यवर्ग और अमरकांत का कथा साहित्‍य
  • भारतीय मुस्लिम समाज का यथार्थ और शानी का कथा साहित्‍य
  • भारतीय संस्‍कृति के विकास में अल्‍वार संतों तथा अष्‍टछाप कवियों का योगदान (विशेष संदर्भ पेरियाल्‍वार और सूरदास का तुलनात्‍मक अध्‍ययन)
  • भारतीय सूफ़ी चिन्‍तन के संदर्भ में नूर मोहम्‍मद का काव्‍य
  • भारतीय स्‍वच्‍छन्‍दतावादी (‍रोमांटिक) उत्‍थान के परिदृश्‍य में छायावाद का अध्‍ययन
  • भारतेन्‍दु के साहित्‍य पर पुष्टि-भक्ति एवं दर्शन का प्रभाव
  • भारतेन्‍दु युगीन साहित्‍य में व्‍यक्‍त परम्‍परा और आधुनिकता की अवधारणाएँ
  • भीष्‍म साहनी का कथा-साहित्‍य कथ्‍य और शिल्‍प
  • भीष्‍म साहनी के कथा स‍ाहित्‍य में विभाजन, विस्‍थापन और मध्‍यमवर्ग
  • भीष्‍म साहनी के कथा-साहित्‍य में जिजीविषा
  • भीष्‍म साहनी के कथा-साहित्‍य में मानवीय संवेदना
  • भीष्‍म साहनी के नाटकों में युगीन संदर्भ
  • भूमण्‍डलीकरण के परिप्रक्ष्‍य में हिन्‍दी उपन्‍यासों का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन (1900 से अद्यावधी तक)
  • भैरव प्रसाद गुप्‍त के उपन्‍यासों में गाँव का बदलता परिदृश्‍य
  • भोजपुरी जनपद की लोकस्‍मृति में 1857 की क्रांति
  • भोजपुरी मुहावरों का समाजभासि‍की अध्‍ययन
  • भोजपुरी लोक-साहित्‍य में निम्‍नवर्गीय चेतना
  • भ्रमरगीत में सूर का लोकदर्शन
  • मंजुल भगत के कथा-साहित्‍य में चरित्र-सृष्टि
  • मंजूर एहतेशाम के उपन्‍यासों में मुस्लिम जीवन का यथार्थ
  • मधुमालती तथा कुतुबन कृत मृगावती की भाषा का शैली तात्विक अध्‍ययन
  • मध्‍य युगीन सूफ़ी प्रेमाख्‍यानक काव्‍यों का समाज दर्शन
  • मध्‍यकालीन कविता में उपमामूलक रूढि़याँ
  • मध्‍यकालीन काव्‍य परिदृश्‍य और रहीम
  • मध्‍यकालीन मुस्लिम भक्‍त कवियों की साधना और लोकजीवन
  • मध्‍ययुगीन कृष्‍ण-भक्ति परम्‍परा और लोक-संस्‍कृति (16 वीं और 17 वीं शताब्‍दी)
  • मध्‍ययुगीन वार्ता-साहित्‍य में चित्रित समाज
  • मध्‍ययुगीन हिन्‍दी संत कवियों की सामाजिक दृष्टि
  • मध्‍यवर्गीय यथार्थ की चुनौतियाँ एवं कमलेश्‍वर का कथा साहित्‍य
  • मनोवैज्ञानिक कथा-साहित्‍य के संदर्भ में प्रसाद का योगदान
  • मनोहर श्‍याम जोशी के उपन्‍यासों में उत्तर आधुनिक समाज
  • मन्‍नू भंडारी का कथा साहित्‍य संवेदना एवं शिल्‍प
  • मन्‍नू भंडारी के कथा साहित्‍य में स्‍त्री पुरुष-संबंध
  • मन्‍नू भंडारी के कथा-साहित्‍य में परिवार का स्‍वरूप
  • मन्‍नू भंडारी के कथा-साहित्‍य में युग-बोध
  • मन्‍मथनाथ गुप्‍त के उपन्‍यासों में युग चेतना
  • ममता कालिया के उपन्‍यास साहित्‍य में स्‍त्री चेतना
  • मराठी सन्‍त वाङ्गमय में चर्चित हिन्‍दी के मध्‍ययुगीन कवि
  • मलिक मोहम्‍मद जायसी की कृतियों का सांस्‍कृतिक अध्‍ययन
  • महादेवी के गद्य साहित्‍य में नारी-चेतना
  • महादेवी वर्मा के काव्‍य में रहस्‍यवाद और यथार्थवाद का द्वन्‍द्व
  • महादेवी-साहित्‍य-दर्शन
  • महाभारत और मैकियावेली के प्रिंस में राजतंत्र (एक तुलनात्‍मक अध्‍ययन)
  • महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनुदित साहित्‍य का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन
  • महिला रचनाकारों की आत्‍मकथाओं से उभरता स्‍त्री के संघर्ष का संसार
  • माचवे के साहित्‍य का आलोचनात्‍मक अध्‍ययन
  • मार्कण्‍डेय के कथा साहित्‍य में ग्रामीण जीवन
  • मीरजापुर जनपद के लोकसाहित्‍य का अध्‍ययन (लोकगीत ‘कजली’ के विशेष संदर्भ में)
  • मीराकांत के साहित्‍य संसार में ‘स्‍त्री’
  • मुक्तिबोध एवं धूमिल की कविता में व्‍यवस्‍था विरोध
  • मुक्तिबोध का वैचारिक साहित्‍य
  • मुक्तिबोध के काव्‍य का शैलीवैज्ञानिक अध्‍ययन
  • मुज़फ्फरनगर लोकसाहित्‍य में बदले हुए स्‍वर
  • मुण्‍डारी आदिवासी गीतों में जीवन राग एवं आदिम आकांक्षाएँ
  • मुल्‍ला दाऊद के काव्‍य में लोक-संस्‍कृति
  • मृगावती की भाषा का ऐतिहासिक अध्‍ययन
  • मृणाल पाण्‍डेय के उपन्‍यासों में स्‍त्री विमर्श
  • मृदुला गर्ग के उपन्‍यास संवेदना और शिल्‍प
  • मेरठ जनपद की लोकोक्तियाँ
  • मैत्रेयी पुष्‍पा के उपन्‍यासों में अभिव्‍यक्‍त स्‍त्री विमर्श
  • मैत्रेयी पुष्‍पा के उपन्‍यासों में लोक जीवन
  • मैथिलीशरण गुप्‍त के काव्‍य का अर्थवैज्ञानिक अध्‍ययन
  • मैथिलीशरण गुप्‍त के काव्‍य में नारी
  • मैनेजर पाण्‍डेय की आलोचना दृष्टि
  • मोहन राकेश और सुरेन्द्र वमाा के नाटकों में परंपरा और आधुननकता  तुलनात्मक अध्ययन
  • मोहन राकेश के नाटकों के कथा-वस्‍तु स्रोत एवं शिल्‍प
  • मोहन राकेश के नाटकों में आधुनिकता बोध
  • मोहन राकेश के नाटकों में युगीन समस्‍याएँ
  • मोहन राकेश के नाट्य साहित्‍य में सामाजिक यथार्थ
  • मोहन राकेश के नाट्यसाहित्‍य में सामाजिक यथार्थ
  • मोहन राकेश के नारी पात्रों का मनोवैज्ञानिक अध्‍ययन
  • मोहन राकेश के साहित्‍य में महानगरीय बोध
  • मौलाना दाऊद के चांदायन में चित्रित समाज
  • यशपाल उनका कृतित्त्व और दर्शन
  • यशपाल के उपन्‍यास-साहिन्‍य में नारी चेतना
  • यशपाल के उपन्‍यासों का सामाजिक अध्‍ययन
  • यशपाल के उपन्‍यासों में मध्‍यवर्ग
  • यशपाल-साहित्‍य में नारी का स्‍वरूप
  • यात्रा साहित्‍य का वैशिष्‍ट्य और अज्ञेय का यात्रा साहित्‍य
  • युगचेतना के संदर्भ में प्रेमचंद और उनका गोदान
  • रघुवीर सहाय की कविताओं में प्रतिरोध का स्‍वरूप
  • रघुवीर सहाय के काव्‍य में मूल्‍य-चेतना
  • रत्‍नाकर की काव्‍य-भाषा का शैलीतात्त्विक अध्‍ययन
  • रवीन्‍द्र कालिया का कथा साहित्‍य
  • रसखान काव्‍य का भाषा वैज्ञानिक अध्‍ययन
  • रांगेय राघव का उपन्‍यास साहित्‍य
  • रांगेय राघव की अनुवाद प्रक्रिया एक अध्‍ययन (सेक्‍सपियर के नाटकों के संदर्भ में)
  • रांगेय राघव के उपन्‍यासों में द्वन्‍द्व
  • राजेन्‍द्र यादव के सम्‍पादकीय हाशियाकृत समाज
  • राजेश जोशी का काव्‍य संवेदना और शिल्‍प
  • राम हिन्‍दी नाटकों में नारी चित्रण (1937 – 1950)
  • रामचरित मानस में मध्‍ययुगीन वैष्‍णव-संस्‍कृति
  • राम‍चरितमानस एवं रामावतार‍चरित (कश्‍मीरी रामायण) का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • रामचरितमानस के तत्सम शब्‍दों का ऐतिहासिक अध्‍ययन
  • रामदरश मिश्र के उपन्‍यासों में चित्रित ग्रामीण जीवन का यथार्थ
  • रामदरश मिश्र के उपन्‍यासों में मानवीय संबंध और मूल्‍य
  • रामनगर की रामलीला और उसका नाट्यालेख एक आलोचनात्‍मक अध्‍ययन
  • रामविलास शर्मा की कथा-आलोचना प्रतिमान और पद्धति
  • रामाश्‍वमेध का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन
  • रामेश्‍वर लाल खण्‍डेलवाल तरुण के काव्‍य का स्‍वच्‍छन्‍दतावादी मूल्‍यांकन
  • राही (मासूम रजा) और शानी (गुलशेर खाँ) की उपन्‍यास-कला का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • राही मासूम रज़ा के उपन्‍यास संवेदन और शिल्‍प
  • राही मासूम रज़ा के उपन्‍यास संवेदना के आयाम
  • राही मासूम रज़ा के लेखन में उत्तर औपनिवेशिक यथार्थ
  • राही मासूम रज़ा के साहित्‍य का वैचारिक परिप्रेक्ष्‍य
  • राहुल सांकृत्‍यायन के उपन्‍यासों में सांस्‍कृतिक चिंतन
  • राहुल सांकृत्‍यायन के नाटकों में अभिव्‍यक्‍त भोजपुरिया समाज
  • रीतिकाल और आधुनिक काल के सन्धियुगीन हिन्‍दी साहित्‍य की प्रवृत्तियाँ (1763 से 1863)
  • रीतिकालीन कवि और आचार्यों द्वारा प्रतिपादित काव्‍य सिद्धांत
  • रीतिकालीन ग्रंथों में इतिहास और संदर्भ पद्माकर और मान के वीरकाव्‍य
  • रीतिकालीन वीरकाव्‍य एक मूल्‍यांकन (केशव, सूदन, भूषण, लाल और पद्माकर के विशेष संदर्भ में)
  • रीतिकालीन साहित्‍यशास्‍त्र एवं आचार्य कवि प्रताप साहि
  • रैदास के काव्‍य की सामाजिक चेतना
  • लम्‍बी कविताओं का रचना-शिल्‍प
  • ललित किशोरी व्‍यक्तित्‍व और कृतित्‍व
  • ललित निबंध परम्‍परा में विद्यानिवास मिश्र का योगदान
  • लीलाधर जगूड़ी की कविताओं का सांस्‍कृतिक आधार एवं उनका भाषायी स्‍वरूप
  • वक्रोक्ति-चिन्‍तन के संदर्भ में डॉ० धर्मवीन भारती के काव्‍य का अनुशीलन
  • वक्रोक्ति-सिद्धान्‍त के संदर्भ में अयोध्‍या सिंह ‘हरिऔध’ के काव्‍य का अध्‍ययन
  • वर्ग-संघर्ष की अवधारणा के संदर्भ में मुक्तिबोध के काव्‍य का मूल्‍यांकन
  • वर्तमान ऐतिहासिक और सामाजिक समस्‍याओं के संदर्भ में समकालीन हिन्‍दी कविता एक अध्‍ययन (1960 से 1991)
  • वस्‍तु एवं रूप के संदर्भ में मुक्तिबोध के कथा-साहित्‍य का विलेश्‍लेष्‍णात्‍मक अध्‍ययन
  • वारकरी सन्‍तों के हिन्‍दी काव्‍य का आलोचनात्मक अध्‍ययन
  • वाराणसी के नाटककार परम्‍परा और प्रयोग
  • वाल्‍मीकि रामायण और रामचरितमानस के क‍था-स्‍त्रोत एवं कथा-शिल्‍प
  • वाल्‍मीकि, कम्‍बन और तुलसीदास की स्‍त्री-दृष्टि का तुलनात्‍मक अनुशीलन
  • विक्रमोर्वशीयम् और उवर्शी की कथा-संघटना और कथा-संवेदना का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • विजयदेव नारायण साही का आलोचना-कर्म
  • विद्यासागर नौटियाल के कथा साहित्‍य में समाज, राजनीति एवं पर्वतीय जीवन
  • विपिन कुमार अग्रवाल के नाटकों का अध्‍ययन
  • विवेक राय के साहित्‍य में भोजपुरी भाषा और संस्‍कृति एक अध्‍ययन
  • विवेकानन्‍द का दिनकर के साहित्‍य पर प्रभाव
  • विवेकीराय के निबन्‍धों में प्रतिपाद्य एवं शिल्‍प विधान
  • विष्‍णु प्रभाकर के उपन्‍यासों में अभिव्‍यक्‍त मानवीय मूल्‍य
  • शंकर शेष के नाटकों का रचना विधान
  • शब्‍द-शक्ति के संदर्भ में पं० द्वारका प्रसाद मिश्र कृत ‘कृष्‍णायन’ महाकाव्‍य का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन
  • शमशेर बहादुर सिंह के काव्‍य में बिंब एवं प्रतीक
  • शाण्डिल्‍य भक्तिसूत्रों में भक्ति का स्‍वरूप विवेचन
  • शानी के उपन्‍यासों में अभिव्‍यक्‍त भारतीय मुस्लिम समाज एवं उसकी समस्‍याएँ
