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कबीर दास की जीवनी

भारत के महान संत और आध्यात्मिक कवि कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में और मृत्यु वर्ष 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार ‘कबीर’ का अर्थ महान होता है। कबीर पंथ एक विशाल धार्मिक समुदाय है जिन्होंने संत आसन संप्रदाय के उत्पन्न कर्ता के रुप में कबीर को बताया। कबीर पंथ के लोग को कबीर पंथी कहे जाते है जो पूरे उत्तर और मध्य भारत में फैले हुए है। संत कबीर के लिखे कुछ महान रचनाओं में बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रंथ आदि है। ये स्पष्ट नहीं है कि उनके माता-पिता कौन थे लेकिन ऐसा सुना गया है कि उनकी परवरिश करने वाला कोई बेहद गरीब मुस्लिम बुनकर परिवार था। कबीर बेहद धार्मिक व्यक्ति थे और एक महान साधु बने। अपने प्रभावशाली परंपरा और संस्कृति से उन्हें विश्व प्रसिद्धि मिली।

ऐसा माना जाता है कि अपने बचपन में उन्होंने अपनी सारी धार्मिक शिक्षा रामानंद नामक गुरु से ली। और एक दिन वो गुरु रामानंद के अच्छे शिष्य के रुप में जाने गये। उनके महान कार्यों को पढ़ने के लिये अध्येता और विद्यार्थी कबीर दास के घर में ठहरते है।

इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि उनके असली माता-पिता कौन थे लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनका लालन-पालन एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनको नीरु और नीमा (रखवाला) के द्वारा वाराणसी के एक छोटे नगर से पाया गया था। कबीर के माँ-बाप बेहद गरीब और अनपढ़ थे लेकिन उन्होंने कबीर को पूरे दिल से स्वीकार किया और खुद के व्यवसाय के बारे में शिक्षित किया। उन्होंने एक सामान्य गृहस्वामी और एक सूफी के संतुलित जीवन को जीया।

कबीर दास का अध्यापन

ये माना जाता है कि उन्होंने अपनी धार्मिक शिक्षा गुरु रामानंद से ली। शुरुआत में रामानंद कबीर दास को अपने शिष्य के रुप में लेने को तैयार नहीं थे। लेकिन बाद की एक घटना ने रामानंद को कबीर को शिष्य बनाने में अहम भूमिका निभायी। एक बार की बात है, संत कबीर तालाब की सीढ़ियों पर लेटे हुए थे और रामा-रामा का मंत्र पढ़ रहे थे, रामानंद भोर में नहाने जा रहे थे और कबीर उनके पैरों के नीचे आ गये इससे रामानंद को अपनी गलती का एहसास हुआ और वे कबीर को अपने शिष्य के रुप में स्वीकार करने को मजबूर हो गये। ऐसा माना जाता है कि कबीर जी का परिवार आज भी वाराणसी के कबीर चौरा में निवास करता है।

वाराणसी में संत कबीर मठ की फोटो है जहाँ संत लोग कबीर के दोहे गाने में व्यस्त है। लोगों को जीवन की सच्ची शिक्षा देने के लिये ये एक अच्छी जगह है।

कबीर मठ वाराणसी के कबीर चौरा में स्थित है और लहरतारा, वाराणसी के पीछे के मार्ग में। नीरुटीला उनके माता-पिता नीरु और नीमा का घर था। अब ये घर विद्यार्थीयों और अध्येताओं के ठहरने की जगह बन चुकी है जो कबीर की रचनाओं को पढ़ते है।

दर्शनशास्त्र

हिन्दू धर्म, इस्लाम के बिना छवि वाले भगवान के साथ व्यक्तिगत भक्तिभाव के साथ ही तंत्रवाद जैसे उस समय के प्रचलित धार्मिक स्वाभाव के द्वारा कबीर दास के लिये पूर्वाग्रह था, कबीर दास पहले भारतीय संत थे जिन्होंने हिन्दू और इस्लाम धर्म को सार्वभौमिक रास्ता दिखा कर समन्वित किया जिसे दोनों धर्म के द्वारा माना गया। कबीर के अनुसार हर जीवन का दो धार्मिक सिद्धातों से रिश्ता होता है (जीवात्मा और परमात्मा)। मोक्ष के बारे में उनका विचार था कि ये इन दो दैवीय सिद्धांतों को एक करने की प्रक्रिया है।

उनकी महान रचना बीजक में कविताओं की भरमार है जो कबीर के धार्मिकता पर सामान्य विचार को स्पष्ट करता है। कबीर की हिन्दी उनके दर्शन की तरह ही सरल और प्राकृत थी। वो ईश्वर में एकात्मकता का अनुसरण करते थे। वो हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे और भक्ति तथा सूफ़ी विचारों में पूरा भरोसा दिखाते थे।

कबीर की कविताएँ

सच्चे गुरु की प्रशंसा से गुंजायमान लघु और सहज तरीकों से कविताओं को उन्होंने बनाया था। अनपढ़ होने के बावजूद भी उन्होंने अवधि, ब्रज, और भोजपुरी के साथ हिन्दी में अपनी कविता लिखी थी। वे कुछ लोगों द्वारा अपमानित किये गये लेकिन उन्होंने कभी बुरा नहीं माना।

कबीर के द्वारा रचित सभी कविताएँ और गीत कई सारी भाषाओं में मौजूद है। कबीर और उनके अनुयायियों को उनके काव्यगत धार्मिक भजनों के अनुसार नाम दिया जाता है जैसे बनिस और बोली। विविध रुप में उनके कविताओं को साखी, श्लोक (शब्द) और दोहे (रमेनी) कहा जाता है। साखी का अर्थ है परम सत्य को दोहराते और याद करते रहना। इन अभिव्यक्तियों का स्मरण, कार्य करना और विचारमग्न के द्वारा आध्यात्मिक जागृति का एक रास्ता उनके अनुयायियों और कबीर के लिये बना हुआ है।

कबीर दास का जीवन इतिहास

सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मुलगड़ी और उसकी परंपरा

कबीरचौरा मठ मुलगड़ी संत-शिरोमणि कबीर दास का घर, ऐतिहासिक कार्यस्थल और ध्यान लगाने की जगह है। वे अपने प्रकार के एकमात्र संत है जो “सब संतन सरताज” के रुप में जाने जाते है। ऐसा माना जाता है कि जिस तरह संत कबीर के बिना सभी संतों का कोई मूल्य नहीं उसी तरह कबीरचौरा मठ मुलगड़ी के बिना मानवता का इतिहास मूल्यहीन है। कबीरचौरा मठ मुलगड़ी का अपना समृद्ध परंपरा और प्रभावशाली इतिहास है। ये कबीर के साथ ही सभी संतों के लिये साहसिक विद्यापीठ है । मध्यकालीन भारत के भारतीय संतों ने इसी जगह से अपनी धार्मिक शिक्षा प्राप्त की थी। मानव परंपरा के इतिहास में ये साबित हुआ है कि गहरे चिंतन के लिये हिमालय पर जाना जरुरी नहीं है बल्कि इसे समाज में रहते हुए भी किया जा सकता है। कबीर दास खुद इस बात के आदर्श संकेतक थे। वो भक्ति के सच्चे प्रचारक थे साथ ही उन्होंने आमजन की तरह साधारण जीवन लोगों के साथ जीया। पत्थर को पूजने के बजाय उन्होंने लोगों को स्वतंत्र भक्ति का रास्ता दिखाया। इतिहास गवाह है कि यहाँ की परंपरा ने सभी संतों को सम्मान और पहचान दी।

कबीर और दूसरे संतों के द्वारा उनकी परंपरा के इस्तेमाल किये गये वस्तुओं को आज भी कबीर मठ में सुरक्षित तरीके से रखा गया है। सिलाई मशीन, खड़ाऊ, रुद्राक्ष की माला (रामानंद से मिली हुयी), जंग रहित त्रिशूल और इस्तेमाल की गयी दूसरी सभी चीजें इस समय भी कबीर मठ में उपलब्ध है।

ऐतिहासिक कुआँ

कबीर मठ में एक ऐतिहासिक कुआँ है, जिसके पानी को उनकी साधना के अमृत रस के साथ मिला हुआ माना जाता है। दक्षिण भारत से महान पंडित सर्वानंद के द्वारा पहली बार ये अनुमान लगाया गया था। वो यहाँ कबीर से बहस करने आये थे और प्यासे हो गये। उन्होंने पानी पिया और कमाली से कबीर का पता पूछा। कमाली नें कबीर के दोहे के रुप में उनका पता बताया।

“कबीर का शिखर पर, सिलहिली गाल

पाँव ना टिकाई पीपील का, पंडित लड़े बाल”

वे कबीर से बहस करने गये थे लेकिन उन्होंने बहस करना स्वीकार नहीं किया और सर्वानंद को लिखित देकर अपनी हार स्वीकार की। सर्वानंद वापस अपने घर आये और हार की उस स्वीकारोक्ति को अपने माँ को दिखाया और अचानक उन्होंने देखा कि उनका लिखा हुआ उल्टा हो चुका था। वो इस सच्चाई से बेहद प्रभावित हुए और वापस से काशी के कबीर मठ आये बाद में कबीर दास के अनुयायी बने। वे कबीर से इस स्तर तक प्रभावित थे कि अपने पूरे जीवन भर उन्होंने कभी कोई किताब नहीं छुयी। बाद में, सर्वानंद आचार्य सुरतीगोपाल साहब की तरह प्रसिद्ध हुए। कबीर के बाद वे कबीर मठ के प्रमुख बने।

कैसे पहुँचे:

सिद्धपीठ कबीरचौरा मठ मुलगड़ी वाराणसी के रुप में जाना जाने वाला भारत के प्रसिद्ध सांस्कृतिक शहर में स्थित है। कोई भी यहाँ हवाईमार्ग, रेलमार्ग या सड़कमार्ग से पहुँच सकता है। ये वाराणसी हवाई अड्डे से 18 किमी और वाराणसी रेलवे स्टेशन से 3 किमी की दूरी पर स्थित है।

काशी नरेश यहाँ क्षमा माँगने आये थे:

एक बार की बात है, काशी नरेश राजा वीरदेव सिंह जुदेव अपना राज्य छोड़ने के दौरान माफी माँगने के लिये अपनी पत्नी के साथ कबीर मठ आये थे। कहानी ऐसे है कि: एक बार काशी नरेश ने कबीर दास की ढ़ेरों प्रशंसा सुनकर सभी संतों को अपने राज्य में आमंत्रित किया, कबीर दास राजा के यहाँ अपनी एक छोटी सी पानी के बोतल के साथ पहुँचे। उन्होंने उस छोटे बोतल का सारा पानी उनके पैरों पर डाल दिया, कम मात्रा का पानी देर तक जमीन पर बहना शुरु हो गया। पूरा राज्य पानी से भर उठा, इसलिये कबीर से इसके बारे में पूछा गया उन्होंने कहा कि एक भक्त जो जगन्नाथपुरी में खाना बना रहा था उसकी झोपड़ी में आग लग गयी।

जो पानी मैंने गिराया वो उसके झोपड़ी को आग से बचाने के लिये था। आग बहुत भयानक थी इसलिये छोटे बोतल से और पानी की जरुरत हो गयी थी। लेकिन राजा और उनके अनुयायी इस बात को स्वीकार नहीं किया और वे सच्चा गवाह चाहते थे। उनका विचार था कि आग लगी उड़ीसा में और पानी डाला जा रहा है काशी में। राजा ने अपने एक अनुगामी को इसकी छानबीन के लिये भेजा। अनुयायी आया और बताया कि कबीर ने जो कहा था वो बिल्कुल सत्य था। इस बात के लिये राजा बहुत शर्मिंदा हुए और तय किया कि वो माफी माँगने के लिये अपनी पत्नी के साथ कबीर मठ जाएँगे। अगर वो माफी नहीं देते है तो वो वहाँ आत्महत्या कर लेंगे। उन्हें वहाँ माफी मिली और उस समय से राजा कबीर मठ से हमेशा के लिये जुड़ गये।

समाधि मंदिर:

समाधि मंदिर वहाँ बना है जहाँ कबीर दास अक्सर अपनी साधना किया करते थे। सभी संतों के लिये यहाँ समाधि से साधना तक की यात्रा पूरी हो चुकी है। उस दिन से, ये वो जगह है जहाँ संत अत्यधिक ऊर्जा के बहाव को महसूस करते है। ये एक विश्व प्रसिद्ध शांति और ऊर्जा की जगह है। ऐसा माना जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद लोग उनके शरीर के अंतिम संस्कार को लेकर झगड़ने लगे। लेकिन जब समाधि कमरे के दरवाजे को खोला गया, तो वहाँ केवल दो फूल थे जो अंतिम संस्कार के लिये उनके हिन्दू और मुस्लिम अनुयायियों के बीच बाँट दिया गया। मिर्ज़ापुर के मोटे पत्थर से समाधि मंदिर का निर्माण किया गया है।

कबीर चबूतरा पर बीजक मंदिर:

ये जगह कबीर दास का कार्यस्थल होने के साथ साधना स्थल भी था। ये वो जगह है जहाँ कबीर ने अपने अनुयायियों को भक्ति, ज्ञान, कर्म और मानवता की शिक्षा दी। इस जगह का नाम रखा गया कबीर चबूतरा। बीजक कबीर दास की महान रचना थी इसी वजह से कबीर चबूतरा का नाम बीजक मंदिर रखा गया।

