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  • स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): 200 और 500+ शब्दों में निबंध लिखना सीखें

Updated On: September 02, 2024 06:37 pm IST

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है। स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन (Ram Krishna Mission) और रामकृष्ण मठ (Ramakrishna Math) की स्थापना की थी। हम उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) मनाते हैं। वह आध्यात्मिक विचारों वाले अद्भूत बच्चे थे। इनकी शिक्षा अनियमित थी, लेकिन इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की। श्री रामकृष्ण से मिलने के बाद इनका धार्मिक और संत का जीवन शुरु हुआ और उन्हें अपना गुरु बना लिया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारतीय हिन्दू धर्म के दर्शन से पश्चिमी देशों को परिचित कराया। ये भी पढ़ें: - शिक्षक दिवस पर भाषण

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 200 शब्दों में (Essay on Swami Vivekananda in Hindi in 200 words)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद जी उन महान व्यक्तियों में से एक है, जिन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया। अपने शिकागों भाषण द्वारा उन्होंने पूरे विश्व भर में हिंदुत्व के विषय में लोगो को जानकारी प्रदान की, इसके साथ ही उनका जीवन भी हम सबके लिए एक सीख है। स्वामी विवेकानंद जी ने महान कार्यों द्वारा पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन (Early life of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह बचपन में नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे। इनकी जयंती को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। वह विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील, और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। वह बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे और अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे। स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति वाले थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए काफी परेशान थे। स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिन्दू भगवान की मूर्तियों (भगवान शिव, हनुमान आदि) के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित थे। वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे, उनके एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया।” स्वामी विवेकानंद जी का 1871 (जब वह 8 साल के थे) में अध्ययन के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन कराया गया। वह सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्रों और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया। ये भी पढ़ें- हिंदी दिवस पर निबंध

स्वामी विवेकानंद का योगदान (Contribution of Swami Vivekananda)

उन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में ऐसे-ऐसे कार्य किये थे कि जिससे हमारे देश की अनेकों पीढ़ियों का मार्गदर्शन हो सकता है। उनके जीवन में सबसे प्रसिद्ध घटना शिकागो की थी। वह घटना अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन की थी, जहाँ वह हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जहाँ उनके भाषण की शुरुआत ने ही वहाँ की पूरी जनता का मन जीत लिया था।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500+ शब्दों में (Essay on Swami Vivekananda in Hindi in 500+ words)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in Hindi): स्वामी विवेकानंद एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर वे विवेकानंद बने। अपने कार्यों द्वारा उन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन किया। यहीं कारण है कि वह आज के समय में भी लोगो के प्रेरणास्त्रोत हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda) - स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में कोलकत्ता शहर में एक हाईकोर्ट के वकील के घर में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था। स्वामी विवेकानंद जी का अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। नरेन्द्र के पिता और उनकी मां के धार्मिक, प्रगतिशील व तर्कसंगत रवैया ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता की। बचपन से ही नरेन्द्र अत्यन्त कुशाग्र बुद्धि के तो थे ही नटखट भी थे। कभी भी शरारत करने से नहीं चूकते थे फिर चाहे वे उनके साथी के साथ हो या फिर मौका मिलने पर अपने अध्यापकों के साथ। परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के संस्कार गहरे होते गये। माता-पिता के संस्कारों और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही ईश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की लालसा दिखायी देने लगी थी।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda) - स्वामी विवेकानंद का योगदान एंव महत्व

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (essay on swami vivekananda) - स्वामी विवेकानद का ह्रदय परिवर्तन.

एक दिन वह श्री रामकृष्णसे मिले, तब उनके अंदर श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव के कारण बदलाव आया। श्री रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के बाद वह स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे। वास्तव में स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda) - स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदु धर्म के विषय में लोगो का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं। यदि हम उनके बताये गये बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

10 लाइनों में स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay on Swami Vivekananda in 10 lines)

  • स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेन्द्रनाथ विश्वनाथ दत्त है, नरेन्द्रनाथ यह उनका जन्म नाम है।
  • स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था।
  • स्वामी विवेकानंद के जन्म दिवस के दिन को राष्ट्रीय युवा दिन के रूप में मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था और वह पेशे से हाई कोर्ट के वकील थे।
  • स्वामी विवेकानंद के गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था।
  • स्वामी विवेकानंद ने कॉलेज में इतिहास, दर्शन, साहित्य जैसे विषयो का अध्ययन किया था और बी. ए. के परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हो गये थे।
  • स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है।
  • स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे।
  • जब स्वामी विवेकानंद शिकागो में भाषण देने गए थे तो उन्होंने सभी को “मेरे अमेरिका के बहनो और भाइयो” कह कर संबोधित किया था, जिस वजह से वहां उपस्थित सभी का दिल उन्होंने जित लिया।
  • स्वामी विवेकानंद जी ने 4 जुलाई 1902 को अपने शरीर का त्याग किया था।

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विवेकानन्द ने निरंतर आत्म-सुधार और आत्म-विकास पर जोर दिया। उन्होंने हमें सिखाया कि  हमें हर दिन बेहतर बनने का प्रयास करना चाहिए । उनका यह कथन, "सारी शक्ति आपके भीतर है; आप कुछ भी और सब कुछ कर सकते हैं," व्यक्तियों को व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास के लिए निरंतर प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है।