  • शिवप्रसाद सिंह के उपन्‍यासों में संस्‍कृति-बोध
  • शिवमंगल सिंह सुमन के काव्‍य में स्‍वच्‍छन्‍दतावादी  चेतना का अध्‍ययन
  • शिवानी व्‍यक्त्त्वि और कृतित्त्व
  • शुक्‍लोत्तर आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्‍द्र का योगदान
  • शुद्धाद्वैतवाद और सूर की भक्तिभावना का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन
  • शूक्‍ल पूर्व हिन्‍दी आलोचना महत्त्व और विश्‍लेषण
  • शेखर जोशी का कथा साहित्‍य
  • शेखर जोशी की कहानियों में श्रम और संघर्ष
  • श्‍याम बेनेगल और समान्‍तर सिनेमा
  • श्री गुरू ग्रन्‍थ साहिब में उल्लिखित कवियों के धार्मिक विश्‍वासों का अध्‍ययन
  • श्री लज्‍जाराम मेहता व्‍यक्‍तित्व और कृतित्त्व
  • श्रीकांत वर्मा के काव्‍य में इतिहास-बोध
  • श्रीधर पाठक द्वारा अनूदित गोल्‍डस्मिथ के काव्‍य की अनुवाद प्रक्रिया एवं शिल्‍प
  • श्रीमद्भागवत और सूरकाव्‍य का अन्‍तस्‍संबन्‍ध एक आलोचनात्‍मक संबंध
  • श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी के डायरी-साहित्‍य का विश्‍लेषणात्‍मक अध्‍ययन
  • श्रीलाल शुक्‍ल के उपन्‍यासों का समाजशास्‍त्रीय अध्‍ययन
  • श्रीलाल शुक्‍ल के उपन्‍यासों में विसंगति-बोध
  • संचार और मनोभाषिकी (युवा राजनीतिज्ञ संचारकों के विशेष संदर्भ में)
  • संजीव के उपन्‍यासों का सामाजशास्‍त्रीय अध्‍ययन
  • संजीव के उपन्‍यासों में चित्रित समाज का विश्‍लेष्‍ण (सामाजिक विघटन, सामाजिक मानदंड एवं सामाजिक चेतना के संदर्भ में
  • संजीव के उपन्‍यासों में युग-बोध
  • संत कबीर और बंगाल के बाउल एक अध्‍ययन
  • संत साहित्‍य के विविध आयाम
  • संस्‍कृत साहित्‍य विशेषत काव्‍य शास्‍त्र में विश्‍वेश्‍र पर्वतीय का योगदान
  • संस्‍कृति का जातीय स्‍वरूप और आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंध
  • सत्तरोत्तरी हिन्‍दी कविता में युगीन संदर्भ
  • सन्‍त दादूदयाल का काव्‍य-सम्‍पादन
  • सन्‍त साहित्‍य में प्रतिक विधान (16 वीं – 17 वीं शताब्‍दी)
  • सन्‍त साहित्‍य में प्रतीक विधान (16 वीं – 17 वीं शताब्‍दी)
  • समकालीन कथा-साहित्‍य में नासिरा शर्मा का योगदान
  • समकालीन कहानी में आर्थिक एवं राजनैतिक मूल्‍य
  • समकालीन कहानी में दलित चेतना
  • समकालीन महिला कथाकारों की आत्‍मकथाओं का विवेचनात्‍मक अध्‍ययन
  • समकालीन विमर्शों के आलोक में कबीर काव्‍य का पुनर्मूल्‍यांकन
  • समकालीन सामाजिक संरचना के परिप्रेक्ष्‍य में काशीनाथ सिंह के कथा साहित्‍य का अध्‍ययन
  • समकालीन स्‍त्री उपन्‍यासकारों के उपन्‍यास स्‍त्री मुक्ति और आर्थिक स्‍वाधीनता का प्रश्‍न
  • समकालीन स्‍त्री उपन्‍यासकारों के उपन्‍यासों में पितृसत्ता (कृष्‍णा सोबती, चित्रा मुद्गल और मैत्रेयी पुष्‍पा के विशेष संदर्भ में)
  • समकालीन स्‍त्री उपन्‍यासकारों के उपन्‍यासों में स्‍त्री स्‍वाधीनता (प्रभा खेतान और चित्रा मुद्गल के विशेष संदर्भ में)
  • समकालीन हहिंदी रिंगमिंच के पररप्रेक्ष्य में हबीब तनवीर के रिंग-प्रयोग
  • समकालीन हिन्‍दी उपन्‍यास और दलित चेतना
  • समकालीन हिन्‍दी उपन्‍यासों में जनजातीय जीवन
  • समकालीन हिन्‍दी कविता का स्‍त्री स्‍वर और प्रतिरोधी चेतना
  • समकालीन हिन्‍दी कविता में पार्यावरण विमर्श
  • समकालीन हिन्‍दी कविता में सत्ता विमर्श (1990 से 2010 तक)
  • समकालीन हिन्‍दी कहानी (1980 से 2000) सामाजिक—राजनीतिक चेतना
  • समकालीन हिन्‍दी कहानी और आधुनिकता बोध (1970 से 2000)
  • समकालीन हिन्‍दी कहानी संवेदना और शिल्‍प (1980 से अबतक) 2014
  • समकालीन हिन्‍दी लेखिकाओं के उपन्‍यासों में स्‍त्री-पुरूष संबंध
  • समकालीन हिन्‍दी-साहित्‍य में दलित-मुक्ति-संघर्ष (1985 से 2008 तक)
  • समकालील महिला कथाकारों के परिप्रेक्ष्‍य में मंजुल भगत के उपन्‍यासों का मूल्‍यांकन
  • सम्‍प्रदायिकता की समस्‍या और समकालीन हिन्‍दी-कहानी की रचना दृष्टि (1980 से 2000)
  • सरबंगी में अभिव्‍यक्‍त समाज-दर्शन
  • सर्वेश्‍वर दयाल सक्‍सेना के पद्यकृतियों का भाषावैज्ञानिक विवेचन
  • साठोत्तर हिन्‍दी-नाटकों में स्‍त्री-पुरुष सम्‍बन्‍ध
  • साठोत्तरी रंगमंच का स्‍वरूप और प्रवृत्तियाँ
  • साठोत्तरी हिन्‍दी कविता में असंतोष के स्‍वर और धूमिल
  • साठोत्तरी हिन्‍दी कहानी में कथाकार महीप सिंह का योगदान
  • साठोत्तरी हिन्‍दी-उर्दू उपन्‍यासों का तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • साठोत्तरी हिन्‍दी-महिला उपन्‍यासकारों के उपन्‍यासों में नायिका-भेद
  • साठ्योत्तरी हिन्‍दी कहानियाँ संरचना और चित्रित मानवमूल्‍य
  • सामाजिक क्रांति की दिशाएँ और भारतेन्‍दु हरिश्‍चन्‍द्र
  • सामाजिक चेतना और प्रेमचंदोत्तर हिन्‍दी उपन्‍यास
  • सामाजिक चेतना के परिप्रेक्ष्‍य में प्रेमचन्‍दोत्तर हिन्‍दी-उपन्‍यासों का गवेष्‍णात्‍मक अध्‍ययन (1936 से 1970)
  • सामाजिक संस्‍कृति की अवधारणा एवं राही मासूम रज़ा का साहित्‍य
  • सामाजिक-राजनीतिक विघटन के परिप्रेक्ष्‍य में मन्‍नू भंडारी के कथा-साहित्‍य का अध्‍ययन
  • साहबराय कायस्‍थ कृत रामायन का अध्‍ययन और सम्‍पादन
  • साहित्‍य का समाज और संजीव के उपन्‍यास
  • साहित्‍यि‍क पत्रकारिता और अमर उजाला 1990 – 2000
  • साहित्‍येति‍हास लेखक के रूप में आचार्य रामचन्‍द्र शुक्‍ल
  • साहिर लुधि‍यानवी एवं दिनकर के काव्‍य का तुलनात्‍मक अनुशीलन
  • सुन्‍दर कविराय का अभिव्‍यक्ति-विधान
  • सुरेन्‍द्र वर्मा के कथा-साहित्‍य का वस्‍तु एवं शिल्‍पनिष्‍ठ अध्‍ययन
  • सूफ़ी एवं कृष्‍ण भक्‍त कवियों की प्रेम-पद्धति का तुलनात्‍मक अध्‍ययन (15 वीं से 19 वीं शताब्‍दी तक)
  • सूफ़ी कवि नूर मुहम्‍मद की काव्‍य-कृतियों का सांस्‍कृतिक अध्‍ययन
  • सूफ़ी प्रेमगाथाकार कवियों की सौंदर्य-चेतना (17 वीं से 19 शताब्‍दी ई.० तक)
  • सूर काव्‍य के विविध आयाम पुर्नमुल्‍यांकन
  • सूर रचित सूरसागर के भ्रमरगीत की काव्‍य भाषा का शैली वैज्ञानिक अध्‍ययन
  • सूरदास का सौन्‍दर्य बोध और लोक जीवन
  • सूर-पूर्व ब्रजभाषा और उसका साहित्‍य
  • सूरसागर में स्‍वभावोक्ति
  • सूरीनाम की हिन्‍दी गद्य-परम्‍परा के विकास में पुष्पिता अवस्‍थी का योगदान
  • सूर्यकान्‍त त्रिपाठी निराला की लम्‍बी कविताएँ एक अनुशीलन
  • सूर्यबाला का कथा साहित्‍य स्‍त्री नियति और मुक्ति आकांक्षा के संदर्भ में
  • स्‍त्री अस्मिता के सवाल और मैत्रेयी पुष्‍पा का कथा-कर्म
  • स्‍त्री मुक्ति का भारतीय परिप्रेक्ष्‍य और कवि विचारक कात्‍यायनी
  • स्‍त्री मुक्ति के संदर्भ में जैनेन्‍द्र कुमार का कथा साहित्‍य
  • स्‍त्री मुक्ति चेतना का संघर्ष और समकालीन हिन्‍दी उपन्‍यास
  • स्‍त्री विमर्श के संदर्भ में महादेवी का गद्य-साहित्‍य
  • स्‍वच्‍छन्‍दवादिता काव्‍य दृष्टि और अज्ञेय का काव्‍य
  • स्‍वतन्‍त्र्योत्तर समस्‍यामूलक हिन्‍दी उपन्‍यासों का वस्‍तुपरक अध्‍ययन (1947-1960)
  • स्‍वतन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी कहानी सामाजिक आधार भूमि (सन् 1950 से 1970)
  • स्‍वयं प्रकाश के कथा साहित्‍य में सामाजिक यथार्थ
  • स्‍वातंत्र्यपूर्व हिन्‍दी निबन्‍धों का सा‍माजिक और सांस्‍कृतिक अध्‍ययन
  • स्‍वातंत्र्योत्तर उपन्‍यासों में लघु मानव की परिकल्‍पना
  • स्‍वातंत्र्योत्तर भारतीय समाज और शैलेश मटियानी के उपन्‍यास
  • स्‍वातंत्र्योत्तर हिन्‍दी और कोरियाई कहानी का तुलनात्‍मक अध्‍ययन (1947 से 1965)
  • स्‍वातंत्र्योत्तर हिन्‍दी कथा साहित्‍य में वृद्ध पात्रों की उपस्थिति
  • स्‍वातंत्र्योत्तर हिन्‍दी कथा-साहित्‍य एवं श्री लाल शुक्‍ल
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर कालीन राजनीतिक वैचारिक परिप्रेक्ष्‍य में हरिशंकर परसाई के साहित्‍य का कथ्‍य-विश्‍लेषण
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर भारत के सामाजिक-राज‍नीतिक परिवर्तनों के परिप्रक्ष्‍य में राही मासूम रजा के उपन्‍यास साहित्‍य का अध्‍ययन
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर भारत विकास की विसंगतियाँ और वीरेन्‍द्र जैन के उपन्‍यास
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर लम्‍बी कविताओं में वस्‍तु एवं रूप एक अध्‍ययन
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी उपन्‍यास सामाजिक आधारभूमि (1950 से 1980)
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी कविता में नवगीत (1961 से 1980)
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी कहानी बदलते मानव मूल्‍य और शिल्‍प
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी कहानी में परिवार का स्‍वरूप (1947 से 1975 तक)
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी कहानी में भय का रूप भीष्‍म साहनी, कृष्‍ण सोबती, अमरकांत, सानी और उदय प्रकाश विशेष संदर्भ में)
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी कहानी सामाजिक संदर्भ
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी गीतिकाव्‍य का शिल्‍प-विधान
  • स्‍वातन्‍त्र्योत्तर हिन्‍दी-पत्रकारिता में राष्‍ट्रीय चेतना (आपातकाल तक)
  • स्‍वाधीन भारत का सामाजिक और राजनैतिक यथार्थ और हरिशंकर परसाई का साहित्‍य
  • स्‍वाधीनता संग्राम की लोकस्‍मृतियाँ भोजपुरी जनपद की विशेष संदर्भ में
  • हजारीप्रसाद द्विवेदी का भाषा-चिन्‍तन
  • हजारीप्रसाद द्विवेदी के उपन्‍यासों में सांस्‍कृतिक चेतना का द्वन्‍द्व
  • हजारीप्रसाद द्विवेदी के उपन्‍यासों में सामाजिक-सांस्‍कृतिक चेतना
  • हरिकृष्‍णा प्रेमी के नाटकों का विवेचनात्‍मक अध्‍ययन
  • हरिवंशराय बच्‍चन की आत्‍मकथा संवेदना के विविध आयाम
  • हरिशंकर परसाई का व्‍यंग्‍य साहित्‍य सामाजिक राजनीतिक संदर्भ