कबीर तेरी झोपड़ी, गलकट्टो के पास।

जो करेगा वो भरेगा, तुम क्यों होत उदास।

देश के लिये कबीर दास का योगदान

उत्तर भारत में अपने भक्ति आंदोलन के लिये बड़े पैमाने पर मध्यकालीन भारत के एक भक्ति और सूफी संत थे कबीर दास। इनका जीवन चक्र काशी (इसको बनारस या वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है) के केन्द्र में था। वो माता-पिता की वजह से बुनकर व्यवसाय से जुड़े थे और जाति से जुलाहा थे। इनके भक्ति आंदोलन के लिये दिये गये विशाल योगदान को भारत में नामदेव, रविदास, और फरीद के साथ पथप्रदर्शक के रुप में माना जाता है। वे मिश्रित आध्यात्मिक स्वाभाव के संत थे (नाथ परंपरा, सूफिज्म, भक्ति) जो खुद से उन्हंट विशिष्ट बनाता है। उन्होंने कहा है कि कठिनाई की डगर सच्चा जीवन और प्यार है।

15वीं शताब्दी में, वाराणसी में लोगों के जीवन के सभी क्षेत्रों में शिक्षण केन्द्रों के साथ ही ब्राह्मण धर्मनिष्ठता के द्वारा मजबूती से संघटित हुआ था। जैसा कि वे एक निम्न जाति जुलाहा से संबंध रखते थे कबीर दास अपने विचारों को प्रचारित करने में कड़ी मेहनत करते थे। वे कभी भी लोगों में भेदभाव नहीं करते थे चाहे वो वैश्या, निम्न या उच्च जाति से संबंध रखता हो। वे खुद के अनुयायियों के साथ सभी को एक साथ उपदेश दिया करते थे। ब्राह्मणों द्वारा उनका अपने उपदेशों के लिये उपहास उड़ाया जाता था लेकिन वे कभी उनकी बुराई नहीं करते थे इसी वजह से कबीर सामान्य जन द्वारा बहुत पसंद किये जाते थे। वे अपने दोहो के द्वारा जीवन की असली सच्चाई की ओर आम-जन के दिमाग को ले जाने की शुरुआत कर चुके थे।

वे हमेशा मोक्ष के साधन के रुप में कर्मकाण्ड और सन्यासी तरीकों का विरोध करते थे। उन्होंने कहा कि अपनों के लाल रंग से ज्यादा महत्व है अच्छाई के लाल रंग का। उनके अनुसार, अच्छाई का एक दिल पूरी दुनिया की समृद्धि को समाहित करता है। एक व्यक्ति दया के साथ मजबूत होता है, क्षमा उसका वास्तविक अस्तित्व है तथा सही के साथ कोई व्यक्ति कभी न समाप्त होने वाले जीवन को प्राप्त करता है। कबीर ने कहा कि भगवान आपके दिल में है और हमेशा साथ रहेगा। तो उनकी भीतरी पूजा कीजिये। उन्होंने अपने एक उदाहरण से लोगों का दिमाग परिवर्तित कर दिया कि अगर यात्रा करने वाला चलने के काबिल नहीं है, तो यात्री के लिये रास्ता क्या करेगा।

उन्होंने लोगों की आँखों को खोला और उन्हें मानवता, नैतिकता और धार्मिकता का वास्तविक पाठ पढ़ाया। वे अहिंसा के अनुयायी और प्रचारक थे। उन्होंने अपने समय के लोगों के दिमाग को अपने क्रांतिकारी भाषणों से बदल दिया। कबीर के पैदा होने और वास्तविक परिवार का कोई पुख्ता प्रमाण मौजूद नहीं है। कुछ कहते है कि वो मुस्लिम परिवार में जन्मे थे तो कोई कहता है कि वो उच्च वर्ग के ब्राह्मण परिवार से थे। उनके निधन के बाद हिन्दू और मुस्लिमों में उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हो गया था। उनका जीवन इतिहास प्रसिद्ध है और अभी तक लोगों को सच्ची इंसानियत का पाठ पढ़ाता है।

कबीर दास का धर्म

कबीर दास के अनुसार, जीवन जीने का तरीका ही असली धर्म है जिसे लोग जीते है ना कि वे जो लोग खुद बनाते है। उनके अनुसार कर्म ही पूजा है और जिम्मेदारी ही धर्म है। वे कहते थे कि अपना जीवन जीयो, जिम्मेदारी निभाओ और अपने जीवन को शाश्वत बनाने के लिये कड़ी मेहनत करो। कभी भी जीवन में सन्यासियों की तरह अपनी जिम्मेदारियों से दूर मत जाओ। उन्होंने पारिवारिक जीवन को सराहा है और महत्व दिया है जो कि जीवन का असली अर्थ है। वेदों में यह भी उल्लिखित है कि घर छोड़ कर जीवन को जीना असली धर्म नहीं है। गृहस्थ के रुप में जीना भी एक महान और वास्तविक सन्यास है। जैसे, निर्गुण साधु जो एक पारिवारिक जीवन जीते है, अपनी रोजी-रोटी के लिये कड़ी मेहनत करते है और साथ ही भगवान का भजन भी करते है।

कबीर ने लोगों को विशुद्ध तथ्य दिया कि इंसानियत का क्या धर्म है जो कि किसी को अपनाना चाहिये। उनके इस तरह के उपदेशों ने लोगों को उनके जीवन के रहस्य को समझने में मदद किया।

कबीर दास: एक हिन्दू या मुस्लिम

ऐसा माना जाता है कि कबीर दास के मृत्यु के बाद हिन्दू और मुस्लिमों ने उनके शरीर को पाने के लिये अपना-अपना दावा पेश किया। दोनों धर्मों के लोग अपने रीति-रिवाज़ और परंपरा के अनुसार कबीर का अंतिम संस्कार करना चाहते थे। हिन्दुओं ने कहा कि वो हिन्दू थे इसलिये वे उनके शरीर को जलाना चाहते है जबकि मुस्लिमों ने कहा कि कबीर मुस्लिम थे इसलिये वो उनको दफनाना चाहते है।

लेकिन जब उन लोगों ने कबीर के शरीर पर से चादर हटायी तो उन्होंने पाया कि कुछ फूल वहाँ पर पड़े है। उन्होंने फूलों को आपस में बाँट लिया और अपने-अपने रीति-रिवाजों से महान कबीर का अंतिम संस्कार संपन्न किया। ऐसा भी माना जाता है कि जब दोनों समुदाय आपस में लड़ रहे थे तो कबीर दास की आत्मा आयी और कहा कि “ना ही मैं हिन्दू हूँ और ना ही मैं मुसलमान हूँ। यहाँ कोई हिन्दू या मुसलमान नहीं है। मैं दोनों हूँ, मैं कुछ नहीं हूँ, और सब हूँ। मैं दोनों मे भगवान देखता हूँ। उनके लिये हिन्दू और मुसलमान एक है जो इसके गलत अर्थ से मुक्त है। परदे को हटाओ और जादू देखो”।

कबीर दास का मंदिर काशी के कबीर चौराहा पर बना है जो भारत के साथ ही विदेशी सैलानियों के लिये भी एक बड़े तीर्थस्थान के रुप में प्रसिद्ध हो गया है। मुस्लिमों द्वारा उनके कब्र पर एक मस्जिद बनायी गयी है जो मुस्लिमों के तीर्थस्थान के रुप में बन चुकी है।

कबीर दास के भगवान

कबीर के गुरु रामानंद ने उन्हें गुरु मंत्र के रुप में भगवान ‘रामा’ नाम दिया था जिसका उन्होंने अपने तरीके से अर्थ निकाला था। वे अपने गुरु की तरह सगुण भक्ति के बजाय निर्गुण भक्ति को समर्पित थे। उनके रामा संपूर्ण शुद्ध सच्चदानंद थे, दशरथ के पुत्र या अयोध्या के राजा नहीं जैसा कि उन्होंने कहा “दशरथ के घर ना जन्में, ई चल माया किनहा”। वो इस्लामिक परंपरा से ज्यादा बुद्धा और सिद्धा से बेहद प्रभावित थे। उनके अनुसार “निर्गुण नाम जपो रहे भैया, अविगति की गति लाखी ना जैया”।

उन्होंने कभी भी अल्लाह या राम में फर्क नहीं किया, कबीर हमेशा लोगों को उपदेश देते कि ईश्वर एक है बस नाम अलग है। वे कहते है कि बिना किसी निम्न और उच्च जाति या वर्ग के लोगों के बीच में प्यार और भाईचारे का धर्म होना चाहिये। ऐसे भगवान के पास अपने आपको समर्पित और सौंप दो जिसका कोई धर्म नहीं हो। वो हमेशा जीवन में कर्म पर भरोसा करते थे।

कबीर दास की मृत्यु

15 शताब्दी के सूफी कवि कबीर दास के बारे में ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने मरने की जगह खुद से चुनी थी, मगहर , जो लखनउ शहर से 240 किमी दूरी पर स्थित है। लोगों के दिमाग से मिथक को हटाने के लिये उन्होंने ये जगह चुनी थी उन दिनों, ऐसा माना जाता था कि जिसकी भी मृत्यु मगहर में होगी वो अगले जन्म में बंदर बनेगा और साथ ही उसे स्वर्ग में जगह नहीं मिलेगी। कबीर दास की मृत्यु काशी के बजाय मगहर में केवल इस वजह से हुयी थी क्योंकि वो वहाँ जाकर लोगों के अंधविश्वास और मिथक को तोड़ना चाहते थे। 1575 विक्रम संवत में हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ शुक्ल एकादशी के वर्ष 1518 में जनवरी के महीने में मगहर में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा। ऐसा भी माना जाता है कि जो कोई भी काशी में मरता है वो सीधे स्वर्ग में जाता है इसी वजह से मोक्ष की प्राप्ति के लिये हिन्दू लोग अपने अंतिम समय में काशी जाते है। एक मिथक को मिटाने के लिये कबीर दास की मृत्यु काशी के बाहर हुयी। इससे जुड़ा उनका एक खास कथन है कि “जो कबीरा काशी मुएतो रामे कौन निहोरा” अर्थात अगर स्वर्ग का रास्ता इतना आसान होता तो पूजा करने की जरुरत क्या है।

कबीर दास का शिक्षण व्यापक है और सभी के लिये एक समान है क्योंकि वो हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और दूसरे किसी धर्मों में भेदभाव नहीं करते थे। मगहर में कबीर दास की समाधि और मज़ार दोनों है। कबीर की मृत्यु के बाद हिन्दू और मुस्लिम धर्म के लोग उनके अंतिम संस्कार के लिये आपस में भिड़ गये थे। लेकिन उनके मृत शरीर से जब चादर हटायी गयी तो वहाँ पर कुछ फूल पड़े थे जिसे दोनों समुदायों के लोगों ने आपस में बाँट लिया और फिर अपने अपने धर्म के अनुसार कबीर जी का अंतिम संस्कार किया।

समाधि से कुछ मीटर दूरी पर एक गुफा है जो मृत्यु से पहले उनके ध्यान लगाने की जगह को इंगित करती है। उनके नाम से एक ट्रस्ट चल रहा है जिसका नाम है कबीर शोध संस्थान जो कबीर दास के कार्यों पर शोध को प्रचारित करने के लिये शोध संस्थान के रुप में है। वहाँ पर शिक्षण संस्थान भी है जो कबीर दास के शिक्षण को भी समाहित किया हुआ है।

कबीर दास: एक सूफी संत

भारत में मुख्य आध्यात्मिक कवियों में से एक कबीर दास महान सूफी संत थे जो लोगों के जीवन को प्रचारित करने के लिये अपने दार्शनिक विचार दिये। उनका दर्शन कि ईश्वर एक है और कर्म ही असली धर्म है ने लोगों के दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी। उनका भगवान की ओर प्यार और भक्ति ने हिन्दू भक्ति और मुस्लिम सूफी के विचार को पूरा किया।

ऐसा माना जाता है कि उनका संबंध हिन्दू ब्राह्मण परिवार से था लेकिन वे बिन बच्चों के मुस्लिम परिवार नीरु और नीमा द्वारा अपनाये गये थे । उन्हें उनके माता-पिता द्वारा काशी के लहरतारा में एक तालाब में बड़े से कमल के पत्ते पर पाया गया था। उस समय दकियानूसी हिन्दू और मुस्लिम लोगों के बीच में बहुत सारी असहमति थी जो कि अपने दोहों के द्वारा उन मुद्दों को सुलझाना कबीर दास का मुख्य केन्द्र बिन्दु था

पेशेवर ढ़ग से वो कभी कक्षा में नहीं बैठे लेकिन वो बहुत ज्ञानी और अध्यात्मिक व्यक्ति थे। कबीर ने अपने दोहे औपचारिक भाषा में लिखे जो उस समय अच्छी तरह से बोली जाती थी जिसमें ब्रज, अवधि और भोजपुरी समाहित थी। उन्होंने बहुत सारे दोहे तथा सामाजिक बंधंनों पर आधारित कहानियों की किताबें लिखी।

कबीर दास की रचनाएँ

कबीर के द्वारा लिखी गयी पुस्तकें सामान्यत: दोहा और गीतों का समूह होता था। संख्या में उनका कुल कार्य 72 था और जिसमें से कुछ महत्पूर्ण और प्रसिद्ध कार्य है जैसे रक्त, कबीर बीजक, सुखनिधन, मंगल, वसंत, शब्द, साखी, और होली अगम।

कबीर की लेखन शैली और भाषा बहुत सुंदर और साधारण होती है। उन्होंने अपना दोहा बेहद निडरतापूर्वक और सहज रुप से लिखा है जिसका कि अपना अर्थ और महत्व है। कबीर ने दिल की गहराईयों से अपनी रचनाओं को लिखा है। उन्होंने पूरी दुनिया को अपने सरल दोहों में समेटा है। उनका कहा गया किसी भी तुलना से ऊपर और प्रेरणादायक है।

कबीर दास की जन्मस्थली

वाराणसी के लहरतारा में संत कबीर मठ में एक तालाब है जहाँ नीरु और नीमा नामक एक जोड़े ने कबीर को पाया था।

ये शांति और सच्ची शिक्षण की महान इमारत है जहाँ पूरी दुनिया के संत वास्तविक शिक्षा की खातिर आते है।

कबीर दास के दोहे

“जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नहीं

सब अंधियाँरा मिट गया, जब दीपक देखया महीन”