स्वामी विवेकानंद का मानना था कि “मनुष्य का संघर्ष जितना कठिन होगा, उसकी जीत भी उतनी बड़ी होगी। जितना बड़ा आपका लक्ष्य होगा, उतना बड़ा आपका संघर्ष”।

ज्ञान व्यक्ति के मन में विद्यमान है और वह स्वयं ही सीखता है. मन, वचन और कर्म की शुद्ध आत्मा नियंत्रण है। शिक्षा से व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास होता है।

स्वामी विवेकानंद जी का नारा - "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।"

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे।

स्वामी विवेकानंद रोबीले, शालीन और गरिमावान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। उदास और पतित हिंदुओं के सहायक थे।

स्वामी  जी के अनमोल  विचार

संगति आप को ऊंचा उठा भी सकती है और यह आप की ऊंचाई से गिरा भी सकती है। ...

 उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।

 तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। ...

सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।

विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्ता था, वे कलकत्ता के एक संपन्न बंगाली परिवार से थे। वे विश्वनाथ दत्ता और भुवनेश्वरी देवी की आठ संतानों में से एक थे। मकर संक्रांति के अवसर पर उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके पिता एक वकील और समाज में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व थे।

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध

In this article, we are providing an Essay on Swami Vivekananda in Hindi | Swami Vivekananda Par Nibandh स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी | Nibandh in 100, 200, 250, 300, 500, 1000, 12000 words For Students & Children.

दोस्तों आज हमने Swami Vivekananda Essay in Hindi लिखा है स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 ,10, और 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए है। Swami Vivekananda information in Hindi essay & Speech.

Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

( Essay-1 ) Short Swami Vivekananda Nibandh- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 200 words )

इनका जन्म 12 जनवरी 1863 ई० को कलकत्ता के दत्त परिवार में हुआ था। इनके जन्म का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। संन्यासी होने पर यह नाम बदल कर विवेकानन्द रखा गया। छात्रावस्था में ही उन्होंने यूरोपीय दर्शन-शास्त्र में अच्छी जानकारी प्राप्त कर ली थी। अपने विद्यार्थी जीवन में ही वे नास्तिक हो गये थे। उन दिनों सारे भारत में धर्म-विप्लव मचा हुआ था। बंगाल में ईसाई-प्रचार जोरों पर था । ब्रह्म समाज की नींव पड़ चुकी थी। कृष्णमोहन बनर्जी, कालीचरण बनर्जी, माईकेल मधुसूदन दत्त जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति ईसाई धर्म ग्रहण कर चुके थे। इस समय नरेन्द्रनाथ का मन भी ब्रह्म समाज की ओर झुका, पर शीघ्र ही उनका परिचय महात्मा रामकृष्ण झुका, परमहंस से हो गया। परमहंस पहुँचे हुए महात्मा थे। उन्होंने नरेन्द्र से कहा, ‘क्या तुम कोई भजन गा सकते हो?’ इन्होंने कहा, ‘हाँ, गा सकता हूँ।’ तब उन्होंने तीन भजन गाये। यह सुनकर परमहंस प्रसन्न हो गये और उन्होंने नरेन्द्रमाथ को अपना शिष्य बना लिया।

फिर तो उनकी संगत पाकर नरेन्द्रनाथ स्वामी विवेकानन्द बन गये और देश-विदेश में इसी नाम से विख्यात हो गये। इन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इन्होंने अमेरिका में जाकर वेदान्त का प्रचार किया। ये 4 जुलाई 1902 ई० को बेलूर में मृत्यु को प्राप्त कर सदा के लिए अमर हो गये।

जरूर पढ़े- 10 Lines on Swami Vivekananda in Hindi

( Essay-2 ) Swami Vivekananda in Hindi Essay- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 250 to 300 words )

स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त तथा माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनका जन्म कलकत्ता में 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था।

बालक नरेंद्र बड़ा नटखट था । वह घर-भर में उत्पात मचाता था। उसे भूतप्रेतों में बिलकुल विश्वास नहीं था । वह कभी-कभी अपनी उम्र के बालकों के साथ घंटों ध्यान-मग्न बैठ जाता था।

पाँच वर्ष की अवस्था में नरेंद्र को स्कूल में भर्ती कराया गया। वह पढ़ता कम था और खेलता अधिक था। उसके सहपाठी उसे अपना नेता ” मानते थे। सन् 1881 में दर्शन-शास्त्र में एम.ए. परीक्षा उत्तीर्ण की। रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद वह विवेकानंद हो गया।

रामकृष्ण परमहंस की सलाह पर विवेकानंद भारतीय दर्शन और भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार में लग गये। उन्होंने एक बार अमेरिका में आयोजित सर्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया। वहाँ उनके भाषण को सुनकर लोग मंत्र-मुग्ध हो गये। उन्होंने हिन्दू धर्म की विशेषता उन्हें बतायी। उनके भाषण को सुनने के बाद अमेरिका के लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति जो भ्रामक विचार थे, वे दूर हो गये।

