वनों की कटाई पर भाषण

Speech on Deforestation in Hindi : वनों की कटाई करना यह एक गंभीर समस्या में से सबसे महत्वपूर्ण समस्या है। लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए अक्सर वनों की कटाई करते हुए नजर आ रहे हैं। जहां पर उन्हें रहने के लिए जगह नहीं मिलती है, तो वहां पर वह पेड़ पौधे काटने लगते है और जंगल को साफ कर देते हैं और वहां पर अपनी रहने के लिए भवन का निर्माण करते हैं। इसके लिए सरकार को महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको वनों की कटाई पर भाषण देने वाले हैं, जो आपके लिए लाभदायक हो सकता है और लोगों को जागरुक करने का काम कर सकता है।

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वनों की कटाई पर भाषण | Speech on Deforestation in Hindi

वनों की कटाई पर भाषण (500 शब्द).

माननीय अतिथि गण, प्रधानाचार्य जी, शिक्षक गण, एवं मेरे समस्त सहपाठियों, आप सभी को सुप्रभात। आज मैं आपके समक्ष एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करने जा रहा हूं। आज दिन प्रतिदिन हम ग्लोबल वार्मिंग के बारे में सुनते हैं, उसी का एक विषय है वनों को काटना। वनों की कटाई की वजह से बहुत ही ज्यादा ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ती जा रही है, आईए इस पर को चर्चा करते हैं।

जैसा कि आप जानते हैं वनों की कटाई एक बहुत ही बड़ा विषय है और यह गंभीर समस्या बनती जा रही है। ऐसे में लोग एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित होते ही रहते हैं, जिसकी वजह से वह वनों की कटाई करते हैं और रहने के लिए जगह बना लेते हैं। वनों की कटाई तब ज्यादा की जाती है जब लोग बड़े घर या फार्म हाउस बनाने की इच्छा रखते हैं और इसके लिए वह वनों की कटाई करना शुरू कर देते हैं।

इसी के साथ जब भी किसी को ईंधन या लकड़ी की जरूरत होती है, तो वह वनों की कटाई करने के लिए निकल पड़ते हैं। इसका मतलब साफ है कि मनुष्य के द्वारा ही वन को खत्म किया जा रहा है, जिसकी वजह से हमारी जलवायु बहुत ही ज्यादा प्रभावित हो रही है और ग्लोबल ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती ही जा रही है।

इसी के साथ बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए लोग कारखाने, घर इत्यादि का निर्माण करने के लिए वनों का इस्तेमाल करते हैं। लोग बड़ी-बड़ी इमारत और अपार्टमेंट बना लेते हैं। इसी के साथ सड़कों का निर्माण करते हैं। इन सभी चीजों के लिए वनों की कटाई बहुत ही ज्यादा होने लगी है और भी कई अन्य कारण है, जिसकी वजह से वनों की कटाई बहुत ही अधिक बढ़ती जा रही है।

कुछ कारण इस प्रकार है जैसे कि जंगल की आग बढ़ना, कई बार जंगल में आग लगा दी जाती है और कई बार प्राकृतिक आग लग जाती है, जिसकी वजह से वन नष्ट हो जाते हैं। दूसरा कारण है झूमिंग यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें किसान आग लगाने के लिए जंगल से पेड़ काट लेते हैं और वहां जो राख उत्पन्न होती है। उसका इस्तेमाल उर्वरक के रूप में किया जाता है।

तीसरा कारण है जल विद्युत परियोजनाएं इसकी वजह से जलाशयों और मानव निर्मित बांधों के लिए वनों की कटाई बहुत ही ज्यादा हो रही है और सभी पौधे और जानवर मारे जाने लगे हैं। चौथा कारण है अधिक चराई जैसे जैसे देश में लोगों की आबादी बढ़ रही है वैसे पशुओं की आबादी भी बढ़ने लगी है। इसी के चलते लोग अपने पशुओं को जंगल में ले जाते हैं और वहां जंगल के जंगल खत्म हो जाते है।

यह सब ऐसे कारण हैं जिनको हमें रोकना चाहिए और वनों की अंधाधुंध कटाई को भी रोकना चाहिए। अगर ऐसे ही वनों की कटाई होती रही तो ग्लोबल वार्मिंग बहुत ही अधिक बढ़ जाएगी, जिसकी वजह से पृथ्वी पर सांस लेना तक मुश्किल हो जाएगा।

अंत में मैं केवल यही कहना चाहूंगा कि हमें पेड़ों की कटाई को रोकना चाहिए और अपने वातावरण को स्वच्छ रखना चाहिए और अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने चाहिए।

यह भी पढ़े : रक्षा बंधन पर भाषण

माननीय कक्षाअध्यापक और मेरे प्यारे मित्रों आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार। आज मैं आपसे बहुत ही महत्वपूर्ण विषय कि उन्हें बात करने जा रहा हूं, वनों की कटाई के बारे में हम बात करने जा रहे हैं।

मैं एक प्रकृति प्रेमी हूं और मुझे नदियों और पेड़ों से बहुत ही ज्यादा प्यार है। मैं इन सभी के बीच में रहकर खुद को भाग्यवान मानता हूं, इसीलिए जब जब प्रकृति पर प्रहार होता है तो मुझे इन सब को देखकर बहुत ही ज्यादा दुख होता है। मैं अक्सर पेड़ों को नष्ट होते हुए देखता हूं। नदियों को गंदा और प्रदूषित होते हुए देखता हूं, तो मुझे ऐसा लगता है मानो लोग मुझे ही नुकसान पहुंचा रहे हैं।

इसी तरह से इस समय वनों की कटाई मतलब वन भूमि का कम होना, यह मेरे लिए बहुत ही दुर्भाग्यवश है। मैं इन सभी को देखकर आश्चर्यचकित हो जाता हूं। क्या आप जानते हैं आने वाले समय में यह समझ से भी अधिक बढ़ जाएगी, जिसकी वजह से हम इस पृथ्वी पर रहकर सांस तक नहीं ले पाएंगे और हमारा जीना भी दुश्वार हो जाएगा, इसकी वजह से अक्सर नई-नई बीमारियां भी पनपती रहती हैं।

वनों की कटाई की वजह से पर्यावरण बहुत ही अधिक प्रभावित होता है। इसकी वजह से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में बहुत ही अधिक वृद्धि हो रही है क्योंकि जितनी अधिक पेड़ पौधे होते हैं उतनी ही ऑक्सीजन मिलती है। जैसे जैसे वनों की कटाई हो रही है वर्षा में भी कमी आती जा रही है और सूखे का खतरा निरंतर बढ़ता ही जा रहा है।

मिट्टी की गुणवत्ता भी बिगड़ रही है क्योंकि वह पहले सूखती है फिर उसे पानी और हवा नष्ट कर देती है। गर्मियों को ठंडा और सर्दियों को गर्म बनाकर वातावरण में बहुत ही अधिक असंतुलन पैदा हो रहा है। लकड़ी की उपलब्धता बहुत ही कम होती जा रही है।

जंगलों की कमी की वजह से मिट्टी का कटाव और भी सूखा बढ़ता जा रहा है और भूमि बंजर होती जा रही है क्योंकि अगर बारिश नहीं होगी तो, हमारी भूमि बंजर होगी। जिसकी वजह से कोई भी काम नहीं हो पाता है। बारिश ना होने की वजह से वन भूमि रेगिस्तान बनती जा रही है, जिसकी वजह से अक्सर बाढ़ और प्राकृतिक आपदाएं आती ही रहती हैं।