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर

पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर”

“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा ना मिला कोय

जो मन देखा आपना, मुझसे बुरा ना कोय”

“गुरु गोविन्द दोहू खड़े, कागे लागू पाँय

बलीहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय”

“सब धरती कागज कारु, लेखनी सब वनराय

सात समुन्द्र की मासी कारु, गुरुगुन लिखा ना जाय”

“ऐसी वानी बोलिये, मन का आपा खोय

औरन को शीतल करुँ, खुद भी शीतल होय”

“निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय

बिन पानी बिन साबुन, निर्मल करे सुबव”

“दुख में सिमरन सब करे, सुख में करे ना कोय

जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय”

“माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंधे मोहे

एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रौंधुगी तोहे”

“चलती चक्की देखकर, दिया कबीरा रोय

दो पातन के बीच में, साबुत बचा ना कोय”

“मलिन आवत देख के, कलियाँ करे पुकार

फूले फूले चुन लिये, काल हमारी बार”

“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

पल में परलय होयेगी बहुरी करेगा कब”

“पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय

ढ़ाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय”

“साईं इतना दीजीये, जा में कुटुम्ब समाय

मैं भी भूखा ना रहूँ, साधू ना भूखा जाय”

“लूट सके लूट ले, राम नाम की लूट

पाछे पछताएगा, जब प्रान जाएँगे छुट”

“माया मरी ना मन मरा, मर मर गये शरीर

आशा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर”

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  • Essays in Hindi /

Essay On Kabir Das : कबीर दास पर निबंध

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  • Updated on  
  • जून 19, 2024

Essay On Kabir Das in Hindi

Essay On Kabir Das in Hindi : बचपन से लेकर अभी तक हम सबने कबीर दास के कई दोहों सुना है। स्कूलों में भी कबीर दास ने दोहे के बारे में हम सभी से पूछा जाता था। आज भी स्कूलों में छात्रों को कबीर के दोहे या उन पर निबंध लिखने को आ जाता है। ऐसे में बच्चों को कई बार समझ नहीं आता की वे कैसे इस की शुरुआत करें और इस निबंध में क्या क्या लिखें। तो हम आज इस ब्लॉग के माध्यम से आपको बताएंगे की निबंध की शुरुआत कैसे की जाती है। तो चलिए जानते हैं Essay On Kabir Das in Hindi से उनके पूरे जीवन के बारे में कुछ खास तथ्य। 

This Blog Includes:

संत कबीर दास पर 100 शब्दों में निबंध, संत कबीर दास पर 200 शब्दों में निबंध, संत कबीर दास पर 500 शब्दों में निबंध, व्यक्तिगत जीवन   , संत कबीरदास की रचनाएं, कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे , संत कबीर दास पर 10 लाइन्स.

कबीर दास की 644वीं जयंती के अवसर पर 24 जून 2021 को संत कबीर दास जयंती मनाई गई। कबीर दास एक भारतीय कवि और संत थे, जिन्होंने अपने आध्यात्मिक, विश्वासों, नैतिकता और कविताओं से लाखों लोगों को प्रभावित किया। संत कबीर दास जी का जन्म 1440 में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को हुआ था। उनके अनुयायी प्रत्येक वर्ष मई या जून में उनकी जयंती को संत गुरु कबीर जयंती के रूप में मनाते हैं। कुछ लोग कबीरदास जयंती को कबीर प्रकट दिवस भी कहते हैं। कहा जाता हैं की उनका पालन-पोषण जुलाहा या बुनकरों के परिवार में हुआ था। 

कबीर दास के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी के लिए यहां पढ़ें –

कबीर दास का जन्म कब हुआ, यह ठीक ज्ञात नहीं है। लेकिन माना जाता है कि कबीर का जन्म 14वीं-15वीं शताब्दी में काशी (वाराणसी) में हुआ था। कहा जाता है की कबीर का पालन-पोषण नीरू एवं नीमा नामक एक जुलाहा दंपति ने किया। कबीर के गुरु का नाम ‘संत स्वामी रामानंद’ था और उनका विवाह ‘लोई’ से हुआ था।  कबीर दास के दो संतान हुई जिनका नाम ‘कमाल’ और ‘कमाली’ था। कबीर दास का संबंध भक्तिकाल की निर्गुण शाखा “ज्ञानमर्गी उपशाखा” से था। इनकी रचनाओं और गंभीर विचारों ने भक्तिकाल आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया था। इन्होनें कई रचनाएं लिखी हैं।

कबीर दास पढ़ें लिखे न होते हुए भी काव्य रचनाएं प्रस्तुत की वह अत्यन्त विस्मयकारी है ये भक्तिकाल के कवि थे। अपनी रचनाओं में इन्होंने सत्य, प्रेम, पवित्रता, सत्संग, इन्द्रिय-निग्रह, सदाचार, गुरु महिमा, ईश्वर भक्ति आदि पर अधिक बल दिया था। 

संत कबीर दास महान कवियों में से एक थे। कबीर दास का पालन-पोषण जोलाहास दंपत्ति ने किया था। उनकी माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था। संत कबीर दास ने आध्यात्मिक विकास में पुनर्जागरण किया। संत कबीर दास भारत के महान संत है और उनका न केवल हिंदू बल्कि इस्लाम और सिख धर्म भी सम्मान करते हैं। 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि थे, जिनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया। 

संत कबीर दास जी का जन्म काशी में सन् 1398 ई० (संवत् 1455 वि0) में हुआ था ‘कबीर पंथ’ में भी इनका आविर्भाव- काल संवत् 1455 में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन माना जाता है। इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में तीन मत हैं—  काशी, मगहर और आजमगढ़। अनेक प्रमाणों के आधार पर इनका जन्म- स्थान  काशी मानना ही उचित है।

संत कबीर दास ने अपने संपूर्ण जीवन में लोकहित के लिए कई उपदेश दिए व समाज में फैली कुरीतियों और आडंबरो का खुलकर विरोध किया। इसके साथ ही उन्हें हिंदी साहित्य के महान कवियों में उच्च स्थान प्राप्त हैं। जिनके अनमोल विचारों को आज भी पढ़ा और उनका अनुसरण किया जाता हैं। 

संत कबीर का जन्म सन 1398 ईसवी में एक जुलाहा परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा था। कबीर के गुरु प्रसिद्ध संत स्वामी रामानंद थे। लोक कथाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कबीर विवाहित थे। इनकी पत्नी का नाम लोई था। इनकी दो संताने थी एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम कमाल था और पुत्री का नाम कमाली।

कबीर की रचनाएँ मुख्यत हिन्दी भाषा में लिखी गईं।

15वीं शताब्दी में जब फ़ारसी और संस्कृत प्रमुख उत्तर भारतीय भाषाएँ थीं, तब उन्होंने बोलचाल की क्षेत्रीय भाषा में लिखना शुरू किया। उनकी कविता हिंदी, खड़ी बोली, पंजाबी, भोजपुरी, उर्दू, फ़ारसी और मारवाड़ी का मिश्रण है। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में संत कबीर दास मगहर (उत्तर प्रदेश) शहर चले गये थे। आप नीचे कबीर दास की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं देख सकते हैं। 

संत कबीर दास निबंध के साथ ही उनके कुछ लोकप्रिय दोहों के बारे में भी बताया जा रहा है। जिन्हें आप नीचे देख सकते हैं:-

  • गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।
  • पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
  • माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
  • जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
  • जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय, यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
  • साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय।
  • तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई, सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।
  • माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर, आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर।
  • बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
  • जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही, सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।
  • “माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।” 
  • “पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!”
  • “गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय।।”
  • “यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।”
  • “उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं । एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं॥”
  • “निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।”
  • “प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए । राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।”
  • “ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।”
  • “जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि । एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि॥”
  • “कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ॥”
  • “जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप।”
  • कबीर दास जी ने सत्य को जानने के लिए सुझाव दिया था, की “मैं” या अहंकार को छोड़ दो।
  • कबीरदास ने कई काव्य रचनाएं प्रस्तुत की वह अत्यन्त विस्मयकारी है ये भक्तिकाल के कवि थे। 
  • कबीर की कविताएँ ब्रज, भोजपुरी और अवधी समेत अलग-अलग बोलियों से लेकर हिंदी में थीं।
  • माना जाता है की, कबीरदास जी का जन्म सन 1398 में लहरतारा के निकट काशी (वाराणसी) में हुआ। 
  • संत कबीरदास का पालन-पोषण नीरू तथा नीमा नामक जुलाहे दम्पति ने किया था। 
  • कबीरदास का विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ, जिनसे उनको दो संताने कमाल और कमाली हुई। 
  • कबीरदास जी प्रसिद्द वैष्णव संत रामानंद जी को अपना गुरु मानते थे। 
  • कबीर एक ईश्वर को मानते थे तथा किसी भी प्रकार के कर्मकांड के विरोधी थे। 
  • कहा जाता है की कबीरदास अपने अंतिम समय में मगहर चले गए थे, जहाँ 1518 ई में उनकी मृत्यु हो गयी।  
  • कबीर दास जी प्रसिद्द वैष्णव संत रामानंद जी को अपना गुरु मानते थे।

अधिकांश विद्वानों का मानना है कि कबीर का निधन सन 1518 ईस्वी में हुआ था और वहीं कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि उन्होंने स्वेच्छा से मगहर में जाकर अपने प्राणों को त्याग दिया था। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था ताकि लोगों के मन से अंधविश्वास को हटा सकें लोगों के बीच यह अंधविश्वास था कि मगहर में मरने पर हमें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती।

संत स्वामी रामानंद जी थे। 

मानवसेवा ही संत कबीर का धर्म था। 

1518 मगहर में। 

गुरु और गोविंद में से गुरु को श्रेष्ठ माना था। 

लगभग 25 दोहा लिखे थे। 

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संत कबीर दास का जीवन.

संत-कवि कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी के मध्य में काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। कबीर के जीवन के विवरण कुछ अनिश्चित हैं। उनके जीवन के बारे में अलग-अलग विचार, विपरीत तथ्य और कई कथाएँ हैं। यहाँ तक कि उनके जीवन पर बात करने वाले स्रोत भी अपर्याप्त हैं। शुरुआती स्रोतों में ‘बीजक’ और ‘आदि ग्रंथ’ शामिल हैं। इसके अलावा, भक्त मल द्वारा रचित ‘नाभाजी’, मोहसिन फ़ानी द्वारा रचित ‘दबिस्तान-ए-तवारीख’, और ‘खज़ीनत उल-असफ़िया’ हैं।

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संत कबीर की तस्वीर के साथ भारतीय डाक टिकट, 1952 स्रोत- विकिमीडिया कॉमन्स

ऐसा कहा जाता है कि कबीर की माँ ने उनके जन्म के समय बड़े चमत्कारिक ढंग से गर्भ धारण किया था। उनकी माँ एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण विधवा थीं, जो अपने पिता के साथ एक प्रसिद्ध तपस्वी के निवास पर तीर्थ यात्रा करने गई थीं। उनकी निष्ठा से प्रभावित होकर, तपस्वी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनसे कहा कि वे जल्द ही एक बेटे को जन्म देंगी। बेटे का जन्म होने के बाद, बदनामी से बचने के लिए (क्योंकि उनकी शादी नहीं हुई थी), कबीर की माँ ने उनका परित्याग कर दिया। छोटे से कबीर को एक मुसलमान बुनकर की पत्नी, नीमा, ने गोद ले लिया। कथाओं के एक अन्य संस्करण में, तपस्वी ने उनकी माँ को आश्वासन दिया था कि जन्म असामान्य तरीके से होगा और इसलिए, कबीर का जन्म अपनी माँ की हथेली से हुआ था! इस कहानी में भी, उन्हें बाद में उसी नीमा द्वारा गोद ले लिया गया था।

जब लोग बच्चे के बारे में नीमा पर संदेह और प्रश्न करने लगे, तब चमत्कारी ढंग से जन्में नवजात शिशु ने अपनी दृढ़ आवाज़ में कहा, “मैं एक महिला से पैदा नहीं हुआ था बल्कि एक लड़के के रूप में प्रकट हुआ हूँ ... मुझमें ना तो हड्डियाँ हैं, ना खून, ना त्वचा है। मैं तो मानव जाति के लिए शब्द प्रकट करता हूँ। मैं सर्वश्रेठ प्राणी हूँ ...”