  • हरिशंकर परसाई के गद्य साहित्‍य में समकालीन जीवन यथार्थ
  • हिन्‍दी आलोचना का अध्‍ययन (1980 से 2010 तक)
  • हिन्‍दी आलोचना के विकास में ‘समालोचक’ पत्रिका की भूमिका
  • हिन्‍दी आलोचना के विकास में नामवर सिंह सम्‍पादित ‘आलोचना’ पत्रिका का योगदान
  • हिन्‍दी आलोचना के विकास में बच्‍चन सिंह का योगदान
  • हिन्‍दी उपन्‍यास का विकास और मध्‍यवर्ग
  • हिन्‍दी उपन्‍यास परम्‍परा और प्रयोग (1937 से 1962)
  • हिन्‍दी उपन्‍यास माकस्‍वादी दृष्टि (1940 से 1960 तक)
  • हिन्‍दी उपन्‍यास में पारिवारिक जीवन
  • हिन्‍दी उपन्‍यास में वेश्‍या बदलते हुए परिप्रेक्ष्‍य (1916 से 1975 तक)
  • हिन्‍दी उपन्‍यास सामाजिक आधारभूमि (1916 से 1947)
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों के वारवनिता चरित्र
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों के विकास में संस्‍कृत आख्‍यान परंपरा का योगदान
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों में अभिव्‍यक्‍त राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना स्‍वाधीनता संग्राम के परिप्रक्ष्‍य में
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों में आदिवासी समुदाय का चित्रण (1991-2010)
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों में काशी का इतिहास, समाज एवं संस्‍कृति
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों में ग्राम समस्‍याएँ
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों में दलित-चेतना (प्रेमचंद से अमृतलाल नागर तक)
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों में भोजपुरी जनपद
  • हिन्‍दी उपन्‍यासों में स्‍त्री-विमर्श (1990 से 2010 तक)
  • हिन्‍दी उर्दू क्षेत्र में नवजागरण सामासिकता और सम्‍प्रदायिकता का प्रश्‍न (1857 से 1920 के विशेष संदर्भ में)
  • हिन्‍दी उर्दू लेखिकाओें की कहानियों में स्‍त्री जीवन (1980 से 2000)
  • हिन्‍दी एवं मराठी की दलित आत्‍मकथाओं का समाजशास्‍त्रीय अध्‍ययन
  • हिन्‍दी और कन्‍नड की समान शब्‍दावली का भाषावैज्ञानिक अध्‍ययन
  • हिन्दी और मराठी कथा साहित्य में हिहित मंगलमुखी समुदाय का तुलनात्मक अध्ययन
  • हिन्‍दी कथा साहित्‍य को अमरकांत का योगदान
  • हिन्‍दी कथा-साहित्‍य के विकास में प्रवासी महिला कथाकारों का योगदान
  • हिन्‍दी कविता पर निराला-काव्‍य के विषय और भाषा संरचना का प्रभाव
  • हिन्‍दी कविता में ‘बनारस’ संस्‍कृति और समाज
  • हिन्‍दी कहानियों में प्रेम के बदलते स्‍वरूप
  • हिन्‍दी कहानी के विकास में कमलेश्‍वर सम्‍पादित ‘सारिका’ पत्रिका का योगदान
  • हिन्‍दी कहानीकारों की कहानी-समीक्षा
  • हिन्‍दी का आंच‍िलिक उपन्‍यास उपलब्धि और संभावना
  • हिन्‍दी का यात्रा-साहित्‍य सांस्‍कृतिक एवं साहित्यिक अनुशीलन
  • हिन्‍दी काव्‍य में वर्ण (रंग) परिज्ञान (सोलहवीं शताब्‍दी)
  • हिन्‍दी की दलित आत्‍मकथाएँ वस्‍तु और शिल्‍प
  • हिन्‍दी की दलित आत्‍मकथाओं का समाजशास्‍त्र
  • हिन्‍दी की दलित कविता एक आलोचनात्‍मक अध्‍ययन
  • हिन्‍दी की दलित कविता एक आलोचनात्‍मक अनुशीलन
  • हिन्‍दी की प्रगतिवादी समीक्षा सिद्धान्‍त और प्रयोग
  • हिन्‍दी की प्रगतिशील कविता में प्रकृति (नार्गाजुन, त्रिलोचन और केदारनाथ अग्रवाल के संदर्भ में)
  • हिन्‍दी की साहित्यिक पत्रकारिता के विकास में छायावाद का योगदान
  • हिन्‍दी की स्‍त्री आत्‍मकथाओं में स्‍त्री मुक्ति का स्‍वर
  • हिन्‍दी कृष्‍ण-भक्ति साहित्‍य में लीला-भावना और उसका स्‍त्रोत (16 वीं शताब्‍दी)
  • हिन्‍दी के ऐतिहासिक उपन्‍यासों में नायक की परिकल्‍पना
  • हिन्‍दी के छायावादी काव्‍य में अभिव्‍यंजित नैतिक मूल्‍य
  • हिन्‍दी के प्रमुख आँचलिक उपन्‍यासों में राष्‍ट्रीय चेतना
  • हिन्‍दी के प्रमुख नायिका-प्रधान ऐतिहासिक उपन्‍यासों में नारी-विपर्श
  • हिन्‍दी के प्रमुख समाचारपत्रों के सम्‍पादकीय पृष्‍ठ का सामाजिक सरोकार (हिन्‍दुस्‍तान, दैनिक जागरण और जनसत्ता के विशेष संदर्भ में)
  • हिन्‍दी के प्रारंभिक उपन्‍यासों में सामाजिक यथार्थ
  • हिन्‍दी के मनोवैज्ञानिक उपन्‍यास और जैनेन्‍द्र कुमार
  • हिन्‍दी के लघु उपन्‍यास सामाजिक चेतना और मानवमूल्‍य
  • हिन्‍दी के लघु उपन्‍यासों में सामाजिक यथार्थ (1950 से 1970)
  • हिन्‍दी के लेखिकाओं के उपन्‍यासों में समाज परिवर्तन की दृष्टि (1800 के बाद चयनित उपन्‍यासों के संदर्भ में)
  • हिन्‍दी के विकास में भारतेन्‍दु युगीन अनुवाद की भूमिका (अंग्रेजी से हिन्‍दी)
  • हिन्‍दी के संत कवियों का समाज सुधारक स्‍वरूप एक अध्‍ययन
  • हिन्‍दी क्रिया-रूपों का भाषावैज्ञानिक अध्‍ययन
  • हिन्‍दी क्षेत्र की लोकरंग परम्‍पराएँ और समकालीन हिन्‍दी नाटक
  • हिन्दी ग़ज़ल में जातीयता के रंग
  • हिन्‍दी गद्य काव्‍य का उद्गम, विकास एवं विश्‍लेषणात्‍मक अध्‍ययन
  • हिन्‍दी गद्य के विविध साहित्‍य-रूपों के उद्भव और विकास का अध्‍ययन
  • हिन्‍दी गद्य साहित्‍य में राजा शिवप्रसाद ‘सितारेहिन्‍द’ का अंशदान
  • हिन्‍दी जागरण के विकास में प्रेमचन्‍द के विवेचनात्‍मक गद्य की भूमिका
  • हिन्‍दी तथा उर्दू कथा-साहित्‍य का तुलनात्‍मक अध्‍ययन (20 वीं शताब्‍दी में)
  • हिन्‍दी दलित साहित्‍य के समीक्षक के रूप में डॉ० एन सिंह का योगदान
  • हिन्‍दी नवजागरण और कवि मैथिलीशरण गुप्‍त
  • हिन्‍दी नवजागरण और गणेश शंकर विद्यार्थी
  • हिन्‍दी नवजागरण और जयशंकर प्रसाद का कथा-साहित्‍य
  • हिन्‍दी नवजागरण और राधाचरण गोस्‍वामी
  • हिन्‍दी नवजागरण और स्‍त्री-प्रश्‍न (1850 से 1936 के विशेष संदर्भ में)
  • हिन्‍दी नवजागरण में बालमुकुन्‍द गुप्‍त का योगदान
  • हिन्‍दी नाटक और रंगमंच (1960 के पश्‍चात)
  • हिन्‍दी नाटकों में खलनायक
  • हिन्‍दी नाट्य-काव्‍य में सांस्‍कृतिक एवं सामाजिक चेतना (1950 से 1975 ई०)
  • हिन्‍दी पत्रकारिता और भूमण्‍डलीकरण की भूमिका
  • हिन्‍दी पत्रकारिता और साहित्‍य की भाषा पर वैश्‍वीकरण का प्रभाव (2000 से 2009)
  • हिन्‍दी भाषा एवं साहित्‍यिक चिंतन और इक्‍कीसवीं सदी की ‘आजकल’  पत्रिका
  • हिन्‍दी भाषा और साहित्‍य के क्षेत्र में महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान
  • हिन्‍दी भाषा के प्रचार-प्रसार एवं साहित्‍य में आर्यसमाज का योगदान
  • हिन्‍दी महिला उपन्‍यासकारों के उपन्‍यासों में नारी-अस्मिता (1980 से 2000)
  • हिन्‍दी महिला कहानीकारों के कहानियों में अभिव्‍यक्‍त जीवन-मूल्‍य (1980 से 2000)
  • हिन्‍दी रंग-परम्‍परा और उपेन्‍द्रनाथ अश्‍क का रंगकर्म
  • हिन्‍दी रीतिपरम्‍परा और आचार्य पदुमनदास
  • हिन्‍दी रेडियो नाट्य-शिल्‍प
  • हिन्‍दी ललित निबन्‍ध और विवेकी राय
  • हिन्‍दी लोकरंग परम्‍परा और हबीब तनवीर के नाटक
  • हिन्‍दी व्‍यावहारिक समीक्षा का विकास
  • हिन्‍दी सगुण काव्‍य की सांस्‍कृतिक भूमिका (संवत् 1375 से 1700)
  • हिन्‍दी सगुण भक्ति काव्‍य में मानवाधिकार संचेतना की अभिव्‍यक्ति (सूर और तुलसी के विशिष्‍ट संदर्भ में)
  • हिन्‍दी साहित्‍य की सांस्‍कृतिक आधारभूमि‍ (11 वीं से 13 वीं शताब्‍दी)
  • हिन्‍दी साहित्‍य की सांस्‍कृतिक आधार-भूमि 14 वीं और 15 वीं शताब्‍दी
  • हिन्‍दी साहित्‍य के निगुर्ण सम्‍प्रदाय में मधुरा भक्ति के तत्त्व (15 वीं और 16 वीं शताब्‍दी)
  • हिन्‍दी साहित्‍य के रीतिबद्ध कवियों की भक्ति-भावना का स्‍वरूप विवेचन (17 वीं – 18 वीं शताब्‍दी)
  • हिन्‍दी साहित्‍य में अलीगढ़ जनपद का योगदान (18 वीं 19 वीं शताब्‍दी)
  • हिन्‍दी साहित्‍य में गौतम बुद्ध
  • हिन्‍दी साहित्‍य में राधा का चारित्रिक विकास
  • हिन्‍दी साहित्‍येतिहास-लेखन की परम्‍परा और डॉ. रामविलास शर्मा की इतिहास-दृष्टि एक अनुशीलन
  • हिन्‍दी सूफ़ी काव्‍य परिवार, समाज और राजसत्ता (मृगावती, मधुमालती, पद्मावत अनुराग बाँसुरी और चित्रावली के विशेष संदर्भ में)
  • हिन्‍दी सूफ़ी प्रेमाख्‍यान परम्‍परा और शेख निसार कृत युसूफ-जुलेखा
  • हिन्‍दी सूफ़ी प्रेमाख्‍यानक काव्‍यों में रहस्‍यवाद
  • हिन्‍दी सूफ़ी साहित्‍य पर नाथपंथ का प्रभाव
  • हिन्‍दी-कृष्‍ण-काव्‍य-धारा में मुसलमान कवियों का योगदान
  • हिन्‍दी-भक्ति-साहित्‍य में बाल-प्रकृति का चित्रण
  • हृदयेश के कथा साहित्‍य में युगीन परिदृश्‍य
  • 16 वीं शती के हिन्‍दी कृष्‍ण-‍भक्ति-काव्‍य पर आलवार भक्‍तों का प्रभाव
  • 21 वीं सदी के हिन्‍दी कथा-साहित्य में किन्नर विमर्श
  • 21वीं सदी के हिन्दी उपन्यासों में आहदवासी जीवन
  • 21वीं सदी के हिन्दी उपन्यासों में संस्कृहि एवं सत्ता का स्वरूप
  • किस्‍स-ए-मेहअफ्रोज व दिलबर’’ का भाषा वैज्ञानिक अध्‍ययन
  • 16 वीं एवं 17 वीं शताब्‍दी के हिन्‍दी साहित्‍य में नारी की सा‍माजिक भूमिका
  • 16 वीं शताब्‍दी के उत्तरार्द्ध में हिन्‍दी साहित्‍य में अभिव्‍यक्‍त संस्‍कृति तथा समाज का समीक्षात्‍मक अध्‍ययन (सूर, तुलसी और दादू के विशेष संदर्भ में)
  • ‘प्रसाद’ के रंगमंचीय संवादों की भाषा
  • अज्ञेय और देवराज के उपन्‍यासों में नारी चरित्र एक तुलनात्‍मक अध्‍ययन
  • अज्ञेय का साहित्‍य चिंतन और समकालीन साहित्‍य पर उनका प्रभाव
  • अज्ञेय की गद्य-भाषा का शैली वैज्ञानिक अध्‍ययन
  • अज्ञेय के कथा-साहित्‍य में अभिव्‍यक्‍त स्‍त्री-पुरुष संबन्‍ध
  • अज्ञेय के कथा-साहित्‍य में अभिव्‍यक्‍त गांव का चरित्र चित्रण
  • अज्ञेय के कथा-साहित्‍य में अभिव्‍यक्‍त प्राचीन भारत का स्‍वरूप
  • 21 वीं सदी के हिन्‍दी कथा-साहित्य में बिहार के गांवों का चित्रण
  • 21 वीं सदी के हिन्‍दी कथा-साहित्य में बनारस के घाटों पर धार्मिक क्रियाकलाप
  • हिन्‍दी साहित्‍य में गौतम बुद्ध के सामाजिक विचार घारा का निरुपण
  • हिन्‍दी साहित्‍य में गौतम बुद्ध के समाज प्रबंधन के सूत्र