वनों की कटाई की वजह से हमारे पर्यावरण पर बहुत ही बुरा असर पड़ता है। इसके लिए सरकार को कड़े से कड़े नियम और कानून बनाने चाहिए और वनों की अंधाधुंध कटाई पर प्रतिबंध लगाना बहुत ही आवश्यक है, अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए।

अंत में मैं केवल आपसे इतना ही कहना चाहूंगा कि जितना हो सके हमें और हमारी युवा पीढ़ी को सभी प्रकार की स्थिति का महत्व समझना बहुत ही आवश्यक है। इसी के साथ भीड़ और जंगलों की कटाई को रोकना बहुत ही जरूरी है। अन्यथा आने वाले समय में अनर्थ होने से कोई भी नहीं रोक पाएगा, इसी के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।

इस आर्टिकल में हमने आपको वनों की कटाई पर भाषण ( Speech on Deforestation in Hindi) बताया है। अगर आप स्कूल या कॉलेज की छात्रा है या किसी भी अन्य समारोह में आपको या लोगों को जागरूक करने के लिए वनों की कटाई के बारे में भाषण देना है, तो यह आपके लिए सहायक हो सकता है।

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वनोन्मूलन पर निबंध (Deforestation Essay in Hindi)

वनोन्मूलन

व्यक्तिगत ज़रुरतों को पूरा करने के लिये पेड़ों और जंगलों को जलाने के द्वारा एक बड़े स्तर पर जंगलों को हटाना वनोन्मूलन है। पर्यावरण में प्राकृतिक संतुलन बनाने के साथ ही पूरे मानव बिरादरी के लिये जंगल बहुत महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, समाज और पर्यावरण पर इसके नकारात्मक परिणामों को बिना देखे और समझे इंसान लगातार पेड़ों को काट रहा है। प्रदूषण मुक्त स्वस्थ पर्यावरण में एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन जीने और आनन्द उठाने के लिये हमें और हमारी भविष्य की पीढ़ी के लिये जंगल बेहद ज़रुरी है।

वनोन्मूलन पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Deforestation in Hindi, Vanonmulan par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (250 शब्द) – vanonmulan par nibandh.

बिना पौधा-रोपण किये पेड़ों को लगातार काटने के द्वारा जंगलों का तेजी से नुकसान वनोन्मूलन है। ये वन्य-जीवन, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण, बढ़ती मानव जनसंख्या के लिये बहुत खतरनाक है, विश्व में बढ़ती प्रतियोगिता मानव जाति को अच्छी तरह से विकसित शहर की स्थापना करने या खेती के लिये जंगलों को काटने को मजबूर कर रही है।

वनोन्मूलन का कारण

ऐसे प्रतियोगी विश्व में, सभी राष्ट्र दूसरे विकसित और उन्नत राष्ट्रों से आगे तथा शक्तिशाली बनना चाहते हैं। लोगों को घर, पार्क, मल्टीप्लेक्स, उद्योग, कागज उत्पादन, लोक संरचना आदि के लिये जंगलों को काटने की ज़रुरत है। लकड़ियों को बेचने के द्वारा कुछ लालची लोग अधिक पैसा कमाने के लिये जंगलों को काट रहें हैं और वन्य जीवन तथा मानव जीवन को खतरे में डाल रहें हैं।

वनोन्मूलन का प्रभाव

वन्य जीव विस्थापित और मर रहें हैं, वास्तविक वनस्पति और जीव-जन्तु खत्म हो रहें हैं, पर्यावरण में नकारात्मक बदलाव हो रहा है और मानव जीवन को गड़बड़ कर रहें हैं। इस वजह से बहुत महत्वपूर्ण जानवरों के प्राकृतिक आवास खत्म हो रहें हैं और कुछ दूसरी जगह विस्थापित हो रहें हैं या मानव क्षेत्रों में प्रवेश कर रहें हैं।

भविष्य में यहाँ जीवन को बचाने के लिये पर्यावरण के प्राकृतिक चक्र को बनाये रखने और पशु अभयारण्य को बचाने के लिये जंगलों की कटाई रोकना या दुबारा पेड़-पौधा लगाने के द्वारा हमें पेड़ों को संरक्षित करना होगा। कार्बन डाइऑक्साईड की मात्रा को कम करने के साथ ही ताजे और स्वस्थ ऑक्सीजन के लिये जंगलों का संरक्षण बहुत ज़रुरी है।

वनोन्मूलन के कारण वायु प्रदूषण, पर्यावरण में जहरीली गैसों के स्तर में बढ़ौतरी, मृदा और जल प्रदूषण का बढ़ना, पर्यावरणीय उष्मा का बढ़ना आदि नकारात्मक बदलाव होते हैं। वनोन्मूलन के सभी नकारात्मक प्रभाव से बहुत सारे स्वास्थ्य विकार और खासतौर से फेफड़े और साँस संबंधी बिमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अतः मानव जाति के हित के लिए हमें डेफोरेस्टशन रोकना होगा, ताकि हम अपने आने वाली पीढ़ी को एक स्वस्थ वातावरण दे सके।

इसे यूट्यूब पर देखें : Essay on Deforestation in Hindi

वनोन्मूलन पर निबंध 2 (300 शब्द)

मानव जाति के द्वारा जंगलों को समाप्त करना वनोन्मूलन है। दिनों-दिन बढ़ती जनसंख्या के कारण कृषि, उद्योग, आवास, व्यवसाय, शहर आदि दूसरे उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भूमि की आवश्कता बढ़ती जा रही है जिसमें स्थायी जंगलों को हटाना शामिल है। पिछले दशक में, हमारी पृथ्वी हर तरफ से जंगलों से घिरी हुई थी जबकि अब के दिनों में केवल कुछ गिने हुये जंगल ही बचे हैं। वनोन्मूलन भारत के साथ दूसरे देशों के लिये भी एक बड़ी समस्या है। बड़े पर्यावरणीय सामाजिक मुद्दे के रुप में ये पूरे विश्व में फैल रहा है।

पारिस्थितिक और पर्यावरणीय असंतुलन के कारण वनोन्मूलन मानव जीवन को गड़बड़ कर देता है। धरती पर जीवन के अस्तित्व को बचाने के लिये पेड़ों की कटाई को रोकने की ज़रुरत के लिये वनोन्मूलन लगातार हमें आगाह कर रहा है। कुछ लालची लोग लकड़ी से पैसा कमाने के लिये वनोन्मूलन कर रहे हैं। लोग अपने कृषिगत कार्यों, कागज, माचिस, फर्निचर आदि बनाने के लिये, शहरीकरण (सड़क निर्माण, घर आदि), भूमि का मरुस्थलीकरण, खनन (तेल और कोयला खनन), आग (गर्मी पाने के लिये) आदि के लिये पेड़ों को काट रहें हैं।