कबीर की और बाईबल की कहानियों में समानताएँ देखी जा सकती हैं। इन दंतकथाओं की सत्यता पर प्रश्न उठाना निरर्थक होगा। हमें तो फिर दंतकथाओं की अवधारणा पर ही विचार करना पड़ेगा। कल्पनाएँ और मिथक सामान्य जीवन की विशेषता नहीं हैं। साधारण मनुष्य का जीवन तो भुला दिया जाता है। आलंकारिक दंतकथाएँ और अलौकिक कृत्य असाधारण जीवन से जुड़े होते हैं। भले ही कबीर का जन्म सामान्य रूप से ना हुआ हो, लेकिन इन दंतकथाओ से पता चलता है कि वे एक असाधारण और महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।

उनके समय के मानकों के अनुसार, 'कबीर' एक असामान्य नाम था। ऐसा कहा जाता है कि उनका नाम एक काज़ी ने रखा था जिन्होंने उनके लिए एक नाम खोजने के लिए कई बार क़ुरान खोली और हर बार ‘कबीर’ अर्थात 'महान’ शब्द पर उनकी खोज समाप्त हुई, जो ईश्वर, स्वयं अल्लाह के अलावा और किसी के लिए उपयोग नहीं किया जाता है।

कबीरा तू ही कबीरू तू तोरे नाम कबीर राम रतन तब पाइये जद पहिले तजहि सरीर

आप महान हैं, आप वही हैं, आपका नाम कबीर है, रत्न स्वरूप राम तभी प्राप्त होते हैं जब शारीरिक मोह त्याग दिया जाता है।

अपनी कविताओं में कबीर ने खुद को जुलाहा और कोरी कहा है। दोनों शब्दों का अर्थ ‘बुनकर’ है, जो एक निचली जाति थी। उन्होंने खुद को पूरी तरह से हिंदुओं या मुसलमानों के साथ नहीं जोड़ा।

जोगी गोरख गोरख करै, हिंद राम न उखराई मुसलमान कहे इक खुदाई, कबीरा को स्वामी घट घट रहियो समाई।

(जोगी गोरख गोरख कहते हैं, हिंदू राम का नाम जपते हैं, मुसलमान कहते हैं कि एक अल्लाह ही है, लेकिन कबीर का भगवान हर जगह व्याप्त है।)

कबीर जी ने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। उन्हें एक बुनकर के रूप में प्रशिक्षित भी नहीं किया गया था। उनकी कविताएँ बुनाई से जुड़े रूपकों से भरी हुई हैं, परंतु उनका मन पूरी तरह से इस पेशे में नहीं लगता था। उनका जीवन सत्य की खोज की आध्यात्मिक यात्रा थी, जो उनकी कविताों में स्पष्ट रूप से प्रकट होती है।

ताना बुनना सबहु तज्यो है कबीर, हरि का नाम लिखी लियो सरीर

(कबीर ने कताई और बुनाई, सभी को त्याग दिया है, हरि का नाम अपने संपूर्ण शरीर पर लिख लिया है।)

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कबीर को बुनाई करते हुए दर्शाती, 1825 की एक चित्रकारी। स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

अपनी आध्यात्मिक खोज को पूर्ण करने हेतु, वे वाराणसी में प्रसिद्ध संत रामानंद के शिष्य बनना चाहते थे। कबीर ने महसूस किया कि अगर वे किसी तरह से अपने गुरु के गुप्त मंत्र को जान लेंगे, तो उनकी दीक्षा हो सकेगी। संत रामानंद वाराणसी में नियमित रूप से एक निश्चित घाट पर जाते थे। एक दिन जब कबीर ने उन्हें घाट के पास आते देखा, तो वे घाट की सीढ़ियों पर लेट गए और रामानंदजी का पैर उनपर पड़ा, और उनके मूँह से अनायास ही ‘राम’ शब्द निकल पड़ा। कबीर को मंत्र मिल गया और उन्हें बाद में संत द्वारा एक शिष्य के रूप में स्वीकार कर लिया गया। ‘ख़जीनत अल-असफ़िया’ से हमें पता चलता है कि एक सूफ़ी पीर, शेख तक्की, भी कबीर के शिक्षक थे। कबीर के शिक्षण और तत्वज्ञान में सूफ़ी प्रभाव भी काफी स्पष्ट है।

वाराणसी में कबीर चौरा नाम का एक इलाका है, और ऐसा माना जाता है कि वे वहीं बड़े हुए थे।

कबीर ने बाद में लोई नामक एक महिला से शादी की और उनके दो बच्चे हुए, एक बेटा, कमल और एक बेटी कमली थी। कुछ स्रोतों से यह सुझाव भी मिलता है कि उन्होंने दो बार शादी की थी या उन्होंने शादी ही नहीं की थी। जबकि हमारे पास उनके जीवन के बारे में इन तथ्यों को स्थापित करने के साधन नहीं है, हम उनकी कविताओं के माध्यम से उनके द्वारा प्रचारित दर्शन में अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं।

कबीर का आध्यात्मिकता से गहरा संबंध था। मोहसिन फ़ानी की ‘दबिस्तान’ और अबुल फ़ज़ल की ‘आइन-ए-अकबरी’ में, उन्हे ‘मुहाविद’ बताया गया है, यानी एक ईश्वर में विश्वास रखने वाला। प्रभाकर माचवे की पुस्तक ‘कबीर’ की प्रस्तावना में प्रो. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बताया है कि कबीर राम के भक्त थे, लेकिन विष्णु के अवतार के रूप में नहीं। उनके लिए, राम किसी भी व्यक्तिगत रूप या गुण से परे हैं। कबीर का अंतिम लक्ष्य एक परम ईश्वर को प्राप्त करना था जो बिना किसी गुण के निराकार है, जो समय और स्थान से परे है, और जो कारण-कार्य-संबंध से भी परे है। कबीर का ईश्वर ज्ञान है, आनंद है। उनके लिए ईश्वर शब्द है।

जाके मुँह माथा नहिं नहिं रूपक रप फूप वास ते पतला ऐसा तात अनूप।

(जो चेहरे या माथे या प्रतीकात्मक रूप के बिना है, फूल की सुगंध की तुलना में सूक्ष्म है, ऐसा अनोखा उसका सार है।)

ऐसा प्रतीत होता है कि कबीर उपनिषद-संबंधी अद्वैतवाद और इस्लामी एकत्ववाद से गहराई से प्रभावित थे । उन्हें वैष्णव भक्ति परंपरा द्वारा भी प्रेरणा मिली थी, जिसमें भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण पर ज़ोर दिया जाता है।

उन्होंने जाति के आधार पर भेद स्वीकार नहीं किया। एक कहानी यह है कि एक दिन जब कुछ ब्राह्मण लोग अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगा रहे थे, तब कबीर ने अपने लकड़ी के पात्र को नदी के पानी से भरा और उन लोगों को पीने के लिए दिया। वे लोग निचली जाति के व्यक्ति द्वारा पानी दिए जाने पर बहुत नाराज़ हुए, जिसके उत्तर में कबीर ने कहा, “अगर गंगा जल मेरे पात्र को शुद्ध नहीं कर सकता है, तो मैं कैसे विश्वास कर सकता हूँ कि यह मेरे पापों को धो सकता है।”

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दशाश्वमेध घाट, वाराणसी का प्रमुख घाट। कबीर जी यहाँ आए होंगे। स्रोत: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण

केवल जाति ही नहीं, कबीर ने मूर्ति पूजा के विरुद्ध भी बात की है और हिंदू तथा मुसलमानों, दोनों, के उन संस्कारों, रीति-रिवाजों और प्रथाओ की आलोचना की जो उनकी दृष्टि मे व्यर्थ थे। उन्होंने उपदेश दिया कि संपूर्ण श्रद्धा से ही ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।

लोग ऐसे बावरे, पाहन पूजन जाई घर की चाकिया काहे न पूजे जेही का पीसा खाई

(लोग ऐसे मूर्ख हैं कि वे पत्थरों की पूजा करने जाते हैं, वे उस चक्की (पत्थर) की पूजा क्यों नहीं करते जो उनके लिए खाने के लिए आटा पीसती है।)

उनकी कविता में ये सारे विचार उभरकर आते हैं। उनके आध्यात्मिक अनुभव और उनकी कविताओं को अलग नहीं किया जा सकता है। वास्तव में, वे सचेत रूप से अपनी कविताएँ नहीं लिखते थे। यह उनकी आध्यात्मिक खोज, उनका परमानंद और पीड़ा थी जिसे उन्होंने अपनी कविताओं में व्यक्त किया है। कबीर हर तरह से एक असाधारण कवि हैं। 15वीं शताब्दी में, जब फ़ारसी और संस्कृत प्रमुख उत्तर भारतीय भाषाएँ थीं, तब उन्होंने बोलचाल वाली, क्षेत्रीय भाषा में लिखने का चयन किया। केवल एक ही नहीं, उनके काव्य में हिंदी, खड़ी बोली, पंजाबी, भोजपुरी, उर्दू, फ़ारसी और मारवाड़ी जैसी भाषाओं का मिश्रण है।

भले ही कबीर के जीवन के बारे में विवरण बहुत कम मिलते हैं, लेकिन उनकी कविताएँ आज भी मौजूद हैं। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हें उनकी कविताओं के लिए और उनके द्वारा जाना जाता है। कबीर एक साधारण व्यक्ति थे और उनकी कविताओं का सदियों से मौजूद रहना, उनकी कविताओं की महानता का प्रमाण है। मौखिक रूप से प्रसारित होने के बावजूद, कबीर की कविताएँ आज भी अपनी सरल भाषा और आध्यात्मिक विचार और अनुभव की गहराई के कारण जानी जाती हैं। उनकी मृत्यु के कई वर्षों बाद, उनकी कविताएँ लिखी गईं थीं। उन्होंने दो पंक्ति वाले दोहे और लंबे पद (गीत) लिखे जिन्हें संगीतबद्ध किया गया। कबीर की कविताओं को एक सरल भाषा में लिखा गया है, फिर भी उनकी व्याख्या करना मुश्किल है क्योंकि उनमें कई जटिल प्रतीकवाद मौजूद हैं। हम उनकी कविताओं में कोई भी मानकीकृत रूप या छंद (मीटर) नहीं पाते हैं।

माटी कहे कुम्हार से तू क्यों रौंदे मोहे एक दिन ऐसा आयेगा मैं रौंदूंगी तोहे (मिट्टी कुम्हार से कहती है, तुम मुझे क्यों रोंदते हो, एक दिन आएगा जब मैं तुम्हें (मृत्यु के बाद) रौंदूँगी।)

कबीर जी की शिक्षाओं ने कई व्यक्तियों और समूहों को आध्यात्मिक रूप से प्रभावित किया। गुरु नानकजी, दादू पंथ की स्थापना करने वाले अहमदाबाद के दादू, सतनामी संप्रदाय की शुरुआत करने वाले अवध के जीवान दास, उनमें से कुछ हैं जो अपने आध्यात्मिक मार्गदर्शन में कबीर दास को उद्धृत करते हैं। अनुयायियों का सबसे बड़ा समूह कबीर पंथ के लोग हैं, जो उन्हें मोक्ष की ओर मार्गदर्शन करने वाला गुरु मानते हैं। कबीर पंथ अलग धर्म नहीं बल्कि आध्यात्मिक दर्शन है।

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नामदेव, रैदास और पिपाजी के साथ संत कबीर, जयपुर, 19वीं शताब्दी। स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

कबीर ने अपने जीवन में व्यापक रूप से यात्रा की थी। उन्होंने लंबा जीवन जिया। सूत्र बताते हैं कि अंत में उनका शरीर इतना दुर्बल हो गया था कि वे राम की भक्ति में संगीत नहीं बजा पाते थे। अपने जीवन के अंतिम क्षणों के दौरान, वे मगहर शहर (उत्तर प्रदेश) चले गए थे। एक किंवदंती के अनुसार, उनकी मृत्यु के बाद, हिंदू और मुसलमानों के बीच संघर्ष हुआ। हिंदू उनके शरीर का दाह संस्कार करना चाहते थे जबकि मुसलमान उन्हें दफ़नाना चाहते थे। उसी क्षण एक चमत्कार हुआ और उनके कफ़न के नीचे फूल दिखाई दिए, जिनमें से आधे काशी में जलाए गए और आधे मगहर में दफन किए गए। निश्चित रूप से, कबीर दास की मृत्यु मगहर में ही हुई थी जहाँ उनकी कब्र स्थित है।

मैंने बनारस छोड़ दिया है, और मेरि बुद्धि अल्प हो गई है, मेरा पूरा जीवन शिवपुरी में खो गया, और मृत्यु के समय मैं उठकर मगहर आया हूँ। हे मेरे राजा, मैं एक बैरागी और योगी हूँ। मरते समय, मैं ना तो दुखी हूँ, और ना ही मैं तुझ से अलग हूँ। मन और श्वास जलपात्र हैं, सारंगी सदा ही तैयार रहती है, डोरी पक्की हो गई है, टूटती नहीं है, सारंगी से आवाज़ नहीं आती है। गाओ, गाओ, हे दुल्हन, आशीर्वाद का एक सुंदर गीत गाओ, राजा राम, मेरे पति, मेरे घर आए हैं।

(आदि ग्रंथ- जी.एच. वेस्टकॉट द्वारा 'कबीर एंड कबीर पंथ' से अनुवाद)

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कबीर चौरा, कबीर की कब्र, मगहर, उत्तर प्रदेश स्रोत: विकिमीडिया कॉमन्स

दोहा अनुवाद श्रेय- 'कबीर', प्रभाकर माचवे

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कबीरदास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi, 25 Dohe arth sahit, quotes

कबीर दास का जीवन परिचय, जन्म, परिवार, शिक्षा, गुरु, उनकी प्रमुख रचनाएं, भाषा, कबीर पंथ, (समुदाय), कबीर दास के ईश्वर के प्रति विचार, कबीर दास जी की आलोचना, कबीर दास की मृत्यु, कबीर दास जयंती, कबीर दास के दोहे (Life Introduction of Kabir Das, Birth, Family, Education, Guru, His Major Works, Language, Kabir Panth, (Community), Kabir Das’s Thoughts towards God, Criticism of Kabir Das Ji, Death of Kabir Das, Kabir Das Jayanti, dohas of Kabir Das)

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नमस्कार दोस्तों, आज की इस पोस्ट में हम भारत के महान लेखक और संत कबीर दास के जीवन के बारे में जानकारी विस्तार से बताएंगे. आपको बता दे की कबीर दास के कुछ महान लेखन बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रंथ हैं। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने बचपन में ही अपने गुरु रामानंद से अपना सारा आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया था.वे बहुत आध्यात्मिक व्यक्ति थे और एक महान साधु बन गए।

 अपनी प्रभावशाली परंपराओं और संस्कृति के कारण उन्हें दुनिया भर में प्रसिद्धि मिली।दोस्तों ! इस लेख में हम आपको बताने वाले हैं महान संत कबीरदास के जीवन से जुड़ी ढेर सारी जानकारी तो दोस्तों शुरू करते हैं और जानते हैं विस्तार से कबीरदास का जीवन परिचय

Kabir Das Biography in Hindi

कबीरदास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi

जानकारी संग्रह-:.