Datasource credit: Shodhganga

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Relevant areas of research in Indian Musicology today

Profile image of Keshavchaitanya Kunte

2018, International Inventive Multidisciplinary Journal

This paper takes a review of traditional avenues in the Indian Music research and further, enlists the possible avenues open for Music research in Indian perspective in the contemporary scenario.

Related papers

This is a draft of an essay which explores the history of philosophical thinking about music in India, from ancient times to more recent eras. It touches on many of the thinkers and practitioners of music in India over the centuries.

Any music origins in the society and develops with the changing realities of it. It accepts new and modified the existing in different periods of time. This process of acceptance and rejection makes any form of art exist for long. Similarly in various phases of transition Indian Classical music has embraced the elements which question its traits, especially in this highly technical world. The paper tries to point out those changes and analyse them in a legitimate manner.

Itihas Sankalan: Articles on Indian History, 2021

[Book Chapter] This short article on Indian/Bharatiya music was originally delivered as a talk in the weekly online talk series organized by Bharatiya Itihas Sankalan Samity, Assam, India during the Covid lockdown period 2020. It is a short concise presentation of the basic contours of Bharatiya music. This will help readers to appreciate how Bharatiya music is different from western music. This talk and article was in Assamese and I have translated it to English. Later, this and other talks were converted to English articles and published in the form of an edited e-book titled Itihas Sankalan: Articles on Indian History and is available on Amazon (ASIN B09JKHTV2N). Print copy of this e-book is also available in Amazon USA (ISBN 979-8497253542).

It has been almost 50 years since Harold Powers published his important article on Indian music in the English language. Since that time there has been a vastly increased number of scholarly books and articles in English on various aspects of Indian music and its socio-cultural traditions, including more recently, many studies on non-classical forms. In this paper I begin with the issue of ethnomusicology in India, and following this with an overview of some of the important works published in North America and Europe. I organize these studies in terms of their major themes of history, ethnography, gender, regional and popular music traditions and some of the theoretical streams that now characterize them.

The Hindu, 2024

's latest book is an invaluable addition to the few on Indian music. The book is not only an evidence of her scholarship and intensive research in a subject that many do not know about, but is also a riveting page turner. Her evocative bring alive the world of music in that era. Confining herself to the period between 1748 and 1848, "one of the most significant periods of change for Hindustani music", Katherine rues that the period has not been "properly mapped". The reason, "a pervasive belief" that the musicians were illiterate. The 2000-year-old tradition of writing sangita shastras stopped during this period, and Musicians from the Mughal era who shaped Hindustani music Katherine Butler Schofield's Music and Musicians in Late Mughal India presents a well-researched slice of music history.

2013. Unreferenced spoken-word draft of position paper given at the Cultural Musicology Conference, Amsterdam, 2014. "In my view, a truly ethnomusicological approach to the cultural history of music still has not yet emerged in the discipline. Firstly, I make a distinction here between the long established concerns of historical ethnomusicology, which are primarily musicological (admirably and crucially so), and the chrysalid cultural histories of those same art-music systems. The difference, as I see it, is that between a piece of carved jade and a clear glass prism – the study of music as a beautiful and important cultural object in and of itself, versus the study of music predominantly as a lens to illuminate the rest of the world. Both modes of historical study are critically important and frequently complementary, and there has not been anywhere near enough of the former in most cases to even start on the latter. But I do consider them to be substantively different kinds of enterprise. Secondly, the curious thing for me about the concerns of the new cultural histories of [Indian] music is how presentist they are. This is generally fair enough, I think, of history in ethnomusicology: a) because ethnomusicologists have rarely ventured earlier than the twentieth century in any case; and b) precisely because of the overwhelming concerns of the bulk of the discipline with the present and the impact on the present of the immediate past. With respect to India, much of the recent historical work I’ve noted has at its heart a valid and necessary desire to expose anti-colonial nationalists’ deliberate construction of North and South India’s contemporary classical traditions as “ancient, Hindu arts”, and to reposition them as colonial products to a lesser or greater degree. But historians of earlier soundworlds [and I include myself here] do not have such an excuse. Surely, as cultural historians seeking to illuminate the very different life-worlds of the past, we should at least recognise presentist concerns for what they are, and try to resist them where they are not relevant to our primary sources? Should we not approach the archives of the past as we do the living fields of the present: alive to difference, and its scholarly pleasures and dangers?"

British Journal of Ethnomusicology, 2001

Panjab University Research Journal Arts (PURJA) , 2019

The Hindustani tradition of music is a result of assimilation of Perso-Arabic music genres with indigenous Indian music genres over a period of five centuries. Since the advent of Delhi Sultanate, there was a gradual cultural synthesis in arts and culture between Hindu and Muslim communities. This process of assimilation led to the creation of Parsi-u Hindavi tradition. It indicates that there was an evolution of composite culture during medieval India. There are certain genres of art forms in which the syncretic culture of Hindus and Muslims can be observed such as architecture, painting, literature, Hindustani music, etc. In the repertoire of Hindustani music, khayal is a brilliant example of syncretic culture. In this paper, the evolution of Hindustani music is discussed from historical perspective. This study will reveal different ways in which motifs of syncretic culture can be seen present in Hindustani tradition of music.

La Meditación Mindfulness, Fácil, 2013

Rivista del Collegio Araldico, 2023

Early China, 2017

Praxis Filosófica, 2015

Olympia Prakashan, 2019

Bella Caledonia, 2023

Nietzsches Plastik. Ästhetische Phänomenologie im Spiegel des Lebens, 2021

titanmelton, 2020

Glass Structures & Engineering, 2016

Sous la dir. C. Laurelut, J. Vanmoerkerke. Occupations et exploitations néolithiques et si l’on parlait des plateaux. Actes du 31e colloque Internéo de Châlons-en-Champagne, octobre 2013. Bulletin de la Société Archéologique Champenoise. Tome 107-2014-n°4, p. 269-280.

Appetite, 2013

Neurology & neurotherapy open access journal, 2022

International Journal of Sustainable Development, 2001

Children and Libraries, 2016

Fibers And Polymers/Fibers and polymers, 2024

Children, 2024

Annales UMCS sec. F History, 2021

PECIBES, 2021

Molecular and Cellular Biochemistry, 2012

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University of Mumbai

Department of Music

Annual report.

B.Mus. audition result For any query regarding the admissions [2021-2022] please contact – # Dr.Kunal Ingle – 9325163344 # Dr.Anaya Thatte – 8424004000 # Shree Bhushan Nagdive – 9820455134 Admission 2020-21 Merit list of M.Mus. M. Mus. in Hindusthani Classical Music Admission 2020-21 B.Mus. Audition Merit List TT for TYB & M.MUS- music department Exam TT format music department Music Department TT Sample MCQ Demo MCQ TYBMusic Sample MCQ Diploma sample MCQ Sample MCQ Music Education -M.Mus.Part 2 Sample MCQ Tabla question paper_TY BA Applied science Sample of MCQs Question Bank (English) Sample of MCQs Question Bank (Hindi) Admission Notice and form for M.Mus. [Music]

The University of Mumbai is one of the oldest and first Universities founded in India in 1857 which has distinguished history of exemplary achievements in various streams of education and training and has significantly contributed towards the nation building and continues to do so.