जलवायु असंतुलन, ग्लोबल वार्मिंग का बढ़ना, मृदा अपरदन, बाढ़, वन्य-जीवन का लोप, शुद्ध ऑक्सीजन स्तर का घटना और कार्बन डाइऑक्साईड गैस का बढ़ना आदि के माध्यम से वनोन्मूलन मानव जाति और शुद्ध पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। सामान्य तरीके से जीवन को चलाने के लिये वनोन्मूलन को रोकना बेहद आवश्यक है। देश की सरकार के द्वारा कुछ कड़े नियम-कानून होने चाहिये जिसका पालन सभी नागिरकों को करना चाहिये। वनोन्मूलन के कारण और प्रभाव के बारे में आम जन को जागरुक करने के लिये कुछ साधारण और आसान तरीके होने चाहिये। जंगल कटाई की ज़रुरत को कम करने के लिये जनसंख्या पर नियंत्रण करना चाहिये। जब कभी भी कोई पेड़ काटा जाये, उसकी जगह पर कोई दूसरा पेड़-पौधा लगाने का नियम होना चाहिये।

वनोन्मूलन पर निबंध 3 (400 शब्द)

जीवन के स्रोतों और लकड़ियों के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिये जंगलों का स्थायी नाश वनोन्मूलन है। पेड़ काटना बुरा नहीं है लेकिन स्थायी रुप से काटना बुरा है। अगर कोई पेड़ काटता है, उसे उसी या दूसरी जगह पर दुबारा पेड़ लगाना चाहिये। वनोन्मूलन बहुत से प्रयोजनों जैसै खेती, आजीविका, घर, फर्निचर, सड़क, ईंधन तथा औद्योगीकरण आदि कई कार्यों के लिये किया जाता है। वनोन्मूलन पर्यावरण को बहुत बुरी और तेजी से विनाश की ओर ले जा रहा है। पिछली सदी में पृथ्वी जंगलों से पटी पड़ी थी जबकि वर्तमान में लगभग 80% तक जंगल काटे और नष्ट किये जा चुके हैं और यहां तक कि वर्षा वन भी स्थायी रुप से गायब हो चुका है।

जंगली जानवरों, इंसानों और पर्यावरण के भले के लिये जंगल की ज़रुरत होती है। वनोन्मूलन के कारण पौधों और जानवरों की बहुत सी अनोखी प्रजातियाँ स्थायी रुप से खत्म हो चुकी हैं। पेड़ काटने की प्रक्रिया प्राकृतिक कार्बन चक्र को गड़बड़ कर रही है और दिनों-दिन पर्यावरण में अपने स्तर को बढ़ा रही है। वातावरण से प्रदूषकों को हटाने के साथ ही पर्यावरण से CO2 गैस का उपयोग करने के लिये जंगल बेहतर माध्यम है और जो पर्यावरण की शुद्धता को बनाये रखता है। किसी भी तरीके से जब कभी भी पेड़ों को नष्ट या जलाया जाता है, वो कार्बन और मीथेन छोड़ता है जो मानव जीवन के लिये नुकसानदायक होता है। दोनों गैसों को ग्रीन हाउस गैस कहते हैं जो अंतत: ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है।

पूरी तरह से वर्षा, दवा प्राप्ति, शुद्ध हवा, वायु प्रदूषण को हटाने, बहुत से प्रयोजनों के लिये लकड़ी प्राप्त करने आदि के लिये जंगल बहुत ज़रुरी है। जब हम पेड़ काटते हैं, ये सभी चक्रों को गड़बड़ करती है और मानव जीवन को प्रभावित करती है। कागज की ज़रुरत को पूरा करने के लिये पेड़ काटने के बजाय, हमें नये पेड़ों को काटने के बचने के लिये जितना संभव हो सके पुरानी चीजों के पुनर्चक्रण की आदत को बनाना चाहिये। बिना पानी के ग्रह की कल्पना कीजिये, जीवन संभव नहीं है। और उसी तरह से, बिना पेड़ और जंगल के जीवन नामुमकिन है क्योंकि ये वर्षा, ताजी हवा, जानवरों का रहवास, छाया, लकड़ी आदि का साधन होता है।

बिना पेड़ के, पृथ्वी पर बारिश, शुद्ध हवा, पशु, छाया, लकड़ी, और ना ही दवा होना संभव है। हर जगह केवल गर्मी, सूखा, बाढ़, तूफान, कार्बन डाईऑक्साईड गैस, मीथेन, अन्य जहरीली गैसें, तथा गर्मी का मौसम होगा, सर्दी का मौसम नहीं होगा। वनोन्मूलन को रोकने के लिये हमें एक साथ होकर कोई कदम उठाना चाहिये। हमें कागजों को बरबाद नहीं करना चाहिये और कागज किचन का तौलिया, मुंह साफ करने का टिशु आदि जैसी चीजों के अनावश्यक इस्तेमाल से बचना चाहिये। पेड़ काटने की ज़रुरत को कम करने के लिये कागज के वस्तुओं को हमें दुबारा प्रयोग और पुनर्चक्रण के बारे में सोचना चाहिये। जंगल और पेड़ों को बचाना हमारे अपने हाथ में है और हमारी तरफ से उठाया गया एक छोटा सा कदम वनोन्मूलन को रोकने की ओर एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

Essay on Deforestation in Hindi

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Essay on Deforestation: वनोन्मूलन पर छात्र ऐसे लिखें निबंध

speech in hindi deforestation

  • Updated on  
  • जुलाई 2, 2024

Essay on Deforestation in Hindi

Essay on Deforestation in Hindi: वनों की कटाई से पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले प्रभाव को समझना छात्रों को जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में वनों के महत्व को समझने में मदद करता है। वन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके जलवायु को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों की कटाई के बारे में जानकारी जिम्मेदारी की भावना पैदा करती है। इससे छात्र सीखते हैं कि स्थानीय कार्यों के वैश्विक नतीजे कैसे हो सकते हैं और टिकाऊ प्रयासों का महत्व क्या है। इसलिए छात्रों को essay on deforestation in hindi के बारे में निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। इस बारे में अधिक जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

वनोन्मूलन पर 100 शब्दों में निबंध, वनोन्मूलन पर 200 शब्दों में निबंध, वनों की कटाई के कारण, वनोन्मूलन के हानिकारक प्रभाव, वनों की कटाई को कैसे रोकें.

Essay on Deforestation in Hindi 100 शब्दों में नीचे दिया गया है:

वनोन्मूलन का मतलब है कि भूमि का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए करने के लिए वनों को काटना। वनों की कटाई पूरे विश्व में स्वाभाविक रूप से होती है। यह मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण होती है। पूरे इतिहास में मानव जीवन के लिए वन महत्वपूर्ण रहे हैं। वन कागज बनाने, जहाज और घर बनाने और हीटिंग के लिए ईंधन के रूप में लकड़ी प्रदान करते हैं। अपने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और स्वच्छ वातावरण सुनिश्चित करने के लिए, वन महत्वपूर्ण हैं। वे जैव विविधता का समर्थन करते हैं, जलवायु को नियंत्रित करते हैं, और संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र और स्वच्छ जल स्रोतों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

Essay on Deforestation in Hindi 200 शब्दों में नीचे दिया गया है:

विभिन्न मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वनों की कटाई या जंगल में आग लगाकर व्यापक रूप से की जाने वाली कटाई वनोन्मूलन है। यह प्राकृतिक रूप से या मानवीय गतिविधियों के कारण हो सकता है, जिसका पर्यावरण और समाज दोनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वन पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और मानव कल्याण का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, फिर भी इसके ज्ञात हानिकारक प्रभावों के बावजूद यह प्रथा जारी है।