विवकानंद ने समाज-सेवा करने के उद्देश्य से भारत तथा विदेशों में कई स्थानों पर ‘रामकृष्ण मिशन’ की शाखायें खोली।

विवेकानंद ने सारे भारत की यात्रा की। उन्होंने लोगों की दयनीय दशा अपनी आँखों से देखी। उन्होंने अपने भाषणों से सोयी हुई भारत जाति को जगाने का प्रयत्न किया। उन्होंने युवकों से कहा कि वे अपनी मांसपेशियों को फौलाद की बनायें। उन्होंने कहा – “युद्ध नहीं, सहायता; ध्वंस नहीं, निर्माण; भेदभाव नहीं, सामंजस्य।” उनकी मृत्यु 4 जुलाई सन् 1902 को हुई।

( Essay-3 ) Long Essay on Swami Vivekananda in Hindi- स्वामी विवेकानंद पर निबंध ( 1000 words )

भूमिका

भारत महापुरूषों की धरती है जहाँ पर बहुत से महापुरुष हुए हैं। बहुत से मुनि भी हुए है जिन्होंने अपने अध्यातम और विचारों से पूरे विश्व में भारत को प्रसिद्ध किया है। भारत के महान संत स्वामी विवेकानंद जी ने भारतीय संस्कृति और अध्यातम से पूरे विश्व को प्रख्यात बनाया था। स्वामी विवेकानंद जी को भारतीय दर्शन, संस्कृति, साहित्य, धर्म आदि का बहुत ही ग्यान था।

बचपन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकता में हुआ था। इनका जन्म एक क्षत्रिय परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत था और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र रखा गया था। इनके पिता कोलकता हाई कॉर्ट के एक नामी वकील थे और उन्हें अंग्रेजी और फारसी भी अच्छे से जानते थे। नरेंद्र की माता बहुत ही धार्मिक थी। नरेंद्र बचपन से बहुत ही मेधावी थे लेकिन उन्हें धर्म और प्रभू में आशंका थी। पिता के पश्चिमी संस्कृति के ग्याता होने और माता के धार्मिक होने से नरेंद्र को दोनों ही चीजों का पूर्ण ग्यान मिला। नरेंद्र हर चीज जानने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति थे।

शिक्षा

नरेंद्र पढ़ने में बहुत ही तथा। थे। उनकी आरंभिक पढ़ाई कोलकता में ही हुई थी। जब वह तीसरी कक्षा में थे तो उनकी पढ़ाई को बीच मे ही रोकना पड़ा क्योंकि उनके पूरे परिवार को जरूरी काम से कोलकता सो बाहर जाना पड़ा। तीन साल बाद कोलकता लौटने पर उनकी मेहनत को देखकर उन्हें स्कूल में फिर से प्रवेश दिया गया। नरेंद्र ने तीन साल का पाठ्य क्रम एक साल में ही कर लिया था। 1889 में नरेंद्र ने मैट्रिक की परिक्षा उत्तीर्ण की और कोलकता के जनरल असैंबली नामक कॉलज में दाखिला लिया। वहाँ उन्होंने इतिहास, दर्शन ,साहित्य, राजनीतिक ग्यान आदि का अध्ययन की। नरेंद्र ने बी.ए. की परिक्षा भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी। नरेंद्र को एक प्रोफेसर ने कहा था कि उन्हें बहुत से विद्यार्थि मिले लेकिन उन्होंने नरेंद्र जैसा मेधावी और कौशल विद्यार्थि कभी नहीं देखा।

आध्यातमिक ग्यान

नरेंद्र की सभी चीजों के बारे में जानने की इच्छा के चलते वह ब्रहमसमाज का हिस्सा बने लेकिन उन्हें संतुष्टी नहीं मिली। फिर वह दक्षिणेश्वर के रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए। उनके आध्यातमिक ग्यान से प्रभावित होकर नरेंद्र ने उन्हें अपना गुरू बना लिया। वह रामकृष्ण की हर बात का अनुसरण करते थे और उनके सच्चे अनुयायी बन गए। इसी दौरान नरेंद्र के पिता का देहांत हो गया और घर की सारी जिम्मेदारी उनके कंधो पर आ गई। कमजोर आर्थिक स्थिति के समय नरेंद्र ने जब गुरू से सहायता माँगी तो उन्होंने कहा कि काली माता के मंदिर जाकर याचना करे । रामकृष्ण काली माता के भक्त थे। नरेंद्र ने मंदिर जाकर धन की बजाय बुद्धि और ग्यान की याचना की। एक दिन गुरू रामकृष्ण ने अपनी साधना के वक्त नरेंद्र को तेज प्रदान किया और तभी से वह स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।

नरेंद्र गुरू के रूप में

गुरू रामकृष्ण की मृत्यु के बाद स्वामी विवेकानंद कोलकता छोड़कर वरादनगर आश्रम में आकर रहने लगे। 25 साल की उमर में उन्होंने गेहुँआ चोला पहनना शुरू कर दिया था। वरादनगर आश्रम में आकर उन्होंने धर्म और संस्कृति का अध्ययन किया। विशेष रूप से उन्होंने हिंदु धर्म के बारे में जाना। वह भारत की संस्कृति से बहुत ही प्रभावित हुए। इन सबका अध्ययन करने के बाद वह भारत भ्रमण पर निकल पड़े। वह राज्यस्थान ,जुनागड़ से होते हुए दक्षिण भारत पहुँचे। वहाँ से वह पोंडीचेरी और मद्रास गए। इस सब के दौरान उनके विचारों से प्रभावित होकर उनके बहुत से शिष्य बन चुके थे।