इस पोस्ट में जो भी संत कबीरदास के जीवन से संबन्धित अभी तक जितने भी प्रमाण मिले हैं उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध है। स्वयं उनके द्वारा रचित काव्य और कुछ तत्कालीन कवियों द्वारा रचित काव्यों में उनके जीवन से संबन्धित तथ्य प्राप्त हुए हैं। इन तथ्यों के आधार पर इस पोस्ट में जानकारी दी है यदि इस पोस्ट में कोई भी जानकारी गलत लगती है तो हमें कांटेक्ट करके जरूर बताएं-

कबीरदास का जन्म और प्रारम्भिक जीवन ( Kabirdas Birthdate and Family Condition )

Kabir Das Biography in Hindi

भारत के महान संत कबीर का जन्म  सन 1398 ईसवी  में एक जुलाहा परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम  नीरू  एवं माता का नाम  नीमा  था। कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि कबीर किसी विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे ,जिसने लोक लाज के डर से जन्म देते ही कबीर को त्याग दिया था। नीरू और नीमा को कबीर पड़े हुए मिले और उन्होंने कबीर का पालन-पोषण किया। कबीर के गुरु प्रसिद्ध  संत स्वामी रामानंद  थे। लोक कथाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कबीर विवाहित थे। इनकी पत्नी का नाम  लोई  था। इनकी दो संताने थी एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम  कमाल  था और पुत्री का नाम  कमाली ।

कबीर दास की शिक्षा (Kabir Das Biography in Hindi)

कबीर ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली और न ही उन्होंने कभी कागज़ कलम को छुआ। वे अपनी आजीविका के लिए जुलाहे का काम करते थे। कबीर अपनी आध्यात्मिक खोज को पूर्ण करने के लिए वाराणसी के प्रसिद्ध संत रामानंद के शिष्य बनना चाहते थे।

स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध ज्ञानी कहे जाते थे पर रामानंद उन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे। किन्तु कबीर ने उन्हें मन ही मन अपना गुरु मान लिया था। वे अपने गुरु से गुरु मंत्र लेना चाहते थे पर कबीर दास को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।

कबीर दास जब संत रामानंद रात्रि चार बजे स्नान के लिए काशी घाट पर जाते थे तो उनके मार्ग में लेट जाते थे ताकि उनके गुरु मुख से जो भी पहला शब्द निकले उसे ही गुरु मंत्र मान लेंगे। तब एक दिन मार्ग में उनके गुरु के पैर कबीर पर पड़े तो संत रामानंद ने अपने मुंह से “राम” नाम लिया। बस कबीर ने उसे ही गुरु मंत्र मान लिया।

कुछ लोग मानते हैं कि कबीर दास जी के कोई गुरु नहीं थे। उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हुआ वह अपनी ही बदौलत प्राप्त किया। वे पढ़े-लिखे नहीं थे यह बात उनके इस दोहा से मिलता है –

कबीर दास जी ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, उन्होंने सिर्फ उसे बोले थे। उनके शिष्यों ने उनके द्वारा कही गई बातों और उपदेशों को कलमबद्ध किया था। कबीर दास के बारे में जानकर ही आश्चर्य होता है कि उन्होंने कभी कागज कलम को हाथ तक नहीं लगाया, ना ही कोई पढ़ाई की और न ही उनके कोई औपचारिक गुरु थे।

पर कैसे उन्हें इतना आत्मज्ञान प्राप्त हुआ? यह अपने आप में हैरान करने वाला है। कबीर दास के जीवन पर आज के पढ़े लिखे लोग पीएचडी कर रहे हैं।

कबीर दास की मृत्यु(Kabir Das Information in Hindi)

Kabir Das Biography in Hindi

  • 15वीं शताब्दी के सूफी कवि कबीर दास के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि उन्होंने अपनी मृत्यु का स्थान मगहर चुना था, जो लखनऊ से लगभग 240 किमी दूर स्थित है। 
  • उन्होंने लोगों के मन से परियों की कहानी (मिथक) को दूर करने के लिए इस जगह को मरने के लिए चुना है। उन दिनों यह माना जाता था कि जो व्यक्ति मगहर क्षेत्र में अपनी अंतिम सांस लेते है और मर जाते है, उसे स्वर्ग में जगह नहीं मिलेगी और साथ ही अगले जन्म में गधे का जन्म भी नहीं होगा।
  • लोगों के मिथकों और अंधविश्वासों को तोड़ने के कारण कबीर दास की मृत्यु काशी के बजाय मगहर में हुई। विक्रम संवत 1575 में हिंदू कैलेंडर के अनुसार, उन्होंने माघ शुक्ल एकादशी पर वर्ष 1518 में जनवरी के महीने में मगहर में दुनिया को छोड़ दिया। 
  • यह भी माना जाता है कि जो काशी में मर जाता है, वह सीधे स्वर्ग जाता है इसलिए हिंदू लोग अपने अंतिम समय में काशी जाते हैं और मोक्ष प्राप्त करने के लिए मृत्यु की प्रतीक्षा करते हैं। 
  • मिथक को ध्वस्त करने के लिए कबीर दास की मृत्यु काशी से हुई थी। इससे जुड़ी एक प्रसिद्ध कहावत है “जो कबीरा काशी मुए तो रमे कौन निहोरा” यानी काशी में मरने से ही स्वर्ग जाने का आसान रास्ता है तो भगवान की पूजा करने की क्या जरूरत है।
  • मगहर में कबीर दास की मजार और समाधि है। उनकी मृत्यु के बाद उनके हिंदू और मुस्लिम धर्म के अनुयायी उनके शरीर के अंतिम संस्कार के लिए लड़ते हैं। लेकिन जब वे शव से चादर निकालते हैं तो उन्हें केवल कुछ फूल मिलते हैं जिन्हें उन्होंने अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार पूरा किया।
  • समाधि से कुछ मीटर की दूरी पर एक गुफा है जो मृत्यु से पहले उनके ध्यान स्थान का संकेत देती है। कबीर शोध संस्थान नाम का एक ट्रस्ट चल रहा है जो कबीर दास के कार्यों पर शोध को बढ़ावा देने के लिए एक शोध फाउंडेशन के रूप में काम करता है। यहां शैक्षणिक संस्थान भी चल रहे हैं जिनमें कबीर दास की शिक्षाएं शामिल हैं।

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कबीर दास जयंती (Kabir Das Details in Hindi)

महान कबीर दास का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिवस कबीर पंथ के अनुयायी कबीर के दोहे पढ़ते है उनकी शिक्षा से सबक लेते हैं। लोग कथा सत्संग का आयोजन करते है।

इस दिन लोग अक्सर उनके जन्म स्थान वाराणसी के कबीर चौथा मठ में धार्मिक उपदेश का आयोजन करते हैं। कई जगह तो कबीर दास जयंती के अवसर पर भव्य जश्न मनाया जाता है। जबकि कई जगहों पर धार्मिक जुलूस और शोभायात्रा भी निकाल जाती है।

कबीरदास की जयंती न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। संत कबीरदास की जयंती प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। साल 2024 में संत कबीरदास जी की जयंती 22 जून 2024, दिन शनिवार को मनाई जायेगी।

कबीरदास के गुरु ( Kabir das ke guru)

महान संत कबीर ने काशी के प्रसिद्ध महात्मा रामानंद को अपना गुरु माना है। कहा जाता है, कि रामानंद जी ने नीच जाति का समझकर कबीर को अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया था, तब एक दिन कबीर गंगा तट पर जाकर सीढ़ियों पर लेट गये जहां रामानंद जी प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने जाया करते थे।

अंधेरे में रामानंद जी का पैर कबीर के ऊपर पड़ा और उनके मुख से राम राम निकला तभी से कबीर ने रामानंद जी को अपना गुरु और राम नाम को गुरु मंत्र मान लिया। कुछ विद्वानों ने प्रसिद्ध सूफी फकीर शेखतकी को कबीर का गुरु माना है।

कबीरदास जी की भाषा व प्रमुख रचनाएँ

Kabir Das Biography in Hindi

Kabir Das Biography in Hindi

कबीर दास द्वारा लिखी गई पुस्तकें आम तौर पर दोहों और गीतों का संग्रह हैं। कुल कार्य बहत्तर हैं जिनमें कुछ महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध कार्य रेख़्तास, कबीर बीजक, सुक्निधान, मंगल, वसंत, सबदास, सखियाँ और पवित्र आगम हैं।कबीर दास की लेखन शैली और भाषा बहुत ही सरल और सुंदर है। उन्होंने अपने दोहों को बहुत ही साहस और स्वाभाविक रूप से लिखा था जो अर्थ और महत्व से भरे हुए हैं। उन्होंने अपने दिल की गहराई से इन्हें लिखा है। उन्होंने अपने सरल दोहों और दोहों में समस्त विश्व के भाव को संकुचित कर दिया है। उनकी बातें तुलना और प्रेरणा से परे हैं।

कबीर दास की रचनाएं

कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं को बेहद सरल और आसान भाषा में लिखा है, उन्होंने अपनी रचनाओं में बड़ी बेबाकी से धर्म, संस्कृति, समाज एवं जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय रखी है। उनके काव्य में आत्मा और परमात्मा के संबंधों की भी स्पष्ट व्याख्या मिलती है उनकी प्रमुख रचनाएं हैं –

इन रचनाओं में कबीर का  बीजक  ग्रंथ प्रमुख है। उनकी रचनाओं में वो जादू है जो किसी और संत में नहीं है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को “वाणी का डिक्टेटर” कहा है। और आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने कबीर की भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा है।

कबीर का साहित्यिक परिचय

कबीर एक महान संत भी थे और संसारी भी, समाज सुधारक भी थे और एक सजग कभी भी। वह अनाथ थे, लेकिन सारा समाज उनकी छत्रछाया की अपेक्षा करता था। कबीर के महान व्यक्तित्व एवं उनके काव्य के संबंध में हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ प्रभाकर माचवे ने लिखा है – “कबीर में सत्य कहने का अपार धैर्य था और उसके परिणाम सहन करने की हिम्मत भी। कबीर की कविता इन्हीं कारणों से एक अन्य प्रकार की कविता है। वह कई रूढ़ियों के बंधन तोड़ता है वह मुक्त आत्मा की कविता है।”

कबीरदास की रचनाएँ (Kabir Das Biography in Hindi)

आपको बता दे की संत कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे उन्होंने स्वयं ही कहा है –

   मसि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ।

अतः यह सत्य है कि उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं को नहीं लिखा है। इसके बाद भी उनकी वाणीयों के संग्रह के रूप में कई ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में- ‘ अगाध-मंगल’, ‘अनुराग सागर’, ‘अमर मूल ‘, ‘अक्षर खंड रमैनी’, ‘अक्षर भेद की  रमैनी’,  ‘उग्र गीता’, ‘कबीर की वाणी’, ‘कबीर ‘, ‘कबीर गोरख की गोष्ठी’, ‘कबीर की साखी’, ‘बीजक’, ‘ब्रह्म निरूपण’, ‘मुहम्मद बोध’, ‘रेख़्ता विचार माला’, ‘विवेकसागर’, ‘शब्दावली ‘, ‘हंस मुक्तावली’, ‘ज्ञान सागर’  आदि प्रमुख ग्रंथ हैं इन ग्रंथों को पढ़ने से हमें कबीर की विलक्षण प्रतिभा का परिचय मिलता है।  

कबीर की वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ के नाम से प्रचलित है इसके तीन भाग हैं –

(1) साखी 

(2) सबद 

कबीर दास: एक हिंदू या एक मुसलमान

  • ऐसा माना जाता है कि कबीर दास की मृत्यु के बाद, हिंदुओं और मुसलमानों ने कबीर दास का शव प्राप्त करने का दावा किया था। वे दोनों कबीर दास के शव का अंतिम संस्कार अपने-अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार करना चाहते थे।
  •  हिंदुओं ने कहा कि वे शरीर को जलाना चाहते हैं क्योंकि वह एक हिंदू था और मुसलमानों ने कहा कि वे उसे मुस्लिम संस्कार के तहत दफनाना चाहते हैं क्योंकि वह एक मुसलमान था।
  • लेकिन, जब उन्होंने शव से चादर हटाई तो उन्हें उसके स्थान पर केवल कुछ फूल मिले। उन्होंने एक-दूसरे के बीच फूल बांटे और अपनी-अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार किया। 
  • यह भी माना जाता है कि जब वे लड़ रहे थे तो कबीर दास की आत्मा उनके पास आई और उन्होंने कहा कि, “मैं न तो हिंदू था और न ही मुसलमान। 
  • मैं दोनों था, मैं कुछ भी नहीं था, मैं ही सब कुछ था, मैं दोनों में ईश्वर को पहचानता हूं। न कोई हिंदू है और न कोई मुसलमान। जो मोह से मुक्त है उसके लिए हिन्दू और मुसलमान एक ही हैं। कफन हटाओ और चमत्कार देखो!”
  • कबीर दास का मंदिर काशी में कबीर चौरा पर बना है जो अब पूरे भारत के साथ-साथ भारत के बाहर लोगों के लिए महान तीर्थ स्थान बन गया है। और उसकी एक मस्जिद मुसलमानों द्वारा कब्र के ऊपर बनाई गई थी जो मुसलमानों के लिए तीर्थ बन गई है।

Kabir Das Biography in Hindi

कबीर दास के ईश्वर के प्रति विचार

संतकबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। जिस प्रकार विश्व में एक ही वायु और जल है, उसी प्रकार संपूर्ण संसार में एक ही परम ज्योति व्याप्त है। सभी मानव एक ही मिट्टी से अर्थात् ब्रम्ह द्वारा निर्मित हुए हैं। कबीर दास ने ईश्वर प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है।

कबीर के अनुसार ईश्वर न मंदिर में है, न मस्जिद में; न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ स्थानों में; वह न योग साधना से मिलता है, और न वैरागी बनने से। ये सब उपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनसे भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती।