कई विकासशील देशों में वनों की कटाई का एक प्रमुख कारण कृषि विस्तार है। छोटे किसान अक्सर अपने परिवारों और समुदायों का भरण-पोषण करने के उद्देश्य से फसलों या पशुओं के लिए चारागाह बनाने के लिए जंगलों को साफ करते हैं। इसके अलावा बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक कृषि, जैसे कि मवेशी पालन और सोयाबीन उत्पादन जैसे कार्य वनों की कटाई में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, खासकर विश्व के बड़े अमेज़न वर्षावन जैसे क्षेत्रों में।

इसके कारणों में अवैध कटाई, जंगल में आग और जंगलों के पास सड़कों और बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है। ये गतिविधियाँ पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करती हैं, जिससे मिट्टी का कटाव होता है, जैव विविधता को नुकसान होता है और संग्रहीत कार्बन डाइऑक्साइड के निकलने के माध्यम से जलवायु परिवर्तन में योगदान होता है।

वनों की कटाई के परिणाम बहुत गंभीर हैं। यह उन लोगों की आजीविका को खतरे में डालता है जो भोजन, आश्रय और आय के लिए जंगलों पर निर्भर हैं। यह वैश्विक जलवायु पैटर्न और जल चक्रों को भी प्रभावित करता है, कृषि उत्पादकता को प्रभावित करता है और पर्यावरण क्षरण को भी बढ़ाता है।

वनों की कटाई को कम करने के प्रयासों में स्थायी भूमि उपयोग प्रथाएँ, पुनर्वनीकरण पहल और संरक्षण कानूनों का सख्त रूप से लागू किया जाना शामिल है। वनों का संरक्षण न केवल जैव विविधता की रक्षा और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि दुनिया भर में पारिस्थितिकी तंत्र और मानव समाज दोनों की दीर्घकालिक भलाई सुनिश्चित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

वनोन्मूलन पर 500 शब्दों में निबंध

Essay on Deforestation in Hindi 500 शब्दों में नीचे दिया गया है:

वनों की कटाई तब होती है जब खेतों, शहरों या उद्योगों जैसे अन्य उद्देश्यों के लिए जगह बनाने के लिए जंगलों को स्थायी रूप से साफ कर दिया जाता है। वनों की कटाई के गंभीर और दूरगामी परिणाम होते हैं। पेड़ हवा से कार्बन डाइऑक्साइड, ग्रीनहाउस गैस को अवशोषित करते हैं परिणामस्वरूप यह ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को ओर अधिक बढ़ाता है। वनों की कटाई से मिट्टी का कटाव भी होता है, आवास नष्ट हो जाते हैं और पौधों और जानवरों के घरों को नष्ट करके जैव विविधता कम हो जाती है। यह अचानक बाढ़ और भूस्खलन को भी बढ़ा सकता है। जलवायु को स्थिर करने, वन्यजीवों को संरक्षित करने और प्राकृतिक आपदाओं से समुदायों की सुरक्षा के लिए वनों की रक्षा करना महत्वपूर्ण है।

वनों की कटाई कई कारणों से होती है, मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण होती है। वनों की कटाई के मुख्य कारण वन भूमि को कृषि, पशुपालन और शहरी विकास के लिए परिवर्तित करना है। पाम ऑयल के बागानों के लिए जगह बनाने के लिए खनन, कटाई और जंगलों को जलाना भी इसमें योगदान देता है। लकड़ी और कागज़ के उत्पादों के लिए कटाई से पेड़ों का बहुत ज़्यादा नुकसान होता है। कृषि एक और प्रमुख कारक है, क्योंकि फसलों और पशुओं के लिए खेत बनाने के लिए जंगलों को साफ किया जाता है। खनन कार्य भी खनिजों और संसाधनों तक पहुँचने के लिए बड़े वन क्षेत्रों को साफ करके योगदान करते हैं। इसके अतिरिक्त शहरीकरण और बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए भूमि की आवश्यकता होती है, जिससे वनों की कटाई और बढ़ जाती है। ये क्रियाएँ न केवल वनों को नष्ट करती हैं बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी बाधित करती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता का नुकसान होता है।

मिट्टी की स्थिरता बनाए रखने, जलवायु को विनियमित करने, पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने और वन्यजीवों और मानव समुदायों दोनों के लिए विविध पारिस्थितिकी तंत्रों को संरक्षित करने के लिए वनों की रक्षा करना आवश्यक है। वनों की कटाई के कई दूरगामी और हानिकारक प्रभाव होते हैं। कुछ मुख्य रूप से होने वाले प्रभाव नीचे दिए गए हैं:

  • मृदा अपरदन: जब पेड़ों को हटाया जाता है, तो मिट्टी हवा और पानी के कटाव के प्रति कमज़ोर हो जाती है। इससे भूस्खलन और बाढ़ आ सकती है, जिससे समुदायों को नुकसान पहुँच सकता है।
  • ग्लोबल वार्मिंग: पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जो एक ग्रीनहाउस गैस है। पर्याप्त पेड़ों के बिना, वातावरण में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड बनी रहती है, जो ग्लोबल वार्मिंग और चरम मौसम में योगदान देती है।
  • जल चक्र पर प्रभाव: पेड़ वाष्पोत्सर्जन के माध्यम से हवा में नमी छोड़कर जल चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वनों की कटाई इस चक्र को बाधित करती है, वर्षा को कम करती है और कृषि को प्रभावित करती है।
  • वन्यजीवों के लिए खतरा: वनों की कटाई से आवास नष्ट हो जाते हैं, जिससे कई प्रजातियाँ विलुप्त हो जाती हैं या खतरे में पड़ जाती हैं। जानवर अपने घर खो देते हैं, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता बाधित होती है।

कई ऐसे छोटे बड़े कार्य हैं जिन्हे करके हम वनों की कटाई को रोक सकते हैं। वनों की कटाई को रोकने के कुछ तरीके इस प्रकार हैं:

  • यह सुनिश्चित करते हुए कि पेड़ों की कटाई संधारणीय तरीके से की जाए।
  • कंपनियों और सरकारों को सस्टेनेबल फॉरेस्ट्री को लागू करने और उनका पालन करने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • पाम ऑयल, सोयाबीन और बीफ़ जैसे उत्पादों की खपत सीमित करें जो वनों की कटाई के प्रमुख कारण हैं।
  • वनों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए समर्पित संगठनों को दान दें या उनके साथ कार्य करें।
  • स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर वन संरक्षण और बहाली को प्राथमिकता देने वाली नीतियों की पालना करें।
  • अपने दैनिक जीवन में कम कागज और लकड़ी के उत्पादों का उपयोग करें।
  • प्रिंटेड सामग्री की जगह जब भी संभव हो डिजिटल दस्तावेज चुनें।
  • संसाधन खपत को कम करने के लिए न्यूनतम या फिर से प्रयोग किए जाने वाले पैकेजिंग वाले उत्पाद चुनें।
  • ऐसी स्थायी कृषि पद्धतियों का समर्थन करें जिनमें खेती के लिए जंगलों को साफ करना शामिल न हो।
  • अवैध रूप से कटाई की गई लकड़ी या विलुप्त होने वाली पेड़ प्रजातियों से बने उत्पादों का प्रयोग न करें।