The history of the education of performing arts of Music and Dance in Universities in India is not very old. Great musicians, musicologists, reformers who pioneered the modern trends in music performance and education from 19th century were Pandit Vishnu Digambar Paluskar and Pandit Vishnu Narayan Bhatkhande. Both these stalwarts research and restructured music education on modern scientific lines and established leading music institutions to impart training on these lines.

Independence in 1947 brought renewed awareness of our cultural traditions and subjects of Indian Culture began getting included for study at various stages of excellence in the University curricula. The study of music – its education and performance started in the University of Bombay in1969. The Music Centre was established in this year and a two year Diploma Course in Hindustani Vocal Classical Music was started. From the very beginning the effort and the emphasis of the course taught here has been on the performing excellence. With this objective in view the leading performers of different schools or traditions in vocal music called “Gharanas” have been invited on the faculty of the Music Centre to impart training and performance skills to aspiring and promising students of music. The teaching methods and pattern here are based on the age-old and time tested “Guru Shishya Parampara”.

In 1978, the Music Centre in the University of Bombay was converted into the regular Department of Music and a three-year Degree Course in vocal music – Bachelor of Fine Arts (Music Vocal) was added to existing two year Diploma Course in Music H.V.C. In 1985, two year Diploma Course in Music Hindustani Instrumental Classical – Sitar and Hindustani Vocal Light were started. In 1988 two-year Diploma Course in Music Hindustani Instrumental Classical – Tabla and in 1989 two-year Post-graduate Course in Vocal Music – Master of Fine Arts (Music Vocal) were started in the Department of Music. Three Year Degree Courses (B.F.A.) in Hindustani Instrumental Classical – Sitar and Tabla were started in 1991. The Faculty in the Department of Music consists of Reader and Lecturer in Vocal Music, posts of Honorary Music Instructors on which leading and renowned performers belonging to various traditions have been appointed. Apart from this regular staff on Faculty, many renowned scholars, experts, music performers are invited as Visiting Lecturers to give lecturers, demonstrations and exhibit performance excellence and teach theory syllabus to the students of the Department.

The interdisciplinary studies like Music and Psychology, Sociology, Philosophy and Religion along with the study of music Aesthetics, Music and Education, Research Methodology have been introduced at the M.Mus. level. The aim is to broaden the perspective of the students towards the study of music in relation to other related subjects. It must be noted here that all along these courses the central focus of all attention and related studies is on developing the ability for the good performance of music. The collective endeavour of all theory and practical study topics is to enrich the thinking, understanding and physical mechanism towards better performance of music.

The objective of the music training and education imparted in the department of Music is to make the student all-round musician and performer, aware of the various concepts and issues involved, capable of the study of related subjects which develop the sunlight in music and all contributing to making a good, intelligent and impressive musician.

Apart from the regular classes, There is a provision of musical instruments viztanpuras, Tablas, Harmonium and Sitars for the students who wish to do riyaz in the department.

Many ex-students of the Department are established in the Music industry and made the Department proud. To name a few :Smt. Uttara Kelkar, India Idol- Abhijit Sawant, Shri Satyajeet Talwalkar, Dr. Milind Malshe, Smt. Pinaz Masani, Dr.Maneesha Kulkarni, Hargun Kaur, Jazim Sharma, Smt.Vaishali Made, Dhanashri Pandit Rai, Kumar Sharma, Dr.Atindra Sarvadikar etc.

Department of Music 2nd Floor, Sanskrutik Bhavan Opp. North Gate of University Campus Hans Bhugra Road,Santacruz [East], Mumbai- 400055 Email id- [email protected] Contact No. :-9702048665/ 8422818995

Working Hour

The office of the Department of Music is open all working days, working Saturdays & during vacations from 10:20 a.m. to 6:00 p.m.

Undergraduate Course

A Three Year Degree Course B.Mus. In Hindustani Classical Vocal / Sitar / Tabla.

Post graduate Course

A Two Year Post Graduation Course M. Mus. In Hindustani Classical Vocal.

Diploma Course

Certificate course, syllabus for post graduation, academic staff, honorary and adjunct faculty-, non-teaching staff.

Ph.D. course was instituted in the Department in the last academic year that is 2006 – 07.

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जानिए PhD Music in Hindi कोर्स को करने के लिए योग्यता, आवेदन प्रक्रिया आदि

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PhD music in Hindi

संगीत एक कला होने के साथ साथ एक बहुत ही अच्छा रोजगार का जरिया भी है।  अगर आप  संगीत में अच्छे हैं तो इसका मतलब यह बिलकुल कि आप केवल एक गायक या संगीतकार ही बन सकते हैं।  आप चाहें तो म्यूज़िक में PhD करने के बाद किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर भी बन सकते हैं।  इसके अलावा आप विभिन्न मीडिया संस्थानों में स्टेज तकनीशियन या म्यूज़िक एडिटर बनकर भी अच्छा करियर बना सकते हैं। इस ब्लॉग PhD music in Hindi में म्यूज़िक में PhD करने और इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों के बारे में बताया गया है। 

This Blog Includes:

Phd म्यूजिक कोर्स के बारे में, phd म्यूजिक कोर्स क्यों करें, phd म्यूजिक कोर्स करने के लिए आवश्यक स्किल्स क्या चाहिए, phd म्यूज़िक के लिए विदेश की टॉप यूनिवर्सिटीज़ के नाम, फीस स्ट्रक्चर , phd म्यूजिक के लिए योग्यता , phd म्यूजिक में एडमिशन लेने के लिए आवेदन प्रक्रिया , phd म्यूजिक के लिए आवश्यक दस्तावेज , एंट्रेंस एग्जाम, phd म्यूजिक के लिए टॉप रिक्रूटर्स, phd म्यूजिक करने के बाद जॉब प्रोफाइल्स और सैलरी.

PhD music in Hindi कोर्स के बारे में यहां बताया गया है-

  • PhD म्यूजिक म्यूज़िक के क्षेत्र में प्रदान की जाने वाली उच्चतम डिग्री है।  
  • इस कोर्स की अवधि 3 से 5 साल होती है।  
  • इस कोर्स में एडवांस लेवल की रिसर्च और प्रेक्टिकल वर्क शामिल होता है।  
  • इस कोर्स में म्यूज़िक की कल्चरल स्टडी, हिस्टोरिकल स्टडी और कम्पोज़िशन जैसे टॉपिक शामिल होते हैं।  

PhD म्यूजिक कोर्स करने के लिए निम्नलिखित कारणों से किया जा सकता है : 

  • यह संगीत के क्षेत्र में दी जानी वाली सबसे बड़ी डिग्री है।  
  • अगर आपकी रूचि संगीत में है और किसी कॉलेज में प्रोफ़ेसर या लेक्चरार बनना चाहते हैं तो आपको यह कोर्स करना चाहिए।  
  • इस कोर्स को करने के बाद अच्छी जॉब और सैलरी पैकेज के ऑप्शंस खुल जाते हैं।  
  • यह कोर्स संगीत क्षेत्र में शोध करने और उसके बारे में विस्तार से जानने के बारे में नए अवसर प्रदान करता है।  
  • अगर आप विदेश में जॉब करने के इच्छुक हैं तो यह कोर्स इस हिसाब से काफी अच्छा है। म्यूजिक से PhD करने वाले संगीतकारों के लिए विदेश में जॉब्स के लिए काफी स्कोप है।  

म्यूज़िक में PhD करने के लिए आपके पास निम्नलिखित स्किल्स होना ज़रूरी है-

  • संगीत की समझ 
  • रिसरचिंग स्किल्स 
  • म्यूज़िक इंट्रूमेंट्स की समझ 
  • म्यूज़िक के इतिहास का ज्ञान 
  • वैश्विक संगीत का ज्ञान 

संगीत में PhD करने के लिए विदेश की टॉप यूनिवर्सिटीज़ इस प्रकार हैं : 

  • टोरोन्टो यूनिवर्सिटी  
  • ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी
  • मैकगिल यूनिवर्सिटी
  • यॉर्क यूनिवर्सिटी
  • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी
  • एरिजोना राज्य यूनिवर्सिटी
  • ऑस्टिन में टेक्सास यूनिवर्सिटी
  • स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी
  • विक्टोरिया यूनिवर्सिटी
  • दक्षिणी कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी
  • मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी
  • सस्केचेवान यूनिवर्सिटी
  • लीड्स यूनिवर्सिटी  

PhD म्यूजिक के लिए भारत की टॉप यूनिवर्सिटीज़ कौनसी हैं?

PhD म्यूजिक के लिए भारत की टॉप यूनिवर्सिटीज़ की लिस्ट नीचे दी गई है:

  • बनारस विश्वविद्यालय
  • दिल्ली विश्वविद्यालय
  • क्वींस मैरी कॉलेज
  • बनस्थली विश्वविद्यालय
  • बैंगलोर विश्वविद्यालय
  • कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
  • श्रीपत सिंह कॉलेज 
  • मिरांडा हाउस 
  • एमिटी विश्वविद्यालय 
  • नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय 

PhD Music के लिए अमेरिका ,कनाडा और यूनाइटेड किंगडम की यूनिवर्सिटीज़ का फी स्ट्रक्चर इस प्रकार है : 

PhD म्यूजिक में एडमिशन लेने के लिए आवश्यक योग्यता नीचे दी गई है

  • म्युज़िक में PhD करने के लिए आपके पास निम्नलिखित योग्यताएं होना जरूरी हैं : 
  • संगीत विषय से कम से कम 55% अंकों के साथ एमए म्युज़िक की डिग्री।  
  • म्युज़िक में PhD करने के लिए आपके लिए NET/GRE औऱ JRF जैसे एग्जाम क्वालीफाई करना आवश्यक है।  
  • कुछ यूनिवर्सिटीज़ PhD में एडमिशन के लिए पोस्ट ग्रेजुएशन में कम से कम 60% अंकों की मांग करती हैं।  
  • यदि आप विदेश में MCA कोर्स का अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं, तो विदेश की अधिकतर यूनिवर्सिटीज SAT या GRE मार्क्स की मांग करती हैं।
  • विदेश की यूनिवर्सिटीज में एडमिशन के लिए IELTS या TOEFL टेस्ट मार्क्स कम्पलसरी होते हैं। जिसमें  IELTS अंक 7 या उससे अधिक और TOEFL अंक 100 या उससे अधिक होना चाहिए।
  • विदेश की यूनिवर्सिटीज में एडमिशन के लिए SOP , LOR , CV/Resume और पोर्टफोलियो भी जमा करने होंगे।

विदेश के विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए आवेदन प्रक्रिया इस प्रकार है:

  • आपकी एप्लीकेशन प्रोसेस का फर्स्ट स्टेप सही कोर्स और यूनिवर्सिटी को सिलेक्ट करना है। 
  • कोर्स और यूनिवर्सिटी के सिलेक्ट करने के बाद उस कोर्स के लिए उस यूनिवर्सिटी की एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया के बारे में कम्पीट रिसर्च करें। 
  • आवश्यक टेस्ट स्कोर और डाक्यूमेंट्स एकत्र करें।
  • यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर एप्लीकेशन फॉर्म भरें।  
  • उसके बाद विदेश में जाने के लिए अपने ऑफर लेटर की प्रतीक्षा करें और सिलेक्ट होने पर इंटरव्यू की तैयारी करें। 
  • इंटरव्यू राउंड क्लियर होने के बाद आवश्यक ट्यूशन फीस का भुगतान करें और स्कॉलरशिप, छात्रवीजा , एजुकेशन लोन और छात्रावास के लिए अप्लाई करें।

भारतीय विश्वविद्यालयों में PhD Music कोर्स में प्रवेश के लिए एप्लीकेशन प्रोसेस इस प्रकार है:

  • सबसे पहले अपनी चुनी हुई यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट में जाकर रजिस्ट्रेशन करें।
  • यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट में रजिस्ट्रेशन के बाद आपको एक यूजर नेम और पासवर्ड प्राप्त होगा।
  • फिर वेबसाइट में साइन इन के बाद अपने चुने हुए कोर्स का चयन करें जिसे आप स्टडी करना चाहते हैं।
  • अब शैक्षिक योग्यता, कैटेगिरी आदि के साथ एप्लीकेशन फॉर्म भरें।
  • इसके बाद एप्लीकेशन फॉर्म सबमिट करें और आवश्यक एप्लीकेशन फीस की पेमेंट करें। 
  • यदि एडमिशन, एंट्रेंस एग्जाम पर आधारित है तो पहले एंट्रेंस एग्जाम के लिए रजिस्ट्रेशन करें और फिर रिजल्ट के बाद काउंसलिंग की प्रतीक्षा करें। एंट्रेंस एग्जाम के मार्क्स के आधार पर आपका सिलेक्शन किया जाएगा और फाइनल लिस्ट जारी की जाएगी।

विदेश में स्टडी करने के लिए कुछ इंपोर्टेंट डाक्यूमेंट्स की लिस्ट नीचे दी गई है-

  • आधिकारिक शैक्षणिक ट्रांसक्रिप्ट  
  • एजुकेशन के सभी डाक्यूमेंट्स 
  • स्कैन किए हुए पासपोर्ट की कॉपी
  • IELTS या TOEFL , आवश्यक टेस्ट स्कोर 
  • प्रोफेशनल/एकेडमिक LORs
  • निबंध (यदि आवश्यक हो)
  • पोर्टफोलियो (यदि आवश्यक हो)
  • अपडेट किया गया सीवी/रिज्यूमे
  • एक पासपोर्ट और छात्र वीजा  
  • बैंक स्टेटमेंट्स 

भारत में PhD Music के लिए कुछ आवश्यक दस्तावेजों की लिस्ट नीचे दी गई हैं:-

  • आपकी 10वीं या 12वीं की परीक्षा की मार्कशीट और पासिंग सर्टिफिकेट
  • डेट ऑफ बर्थ का प्रूफ
  • स्कूल लिविंग सर्टिफिकेट
  • ट्रांसफर सर्टिफिकेट
  • डोमिसाइल सर्टिफकेट/रेजिडेंशियल सर्टिफिकेट
  • टेम्पररी सर्टिफिकेट
  • करेक्टर सर्टिफिकेट 
  • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ी जाति सर्टिफिकेट
  • विकलांगता का प्रमाण (यदि कोई हो)
  • माइग्रेशन सर्टिफिकेट  

यहां कुछ प्रमुख एंट्रेंस एग्जाम की सूची दी जा रही हैं:-

  • विदेश में प्रवेश लेने के लिए आपको SAT / ACT / एवं IELTS या TOEFL एग्जाम देने की आवश्यकता होती है।  

PhD म्यूजिक के लिए करियर स्कोप

PhD Music in Hindi करने के बाद करियर स्कोप इस प्रकार है: 

  • फिल्म इंडस्ट्री
  • मीडिया कम्पनीज
  • टूरिंग कम्पनीज
  • ऑर्केस्ट्रा  
  • पर्सनल स्टूडियो  
  • थिएटर इंडस्ट्री

PhD Music in Hindi करने के बाद नीचे टॉप रिक्रूटर्स के नाम दिए गए हैं-

  • Yash Raj Music
  • Amity University
  • National Capital Arts and Cultural Affairs
  • Institute of Museum and Library Services
  • National Archives

PhD Music in Hindi करने के बाद टॉप जॉब प्रोफाइल्स और सैलरी इस प्रकार हैं:

मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी से म्यूज़िक में PhD करने के लिए आपके पास एम.ए. में कम से कम 60% अंक होने चाहिए।  

मैकगिल यूनिवर्सिटी में PhD म्यूज़िक की अवधि तीन साल है।  

जैसे पीएचडी करने के बाद नाम के आगे डॉक्टर लिखने की पात्रता है, वैसे ही चिकित्सीय शिक्षा में एमडी की डिग्री के बाद ही व्यक्ति नाम के आगे डॉक्टर लिख सकता है। एमबीबीएस, बीएएमएस, बीएचएमएस और बीयूएमएस चिकित्सीय बैचलर डिग्री हैं। सिर्फ चिकित्सा व्यवसाय के चलते इन डिग्रियों के धारक स्वयं को डॉक्टर लिखते हैं।

भारतीय विश्वविद्यालयों में पीएचडी अध्ययन के लिए कोई निर्धारित शुल्क नहीं है । आमतौर पर, राज्य विश्वविद्यालय निजी विश्वविद्यालयों की तुलना में सस्ते होंगे, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से दोनों ही विशेष रूप से महंगे नहीं हैं।

उम्मीद है आपको PhD music in Hindi पर आधारित यह ब्लॉग पसंद आया होगा। अगर आप विदेश में PhD Music पढ़ना चाहते हैं  तो Leverage Edu एक्सपर्ट्स को 1800572000 को कॉल करके 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें।

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Leverage Edu स्टडी अब्रॉड प्लेटफार्म में बतौर एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। अंशुल को कंटेंट राइटिंग और अनुवाद के क्षेत्र में 7 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह पूर्व में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए ट्रांसलेशन ऑफिसर के पद पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने Testbook और Edubridge जैसे एजुकेशनल संस्थानों के लिए फ्रीलांसर के तौर पर कंटेंट राइटिंग और अनुवाद कार्य भी किया है। उन्होंने डॉ भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, आगरा से हिंदी में एमए और केंद्रीय हिंदी संस्थान, नई दिल्ली से ट्रांसलेशन स्टडीज़ में पीजी डिप्लोमा किया है। Leverage Edu में काम करते हुए अंशुल ने UPSC और NEET जैसे एग्जाम अपडेट्स पर काम किया है। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न कोर्सेज से सम्बंधित ब्लॉग्स भी लिखे हैं।

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Music Academy Research Centre (MARC)

The Music Academy Madras has been associated with Musicology and Research in Music from the time of its inception. The discussions in the Annual Conference substantiate the depth of musical thought that the institution (also called the Vidvat Sabha) engages with. The other hallmarks are the Journal whose 91st volume was published in 2022 and the number of publications that the Academy has brought out. Noteworthy is that these publications were fruits of the efforts of scholars like Sangita Kalanidhi Sri. T.V. Subba Rao, Dr. V. Raghavan, Sangita Kala Acharya T.S. Parthasarathy, and scholar–musicians such as Sangita Kalanidhi Mudicondan Sri. Venkatarama Iyer, Sangita Kala Acharya Sri. B. Krishnamurthy, Sangita Kala Acharya Dr. S.R. Janankiraman, to name a few.

PhD program

Click here for summary of dissertation topics

After the completion of degree by the first batch of students, the Centre has had to withdraw from the PhD programme owing to changes in the conditions of affiliation. The Academy however continues with its research activities.

The Way Forward

MARC ushers in the new decade 2020 with renewed vigour, engaging in music studies and research in a focused manner. In keeping with the fundamental objectives of the Music Academy or Vidvat Sabha, the research centre looks to build on the wealth of oral and aural traditions that are integral to the Carnatic music space. At the same time, it will work on strengthening the musicological dimension by way of rigour in the research methods and honing of structured musical thought and perceptions, with a futuristic approach.

The activities of MARC include publications, seminars / webinars, workshops and research projects.

The MARC team played an active role in putting together some of the December video capsules/episodes that were uploaded in the Academy’s YouTube channel during the virtual music festival in December 2020.

The MARC team:

Dr. Meenakshi (Sumathi) Krishnan

Ex-Officio member. Secretary, The Music Academy, Madras.

Head of Research

Dr. Sumithra Vasudev

Sumithra Vasudev is a reputed musician and prime disciple of Sangita Kalanidhi Smt. R. Vedavalli. She is a faculty in Advanced School of Carnatic Music, The Music Academy Madras. Sumithra’s penchant for exploring rare raga-s and her flair for niraval and tanam distinguish her performances. She was one of the Ph.D scholars in MARC and her dissertation is based on a study of compositions and raga-s handled by the Dikshita family composers. She authored the English translation for ‘Melaragamalika of Maha Vaidyanatha Sivan’ published by the Music Academy Madras in 2018.

Research Advisory Board

Dr. Ritha Rajan

Sangita Kala Acharya Dr. R.S. Jayalakshmi served as Professor and Head (Retd.), Department of Music, Queen Mary’s College. A member of the Advisory Board of the Music Academy Madras for over a decade, she is currently the Associate Director of the Advanced School of Carnatic Music, Music Academy. Her dissertation on ‘Pāṭhāntara-s in the compositions of the Musical Trinity’ is a brilliant combination of an intimate knowledge of the subtleties of oral traditions in Carnatic music and lucidity of its expression in the textual form.

  • Dr. R.S. Jayalakshmi

Sangita Kala Acharya Dr. R.S. Jayalakshmi is currently a faculty member in the Advanced School of Carnatic Music, Music Academy Madras, and the University of Silicon Andhra, USA. A vainika of repute, she was a faculty in the Department of Music, University of Madras. Her dissertation is based on the gamaka-s of Sangita Sampradaya Pradarshini and is a model work on the interpretation of the various gamaka-s described in the text. She is the author of ராக லக்ஷணத்தில் ஆரோஹண அவரோஹணம் (MRJ Publishers, Bangalore, 1999).

Sri. V. Sriram

Ex-Officio member. Secretary, The Music Academy, Madras

Experts’ Panel

Prof. Shiv Visvanathan

Shiv Visvanathan is currently Professor at Jindal Global Law School, Sonipat and Director, Centre for the Study of Knowledge Systems, O.P. Jindal Global University. He is a social anthropologist and is presently working on the relationship between knowledge and democracy, focusing on the idea of cognitive justice. He has held visiting professorship at Smith, Stanford, Goldsmith, Arizona, Maastricht, Pretoria, MICA, NID and IIT Chennai. He is author of works like Organizing for Science (OUP, Delhi, 1985), A Carnival for Science (OUP, Delhi, 1997) and Theatres of Democracy (OUP, Delhi, 2016)

Dr. G. Sankaranarayanan Sankaranarayanan is Head, Department of Sanskrit and Indian Culture, SCSVMV University, Kanchipuram. He is currently working on a project on Kamakshi Amman Koil Shasanangal. His areas of specialisation include study of manuscripts, epigraphy, temple architecture, iconography and art history. His dissertation was based on a study of the narratives on rishi-s in the Itihasa-s and Purana-s of Classical Samskrta literature. ---------->

Sangita Kalanidhi Sri. Sanjay Subrahmanyan

Sanjay Subrahmanyan is one of those rare and complete performers whose concerts are the product of a lively and intelligent mind. His intensive and exhaustive elaboration of unconventional ragas, as well as his treatment of the time honoured classical ragas display a unique combination of tradition and modernity. Tamiz language finds the singer in his elements, as he offers classic Tamiz compostions in tandem with those that he assiduously mines of composers whose works have not seen the light of day. Through his music he integrates the wisdom and stabilizing influences of the past with his own artistic and intellectual creativity.

Sangita Kalanidhi Dr. S. Sowmya

S. Sowmya, a vocalist, vainika and researcher, is known for her extensive manodharma, her bold forays into aspects of music that are considered difficult and her adherence to the strict classical tradition as imbibed from her gurus. She is a member of the faculty at the Music Academy’s Advanced School of Carnatic Music. With her path-breaking research work in enhancing the tonal stability of the mridangam, the pre-eminent percussion instrument in South Indian music and insightful presentations on various aspects of classical music, Sowmya in many ways personifies – ‘a quintessential scholarly Carnatic musician’.

music phd topics in hindi

  • Dr. Meenakshi (Sumathi) Krishnan, Director
  • Dr. Ritha Rajan, Associate Director
  • Dr.N.Ramanathan
  • Dr. RS Jayalakshmi
  • Sri N. Murali Ex-Officio
  • Dr. Ritha Rajan and

music phd topics in hindi

Ph.D. Hindi

Focus areas, of the program, hindi literature, criticism, contemporary discourses, comparative studies, hindi language, linguistics, digital humanities, functional and applied language and interdisciplinary studies, media studies, cinema, media and new media studies, issue of national interest, various issues of national interest and contemporary relevance, who can prefer this course, eligibility.

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Ph.D Hindi Syllabus and Subjects

Roumik Roy

The PhD Hindi syllabus imparts detailed theoretical knowledge to the students of several subject areas based on Hindi literature such as Research, Shodh, Medieval period, Reetikaal along with the study of Broad Perspective of Indian & Hindi Renaissance, Gandhism, Indian Theater, and Western Theater concepts , etc. 