कबीरदास के दोहे अर्थ सहित (Kabir Das Ke Dohe)

Kabir Das Biography in Hindi

कबीरदास के दोहे सुनने में और मन ही मन गुनगुनाने में बड़ा अच्छा लगता है।  कबीर के कुछ दोहे अर्थ सहित  नीचे दिये गए हैं – 

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागौं पाय,

बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।  

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि एक बार गुरु और ईश्वर एक साथ खड़े थे तभी शिष्य को समझ में नहीं आ रहा था कि पहले किसके पाऊं छुए, इस पर ईश्वर ने कहा कि तुम्हें सबसे पहले अपने गुरु के पाव छूने चाहिए।

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय ,

जो सुख में सुमिरन करें, तो दुख काहे को होय। 

अर्थ-  कबीरदास कहते हैं कि लोग जब दुखी होते हैं तो ईश्वर को याद करते हैं जबकि सुख में लोग ईश्वर को याद नहीं करते। अगर लोग सुख में भी ईश्वर को याद करें उनकी आराधना करें तो उन्हें दुःख आ ही नहीं सकता।

कबीरा खड़ा बाजार में, सबकी मांगे खैर,

ना काहू से दोसती, ना काहू से बैर। 

अर्थ –  कबीर जी ने  कहा कि जब उन्होंने इस संसार में जन्म लिया तो उनके मन में यहां के लोगों के लिए यही भावना थी कि सभी लोग अपना जीवन अच्छे से व्यतीत करें और किसी के भी मन में एक दूसरे के प्रति बैर भाव ना हो।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।

शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।

अर्थ  -कबीरदास जी कहते हैं कि हमारा यह शरीर जहर की गठरी के समान है और हमारे गुरु अमृत की तरह है तो अगर आपको अपना शीश भी देना पड़े ऐसे गुरू के लिए तो वह सौदा भी बहुत सस्ता होता है।

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।

औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जैसे दूसरों को शीतलता मिले और साथ ही साथ स्वयं का मन भी शीतल हो जाए अर्थात हमेशा अच्छी वाणी ही बोलनी चाहिए।

बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मनुष्य की बोली बहुत ही ज्यादा अमूल्य है इसे बोलने से पहले हमें अपने हृदय रूपी तराजू में इसे तोलना चाहिए उसके बाद ही यह हमारे मुंह से बाहर आनी चाहिए।

साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये ।

मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ।

अर्थ – कबीरदस जी ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि  हे ईश्वर! मुझे केवल उतना ही दीजिए जिसमें मैं और मेरा परिवार भूखा ना रहे और दरवाजे पर से कोई वापस न लौटें।

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि जब मेरे अंदर अहम था तब मुझे ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई लेकिन जब मुझे हरी मिल गए तो मेरे अंदर से सारा निकल गया या बिल्कुल उसी तरह निकल गया जैसे दीपक जलाने पर सारा अंधियारा मिट जाता है।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।

जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि जब मैं इस संसार में बुरा खोजने चला तो मुझे कोई भी बुरा आदमी नहीं मिला, जब मैंने अपने ही मन में झांक कर देखा तो मुझे पता चला कि संसार में मुझसे बुरा इंसान कोई नहीं है।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,

कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कभी अपने जीवन में एक तिनके की भी निंदा नहीं करनी चाहिए क्योंकि जो तिनका हमारे पांव के नीचे होता है वही जब आंख में पड़ जाता है तो हमें कष्ट देता है।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

अर्थ –   कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग इस संसार में जन्म लेते हैं पढ़ते हैं और मर जाते हैं लेकिन कोई भी पंडित नहीं हो पाता जो व्यक्ति प्रेम के ढाई अक्षर को समझ लेता है वह सबसे बड़ा विद्वान होता है।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

अर्थ –   कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार में हर एक काम धीरे-धीरे होता है जिस तरह माली अपने फूलों को 100 घड़े भी  सींच ले लेकिन जब ऋतु आती है तभी उस में फल लगते हैं।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,

मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि हमें कभी भी साधु की  शरीर नहीं देखनी चाहिए बल्कि हमें उनसे ज्ञान की बातें सीखनी चाहिए जिस प्रकार से तलवार की दुकान पर मूल्य केवल तलवार का होता है ना कि उसकी म्यान का जिसमें वह रखा गया है।

निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें ।

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।

अर्थ – 

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।

पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।

अर्थ –   कबीर कहते हैं कि इतना बड़ा होने से क्या होगा अगर आप किसी की सहायता न कर पाए जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना बड़ा होता है लेकिन वह किसी भी पक्षी को ना तो छाया दे पाता है और उसमें फल भी बहुत दूर लगते हैं।

कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,

ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये

अर्थ – कबीर कहते हैं कि जब हम पैदा हुए थे तो सारा संसार हंसा था और हम रोए थे लेकिन हमें इस संसार में ऐसा काम करके जाना है कि जब हमारी मृत्यु तो हम हंसे और यह पूरा संसार हमारी मृत्यु पर आँसू बहाये ।

मांगन मरण समान है, मत मांगो कोई भीख,

मांगन से मरना भला, ये सतगुरु की सीख

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मांगना और मरना एक समान है इसलिए भीख मत मांगो उनके गुरु कह गए हैं कि भीख मांगने से अच्छा मरना है।

लुट सके तो लुट ले, हरी नाम की लुट ।

अंत समय पछतायेगा, जब प्राण जायेगे छुट ।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि अभी समय है अभी से ही ईश्वर की भक्ति करना प्रारंभ कर दो क्योंकि जब अंत समय आएगा और प्राण छूटने लगेंगे तब पछताने से कुछ भी नहीं होगा।

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।

हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।

अर्थ –   कबीरदास जी कहते हैं इस संसार में जन्म लेने के बाद मनुष्य रात में सो कर और दिन में खा कर अपने अमूल्य समय को बर्बाद कर देता है और इस हीरे रूपी जन्म को कौड़ी में बदल देता है।

कुटिल वचन सबसे बुरा, जा से होत न चार ।

साधू वचन जल रूप है, बरसे अमृत धार ।

तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।

सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।

अर्थ –   कबीर का कहना है कि तीरथ जाने से हमें एक फल मिलता है वहीं अगर संत मिल जाए तो हमें चार फल मिलते हैं लेकिन अगर हमारे जीवन में एक अच्छे गुरु मिल जाए तो हमें अनेकों फल मिलते हैं।

जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।

जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।

अर्थ –   कबीरदास जी कहते हैं कि जहां पर दया होती है वहां धर्म होता है जहां पर लालच होती है वहां पाप होता है और जहां पर क्रोध होता है वहां पर मृत होती है लेकिन जहां पर क्षमा होती है वहां पर स्वयं ईश्वर निवास करते हैं

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।

पल में परलय होएगी, बहुरि करेगो कब ।

अर्थ –   कबीरदास जी कहते हैं जो काम कल करना चाहिए वह आज करो और जो आज करना है वह भी करो क्योंकि समय कब गुजर जाएगा हमें पता नहीं चलेगा और हम पछताते रह जाएंगे।

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।

एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

अर्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि मिट्टी कुंभार से कहती है कि तू मुझे क्या  एक दिन ऐसा आएगा जब मैं खुद तुम्हें मिट्टी में मिला दूंगी।

धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।

अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।

अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि धर्म का कार्य करने से कभी धन नहीं घटता है ना तो नदी को देखने से उसका पानी कम होता है कबीर जी कहते हैं कि यह उन्होंने अपनी आंखों से देखा है।

माला फेरत जग भया, फिरा न मन का फेर,

कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

अर्थ –   कबीर दास जी कहते हैं की दिन रात भगवान की पूजा करने से कुछ नहीं होगा जब तक आपका मन अंदर से शुद्ध नहीं है इसीलिए सबसे पहले हमें अपने मन को शुद्ध करना चाहिए।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

अर्थ-  कबीरदास जी कहते हैं कि ना तो ज्यादा बोलना ही अच्छा है और ना ही ज्यादा चुप रहना अच्छा है उसी तरह ना तो ज्यादा बरसना ही अच्छा है और ना तो बहुत ज्यादा धूप ही अच्छी है।

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कबीरदास के भजन (Kabir Das Ke Bhajan)

कबीरदास के प्रसिद्ध भजन इस प्रकार है –

साकी, वो पीकर चला गया, घर आपना छोड़कर चला गया। साकी, वो पीकर चला गया। जब जब जियरा भर आया, तब तब पिया सताया। साकी, वो पीकर चला गया। अच्छा होता, जो मैं पीता, पीता तौ गोली बिखराता। साकी, वो पीकर चला गया। कबीरा ते नाउ मनु ले, मूआ तो सब कोई।
“कोई बोले राम राम, कोई खुदाइ कोई से इश्वर अल्लाह उपासे अन्य तो सिक्ख तोये, मसीत मनाये पांडित बैठे बैठे लाव नये सब ही खुदाई खपाये एक ही दिल है, एक ही जान जुआ-जैसे दूसरा माने। जैसे तिल मीठे चिन सोवा सागर से गहरा नीर राम रहीम रहीम बैरों बार सब ही एक रुपी फीका नीर।
“सुना ले रे भई राम नाम का, चितवन में घूंघट की धार चढ़ आई। दरबार में बैठी मात ध्यान में, जो मन में आवत है बड़ी भार चढ़ आई। धूप बती तेल मलीपी पासी भयो, रूप लागे चन्दन की मार चढ़ आई। प्रेम भी मलीन हो गया चह सूता, कपट तरवर सांप गरज चढ़ आई। कूदती बूँद सबकी नेत्रों में, राम रसायन नहीं नारियल बरसढ़ आई।

कबीरदास के बारे में रोचक जानकारियाँ (Kabir Das Information in Hindi)

कबीर मठ कबीर चौरा, वाराणसी और लहरतारा, वाराणसी में पीछे के मार्ग में स्थित है जहाँ संत कबीर के दोहे गाने में व्यस्त हैं। यह लोगों को जीवन की वास्तविक शिक्षा देने का स्थान है। नीरू टीला उनके माता-पिता नीरू और नीमा का घर था। अब यह कबीर के कार्यों का अध्ययन करने वाले छात्रों और विद्वानों के लिए आवास बन गया है।

कबीर दास पहले भारतीय संत हैं जिन्होंने हिंदू और इस्लाम दोनों को एक सार्वभौमिक मार्ग देकर हिंदू और इस्लाम का समन्वय किया है, जिसका पालन हिंदू और मुस्लिम दोनों कर सकते हैं। 

उनके अनुसार, प्रत्येक जीवन का दो आध्यात्मिक सिद्धांतों (जीवात्मा और परमात्मा) से संबंध है। मोक्ष के बारे में उनका विचार था कि यह इन दो दैवीय सिद्धांतों को एकजुट करने की प्रक्रिया है।

उनकी महान कृति बीजक में कविताओं का एक विशाल संग्रह है जो कबीर के आध्यात्मिकता के सामान्य दृष्टिकोण को दर्शाता है। कबीर की हिन्दी एक बोली थी, उनके दर्शनों की तरह सरल। उन्होंने बस भगवान में एकता का पालन किया। उन्होंने हमेशा हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा को खारिज किया है और भक्ति और सूफी विचारों में स्पष्ट विश्वास दिखाया है।

3.   उनकी कविता

उन्होंने एक वास्तविक गुरु की प्रशंसा के अनुरूप कविताओं की रचना एक संक्षिप्त और सरल शैली में की थी। अनपढ़ होने के बावजूद उन्होंने अवधी, ब्रज और भोजपुरी जैसी कुछ अन्य भाषाओं को मिलाकर हिंदी में अपनी कविताएँ लिखी थीं। हालाँकि कई लोगों ने उनका अपमान किया लेकिन उन्होंने कभी दूसरों पर ध्यान नहीं दिया।

संत कबीर को श्रेय दी गई सभी कविताएँ और गीत कई भाषाओं में मौजूद हैं। कबीर और उनके अनुयायियों का नाम उनकी काव्य प्रतिक्रिया जैसे कि बनियों और कथनों के अनुसार रखा गया है। कविताओं को दोहे, श्लोक और सखी कहा जाता है। सखी का अर्थ है याद किया जाना और उच्चतम सत्य को याद दिलाना। इन कथनों को याद करना, प्रदर्शन करना और उन पर विचार करना कबीर और उनके सभी अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक जागृति का मार्ग है।

5.समाधि मंदिर

समाधि मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर किया गया है जहाँ कबीर अपनी साधना करने के आदी थे। साधना से समाधि तक की यात्रा तब मानी जाती है जब कोई संत इस स्थान पर जाता है। आज भी यह वह स्थान है जहां संतों को अपार सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। यह जगह शांति और ऊर्जा के लिए दुनिया भर में मशहूर है। 

ऐसा माना जाता है कि, उनकी मृत्यु के बाद, लोग उनके शरीर को अंतिम संस्कार के लिए लेने को लेकर झगड़ रहे थे। लेकिन, जब उनके समाधि कक्ष का दरवाजा खोला गया, तो केवल दो फूल थे, जो उनके हिंदू मुस्लिम शिष्यों के बीच अंतिम संस्कार के लिए वितरित किए गए थे। समाधि मंदिर का निर्माण मिर्जापुर की मजबूत ईंटों से किया गया है।

6.कबीर चबूतरा में बीजक मंदिर

यह स्थान कबीर दास का कार्यस्थल होने के साथ-साथ साधनास्थल भी था। यहीं पर उन्होंने अपने शिष्यों को भक्ति, ज्ञान, कर्म और मानवता का ज्ञान दिया था। इस जगह का नाम कबीर चबूतरा रखा गया। बीजक कबीर दास की महान कृति थी, इसलिए कबीर चबूतरा का नाम बीजक मंदिर पड़ा।

तू आशा है दोस्तों की आपको “कबीरदास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography in Hindi, Dohe arth sahit, quotes” यह पोस्ट जानकारी पूर्ण लगा होगा और अगर यह पोस्ट आपको पसंद आए तो यह अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करिए एक महान कबीर दास, भारत के प्रमुख आध्यात्मिक कवियों में से एक हैं जिन्होंने लोगों के जीवन को बढ़ावा देने के लिए अपने दार्शनिक विचार दिए हैं।

ईश्वर में एकता के उनके दर्शन और वास्तविक धर्म के रूप में कर्म ने लोगों के मन को अच्छाई की ओर बदल दिया है। ईश्वर के प्रति उनका प्रेम और भक्ति हिंदू भक्ति और मुस्लिम सूफी दोनों की अवधारणा को पूरा करती है। इस पोस्ट में आपको कोई भी जानकारी गलत लगे तो तुरंत हमें कांटेक्ट करके बताइए धन्यवाद !