विदेश यात्रा

1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में होने वाले विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए स्वामी विवेकानंद के शिष्यों ने उनसे बहुत आग्रह किया। शिष्यों के आग्रह करने पर स्वामी विवेकानंद बहुत सी परेशानियों को पार कर शिकागो पहुँचे। वहाँ उन्हें सम्मेलन में बोलने का अंतिम अवसर मिला और उन्होंने हिंदु धर्म का नेतृत्व किया। उस समय विदेशों में भारत के लोगों को हीन भावना से देखा जाता था। अपने भाषण से उन्होंने सभी लोगों को भावूक कर दिया। लोग भारतीय संस्कृति और उनके आध्यातमिक ग्यान से बहुत ही प्रभावित हुए। स्वामी विवेकानंद ने हिंदु धर्म को विदेशों में भी प्रसिद्ध किया। उन्होंने चार साल तक अमेरिका और युरोप के बहुत सारे शहरों में भाषण दिया। विदेशों में भी स्वामी विवेकानंद के बहुत से अनुयायी बन गए।

मृत्यु

स्वामी विवेकानंद चार साल विदेश में भारतीय संस्कृति को प्रख्यात बनाने के बाद जब भारत लौटे तो लोगों नें उनका बड़ी धुमधाम से स्वागत किया। स्वामी विवेकानंद का विश्वास था कि बिना अध्यातमिक ग्यान के देश उन्नति नहीं कर सकता। उन्होंने समाज कल्याण हेतु अध्यातम ग्यान देने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। जिसके विकास में वह इतने व्यस्त हो गए कि बिमार पड़ गए। 4 जुलाई, 1902 में रात के नौ बजे 39 साल की कम उमर में ही स्वामी विवेकानंद का देहांत हो गया।

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद एक महान संत हुए है। उनका मानना था कि असली पूजा गरीबों की मदद करने में है। वह मानवता रो सबसे बड़ा धर्म मानते थे। स्वामी विवेकानंद महिलाओं का बहुत ही आदर करते थे। वह हर महिला को घर की रानी बताते थे। स्वामी विवेकानंद ने बहुत ली पुस्तकें भी लिखी है। वह धार्मिक मुद्दों के साथ साथ सामाजिक मुदद्धों पर भी भाषण देते थे। उनके भाषण का प्रभाव उस समय के स्वतंत्रता सैनानियों पर पड़ा क्योंकि उस समय भारत अंग्रेजों के अधीन था। स्वामी विवेकानंद एक सच्चे देशभक्त भी थे और उन्होंने योग, राजयोग, और ग्यानयोग जैसे ग्रंथ भी लिखे थे। सरकार द्वारा स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन यानि कि 12 जनवरी को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज भी जब कभी महान संतो की बात की जाती है तो स्वामी विवेकानंद जी का नाम बड़े ही आदर से लिया जाता है।

( Essay -4 ) Essay on Swami Vivekananda in Hindi ( 1200 words )

प्रस्तावना :

सम्पूर्ण संसार को रूढ़िगत परम्पराओं से मुक्त कर नवीन और स्वस्थ ज्ञान-ज्योति प्रदान करने वाले महापुरुष इस धरती पर कभी-कभी ही अवतरित होते हैं। ऐसे भी महापुरुषों का उदय इस धरती पर बहुत समय बाद ही होता है, जो न केवल अपने देश अपितु पूरे विश्व को अपने विवेक और प्रज्ञा से चकित कर देते हैं और अपने ज्ञान की ज्योति से पूरे विश्व को प्रकाशमान कर देते हैं। स्वामी विवेकानन्द का नाम ऐसे महापुरुषों में सादर उल्लेखनीय है।

जीवन-परिचय :

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, सन् 1863 ई. में पौष संक्रान्ति के दिन प्रातः 6 बजकर 33 मिनट 33 सेकण्ड पर कलकत्ता में हुआ था। इनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था। इनके पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। श्रीमती भुवनेश्वरी देवी शिवभक्ति परायणा महिला थीं। उन्हें विश्वास हो गया था कि उन्हें जो पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है, वह वीरेश्वर शिव की कृपा का परिणाम है। इसलिए पुत्र का नाम वीरेश्वर रखा गया। लोग इन्हें घर पर वीरेश्वर बिले के नाम से पुकारते थे। बिले बचपन से ही बहुत मेधावी, कुशाग्र बुद्धि और तेजस्वी, अप्रतिम साहसी, सहृदय थे। और कहावत भी है- ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात।’ बाद में इन्हें नरेन्द्रनाथ के नाम से भी जाना जाने लगा। प्रज्ञा की उपलब्धि होने पर उनका नाम विवेकानन्द पड़ा और इसी नाम से वे संसार में प्रसिद्ध हुए।