वनों की कटाई, खेती और खनन जैसी गतिविधियों के कारण होती है। इसके प्रभाव व्यापक और हानिकारक होते हैं, जो पर्यावरण और लोगों दोनों को प्रभावित करते हैं। यह मिट्टी के कटाव, पानी की कम गुणवत्ता, वन्यजीवों की हानि और जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ गरीबी और सामाजिक संघर्षों को बढ़ा सकता है। वनों की कटाई को रोकने के लिए, हमें वनों की रक्षा करने और भूमि का स्थायी रूप से उपयोग करने की आवश्यकता है। सरकारों को वनों की कटाई को कम करने के लिए कार्रवाई करनी चाहिए। वैश्विक नेताओं को नवीनतम वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर मजबूत वन संरक्षण नीतियों का समर्थन करना चाहिए।

वनों को नष्ट करने से मौसम के पैटर्न में बदलाव आता है, आवास नष्ट होते हैं और ग्रामीण समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे खाद्य असुरक्षा पैदा होती है और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचती है।

वनों की कटाई को मानवीय गतिविधियों की सुविधा के लिए वनों से पेड़ों को बड़े पैमाने पर हटाने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जैसे कि बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री का निर्माण करना। यह एक गंभीर पर्यावरणीय चिंता है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप जैव विविधता का नुकसान, प्राकृतिक आवासों को नुकसान, जल चक्र में गड़बड़ी और मिट्टी का कटाव हो सकता है।

पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित और संग्रहीत करते हैं। वनों की कटाई और क्षति वैश्विक तापमान में लगभग 10% का कारण है। यदि हम वनों की कटाई को नहीं रोकते हैं तो हम जलवायु संकट से लड़ने का कोई तरीका नहीं खोज सकते।

वनों की कटाई के प्रत्यक्ष कारण कृषि विस्तार, घरेलू ईंधन या लकड़ी के कोयला के लिए लकड़ी काटना या लकड़ी काटना, और सड़क निर्माण और शहरीकरण जैसे बुनियादी ढांचे का विस्तार करना हैं। 

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Speech on Deforestation for Students and Children

Speech on deforestation.

A warm welcome to all present here. Today I am going to give a speech on deforestation. Deforestation is the process of cutting down the forest, without replanting them again. The causes for deforestation are to obtain wood and fuel or to use the land for farming, mining or construction. From the time of civilization till now, forest wood is very essential for humans in our day to day life.

Speech on Deforestation

Source: en.wikipedia.org

Forests help in maintaining water cycle, oxygen and carbon dioxide balancing and providing shelter to many species on earth. Forests cover nearly 30% of the earth’s land.  Deforestation results in destroying the habitat for many species of animals and birds, imbalance of oxygen and carbon dioxide in the ecosystem, water cycle disruption, climate change, soil erosion, fewer crops, floods and droughts, greenhouse gas effect, etc.

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Causes of Deforestation

Agricultural plantations are one of the major causes of deforestation. Demand for commodities like soybeans and palm oil has increased exponentially worldwide. This results in the demand for more land and cutting down trees.

Logging is another big cause of deforestation.  Wood-based industries like match sticks, paper and furniture need an enormous amount of wood. Charcoal and firewood are also useful as fuel. This results in a large part of forests being cut down.

The increase of mining to suffice the rising demand for the mineral is adding to the cause of deforestation. Coal and oil mining need forest land too. Building up of roads, railways and highways need more of these fuels thereby results in cutting down forests.

The ever-rising demand for human habitat puts the pressure on forest land. The overpopulation and the need for house and fuel are escalating the reason for deforestation.

Clearing of the forest for livestock ranching is a contributor to deforestation too. High demand for milk and milk products, meat and eggs results in the push for forest cutting.

Effects of Deforestation

Forests are the lungs of our earth. They absorb carbon dioxide which is emitted by us and gives oxygen in return. Cutting down forests results in decreased levels of oxygen and humidity from the atmosphere. This further results in drying out the tropical rainforest and increase the chances of fire. Therefore climate change is an unavoidable effect of deforestation.

Moist soil, which is nutrient for vegetation, is exposed to heat by the sun when forests are cut down. Thus the drying up of soil and its nutrients results in its erosion with rainwater. Gradually reducing the soil potential and making it barren in the future.

Trees retain the moisture in their roots thereby balancing the ecosystem. When the process is broken by cutting the trees the atmosphere and the water bodies get dried up. Destroying forests affects the atmosphere, water cycle, and water bodies.

80% of the world species belongs to Tropical Rainforest. While destroying the forest, the existence of these species is in danger. This is a great loss of biodiversity.

Educating people around us would create awareness about the negative effects of deforestation. Planting more and more trees and using renewable wood resources can be of great help. Eating less meat or turning vegan would protect the forest from livestock ranching. Reduce and recycle the use of paper. The government must have forest-friendly policies. It shall ban the cutting down of forests.

If each one of us pledges today to follow the above steps, then together we can ensure a better future for us and our planet.

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वनों की कटाई पर निबंध | Vanon Kee Kataee Par Nibandh

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वनों की कटाई पर निबंध | Vanon Kee Kataee Par Nibandh | Essay on Deforestation in Hindi.

Essay on Deforestation

Essay Contents:

  • वनोन्मूलन का प्रबंधन (Management of Deforestation)

Essay # 1. वनोन्मूलन का अर्थ (Meaning of Deforestation):

वन किसी भी देश की अमूल्य संपदा एवं पर्यावरण का एक प्रमुख अंग हैं । वनों से न केवल उपयोगी वस्तुएँ जैसे इमारती लकड़ी, ईंधन की लकड़ी, रबड़, सैलुलोज, कत्था, लाख, गोंद, उपयोगी जड़ी-बूटियाँ आदि प्राप्त होती हैं, अपितु इनसे जलवायु संतुलित रहता है, वन्य जीव संरक्षित रहते हैं तथा मृदा का कटाव नहीं होता है ।

अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने पर वन स्वत: पल्लवित होते रहते हैं और यदि उनकी सीमित कटाई भी की जाये तो वह हानिकारक नहीं होती । किंतु जनसंख्या में वृद्धि, लकड़ी का विविध उपयोगों में प्रयोग एवं व्यावसायिक और व्यापारिक उद्देश्य से जब वनों की कटाई प्रारंभ हुई तो वनों का क्षेत्र निरंतर कम होने लगा ।

वनों के क्षेत्र में कमी आना तथा अनियमित कटाई को ही दूसरे शब्दों में वन विनाश या वनोन्मूलन कहते हैं जो पर्यावरण को असंतुलन करने अथवा उसके स्तर को गिराने या अवकर्षित करने का प्रमुख कारण है । सभ्यता की दौड़ में अंधा हुआ मानव वनोन्मूलन कर न केवल स्वयं की हानि कर रहा है अपितु अपने भविष्य को भी अंधकारपूर्ण बना रहा है ।

एक समय था जब पृथ्वी पर अत्यधिक वनों का विस्तार था । यह आदिम अवस्था की कहानी है जब मानव स्वयं वनों में घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था तथा वनों से ही भोजन, आवास एवं वस्त्र की आवश्यकता पूर्ण करता था । उसके पश्चात् पशुचारण प्रारंभ हुआ और फिर वह कृषि की ओर प्रेरित हुआ ।

कृषि के विकास के साथ ही वनोन्मूलन की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई थी, क्योंकि वनों को साफ करके ही कृषि भूमि प्राप्त की गई थी । प्रारंभ में यह सीमित था अर्थात् कृषि विस्तार सीमित था और वन पर्याप्त होने से संतुलन था ।