Q.कबीर दास का पूरा नाम क्या है?

Ans.कबीर दास का पूरा नाम “संत कबीर दास” था।

Q. कबीर ने कितने दोहे लिखे ?

Ans. उन्होंने 25 दोहे लिखे।

Q. कबीर दास के गुरु कौन थे ?

Ans. कबीर दासे के गुरु का नाम रामानंद था। रामानंद एक हिंदू भक्ति नेता थे।

Q.संत कबीर दास के कितने बच्चे थे ?

Ans. संत कबीर दास के कमल नाम का एक बेटा और कमली नाम की एक बेटी थी।

Q.संत कबीर दास की कविताओं को क्या कहा जाता है?

Ans. संत कबीर दास की कविताओं को दोहा कहा जाता है।

Q : कबीर दास के माता पिता का नाम क्या था?

Ans : उनके पिता नीरू और उनकी माता नीमा थी।

Q : संत कबीर दास की मृत्यु कब हुई ?

Ans : सन् 1519 (विक्रम संवत 1575) मगहर, उत्तर प्रदेश (120 वर्ष)

Q : संत कबीर दास जयंती कब मनायी जाती है ?

Ans : जयंता पूर्णिमा को मनाया जाता है।

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Kabir Das Biography in Hindi | कबीर दास का जीवन-परिचय | Kabir Das Ka Jivan Parichay

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कबीर दास का जीवन-परिचय :संत कबीरदास पंद्रहवीं शताब्दी में पवित्र शहर वाराणसी, उत्तर प्रदेश में पैदा हुए एक भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। उनके लेखन ने हिंदू धर्म भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया, उस समय भारत में मुख्य रूप से हिंदू और इस्लाम में प्रचलित धर्मों में अर्थहीन और गलत प्रथाओं की आलोचना की।कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति हमेशा धार्मिकता के मार्ग पर चलता है, जो किसी से ईर्ष्या नहीं करता है और सभी को समान रूप से प्यार करता है, उसे हमेशा सर्वोच्च शक्ति का समर्थन मिलता है। उनके अनुसार एक ही सर्वोच्च सत्य है जो विभिन्न धर्मों द्वारा अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया जाता है।  अभी भी यह कुछ ही लोगों के लिए जाना जाता है। कबीर की रचनाएँ सरल हैं लेकिन उनके अर्थ में गहरा सत्य छिपा है। ऐसे ही कई महत्वपूर्ण फैक्ट्स हम इस जीवनी लेख में लेकर आए है जो आपको कबीर दास का जीवन-परिचय विस्तार से देंगे| वहीं कई अन्य पॉइन्ट के तहत इस लेख को संकलित किया गया है जो आपको कबीर दास जी को जानने में मदद करेगा। हमने इस लेख में Kabir Das Biography in Hindi, कबीर दास का जीवन-परिचय,

Kabir Das Ka Jivan Parichay – Overview

कबीरदास कौन थे,कबीरदास जी का प्रारम्भिक जीवन,कबीरदास जी की शिक्षा व गुरु,कबीरदास जी के प्रमुख शिष्य,कबीरदास जी की भाषा व प्रमुख रचनाएँ,कबीरदास जी का दर्शनशास्त्र,संत कबीरदास जी के अनमोल दोहे (व्याख्या)कबीरदास जी की मृत्यु जैसे पॉइन्ट जोड़े है जो इस लेख को पूरा करते है। इस लेख को पूरा पढ़े और कबीर दास के बारे में विस्तार से जानें।

कबीर दास का जीवन-परिचय | Kabir Das Biography in Hindi

भारत के एक रहस्यमय कवि और महान संत दास कबीर दास का जन्म 1440 में हुआ था और उनकी मृत्यु 1518 में हुई थी। इस्लाम के अनुसार कबीर का अर्थ बहुत बड़ा और महान होता है। कबीर पंथ एक विशाल धार्मिक समुदाय है जो कबीर को संत मत संप्रदायों के प्रवर्तक के रूप में पहचान दिलाता है। कबीर पंथ के सदस्यों को कबीर पंथी के रूप में जाना जाता है जिन्होंने पूरे उत्तर और मध्य भारत में विस्तार किया था। बीजक, कबीर ग्रन्थावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ आदि कबीर दास के कुछ महान लेखन हैं। वहीं स्पष्ट रूप से उनके जन्म के बारे में ज्यादा किसी को ज्ञात नहीं है, लेकिन यह ध्यान दिया जाता है कि उनका पालन-पोषण एक बहुत ही गरीब मुस्लिम बुनकर परिवार द्वारा किया गया था। वह बहुत आध्यात्मिक थे और एक महान साधु बने। उन्होंने अपनी प्रभावशाली परंपराओं और संस्कृति के कारण पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त की।

ऐसा माना जाता है कि उन्होंने बचपन में अपने गुरु रामानंद से सभी आध्यात्मिक प्रशिक्षण प्राप्त किए थे। एक दिन, वह गुरु रामानंद के एक प्रसिद्ध शिष्य बन गए। कबीर दास के घर को छात्रों और विद्वानों के रहने और उनके महान कार्यों के अध्ययन के लिए समायोजित किया गया है।कबीर दास के जन्म के माता-पिता का कोई सुराग नहीं है क्योंकि उनका लालन पोषण नीरू और नीमा (उनके देखभाल करने वाले माता-पिता) द्वारा वाराणसी के एक छोटे से शहर लहरतारा में की गई थी। उसके माता-पिता बेहद गरीब और अशिक्षित थे, लेकिन उन्होंने दिल से छोटे बच्चे को गोद लिया और उसे अपने व्यवसाय के बारे में प्रशिक्षित किया। उन्होंने एक साधारण गृहस्थ और एक फकीर का संतुलित जीवन व्यतीत किया।

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कबीरदास कौन थे | Kabir Das Kon The (All About Kabir Das in Hindi)

संत कबीरदास पंद्रहवीं शताब्दी में पवित्र शहर वाराणसी, उत्तर प्रदेश में पैदा हुए एक भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। उनके लेखन ने हिंदू धर्म भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया, उस समय भारत में मुख्य रूप से हिंदू और इस्लाम में प्रचलित धर्मों में अर्थहीन और गलत प्रथाओं की आलोचना की।कबीरदास के अनुसार जो व्यक्ति हमेशा धार्मिकता के मार्ग पर चलता है, जो किसी से ईर्ष्या नहीं करता है और सभी को समान रूप से प्यार करता है, उसे हमेशा सर्वोच्च शक्ति का समर्थन मिलता है। उनके अनुसार एक ही सर्वोच्च सत्य है जो विभिन्न धर्मों द्वारा अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। , अभी भी यह कुछ ही लोगों के लिए जाना जाता है। कबीर का लेखन सरल है लेकिन उनके अर्थ में गहरा सत्य छिपा है। वह सबसे सम्मानित भक्ति संतों में से एक हैं, और उनकी शिक्षाओं ने सभी क्षेत्रों के लोगों को प्रभावित किया है।वह एक निर्गुण संत थे, जिन्होंने अपनी पारंपरिक शिक्षाओं के लिए हिंदू और इस्लाम जैसे प्रमुख धर्मों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की।उनका जिज्ञासु मन था और उन्होंने बनारस में हिंदू धर्म के बारे में बहुत कुछ सीखा।रामानंद ने उन्हें हिंदू और मुस्लिम धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों के गहन ज्ञान में दीक्षा दी और वे इस्लामी शिक्षाओं से परिचित हो गए।

कबीरदास जी का प्रारम्भिक जीवन | Kabir Das Early Life

अगर संत कबीरदास जी के प्रारंभिक जीवन की बात कि जाए तो कबीर दास का जन्म 1398 में, ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन ब्रह्ममुहूर्त के शुभ काल में हुआ था। कई मिथ्थकों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था और वे सीधे सतलोक (सर्वोच्च स्थान जो भौतिकवादी भ्रम से मुक्त हैं) से अवतरित हुए थे। ) कमल के फूल पर। अधिकांश इस्लामिक और हिंदू उन्हें रामानंद के शिष्य के रूप में वर्णित करते हैं, जो अद्वैत दर्शन के बाद भक्तिपूर्ण वैष्णववाद के लिए जाने जाते थे। कबीर दृढ़ता से काशी के पवित्र शहर से जुड़े हुए हैं। कुछ संस्करणों के अनुसार, नीरू और उनकी पत्नी नीमा ने कबीर दास को लहरतारा झील के पास पाया था और उसे अपने बच्चें के रूप में पाला था। उनके माता-पिता गरीब थे, लेकिन उन्होंने उत्सुकता से युवा शिशु को स्वीकार किया और उसका पालन-पोषण किया। एक विनम्र गृहस्वामी और एक रहस्यवादी के रूप में उनका दोहरा अस्तित्व था।बुनकरों के एक गरीब मुस्लिम परिवार ने उन्हें पाला और गोद लिया गया था। हम आपको बता दें कि कबीर दास के जन्म के बारे में काफी कम जानकारी उपलब्ध है। कबीर दास एक महान साधु थे क्योंकि वे बहुत आध्यात्मिक थे। वह रीति-रिवाजों और संस्कृति पर अपने प्रभाव के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। उन्होंने अपना सारा आध्यात्मिक प्रशिक्षण अपने गुरु रामानंद से प्राप्त किया, जब वे युवा थे और अपने गुरु के पसंदीदा शिष्य बन गए।

कबीरदास जी की शिक्षा व गुरु | Kabir Das Education

कबीर दास द्वारा किसी भी तरह कि औपचारिक शिक्षा नहीं ली गई है। वह एक गरीब बुनकर परिवार में पले बढ़े थे, वहीं उन्हें बुनकर के रूप में प्रशिक्षित भी नहीं किया गया था। जबकि उनकी कविताएँ रूपकों की बुनाई से भरपूर हैं, उनका दिल इस पेशे में पूरी तरह से नहीं था। वह सत्य की खोज के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा पर थे, जो उनकी कविता में स्पष्ट रूप से प्रकट होती है। उन्होंने एक तथ्यात्मक गुरु की प्रशंसा से गूंजती हुई संक्षिप्त और सरल शैली में कविताओं की रचना की थी।ऐसा माना जाता है कि उन्होंने गुरु रामानंद से आध्यात्मिक शिक्षा प्राप्त की थी। प्रारंभ में रामानंद कबीर दास को अपना शिष्य मानने को तैयार नहीं थे। एक बार की बात है संत कबीर दास तालाब की सीढ़ियों पर लेटे हुए राम-राम का जाप कर रहे थे, प्रात:काल रामानंद स्नान करने जा रहे थे कि कबीर उनके चरणों के नीचे आ गए। रामानंद ने उस गतिविधि के लिए दोषी महसूस किया और कबीर दास जी ने उन्हें अपने छात्र के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया। ऐसा कहा जाता है कि आज भी कबीर चौरा में संत कबीर दास जी का परिवार रहता हैं।

कबीरदास जी की भाषा व प्रमुख रचनाएँ

कबीर दास द्वारा लिखी गई पुस्तकें आम तौर पर दोहों और गीतों का संग्रह हैं। कुल कार्य बहत्तर हैं जिनमें कुछ महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध कार्य रेख़्तास, कबीर बीजक, सुक्निधान, मंगल, वसंत, सबदास, सखियाँ और पवित्र आगम हैं।कबीर दास की लेखन शैली और भाषा बहुत ही सरल और सुंदर है। उन्होंने अपने दोहों को बहुत ही साहस और स्वाभाविक रूप से लिखा था जो अर्थ और महत्व से भरे हुए हैं। उन्होंने अपने दिल की गहराई से इन्हें लिखा है। उन्होंने अपने सरल दोहों और दोहों में समस्त विश्व के भाव को संकुचित कर दिया है। उनकी बातें तुलना और प्रेरणा से परे हैं।

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कबीरदास जी का दर्शनशास्त्र

कबीर का काव्य जीवन के बारे में उनके दर्शन का प्रतिबिंब है। उनका लेखन मुख्य रूप से पुनर्जन्म और कर्म की अवधारणा पर आधारित था। जीवन के बारे में कबीर का दर्शन बहुत स्पष्ट था। वह जीवन को बेहद सादगी से जीने में विश्वास रखते थे। ईश्वर की एकता की अवधारणा में उनका दृढ़ विश्वास था। उन्होंने कोई बोले राम राम कोई खुदाई की धारणा की वकालत की। मूल विचार यह संदेश फैलाना था कि चाहे आप हिंदू भगवान का नाम लें या मुस्लिम भगवान का, तथ्य यह है कि केवल एक भगवान है जो इस खूबसूरत दुनिया का और इस दुनिया में मौजूद सभी का निर्माता है। वहीं कबीरदास के दर्शन और सिद्धांतों की बात करें तो वे हिंदू समुदाय द्वारा थोपी गई जाति व्यवस्था के खिलाफ थे और मूर्तियों की पूजा करने के विचार का भी विरोध करते थे। इसके विपरीत, उन्होंने आत्मान की वेदांतिक अवधारणाओं की वकालत की थी। उन्होंने न्यूनतम जीवन के विचार का समर्थन किया जिसकी सूफियों ने वकालत की थी। संत कबीर के दर्शन के बारे में स्पष्ट विचार रखने के लिए, उनकी कविताओं और दो पंक्तियों के छंदों को देखें जो उनके मन और आत्मा को बोलते हैं।कबीर पाखंड की प्रथा के सख्त खिलाफ थे और लोगों द्वारा दोहरा मापदंड बनाए रखना पसंद नहीं करते थे। उन्होंने हमेशा लोगों को दूसरे जीवों के प्रति दया भाव रखने और सच्चे प्यार का अभ्यास करने का उपदेश दिया। उन्होंने मूल्यों और सिद्धांतों का पालन करने वाले अच्छे लोगों की संगति की आवश्यकता का आग्रह किया। खैर, कबीर ने अपने लेखन में अपने मूल्यों और मान्यताओं को बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है जिसमें दोहे, कविताएँ, रमैनियाँ, कहारवास और शबद शामिल हैं।