स्वामी विवेकानन्द के पिता अद्भुत विद्वान, विद्यानुरागी, सदाशयी और सज्जन व्यक्ति थे। पिता के इस अद्भुत व्यक्तित्व की छाप पुत्र पर पड़ना स्वाभाविक ही था। बिले बचपन से ही बुद्धिमान, साहसी और स्मृतिधर थे। स्मरण-शक्ति बड़ी ही प्रबल थी। वह बचपन से ही स्वभाव से जिद्दी थे। इस स्वभाव वाले अपने पुत्र को गोद में लिए हुए भुवनेश्वरी देवी कहा करती थीं- “मैंने बहुत मन्नत करके शिव के मंदिर में धरना देकर एक पुत्र की कामना की थी, परन्तु उन्होंने भेज दिया एक भूत। वास्तव में बालक नरेन्द्रनाथ उर्फ तेजेश्वर बिले किसी पर विश्वास नहीं करते थे। वे प्रत्यक्ष प्रमाण में ही विश्वास करते थे। बालक तेजेश्वर बिले बचपन से ही रूढ़िवाद के प्रबल विरोधी थे और भ्रामक बातों में विश्वास नहीं करते थे। भूत-प्रेत पर भी उन्हें एकदम विश्वास नहीं था। यह भी उनके आरंभिक स्वभावों में से एक अद्भुत स्वभाव रहा ।

शिक्षा-दीक्षा :

स्वामी जी की आरंभिक शिक्षा अंग्रेजी स्कूलों में हुई। सन् 1871 में नरेन्द्रनाथ मेट्रोपोलिटन स्कूल से एण्ट्रेंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। मलेरिया हो जाने के कारण उनके अध्ययन में व्यवधान पड़ा। स्वस्थ होकर प्रेसीडेंसी कॉलेज छोड़कर जनरल असेम्बली (स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में दाखिल हुए। उन्होंने उसी कॉलेज से 1881 में एफ.ए. तथा 1883 में बी.ए. परीक्षा पास की। वे पढ़ने में इतने मेधावी थे कि अठारहवें वर्ष में प्रवेश करते ही इन्होंने एम. ए. परीक्षा की तैयारी आरम्भ कर दी। लेकिन उनका मन आध्यात्मिक चिन्तन में लगने लगा। वे सांसारिक विषमता और भेद-भावों से अत्यधिक चिन्तित और अशान्त हो गए। इस प्रकार वे व्याकुल होकर कलकत्ता के विभिन्न धार्मिक व्यक्तियों के पास आने-जाने लगे। इस दौरान अपने पिता द्वारा सुनिश्चित किए गये विवाह के प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकृत कर दिया- मैं किसी तरह विवाह नहीं करूँगा।

बालक नरेन्द्रनाथ बचपन से ही गम्भीर स्वभाव के थे। वे राम, सीता, शिव की पूजा किया करते थे। उनके बालमन में साधु-संन्यासियों के प्रति प्रगाढ़ श्रद्धा थी। वे सोने से पूर्व ज्योति-दर्शन करना कभी भी नहीं भूलते। बालक की जैसे-जैसे उम्र बढ़ती गई, उनकी मेधाशक्ति प्रखर होती गयी। विद्यालय में वे अल्पायु में ही वाद-विवाद में, आलोचना-प्रत्यालोचना करने में तथा खेलकूद में सबसे अग्रणी रहते। विद्यालय में उनकी धाक जम गयी थी।

इनका मन निरन्तर ईश्वरीय-ज्ञान की उत्कंठा-जिज्ञासा के प्रति अशान्त होता गया। अपनी उस आध्यात्मिक प्यास को बुझाने के लिए वे श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलने उनके आश्रम में गये। वे दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में रहते थे और काली जी की पूजा किया करते थे। यह स्थान कलकत्ता के बहुत निकट था। उनकी कोई कामना न थी। वे भगवान् के अतिरिक्त और किसी सांसारिक विषय को बिल्कुल नहीं जानते थे। वे सदैव बच्चों की तरह काली माता की मूर्ति का सदैव गुणगान किया करते थे।

विश्व को सन्देश :

स्वामी जी को जब रामकृष्ण परमहंस ने निकट से देखा, तो उनमें उन्हें ईश्वर का अंश दिखाई दिया। उन्होंने स्वामी जी को देखा और कहा- “तुम कोई साधारण मनुष्य नहीं हो। ईश्वर ने तुझे समस्त मानव जाति के कल्याण के लिए ही भेजा है।” स्वामी जी परमहंस के मुँह से यह सुन अत्यधिक उत्साहित हुए। उन्होंने स्वयं को स्वामी रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर दिया। पिता की मृत्यु के उपरान्त स्वामी जी ने संन्यास लेने का निश्चय कर लिया। इनके इस निश्चय को देखकर स्वामी रामकृष्ण ने उन्हें समझाते हुए कहा- “नरेन्द्र ! तू और मनुष्यों की तरह केवल अपनी मुक्ति की इच्छा कर रहा है। संसार में लाखों मनुष्य दुखी हैं। सम्पूर्ण मानवता दुखी है, आखिर उसका उद्धार कौन करेगा?”