The Hindi PhD syllabus prepares graduates with skill-oriented knowledge to establish potential career prospects. Henceforth, the job scope of PhD Hindi is adequate and spread across various industries. 

Table of Contents

First-Year PhD Hindi Syllabus

Second-year phd hindi syllabus, third-year phd hindi syllabus, subjects in the phd hindi syllabus, semester wise phd hindi syllabus.

Ph.D. Hindi Syllabus is offered to students with theory and practical lectures, workshops, projects, and a thesis . Any Ph.D. in Hindi subject offers a comprehensive learning of the origin, philosophy, linguistics, and evolution of the Hindi language .  A semester-wise representation of Ph.D. Hindi syllabus is given below:

The 1st year Ph.D. Hindi Syllabus is given below:

The subjects in the second-year PHD Hindi Syllabus are given below:

The 3rd-year PhD Hindi syllabus is given below:

Note: This is the general PhD syllabus in Hindi. This can differ for different colleges. Students can access the PhD Hindi syllabus PDF from the college websites to know more information about the subjects. 

The prime motive of a PhD in Hindi subject is to impart the essential knowledge of Hindi literature along with several elements of linguistics, applications in the contemporary world, and other important dynamics of the Hindi language .  Some of the PhD Hindi subjects are given below:

Core Subjects

The PhD Hindi syllabus consists of 4-8 core subjects that are compulsory in this doctorate course. Some of the core subjects in the PhD syllabus in Hindi are listed below:

  • Research: intent, nature, and Purpose
  • Medieval Period: time, society, and culture
  • Reetikaal, Broad Perspective of Indian Renaissance and Hindi Renaissance
  • History of Hindi Prose
  • Hindi Drama and Theater
  • Indian Theater and Western Theater concepts

Elective Subjects

The elective subjects in the PhD syllabus in Hindi are given below:

  • Future Studies: Premchand
  • Special Studies: Mira
  • Diaspora Literature of Hindi
  • Translation Theory and Practice
  • Abhasmatamul literature of Hindi
  • Prominent saint poetry and poetry of South India
  • Post-independence Hindi poetry

Detailed view subjects in the PhD syllabus 

The PhD Hindi syllabus is broad and includes several topics from Hindi literature and linguistics . A detailed view of some of the subjects in the PhD Hindi syllabus is given below:

The Ph.D. Hindi Course Structure

The Ph.D. Hindi course is semester-wise, and the curriculum comprises four parts: foundation, core, electives, and research projects during the six semesters. The course structure includes seminars, thesis writing, project, and internship for effective training. The standard course structure of Ph.D. Hindi is given below:

  • III-V Years
  • Core and Theory subjects
  • Projects/Assignments
  • Research and Viva
  • Dissertation

The Ph.D. Hindi Teaching Methodology and Techniques

The Ph.D. in Hindi degree course curriculum includes various teaching methods and techniques that help students understand multiple topics taught in their classes. Some of the different teaching methodologies and techniques adopted in the course curriculum of The Ph.D. in Hindi degree course are as follows:

  • Live Demo Sessions
  • The emphasis on Practical and Theoretical Learning
  • Guest Lectures, Seminars, and Workshop
  • Group Assignment and Discussion
  • Learning through Industrial Visit
  • Practical Development
  • Research Work

The Ph.D. in Hindi Projects

Project Topics for the Ph.D. in Hindi is a resourceful opportunity for students from Hindi literature backgrounds. The best topics for Ph.D. in Hindi literature projects or research are related to the medieval period, drama, Hindi literature, linguistics, ancient Hindi period, folk & tales, laws, politics , etc.  Some of the standard project topics for a Ph.D. in Hindi are given below:

  • Shri Lal Shukl Ke Sahitya Mein Rajneetik Chetna
  • Pandit Chanderdhar Sharma Guleri Ke Sahitya Ka Vishleshan Atmak Adhiayan
  • Kubernath Rai Ke Lalit Nibandhon Ka Saanskritik Vishleshan
  • Sawadesh Deepak Ke Sahitya Mein Kathya Aur Shilp
  • 'Ashak' Ke Upnayason Mein Panjab Ke Shahari Madhiyavarg Ki Chetna
  • Braj Aur Punjabi Ke Vivah Sambandhi Lok Geeton Ka Tulnatmak Adhyayan

The Ph.D. in Hindi Reference Books

The reference books for Ph.D. in Hindi help students understand various subjects and topics covered in the course curriculum and expand their knowledge & vision. Some of the best Ph.D. in Hindi books are given below:

FAQs on Ph.D Hindi Syllabus and Subjects

Q: What is the 1st year syllabus of PhD Hindi?

A: The 1st year syllabus of Ph.D. Hindi includes subjects like Shodh Ke Saadhan Evan Upkaran, Shodh: Anusandhaan, Gaveshana Aur Sarvekshan, Aitihasik Evam Sanskritik, Literary Research, etc.

Q: What are the core subjects in PhD Hindi?

A: The core subjects of PhD Hindi are Reetikaal, Broad Perspective of Indian Renaissance and Hindi Renaissance, Bloomfield and Structural Linguistics, Indian Theater and Western Theater concepts, Gandhism, etc.

Q: What are the PhD Hindi projects?

A: Some popular Ph.D. Hindi project topics are Shri Lal Shukl Ke Sahitya Mein Rajneetik Chetna, Pandit Chanderdhar Sharma Guleri Ke Sahitya Ka Vishleshan Atmak Adhiayan, Sawadesh Deepak Ke Sahitya Mein Kathya Aur Shilp, etc.

Q: What are the essential books for Ph.D. Hindi?

A: A few popular reference books include Childhood And Growing Up in Hindi Medium by Rajesh Kumar Vashist, Hindi Adhyapan Padhdhati by Vinod Patil, Madhushala by Harivansh Rai Bachchan, etc.

Q: What is the PhD Hindi course structure?

A: The syllabus and course curriculum for PhD in Hindi is divided into core and practical subjects, assignments, and research projects. The curriculum consists of six semesters, two per year.

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Dissertations

Dublin core, collection items, tripitaka (buddhisttext) and thai classical instruments, by c chalermsak boonmanam, music in the bharatacattiram of arapattanavalar, by n girish kumar, a survey of telugu works in music literature published during 1859 to 1930, compositions of maha vaidyanathayyar by n vijayalakshmi, aumapatam: a critical study, by peter vonessen, adhunik sangit ki sastriya parampara: bharatasiddhanta, by maharani sharma, tantravadyon ke gharanon ke paripeksya me adhunika kalakara, by pramiti chaudhary, banaras gharane ki gayan parampara: bade ramadasaji, by vidyadhar prasad misra, graha as an element of tala, by k harish narayan, tiruvempavai in thailand and india, by pannipa kaveetanathum, sangita sara sangrahamu of tiruvenkata kavi - a study, murchana paddhati ka vivecana tatha pracina, madhyakalina va adhunik sangita me uski bhumika, by asvin bhagavat, a comparative study of hindustani and karnataka raga systems, by b ratnamma, a study of pre-composed kalpana svaras in music publications, by k n renganatha sharma, modeling gamakas of carnatic music as a synthesizer for prescriptive notation, influence of culture on instrumental music teaching , by georgina barton, list of dissertations on music at the samskrta university, kalady, list of dissertations on music at the university of madras, list of dissertations on music at the mysore university, list of dissertations from sangita monthly magazine, 2015, list of dissertations on music at the annamalai university, list of dissertations on music at the kalai kaviri of fine arts, tiruchi, index of doctoral dissertations in music from association of indian universities, list of dissertations on music at the padmavathi mahila visva vidyalayam, tirupati, list of dissertations on music at the kerala university, tiruvanantapuram, list of dissertations on music at the calicut university, kozikode, the musicological portions of the sangita narayan: a critical edition and commentary by j b katz, karnatic rhythmical structures by rafael reina, sankara pallaki seva prabandham of sahaji, by s annapurna, visualization of indian classical music, by nameetha shah -2001, desi ragas of post-sangitaratnakara period, by r hemalatha, ragangaraga-s in sangita sampradaya pradarsini, by r hemalatha, books of vina ramanuja and taccuru brothers - fellowship project report by r latha, analysis of a bharatanatyam composition, by priyashri v rao, dance performance and its components: a historical study, by priyashri v rao, examination of the disputes regarding the authorship of the compositions of svati tirunal, by shyamala kannan nair, svara taladi lakshanam, by girija easwaran, subbarama dikshitarin sangita-sampradaya-pradarsiniyil gamakangal, by r s jayalakshmi, pathantara-s in the compositions of musical trinity, by ritha rajan, theories of poetry of anandavardhana and susanne langer by hema ramanathan, list of phd dissertations in music from indira gandhi open university, list of phd, mphil and ma dissertations from jain (deemed to be university), bengaluru, list of phd and mphil dissertations from potti sriramulu telugu university, hyderabad, divyanama & utsava-sampradaya kirtana-s of tyagaraja, by s k rajalakshmi, musical compositions of subbarama diksitar, by n vijayalakshmi, manodharma sangitamulo kalapramanamu, by b radha sarangapani, sampradayavil icai medaigalin nerkanal, by s kamakshi, modeling and composite synthesis of creative music in carnatic classical, by mahesha p, gamaka in ālāpana performance in karnatic music, maisuru vasudevacar krtigalil kanappadum ragangal, by s suguna.

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Salahuddin, Nadine. "Hindi Translation of PEAK-DT." OpenSIUC, 2016. https://opensiuc.lib.siu.edu/theses/1954.

Pollock, Sandybell. "Hindi-Vindi and Pashto-Mashto : Comments on Various Types of Lexical Reduplication in Hindi and Pashto." Thesis, Uppsala universitet, Institutionen för lingvistik och filologi, 2014. http://urn.kb.se/resolve?urn=urn:nbn:se:uu:diva-276292.

Morcom, Anne Frances. "Hindi film songs and the cinema." Thesis, SOAS, University of London, 2002. http://ethos.bl.uk/OrderDetails.do?uin=uk.bl.ethos.268674.

Montaut, Annie. "Le systeme verbal en hindi moderne." Paris 3, 1988. http://www.theses.fr/1989PA030027.

Montaut, Annie. "Le Système verbal en Hindi moderne." Lille 3 : ANRT, 1989. http://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb376166627.

Orsini, Francesca. "The Hindi public sphere, 1920-1940." Thesis, SOAS, University of London, 1996. http://eprints.soas.ac.uk/29537/.

Ratnākara, Mohanalāla. "Hindī-upanyāsa, dvandva evaṃ saṅgharṣa /." Dillī : Prakāśana vibhāga, Dillī viśvavidyālaya, 1993. http://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb36190692c.

Das, Pradeep Kumar. "Grammatical agreement in Hindi-Urdu and its major varieties /." Muenchen : Lincom Europa, 2006. http://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb402426374.

Tomaini, Chiara <1991&gt. "Jagannatha, evoluzione di significato di un'icona tribale d'Orissa." Master's Degree Thesis, Università Ca' Foscari Venezia, 2016. http://hdl.handle.net/10579/8461.

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Sinha, Srija. "Extraction domains and information partition in Hindi." Thesis, University of York, 2002. http://ethos.bl.uk/OrderDetails.do?uin=uk.bl.ethos.274519.

Chauhan, Buddhi P., Rachna Kapoor, Shivendra Singh, and Anup Kumar Das. "WINISIS - A Practical Guide: In Hindi Language." Thapar University, Patiala, 2007. http://hdl.handle.net/10150/105287.

Budha, Kishore N. "Market reforms, media deregulation and the Hindi film : a study of the ideology of Hindi cinema and the media." Thesis, University of Leeds, 2008. https://ethos.bl.uk/OrderDetails.do?uin=uk.bl.ethos.496120.

Harder, Hans. "Fiktionale Träume in ausgewählten Prosawerken von zehn Autoren der Bengali- und Hindiliteratur." Halle (Saale) : Institut für Indologie und Südasienwissenschaften der Martin-Luther-Universität Halle-Wittenberg, 2001. http://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb38987404v.

Ridgeway, Thomas Bruce. "The syntax of case in medieval Western Hindi /." Thesis, Connect to this title online; UW restricted, 1986. http://hdl.handle.net/1773/11135.