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कबीरदास जी की मृत्यु | Kabir Das Nidhan

विक्रम संवत 1575 में हिंदू कैलेंडर के अनुसार, उन्होंने जनवरी 1518 में माघ शुक्ल एकादशी में मगहर में दुनिया छोड़ दी। एक मिथक है कि 15वीं शताब्दी के एक सूफी कवि कबीर दास ने अपनी मृत्यु का स्थान मगहर चुना था, जो लखनऊ से लगभग 240 किलोमीटर दूर है। यह अनुमान लगाया जाता है कि उन्होंने लोगों की यादों से परी कथा (मिथक) को मिटाने के लिए मरने के लिए इस स्थान को चुना था। उन दिनों यह माना जाता था कि जिसने भी मगहर क्षेत्र में अपनी अंतिम सांस ली है और अपने प्राण त्यागें उसे कभी स्वर्ग कि प्राप्ती नहीं होगी। वहीं अगले जन्म में वह गधा बनकर जन्म लेगा।

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संत कबीरदास जी के अनमोल दोहे (व्याख्या)

जब में था तब हरि नहीं’ अब हरि है में नहीं, सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहिन” “बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड खजूर पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर” “बुरा जो देख में चला, बुरा ना मिला कोए जो मन देखा आपने, मुझसे बुरा ना कोई” “गुरु गोविंद दोहू खाडे, काके लागू पाने बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताएं” “सब धरती कागज करु, लेखनी सब बनरे सात समुन्दर की मासी करू, गुरुगुण लिखा ना जाए” “ऐसी वाणी बोलिए, मन का आप खोये औरन को शीतल करे, आपू शीतल होए” पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय। “निंदक निहारे राखिए, आंगन कुटी छावे बिन पानी बिन सबुन, निर्मल करे सुभाष” “बुरा जो देख में चला, बुरा ना मिला कोए जो मन देखा आपने, मुझसे बुरा ना कोई” “दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख कहे को होए” “माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंधुगी तोहे” “चलती चक्की देख कर, दीया कबीरा रोये दो पाटन के बीच में, सब बच्चा ना कोय” “मालिन आवत देख के, कल्याण करे पुकार फूले फूले चुन लिए, काल हमारी बार” “काल करे सो आज कर, आज करे सो अब पल में प्रलय होगी, बहुरी करेगा कब” साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

Q.कबीर दास के माता-पिता के नाम क्या थे  ?

Ans.कबीर दास के असली माता पिता की जानकारी किसी के पास नहीं हैं वहीं ऐसा माना जाता है कि एक तलब किनारे एक मुस्लिम बुनकर दंपत्ति ने कबीर दास को पाया था और उनके द्वारा ही उनका लालन पोषण किया गया था।

Q. कबीर ने कितने दोहे लिखे ?

Ans. उन्होंने 25 दोहे लिखे।

Q. कबीर दास के गुरु कौन थे ?

Ans. कबीर दासे के गुरु का नाम रामानंद था। रामानंद एक हिंदू भक्ति नेता थे।

Q.कबीर दास द्वारा कौन कौन सी विभिन्न साहित्यिक कृतियाँ लिखी गई हैं?

Ans. कबीर दास ने कुल 72 रचनाएँ कि हैं और उनमें से कुछ प्रसिद्ध हैं कबीर बीजक, कबीर बानी, रेख़्तास, अनुराग सागर, सुखनिधान, मंगल, कबीर ग्रन्थावली, वसंत, सबदास, सखियाँ और आदि हैं।

Q. कबीर दास कौन से धर्म के अनुयायी थे ?

Ans. किवदंती के अनुसार कबीर दास को एक मुस्लिम दंपत्ति ने गोद लिया था। जिसके चलते उनका प्रारंभिक जीवन एक मुसलमान के रूप में बीता था। वहीं कुछ समय बाद वे एक हिंदू तपस्वी रामानंद से बहुत प्रभावित हुए थे और उनके अनुयायी बन गए थे। इसलिए उनके धर्म का कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन वे दोनों धर्मों का सम्मान और विश्वास करते थे।

Q.क्या कबीरदास जी का पारिवारिक जीवन भी था ?

Ans. ऐसा माना जाता है कि कबीर दास ने लोई नाम की एक स्थानीय महिला से शादी की थी और उनके दो बच्चे एक बेटा और एक बेटी भी थे। बेटे का नाम कमल और बेटी का नाम कमली हैं। हालाँकि, कुछ अन्य सूत्रों का कहना है कि उन्होंने दो बार शादी की है, वहीं कई लोगों का मानना है कि उन्होंने कभी शादी ही नही की।

Q.संत कबीर दास ने ईश्वर के बारे में क्या कहा था ?

Ans. संत कबीर दास ने कहा कि ईश्वर सर्वव्यापी है यानी हर जगह मौजूद है और भक्ति और प्रेम से उसकी पूजा की जा सकती है।

Q.नीरू और नीमा को कबीर दास बचपन में कहाँ मिले थे ?

Ans. नीरू और नीमा ने कबीर दास को वाराणसी के लहरतारा तालाब में एक नवजात शिशु के रूप में पाया।

Q.संत कबीर दास के गुरु कौन थे ?

Ans. संत कबीर दास के गुरु स्वामी रामानन्द थे।

Q.संत कबीर दास के कितने बच्चे थे ?

Ans. संत कबीर दास के कमल नाम का एक बेटा और कमली नाम की एक बेटी थी।

Q.संत कबीर दास की कविताओं को क्या कहा जाता है?

Ans. संत कबीर दास की कविताओं को दोहा कहा जाता है।

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कबीर दास पर निबंध Essay On Kabir Das In Hindi

कबीरदास के बारे में 10 वाक्य 10 Lines On Kabir Das In Hindi

  • कबीरदास हिंदी साहित्य के इतिहास के निर्गुण भक्ति की शाखा के कवि थे, ये मूर्तिपूजा के विरोधी थे. ये एक ही भगवान मानते थे. उनके अनुसार सभी का एक ही धर्म है.
  • महान कवि कबीरदास जी का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के घर 1398 ईस्वी को काशी के निकट हुआ था.
  • इनका जन्म हिन्दू परिवार में हुआ, पर मुस्लिम नीरू तथा नीमा द्वारा इनका पालन पोषण किया, जिस कारण ये अपना कोई धर्म नहीं मानते थे.
  • इनके अनेक उपनाम थे, जिसमे कबीरदास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहेब प्रमुख थे. हजारी प्रसाद ने इन्हें मस्तमौला कहा था.
  • कबीर का विवाह लोई के साथ हुआ जिससे उन्हें कमाल तथा कमाली दो संतान हुई.
  • इन्होने कबीर पंथ की स्थापना की और शिक्षा का संचार किया.
  • कबीरदास अन्धविश्वास, मूर्तिपूजा और कुप्रथाओ के विरोधी थे.
  • इन्होने हमेशा हिन्दू मुस्लिम एकता को समर्थन किया तथा सभी कुरीतियों का विरोध किया.
  • कबीरदास जी अपना गुरु रामानंद जी को मानते थे.
  • कबीरदास जी का देहांत 1518 ईस्वी को मगहर में हुआ था.
  • कबीरदास की अनेक किताबे प्रकाशित हुई, जिसमे बीजक, सोंग्स ऑफ़ कबीर, कबीर ग्रंथावली, द कबीर बुक और कबीर says आदि प्रमुख थी.

संत कबीर दास पर निबंध

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  • मुंशी प्रेमचंद पर निबंध
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Kabirdas Essay In Hindi

कबीरदास पर निबन्ध – Kabirdas Essay In Hindi

कबीरदास पर निबन्ध – essay on kabirdas in hindi.

संकेत-बिंदु –

  • शिक्षा-दीक्षा
  • समाज सुधार के स्वर
  • काव्य की भाषा

समाज सुधारक-कबीर (Samaj Sudharak-Kabir) – Social Reformer Kabir

साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न  हिंदी निबंध  विषय पा सकते हैं।

भूमिका – हिंदी साहित्य को अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं से समृद्ध बनाया है। इन कवियों में तुलसीदास, सूरदास, मीरा, जायसी जयशंकर प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा आदि प्रमुख हैं। इन्हीं कवियों में कबीर का विशेष स्थान है, क्योंकि उनकी रचनाओं में समाज सुधार का स्वर विशेष रूप से मुखरित हुआ है।

कबीरदास जीवन परिचय

जीवन-परिचय – ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि माने जाने वाले कबीर का जन्म सन् 1398 ई. में काशी में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि कबीर का जन्म विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। उसने लोक लाज के भय से कबीर को लहरतारा नामक स्थान पर तालाब के किनारे छोड़ दिया। उसी स्थान से नि:संतान नीरु-नीमा गुज़र रहे थे। उन्होंने ही बालक कबीर का पालन किया। कहा गया है

जना ब्राह्मणी विधवा ने था, काशी में सुत त्याग दिया। तंतुवाय नीरू-नीमा ने पालन कबिरादास किया।।

शिक्षा-दीक्षा – कबीर ने बड़े होते ही नीमा-नीरु का व्यवसाय अपना लिया और कपड़ा बुनने लगे। कबीर अनपढ़ रह गए थे। उन्होंने स्वयं कहा है –

मसि कागज छूयो नहिं, कलम गही नहिं हाथ।

कबीर ने अनुभव से ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने दोहे साखियों के रूप जो कुछ कहा उनके शिष्यों ने उसे संकलित किया। उनके शिष्यों ने उनके नाम पर एक मठ चलाया, जिसे कबीर पंथी मठ कहा जात है। इसके अनुयायी आज भी मिलते हैं।

रचनाएँ – कबीर अनपढ़ थे। उनकी साखियों, सबद और रमैनी का संकलन ‘बीजक’ नामक ग्रंथ में किया गया है। इनका मूल स्वर समाज सुधार, भक्ति-भावना तथा व्यावहारिक विषयों से जुड़ी बातें हैं।

समाज सुधार के स्वर – कबीरदास उच्चकोटि के साधक, संत और विचारक थे। वे भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, बाह्य आडंबर, मूर्ति पूजा, धार्मिक कट्टरता और धार्मिक संकीर्णता पर चोट की है। उन्होंने जातिपाँति का विरोध करते हुए लिखा है –

हिंदू अपनी करै बड़ाई गागर छुअन न देई। वेस्या के पायन तर सोवे ये देखो हिंदुआई।

उन्होंने मुसलमानों को भी नहीं छोड़ा और कहा –

मुसलमान के पीर औलिया मुरगा-मुरगी खाई। खाला की रे बेटी ब्याहे, घर में करे सगाई।।

उन्होंने हिंदुओं की आडंबरपूर्ण भक्ति देखकर कहा –

पाहन पूजे हरि मिले, मैं पज पहार। ताते यह चकिया भली पीसि खाए संसार।।

उन्होंने ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग करने पर मुसलमानों पर प्रहार करते हुए कहा –

काँकर पाथर जोरि के मस्जिद लई बनाय। ता पर मुल्ला बाँग दे, का बहरा भया खुदाय।।

काव्य की भाषा – कबीर की भाषा मिली-जुली बोलचाल की भाषा थी, जिनमें ब्रज, खड़ी बोली, अवधी, राजस्थानी तथा पहाड़ी भाषाओं के शब्द मिलते हैं। इसे संधुक्कड़ी या पंचमेल खिचड़ी भी कहा जाता था। कबीर बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहने के लिए जाने जाते हैं।

उपसंहार – कबीर संत कवि थे। उन्होंने समाज की बुराइयों पर जिस निर्भयता से प्रहार किया वैसा किसी अन्य कवि ने नहीं। वास्तव में कबीर सच्चे समाज सुधारक थे जिन्होंने कुरीतियों पर जमकर प्रहार किया। कबीर आज भी उतने ही प्रासंगिक है जितने उसकाल में थे। हमें उनके मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।

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  1. कबीर - विकिपीडिया

    कबीरदास या कबीर ,कबीर साहेब 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संतों के भगवान थे। [1] कबीर अंधविश्वास, व्यक्ति पूजा , पाखंड और ढोंग के विरोधी थे। उन्होने भारतीय समाज में जाति और धर्मों के बंधनों को गिराने का काम किया। वे भोजपुरी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमार्गी उपशाखा के महानतम कवि थे। इनकी रचनाओं ने उत्तर और मध्य भारत के भक्...

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    कबीर दास, एक महान भारतीय संत, साहित्यिक कवि, और सामाजिक सुधारक थे। उनके द्वारा रचित ग्रंथों और दोहों में वे नैतिकता, भक्ति, और मानवता के महत्व को प्रमोट करते थे। इस निबंध में हम कबीर दास के जीवन, उनके योगदान, और उनके द्वारा उकेरे गए संदेशों पर विचार करेंगे।.

  10. कबीरदास पर निबन्ध – Kabirdas Essay In Hindi – Learn Cram

    समाज सुधारक-कबीर (Samaj Sudharak-Kabir) – Social Reformer Kabir साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।