स्वामी रामकृष्ण परमहंस का आदेश स्वामी जी ने शिरोधार्य किया और उनसे दीक्षा ली। स्वामी रामकृष्ण परमहंस योग्य शिष्य पाकर प्रसन्नता पूर्वक दीक्षित करते हुए कहा – “संन्यास का वास्तविक उद्देश्य मुक्त होकर लोक-सेवा करना है। केवल अपने ही मोक्ष की चिन्ता करने वाला संन्यासी स्वार्थी होता है। साधारण संन्यासियों की तरह एकान्त में बैठकर अपना अमूल्य जीवन नष्ट न करना। भगवान के दर्शन करने हों तो मनुष्यमात्र की सेवा करना। नर में ही नारायण का वास होता है।

स्वामी रामकृष्ण के निर्वाणोपरान्त उनके सभी शिष्यों का भार स्वामी विवेकानन्द ने अपने सिर पर ले लिया। इसके बाद उन्होंने शास्त्रों का गहन अध्ययन-मनन किया। सर्वप्रथम स्वामीजी ज्ञानोपदेश देने और ज्ञान-प्रचार के लिए अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में गए। वहाँ पर जाकर उन्होंने अपने अद्भुत ज्ञान से सबको चकित कर दिया। 31 मई, सन् 1883 में उन्होंने अमेरिका के शिकागो शहर में हुए सर्वधर्म-सम्मेलन में भाग लिया। सितम्बर, सन् 1883 को आरम्भ हुए इस सम्मेलन में जब उन्होंने सभी धर्माचार्यों और धर्माध्यक्षों के सामने भाइयों-बहनों का सम्बोधन कर अपना वक्तव्य आरम्भ किया, तब वहाँ पर उपस्थित सभी लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से आपका जोरदार स्वागत किया। स्वामी विवेकानन्द ने उस धर्म-सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए बड़े ही प्रभावशाली ढंग से इस प्रकार कहा- “संसार में एक ही धर्म है और उसका नाम है- मानवधर्म। इसके प्रतिनिधि विश्व में समय-समय पर रामकृष्ण, क्राइस्ट, रहीम आदि होते रहे हैं। जब ये ईश्वरीय दूत मानव-धर्म के संदेशवाहक बनकर विश्व में अवतरित हुए थे, तो आज संसार भिन्न-भिन्न धर्मों में क्यों विभक्त है? धर्म का उद्गम तो प्राणी मात्र की शान्ति के लिए हुआ है, परन्तु आज चारों ओर अशान्ति के बादल मंडराते हुए दिखाई दे रहे हैं हैं और ये दिन-प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। अतः विश्व-शान्ति के लिए सभी लोगों को मिलकर मानवधर्म की स्थापना और उसे सुदृढ़ करने का प्रयत्न करना चाहिए। उपर्युक्त वक्तव्य से यह धर्म-सभा ही प्रभावित नहीं हुई, अपितु पूरा विश्व ही स्वामी जी के धर्मोपदेशों का अनुयायी बन गया। आज भी स्वामी जी के उस शान्तिप्रद धर्म-संदेश से विश्व के अनेक राष्ट्र भलीभाँति प्रभावित हैं।

उपसंहार :

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि स्वामी जी के दिव्य उपदेश सदैव विश्व का कल्याण करते रहेंगे। यों तो स्वामी विवेकानन्द का निर्वाण 4 जुलाई, सन् 1902 ई. में हो गया तथापि उनके द्वारा प्रज्वलित आध्यात्मिक ज्ञानज्योति से समस्त विश्व का अज्ञानाधंकार दूर करने का प्रयत्न हो रहा है।

स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद में भाग कब लिया था?

11 सितंबर, 1893 स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद में भाग लिया था

स्वामी विवेकानंद के पिता क्या कार्य करते थे?

-इनके पिता कोलकता हाई कॉर्ट के एक नामी वकील थे

स्वामी विवेकानंद के बचपन का क्या नाम है?

-बचपन में स्वामी विवेकानंद का नाम नरेंद्र रखा गया था

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इस लेख के माध्यम से हमने Swami Vivekananda  Par Nibandh | Essay on My Swami Vivekananda in Hindi  का वर्णन किया है और आप यह निबंध नीचे दिए गए विषयों पर भी इस्तेमाल कर सकते है।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi)

स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद एक महान हिन्दू संत और नेता थे, जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम उनके जन्मदिन पर प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं। वह आध्यात्मिक विचारों वाले अद्भूत बच्चे थे। इनकी शिक्षा अनियमित थी, लेकिन इन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बीए की डिग्री पूरी की। श्री रामकृष्ण से मिलने के बाद इनका धार्मिक और संत का जीवन शुरु हुआ और उन्हें अपना गुरु बना लिया। इसके बाद इन्होंने वेदांत आन्दोलन का नेतृत्व किया और भारतीय हिन्दू धर्म के दर्शन से पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (100 – 200 शब्द) – Swami Vivekananda par Nibandh

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वे एक महान भारतीय संत, विचारक और समाज सुधारक थे। उनके गुरु, श्री रामकृष्ण परमहंस, ने उनके जीवन में गहरा प्रभाव डाला। स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और अध्यात्म का प्रचार पूरी दुनिया में किया।