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Singh, Joga. "Case and agreement in Hindi : a GB approach." Thesis, University of York, 1993. http://ethos.bl.uk/OrderDetails.do?uin=uk.bl.ethos.358354.

Beshears, Anne. "The demonstrative nature of the Hindi/Marwari correlative." Thesis, Queen Mary, University of London, 2017. http://qmro.qmul.ac.uk/xmlui/handle/123456789/30629.

Prasannanshu. "Agrammatism : neurolinguistics of grammatical impairment in Hindi aphasia /." Muenchen : LINCOM Europa, 2007. http://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb413341240.

Ståhlberg, Per. "Lucknow Daily : how a Hindi newspaper constructs society." Doctoral thesis, Stockholms universitet, Socialantropologiska institutionen, 2002. http://urn.kb.se/resolve?urn=urn:nbn:se:su:diva-97513.

Ranjan, Rajiv. "Acquisition of ergative case in L2 Hindi-Urdu." Diss., University of Iowa, 2016. https://ir.uiowa.edu/etd/3168.

Mudgal, Shankar Vasant. "Hindī ke mahākāvyātmaka upanyāsa /." Kānapura (Bhārata) : Candraloka prakāśana, 1992. http://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb37186432b.

Rāya, Lakṣmī. "Ādhunika hindī nāṭaka : caritra sr̥ṣṭi ke āyāma /." Naī Dillī : Takṣaśilā prakāśana, 1989. http://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb37186812t.

Tripāṭhī, Satyavatī. "Ādhunika hindī nāṭakoṃ meṃ prayogadharmitā /." Nayī Dillī : Rādhākr̥ṣṇa prakāśana, 1991. http://catalogue.bnf.fr/ark:/12148/cb37110886g.

Mothilal, Meena Devi. "Integral development of the child : perspectives from Hindi literature." Thesis, 2007. http://hdl.handle.net/10413/2239.

Paul, Abhisek, and Satyabrata Chayani. "Speech Recognition in Hindi." Thesis, 2011. http://ethesis.nitrkl.ac.in/2600/1/thesis.pdf.

Ms, Shalini. "Handwritten Hindi Character Recognition." Thesis, 2017. http://ethesis.nitrkl.ac.in/8879/1/2017_MT_Shalini.pdf.

Pace, Colin Gaylon. "Reflections on Hindi and history." Thesis, 2014. http://hdl.handle.net/2152/26223.

Rao, Padmanabha A. V. A. "Adhunik hindi Ramakaavya: Dishaye evam drushtiya." Thesis, 1997. http://hdl.handle.net/2009/913.

Shah, Ara. "Complement clauses in Hindi and Gujarati." Thesis, 1995. http://hdl.handle.net/2009/938.

Heerekar, Vandana. "Swatantryottar hindi kahaani mein naari sangharsh." Thesis, 1996. http://hdl.handle.net/2009/1004.

Khanam, Sajida. "Hindi bhakti andolan aur marksvaadi mulyaankan." Thesis, 1996. http://hdl.handle.net/2009/987.

Narasimha, M. "Abhyudaya kavitwam: Telugu-hindi tulanatmaka pariseelana." Thesis, 2000. http://hdl.handle.net/2009/1189.

Waghray, Vanitha. "Madhyakaleen hindi bhakti sahitya: Aadhunik pratimaan." Thesis, 1989. http://hdl.handle.net/2009/1221.

Hegde, Venkataramana Devaru. "Hindi mein ling: Ek ithihasic adhyayan." Thesis, 1986. http://hdl.handle.net/2009/2986.

Jaiswal, Aditi. "Samkaleen hindi natya kavyon ka manovaigyanik adhyayan." Thesis, 1985. http://hdl.handle.net/2009/821.

Bansal, Naresh. "Hindi upanayason mein Punjabi jeevan kee chhavi." Thesis, 1993. http://hdl.handle.net/2009/920.

Ramprakash. "Hindi ki pragathisheela aaloochana aur Dr.Ramvilas Sharma." Thesis, 1995. http://hdl.handle.net/2009/1077.

Babu, Jaya Sankar C. "Dhakshina bharath mein hindi pathrakaareetha- Ek adhayana." Thesis, 2002. http://hdl.handle.net/2009/3073.

Ragini, R. "Kannad-Hindi kriyapad-samrachana ka vyatireki adhyayan." Thesis, 2002. http://hdl.handle.net/2009/3104.

Jabeen, Asma. "Kabeer ke nirgun mathavad ke samband me leela ki avadharana." Thesis, 1996. http://hdl.handle.net/2009/768.

Kumar, Raghu Vijay B. "Hindi aur telugu upanyas ke udbhav aur vikas ki prakriya ka samaj shastriya adhyayan." Thesis, 1995. http://hdl.handle.net/2009/819.

Pothuraju, Venkata Reddy. "Hindi natak: Parivatran ke vividh aayam (1950 se 2000 tak)." Thesis, 2003. http://hdl.handle.net/2009/878.

Devi, Charumathi C. H. "Mathru Bhandari ke katha sahityika mein yatharthabodh." Thesis, 2002. http://hdl.handle.net/2009/914.

Jayasree, G. V. "Madhya yugeen hindi evam telugu sahityika dharaon aur pravruttiyon ka tulanatmak anusheelan." Thesis, 1992. http://hdl.handle.net/2009/915.

Utwal, Karan Singh. "Hindi katha sahitya ka naatyaroopaantharan: Ek vishleshanatmak adhyayan." Thesis, 2002. http://hdl.handle.net/2009/916.

Sinha, Krishna Kumar. "Avtharvaad kee samajik pushtabhoomi: Bhaktikaaleen hindi sahitya ke sandarbh mein." Thesis, 1991. http://hdl.handle.net/2009/917.

Nehra, Kusum. "Raghuveer sahai ke kavyon mein kathya aur shilp." Thesis, 1993. http://hdl.handle.net/2009/918.

Siddiqui, Majeedullah M. "Dakkhini kavi: Ghawwasi ka jeevan aur sahitye." Thesis, 1991. http://hdl.handle.net/2009/919.

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  1. Synopsis (शोध प्रारूपिका) लघु शोध व शोध के विद्यार्थियों हेतु

    वैचारिक तूफ़ान को शोध एक सृजनात्मक आयाम देता है व अस्तित्व में ...

  2. Shodhganga@INFLIBNET: Department of Music

    An analytical study of techniques and styles of playing the violin for better expression of ragas in Hindustani classical music: Velhal Rewati: More Shital: 21-Aug-2019: Uttar bharatiy sangit ke khyal gayana ki samruddhi mei kucheka pramukh adhunika vagyeyakaro ka sangithika yogadan: Grover, Neera: Bhatt, Preeti R: 21-Aug-2019

  3. Shodhganga@INFLIBNET: Department of Music

    Hindi cinema di samaridh yugal gaiyan parampars 1950 too 1980 de vishesh sandarbh vich: Kamaljit Kaur: Alankar Singh: 2-Feb-2024: Bharti vadan sangeet de adhyatmik sarokar samkal de vishesh sandarbh vich: Santosh Kumari: Ravinder Kaur: 30-Oct-2023: Hindustani shastri sangeet de vikas vich sangeet di uchari sikhya di bhumika vishlesnatmak ...

  4. 700 PhD topics in Hindi Subject, Shodhganga Research Topics Hindi, PhD

    700 PhD topics in Hindi Subject, Shodhganga Research Topics Hindi, PhD Research Topics in Hindi, List of Ph.D Done in Hindi, Department of Hindi, Hindi Ph.D Thesis list By Dr. Himanshu Pali / 11 February 2024

  5. Relevant areas of research in Indian Musicology today

    It has been almost 50 years since Harold Powers published his important article on Indian music in the English language. Since that time there has been a vastly increased number of scholarly books and articles in English on various aspects of Indian music and its socio-cultural traditions, including more recently, many studies on non-classical forms.

  6. PDF Syllabus for Ph.D. Entrance Examination Hindustani Music (Vocal

    2. Scope of Research in Indian music and Interdisciplinary areas. 3. Varieties of research in view of research in music in accordance with specific topic. 4. Research procedures - Selection of topics, literature survey, visiting libraries, government to non-govt., cultural bodies like central & state academies. 5.

  7. Department of Music

    Sample of MCQs Question Bank (Hindi) ... The collective endeavour of all theory and practical study topics is to enrich the thinking, understanding and physical mechanism towards better performance of music. ... It has collection of around 5000 books on various topics related to music and is open on weekdays from 100.00-5.00 p.m. Alumni.

  8. जानिए PhD Music in Hindi कोर्स ...

    उम्मीद है आपको PhD music in Hindi पर आधारित यह ब्लॉग पसंद आया होगा। अगर आप विदेश में PhD Music पढ़ना चाहते हैं तो Leverage Edu एक्सपर्ट्स को 1800572000 को कॉल करके 30 ...

  9. म्यूजिक में पीएचडी कैसे करें (Career in PHD Music)

    Doctor of Philosophy in Music is a full time research based doctoral level course of 3 to 5 years duration. The PhD in Music course mainly covers areas such as historical musicology, composition, analysis, musical cognition, etc. Explain that this course helps students to become independent learners and researchers in music.

  10. Shodhganga : a reservoir of Indian theses @ INFLIBNET

    Shodhganga is an open-access platform for Ph.D. students to deposit and share their theses with the scholarly community.

  11. Music Academy Research Centre (MARC)

    The Music Academy Madras has been associated with Musicology and Research in Music from the time of its inception. The discussions in the Annual Conference substantiate the depth of musical thought that the institution (also called the Vidvat Sabha) engages with. The other hallmarks are the Journal whose 91st volume was published in 2022 and the number of publications that the Academy has ...

  12. PhD Music Admission, Eligibility, Colleges, Syllabus, Jobs, Salary 2024

    PhD Music Course Colleges, Admission, Eligibility, Syllabus, Books, Jobs, Salary, Scope 2024. ... Students must go through the syllabus of the course and mark all the important topics from Syllabus. ... (Hindi) Ph.D. (Music) Colleges IN INDIAView All. follow. Banaras Hindu University - [BHU]

  13. Contribution of Ph.d. Theses by Departments of Hindi to Shodhganga: a

    A total of 1541 theses on the subject of Hindi literature, uploaded by the Central Universities of India, have been analyzed year-wise and state-wise. Discover the world's research 25+ million members

  14. PDF Syllabus PhD Hindi

    Syllabus PhD Hindi Program learning Outcomes (PLO) Students will be able PlO-1: to describe and Analyse the various Critical Approaches to Research and apply them in his/her Research work. PLO-2: to describe the Ideological background of Hindi Literature and apply them while analysing the texts for his/her Research work.

  15. Ph.D. Hindi

    Ph.D. Hindi Research programme is designed for the aspiring Research Scholars with Hindi language and literature background and interest and curiosity about the problems of scholarship of literature, theory, various discourses and interdisciplinary research of national interest, contemporary relevance and emerging knowledge areas.

  16. Ph.D Hindi Syllabus and Subjects 2024

    The PhD Hindi syllabus consists of 4-8 core subjects that are compulsory in this doctorate course. Some of the core subjects in the PhD syllabus in Hindi are listed below: ... PhD in Hindi Subject: Topics Covered: History of Hindi Research: The early period of Hindi literature, major Raso texts, Jain literature, Siddha, Buddhist & Nath ...

  17. Dissertations

    Dance, Music and Drumming being three disparate arts, this thesis, examines how dance becomes a homogeneous composite art form. Through an analysis of a Varnam, supported by graphic illustration of dance movements, the meeting point between the three…

  18. Shodhganga@INFLIBNET: Department of Hindi

    Hindi aur Bangla Mein Sharat Chandra ki Kritiyon Ke Sine Rupantaran Ka Tulnatmak Anushilan: Yadav, Mukesh: Singh, Shraddha: 29-Jul-2024: Marwadi Lokgeet Stree Jeevan Aur Stree Chetna: Jinagal, Suresh Kumar: Gehlot, Urvashi: 24-Jul-2024: Hindi Kavita aur Swadhinta Andolan Ek Vivechnatmak Adhyayan:

  19. Dissertations / Theses on the topic 'Hindi'

    Consult the top 50 dissertations / theses for your research on the topic 'Hindi.' Next to every source in the list of references, there is an 'Add to bibliography' button. Press on it, and we will generate automatically the bibliographic reference to the chosen work in the citation style you need: APA, MLA, Harvard, Chicago, Vancouver, etc.