ADVERTISEMENTS:

किंतु जैसे-जैसे एक ओर कृषि का विस्तार होता गया, लकड़ी एवं वनों के पदार्थों के उपयोग में वृद्धि होने लगी, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण का विकास एवं विस्तार हुआ और व्यापारिक स्तर पर वनों की कटाई प्रारंभ हुई तो बीसवीं शताब्दी के अंत तक यह इस भयावह स्थिति में पहुँच गई कि संपूर्ण विश्व आज वनोन्मूलन की समस्या एवं उसके पर्यावरण पर प्रभाव से त्रस्त है ।

एक समय था जब पृथ्वी के स्थलीय भाग के 70 प्रतिशत अर्थात् 12 अरब 80 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर वन थे जो आज लगभग 16 प्रतिशत अर्थात् 2 अरब हेक्टेयर पर रह गये हैं तथा इसमें भी निरंतर कमी आ रही है । किंतु वर्तमान में उष्ण कटिबंधीय वनों पर संकट आया हुआ है जिससे विश्व के पर्यावरणविद् चिंतित हैं । 1980 में उष्ण कटिबंधीय वनों के कटने का अनुमान 1.14 करोड़ हेक्टेयर का था जो वर्तमान में लगभग 2.04 करोड़ है प्रतिवर्ष का है ।

अनेक देश जैसे ब्राजील, केमरून, कोस्टारिका, भारत, इण्डोनेशिया, म्यानमार (बर्मा), फिलीपिंस, थाइलैण्ड, वियतनाम आदि में इसकी दर अत्यधिक है । विश्व के अब तक लगभग 32 से 35 प्रतिशत उष्ण कटिबंधीय वनों का विनाश हो चुका है ।

जबकि सवाना के पतझड़ वाले वनों का लगभग 24 प्रतिशत हुआ । इन वनों के विनाश का प्रमुख कारण विश्व में इमारती लकड़ी की बढ़ती हुई मांग तथा व्यापारीकरण है । इसी के साथ कृषि भूमि हेतु भी इनका विनाश हो रहा है ।

वनों के विनाश के अन्य कारणों में अनियंत्रित पशुचारण, सूखा, बाढ़ तथा वनों में लगने वाली आग है । 1997 में इण्डोनेशिया के वनों में लगी आग से हजारों हेक्टेयर भूमि के वन जल चुके हैं और उस आग को लगे 6 से 8 माह हो चुके हैं, इससे उसके विनाश और पर्यावरण प्रदूषण का अनुमान लगाया जा सकता है ।

1970 के दशक के बाद उष्ण-कटिबंधीय वनों के संरक्षण के उपाय के प्रति विश्व के देश सचेष्ट हुए हैं । 1985 में ट्रापिकल फारेस्ट एलान प्लान (TFAP), FAO, UNDP, विश्व बैंक तथा अनेक सरकारों और गैर-सरकारी संस्थाओं ने वनों के संरक्षण के प्रति चेतना प्रदर्शित की है ।

विश्व के 60 से भी अधिक देशों ने ‘राष्ट्रीय वन कार्य योजना’ तैयार की है तथा वन प्रबंधन हेतु उपाय प्रारंभ किये हैं । वनों के क्षेत्र में वृद्धि तथा वर्तमान वनों का संरक्षण ही इस समस्या का निराकरण कर सकते हैं । इसके लिये विश्व समुदाय को अपने स्वार्थ की राजनीति का परित्याग कर विश्वव्यापी दृष्टिकोण अपनाना होगा ।

Essay # 2. वनोन्मूलन के कारण (Causes of Deforestation) :

वनोन्मूलन मानव की विकास यात्रा का परिणाम है, यद्यपि यदा-कदा प्राकृतिक कारण या वनाग्नि भी इन्हें नष्ट करती है किंतु यह उतनी हानिकारक नहीं जितना कि मानव द्वारा विनाश ।

वन विनाश के प्रमुख कारण निम्नांकित हैं:

i. कृषि क्षेत्र:

निःसंदेह विश्व में आज हमें जो कृषि क्षेत्र दृष्टिगत होता है उसमें से अधिकांश वनों को साफ कर प्राप्त किया गया है । यह आवश्यक भी था क्योंकि भोजन मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकता है । किंतु जब जनसंख्या में वृद्धि हुई और वर्तमान में यह वृद्धि तीव्रतम होती जा रही है तो वनोन्मूलन का प्रारंभ हुआ जो आज तक समस्या बन गया है । कृषि अवश्य होनी चाहिये किंतु यदि इसके लिये वनों को समाप्त किया जायेगा तो कृषि पर भी विपरीत प्रभाव होगा ।

यही नहीं, अपितु अफ्रीका, एशिया एवं दक्षिणी अमेरिका में आज भी स्थानांतरित कृषि की जाती है । इस कृषि में एक क्षेत्र के वनों को जलाया जाता है, तत्पश्चात् कृषि भूमि प्राप्त की जाती है तथा कुछ वर्षों तक वहाँ कृषि कर अन्य स्थानों पर पुन: यही क्रिया दोहरायी जाती है ।

एक अनुमान के अनुसार विश्व में लगभग चार करोड़ वर्ग कि.मी. क्षेत्र में बसने वाले 20 करोड़ आदिवासी इसी पद्धति से कृषि करते हैं । इस प्रकार होने वाली हानि का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि अकेले आइवरी कोस्ट में 1956 से 1966 के दस वर्षों में 40 प्रतिशत वन स्थाई रूप से नष्ट हो गये ।

भारत में इसी प्रकार की खेती नागालैण्ड, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, असम में की जा रही है । एक अनुमान के अनुसार भारत में कृषि कार्य हेतु 1951-52 एवं 1987-88 के मध्य 29.7 लाख हेक्टेयर भूमि से वनोन्मूलन किया गया ।

ii. निर्माण कार्यों हेतु वनोन्मूलन:

जनसंख्या वृद्धि, नगरों का फैलाव, आवासीय भूमि की आवश्यकता में वृद्धि, उद्योगों, रेल-लाइनों, सड़कों का विस्तार तथा नदियों पर बड़े बांधों का निर्माण भी वनोन्मूलन का प्रमुख कारण है, क्योंकि अधिक क्षेत्र की आवश्यकता वनों को साफ करके ही पूरी की जा सकती है ।

अकेले भारत में 1951-52 से 1985-86 के मध्य नदी घाटी योजनाओं के अंतर्गत 5.84 लाख हेक्टेयर, सड़क निर्माण में 73,000 हेक्टेयर, उद्योगों में 14.6 लाख हेक्टेयर और अन्य विविध कार्यों के लिये 98.3 लाख हेक्टेयर भूमि से वनों को काटा गया ।

बाद के वर्षों में इससे भी अधिक वनों का विनाश हुआ है । जितने भी बड़े बाँध बनाये जाते हैं उनमें हजारों वर्ग कि.मी. का क्षेत्र जलमग्न हो जाता है और उसी के साथ वन भी समास हो जाते हैं । ये बांध लाभदायक होते हुए भी पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डालते हैं ।

iii. काष्ठ, ईंधन एवं अन्य उपयोग हेतु वनोन्मूलन:

वनों से प्राप्त लकड़ी के विभिन्न उपयोग करना मानवीय प्रवृत्ति रही है और सभ्यता के विकास के साथ-साथ यह प्रवृत्ति कम होने के स्थान पर अधिक से अधिकतम होती जा रही है । ईंधन के लिये लकड़ी का प्रयोग मानव प्रारंभ से करता आ रहा है ।