उन्होंने 1893 में शिकागो में विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया और उन्होंने भारत की महानता को दुनिया के सामने रखा, वहां उनके भाषण ने सभी को प्रभावित किया। उन्होंने कहा, “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए”, उनके ये शब्द आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी समाज सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सफलता सेवा और परिश्रम से मिलती है। उनका निधन 4 जुलाई 1902 को हुआ, लेकिन उनकी शिक्षाएं और विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं। वे हमेशा युवाओं को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देते रहेंगे। उनके जीवन और कार्यों से हमें सच्ची देशभक्ति और मानवता की सेवा का पाठ मिलता है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (250 – 300 शब्द) – Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद भारत में पैदा हुए महापुरुषों में से एक है। अपने महान कार्यों द्वारा उन्होंने पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

विश्वभर में ख्याति प्राप्त संत, स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में हुआ था। वह बचपन में नरेन्द्र नाथ दत्त के नाम से जाने जाते थे। इनकी जयंती को भारत में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है। वह विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील, और भुवनेश्वरी देवी के आठ बच्चों में से एक थे। वह बहुत धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे और अपने संस्कृत के ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे।स्वामी विवेकानंद सच बोलने वाले, अच्छे विद्वान होने के साथ ही एक अच्छे खिलाड़ी भी थे। वह बचपन से ही धार्मिक प्रकृति वाले थे और परमेश्वर की प्राप्ति के लिए काफी परेशान थे।

स्वामी विवेकानद का ह्रदय परिवर्तन

 एक दिन वह श्री रामकृष्णसे मिले, तब उनके अंदर श्री रामकृष्ण के आध्यात्मिक प्रभाव के कारण बदलाव आया। श्री रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु मानने के बाद वह स्वामी विवेकानंद कहे जाने लगे।

वास्तव में स्वामी विवेकानंद एक सच्चे गुरुभक्त भी थे क्योंकि तमाम प्रसिद्धि पाने के बाद भी उन्होंने सदैव अपने गुरु को याद रखा और रामकृष्ण मिशन की स्थापना करते हुए, अपने गुरु का नाम रोशन किया।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान तथा शब्दों द्वारा पूरे विश्व भर में हिंदु धर्म के विषय में लोगो का नजरिया बदलते हुए, लोगो को अध्यात्म तथा वेदांत से परिचित कराया। अपने इस भाषण में उन्होंने विश्व भर को भारत के अतिथि देवो भवः, सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकार्यता के विषय से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुष सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं। यदि हम उनके बताये गये बातों पर अमल करें, तो हम समाज से हर तरह की कट्टरता और बुराई को दूर करने में सफल हो सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (300 – 400 शब्द) – Swami Vivekananda Essay in Hindi

स्वामी विवेकानंद, एक महान भारतीय संन्यासी, दार्शनिक, विचारक और समाज सुधारक थे जिनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद का जीवन और उनकी शिक्षाएँ आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

स्वामी विवेकानंद : प्रेरणादायक जीवन और उनकी शिक्षाएँ

उनका बचपन से ही आध्यात्मिकता की ओर झुकाव था। उन्होंने बचपन में ही वेद, उपनिषद और भगवद गीता का गहन अध्ययन किया। 1881 में, उन्होंने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से दीक्षा ली और सन्यास का मार्ग अपनाया। रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति का मार्ग दिखाया।

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय संस्कृति और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए विश्व भ्रमण किया। 1893 में, उन्होंने शिकागो, अमेरिका में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया था जहां उनके भाषण ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था। उनके संबोधन “मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों” ने लोगों के दिलों को छू लिया और भारतीय संस्कृति के प्रति आदर और सम्मान उत्पन्न किया।

विवेकानंद ने अपने जीवन में युवाओं को विशेष महत्व दिया। उनका मानना था कि युवा शक्ति ही देश की असली ताकत है। उन्होंने युवाओं को अपने जीवन में अनुशासन, समर्पण और उच्च आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा दी। उनका प्रसिद्ध उद्धरण “उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए” आज भी लाखों युवाओं को प्रेरित करता है।

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन और वेदांत सोसाइटी की नींव रखी। उनके द्वारा स्थापित रामकृष्ण मिशन आज भी शिक्षा, चिकित्सा और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत है। उन्होंने “अद्वैत वेदांत” के सिद्धांत को प्रचारित किया, जो सभी जीवों में एक ही आत्मा की अवधारणा पर आधारित है। उनके अनुसार, सभी धर्म एक ही सत्य की ओर ले जाते हैं और सभी मानव जाति एक है।

स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें सिखाता है कि आत्मविश्वास, अनुशासन और समर्पण से हम किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक सफल और सार्थक जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं। 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन उनके विचार और आदर्श सदैव अमर रहेंगे।

स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनकी शिक्षाओं से हमें आत्म-निर्भरता, सेवा, और मानवता के प्रति समर्पण का संदेश मिलता है। वे हमारे लिए एक महान प्रेरणा हैं, जिनके पदचिह्नों पर चलकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (500 शब्द)

एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर विवेकानंद बने। अपने कार्यों द्वारा उन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। यहीं कारण है कि वह आज के समय में भी लोगो के प्रेरणास्त्रोत हैं।