विकसित देशों में अन्य ऊर्जा के स्रोतों का विकास हो जाने के कारण इनका प्रयोग समाप्त हो गया है, किंतु विकासशील देशों में ईंधन के रूप में लकड़ी का प्रयोग आज भी होता है और यह वनोन्मूलन का प्रमुख कारण है ।

इसी प्रकार लकड़ी का उपयोग भवन निर्माण, फर्नीचर, जहाज, रेल के डिब्बे, रेल लाइनों के स्लीपर, कागज, सेल्योलाज आदि के निर्माण के लिये किया जाता है । इनके लिये विशाल मात्रा में व्यापारिक वन कटाई होती है । कनाडा, स्केन्डिनेविया, रूस में तथा उष्ण कटिबंधीय वनों का व्यापारिक स्तर पर शोषण आज पर्यावरण संकट का कारण बन गया है ।

अनेक उद्योगों जैसे- कागज, दियासलाई, धागे, रबड़, पेंट, वार्निश, रेजिन, कत्था, प्लाईवुड, लाख आदि के लिये भी वनों को काटा जाता है । अनुमान है कि विश्व में लकड़ी उत्पादों से प्रति वर्ष 216 अरब रुपयों की आय होती है । निश्चित है कि यह वनोन्मूलन का प्रमुख कारण है ।

iv. खनिज खनन हेतु वनोन्मूलन:

खनिजों के लिये विस्तृत भूमि की खुदाई की जाती है, फलस्वरूप उन क्षेत्रों में वनों का समाप्त होना निश्चित है । विश्व के अधिकांश देशों में जहाँ व्यापारिक खनन होता है वनों के क्षेत्र में कमी आ जाती है । भारत में उड़ीसा, पं. बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश के खनिज प्रदेश इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । स्थानीय एवं क्षेत्रीय स्तर पर भी इसका प्रभाव वन विनाश के रूप में पड़ता है किंतु खनिजों से होने वाले लाभ अधिक होने से यह विनाश अवश्यम्भावी हो जाता है ।

उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त पशु चारण द्वारा एवं औद्योगिक कच्चे माल हेतु भी वन विनाश होता है । भू-स्खलन, हिम-स्खलन, वनों में लगने वाली आग भी इनके विनाश का कारण होती है । संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि वनोन्मूलन के लिये मानव की लकड़ी उत्पादों की आवश्यकता में निरंतर वृद्धि मूल कारण है ।

Essay # 3. भारत में वनोन्मूलन की समस्या (Deforestation Problem in India):

भारत में वनों का महत्व प्राचीन काल से स्वीकार किया गया है । यहाँ के प्राचीन ग्रंथों में वनों की महत्ता का वर्णन मिलता है । यही नहीं, अपितु अनेक वृक्षों को पवित्र मान कर उनकी आज पूजा की जाती है । वन प्राचीन भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं । यद्यपि विभिन्न उपयोग हेतु वनों को काटना सामान्य रहा है, किंतु इस कटाई का विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं होता था क्योंकि कटाई का प्रतिशत न्यून था और स्वाभाविक वृद्धि द्वारा उसकी पूर्ति होती रहती थी ।

जैसे-जैसे जनसंख्या की वृद्धि हुई अधिवासों का विस्तार हुआ, लकड़ी का विविध कार्यों में उपयोग होने लगा वैसे-वैसे ही वनों की कटाई भी अधिक होने लगी । मध्य काल एवं मुगल काल में वनों की कटाई होती रही किंतु स्थिति भयावह नहीं हुई किंतु ब्रिटिश काल में इसका शोषण प्रारंभ हो गया ।

अंग्रेजों ने वनों का निर्दयता से शोषण प्रारंभ किया । इसमें विशेषकर इमारती लकड़ियों कार शोषण प्रमुख था जो काटकर यूरोप को भेजी जाती थी । दक्षिणी भारत के सागौन के वनों को 1855 में अंग्रेजों ने राज्य सम्पत्ति बना लिया ।

1939 में जब द्वितीय महायुद्ध प्रारंभ हुआ तो वनों की अत्यधिक कटाई अंग्रेज ठेकेदारों द्वारा की गई । हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में भी स्लीपरों को काट कर नदियों के मार्ग से मैदानी क्षेत्रों तक लाया जाता था । इसी से व्यापारिक वनोन्मूलन का प्रारंभ हुआ ।

स्वतंत्रता के पश्चात् अनेक विकास योजनाओं, विशेषकर वृहत् बाँध, रेल मार्ग, सड़क मार्ग, उद्योग, नगर आदि के लिये तथा कृषि क्षेत्र के विस्तार के लिये वनोन्मूलन प्रारंभ हुआ जो आज भी जारी है । विभिन्न विकास कार्यों में अब तक 45 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि वनरहित हो चुकी है और दिनों-दिन यह समस्या गंभीर होती जा रही है ।

भारत में वर्ष 2009 में 7,69,512 वर्ग कि.मी. भूमि पर वनों का विस्तार अंकित किया गया, जो कुल क्षेत्र का 23.11 प्रतिशत है । भारत में वनोन्मूलन तीव्र गति से हो रहा है । इसके कारण वे सभी हैं जिनका उल्लेख किया जा चुका है ।

भारत की तीव्र जनसंख्या वृद्धि और वनों का परंपरागत ईंधन के रूप में उपयोग तथा विकास कार्यों हेतु भूमि की आवश्यकता, शहरीकरण आदि प्रमुख वन विनाश के कारण हैं, जिसके फलस्वरूप पर्यावरण स्तर गिरता जा रहा है, प्रदूषण में वृद्धि हो रही है, मरुस्थलीकरण, मृदा, अपरदन, बाढ़ आदि की समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं ।

Essay # 4. वनोन्मूलन के दुष्प्रभाव (Evil Effects of Deforestation):

वन पारिस्थितिक-चक्र को नियंत्रित एवं नियमित करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं अत: वनों का विनाश इसे असंतुलित कर पर्यावरण अवकर्षण का प्रमुख कारण बनता है जिसके परिणाम तात्कालिक ही नहीं अपितु दूरगामी भी होते हैं जो अंत में मानव सभ्यता के लिये संकट का कारण बन जाते हैं ।

वनोन्मूलन के प्रमुख दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं:

i. जलवायु का असंतुलित होना:

वन जलवायु के नियंत्रक होते हैं अर्थात् वन आर्द्रता में वृद्धि करते हैं, वर्षा में सहायक होते हैं तथा तापमान को नियंत्रित रखते हैं । जैसे ही उनका विनाश होता है, वायुमण्डल में नमी की कमी आ जाती है, परिणामस्वरूप वर्षा की मात्रा निरंतर कम होती जाती है, तापमान में वृद्धि होने लगती है, शुष्कता का विस्तार होता है अर्थात् मरुस्थलीकरण प्रारंभ हो जाता है ।

थार के मरुस्थल का एक कारण वनोन्मूलन भी है । वन विनाश से कार्बन या नाइट्रोजन चक्रों का क्रम भंग हो जाता है । वायु मण्डल में ऑक्सीजन की मात्रा पौधों द्वारा प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा स्थिर रहती है परंतु पिछले 100 वर्षों में लगभग 24 लाख टन ऑक्सीजन वायु मण्डल में समाप्त हो चुकी है तथा 36 लाख टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस की वृद्धि हो चुकी है ।

ii. मृदा-अपरदन में वृद्धि:

वन मृदा के संरक्षक होते हैं अर्थात् वृक्षों की जड़ें भूमि को जकड़े रहती हैं, जिससे वह संगठित रहती है और अपरदन नियंत्रित रहता है । दूसरी ओर वनों के कट जाने से मृदा-अपरदन अधिक हो जाता है । हिमालय के निचले ढालों पर वनों के निरंतर कट जाने से यह समस्या अत्यधिक हो गई है । इसी प्रकार वनस्पति के अभाव में मरुस्थलीकरण तीव्रता से विस्तृत होता जाता है ।

iii. बाढ़-प्रकोप में वृद्धि:

वन जल को नियंत्रित रखते हैं और पर्याप्त मात्रा में उपयोग भी करते हैं । वनोन्मूलन से जल ढालों पर तीव्र गति से प्रवाहित होकर मैदानी भागों में बाढ़ के प्रकोप का कारण बनता है । बिहार की नदियों में बाढ़ का अधिक प्रकोप इसका उदाहरण है ।

iv. प्राकृतिक जल स्रोतों का सूखना एवं भूमिगत जल स्तर का गिरना:

वनों के विनाश से अनेक प्राकृतिक जल स्रोत समास होते जा रहे हैं और इसके फलस्वरूप भूमिगत जल स्तर नीचे जा रहा है । वर्षा की कमी और तापमान में वृद्धि तथा वृक्षों द्वारा वाष्पीकरण रोकने की प्रक्रिया समास होने से इसका दुष्प्रभाव बढ़ रहा है ।

v. वन्य जीवों का विनाश:

वर्तमान विश्व में वनों के समाप्त होने से अनेक वन्य जीव विलुप्त हो गये हैं तथा अनेक प्रजातियों की संख्या में अत्यधिक कमी आ गई है । उपर्युक्त दुष्प्रभावों के अतिरिक्त पशुचारण क्षेत्रों की कमी, प्राकृतिक सुरम्यता में कमी, प्रदूषण की वृद्धि, मरुस्थलीकरण की वृद्धि, बंजर भूमि का विकास, आदिवासी जातियों के आवास की समस्या आदि प्रभाव भी वन-विनाश के हैं । वास्तव में वन पारिस्थितिक-तंत्र को परिचालित करते हैं तथा पर्यावरण को नियंत्रित रखते हैं इनका उन्मूलन उसे असंतुलित कर देता है जो पर्यावरण अवकर्षण का प्रमुख कारण है ।

Essay # 5. वनोन्मूलन का प्रबंधन (Management of Deforestation) :

वनों की क्षति को रोकने तथा वनोन्मूलन के दुष्परिणामों से बचने के लिये उचित वन प्रबंधन पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये । वर्तमान में विश्व का प्रत्येक देश वन संरक्षण की ओर ध्यान दे रहा है । सभी देशों में वनों को संरक्षित करने की ओर प्रशासन ध्यान दे रहा है, नियम बनाये जा रहे हैं, नीतियाँ निर्धारित की जा रही हैं, यहाँ तक कि आंदोलन भी चलाये जा रहे हैं, किंतु वनों का विनाश आज भी तीव्र गति से हो रहा है । इसके लिये कतिपय उपाय वन प्रबंधन के अंतर्गत किये जा सकते हैं ।

जो निम्नांकित हैं:

i. वनों के संरक्षण संबंधी नियमों का कठोरता से पालन किया जाये ।

ii. वन काटने और वृक्षारोपण में अनुपात रखना ।

iii. लगाये गये वृक्ष जब वृद्धि की अवस्था में हों तो उन्हें काटने पर रोक ।

iv. संपूर्ण वृक्ष के स्थान पर उनकी शाखाओं को काटना ।

v. राष्ट्रीय पार्क एवं वन्य जीवों के पार्क बना कर वनों को सुरक्षित रखना ।

vi. ईंधन के लिये वनों की कटाई पर रोक एवं अन्य ईंधन उपलब्ध कराना ।

vii. फर्नीचर एवं अन्य सजावट के सामानों में लकड़ी का प्रयोग सीमित कर अन्य वैकल्पिक साधनों का विकास करना ।

viii. वनों की आग से सुरक्षा ।

ix. सामाजिक वानिकी को प्रोत्साहन देना ।

x. तीव्र वृद्धि करने वाले एवं उपयोगी वृक्षों का रोपण ।

xi. सघन वृक्षारोपण कार्यक्रम का विस्तार ।

xii. पारिस्थितिकी के अनुरूप वृक्षारोपण ।

xiii. संपूर्ण वन संपदा का सर्वेक्षण एवं उन्हें श्रेणीबद्ध करना ।

xiv. राष्ट्रीय वन नीति एवं वन विकास हेतु ‘मास्टर प्लान’ बनाना ।

xv. वनों के महत्व एवं उनके उन्मूलन से होने वाली हानियों को जनता तक पहुँचाना ।

वास्तव में वन संरक्षण को एक जन आंदोलन बनाना आवश्यक है । भारत के चिपको आंदोलन का उदाहरण स्पष्ट करता है कि सामान्य जनता एवं क्षेत्रीय निवासी ही वनोन्मूलन को रोक सकते हैं । साइलेण्ट वेली परियोजना, नर्मदा परियोजना, टेहरी-गढ़वाल परियोजना आदि अनेक योजनाओं द्वारा पर्यावरण पर प्रभाव विशेषकर वन विनाश की ओर ध्यान दिलाने का सराहनीय कार्य जनता ने किया है । वनोन्मूलन सरकार एवं जनता के सामूहिक प्रयासों से ही रोका जा सकता है ।

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  3. World Nature Conservation Day Speech in Hindi

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  4. Hindi Speech on "Deforestation", " वनों की कटाई पर भाषण" Essay

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  5. वनों की कटाई पर भाषण || Speech on Deforestation in Hindi

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  6. वनोन्मूलन पर निबंध (Deforestation Essay in Hindi)

    वनोन्मूलन पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Deforestation in Hindi, Vanonmulan par Nibandh Hindi mein) निबंध 1 (250 शब्द) - Vanonmulan par Nibandh.

  7. Essay on Deforestation in Hindi

    इसलिए छात्रों को essay on deforestation in hindi के बारे में निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। इस बारे में अधिक जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक

  8. Speech on Deforestation for Students and Children

    Get the Huge list of 100+ Speech Topics here. Causes of Deforestation. Agricultural plantations are one of the major causes of deforestation. Demand for commodities like soybeans and palm oil has increased exponentially worldwide. This results in the demand for more land and cutting down trees. Logging is another big cause of deforestation.

  9. वनों की कटाई पर निबंध

    वनों की कटाई पर निबंध | Essay on Deforestation in Hindi! Essay # 1. वन कटाई का अर्थ (Meaning of ...

  10. वनों की कटाई पर निबंध

    वनों की कटाई पर निबंध | Vanon Kee Kataee Par Nibandh | Essay on Deforestation in Hindi. Essay on Deforestation Essay Contents: वनोन्मूलन का अर्थ (Meaning of Deforestation) वनोन्मूलन के कारण (Causes of Deforestation) भारत में वनोन्मूलन की समस्या ...