भारत के महापुरुष – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में मकर संक्रांति के त्योहार के अवसर पर, परंपरागत कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त (नरेन्द्र या नरेन भी कहा जाता था) था। वह अपने माता-पिता (पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकील थे और माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला थी) के 9 बच्चों में से एक थे। वह पिता के तर्कसंगत मन और माता के धार्मिक स्वभाव वाले वातावरण के अन्तर्गत सबसे प्रभावी व्यक्तित्व में विकसित हुए।

वह बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिन्दू भगवान की मूर्तियों (भगवान शिव, हनुमान आदि) के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और भिक्षुओं से प्रभावित थे। वह बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे, उनके एक कथन के अनुसार, “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र के लिए प्रार्थना की थी और उन्होंने मुझे अपने भूतों में से एक भेज दिया।”

उन्हें 1871 (जब वह 8 साल के थे) में अध्ययन के लिए चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिल कराया गया। वह सामाजिक विज्ञान, दर्शन, इतिहास, धर्म, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्रों और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया।

स्वामी विवेकानंद के विचार

वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे हिन्दू शास्त्रों (वेद, रामायण, भगवत गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि) में रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी रुचि रखते थे। उन्हें विलियम हैस्टै (महासभा संस्था के प्राचार्य) के द्वारा “नरेंद्र वास्तव में एक प्रतिभाशाली है” कहा गया था।

वह हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित थे और हिन्दू धर्म के बारे में देश के अन्दर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच में नई सोच का निर्माण करने में सफल हुए। वह पश्चिम में ध्यान, योग, और आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने में सफल हो गए। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे।

उन्होंने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरबिंद ने उनकी प्रशंसा की थी। महान हिंदू सुधारक के रुप में, जिन्होंने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, महात्मा गाँधी ने भी उनकी प्रशंसा की। उनके विचारों ने लोगों को हिंदु धर्म का सही अर्थ समझाने का कार्य किया और वेदांतों और हिंदु अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरिये को भी बदला।

उनके इन्हीं कार्यों के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल) ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। उन्हें सुभाष चन्द्र बोस के द्वारा “आधुनिक भारत के निर्माता” कहा गया था। उनके प्रभावी लेखन ने बहुत से भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं; जैसे- नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरविंद घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया। ऐसा कहा जाता है कि 4 जुलाई सन् 1902 में उन्होंने बेलूर मठ में तीन घंटे ध्यान साधना करते हुए अपनें प्राणों को त्याग दिया।

अपने जीवन में तमाम विपत्तियों के बावजूद भी स्वामी विवेकानंद कभी सत्य के मार्ग से हटे नही और अपने जीवन भर लोगो को ज्ञान देने कार्य किया। अपने इन्हीं विचारों से उन्होंने पूरे विश्व को प्रभावित किया तथा भारत और हिंदुत्व का नाम रोशन करने का कार्य किया।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

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Swami Vivekananda Essay: छात्र ऐसे लिखें स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध

swami vivekananda essay in hindi 200 words

  • Updated on  
  • जून 29, 2024

Swami Vivekananda Essay In Hindi

स्वामी विवेकानन्द का जीवन और शिक्षाएँ प्रेरणा के एक महान स्रोत के रूप में काम करती हैं। स्वामी विवेकानन्द ने जीवन में मूल्यों और नैतिकता के महत्व पर जोर दिया। एक युवा भिक्षु से एक प्रमुख आध्यात्मिक व्यक्ति तक की उनकी यात्रा छात्रों के लिए प्रेरक है। उनके जीवन से छात्रों को प्रेरणा मिलती है जिससे उन्हें प्रयास करने और चुनौतियों पर काबू पाने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसलिए कई बार छात्रों को स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध तैयार करने को दिया जाता है। Swami Vivekananda Essay In Hindi के बारे में निबंध जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

स्वामी विवेकानंद के बारे में 100 शब्दों में निबंध, स्वामी विवेकानंद के बारे में 200 शब्दों में निबंध, स्वामी विवेकानंद का बचपन, रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात और भारतीय संस्कृति का समन्वय, उपसंहार , स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन्स , स्वामी विवेकानंद के बारे में निबंध लिखने के लिए महत्वपूर्ण वाइंट्स.

Swami Vivekananda Essay In Hindi 100 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द एक हिंदू भिक्षु थे जिन्होंने पश्चिमी दुनिया में भारतीय विचारों को साझा करने में बड़ी भूमिका निभाई।  वे 1863 में कलकत्ता में जन्मे थे। उन्होंने हिंदू धर्म में आध्यात्मिकता और लोगों को खुद को बेहतर ढंग से समझने के बारे में अपनी शक्तिशाली बातचीत और लेखन के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने महान भारतीय संत रामकृष्ण की शिक्षाओं का पालन किया और इन शिक्षाओं को फैलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

1893 में, उन्होंने शिकागो में धर्मों पर एक बड़ी बैठक में भारत और हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया। वहां उन्होंने भाषण दिया था जिसकी बहुत अधिक व्यापक प्रशंसा हुई। उन्होंने इस बारे में बात की कि सभी धर्म कैसे जुड़े हुए हैं और दूसरों की मदद करने के महत्व पर जोर दिया। स्वामी विवेकानन्द के शब्द आज भी दुनिया भर में कई लोगों को प्रेरित करते हैं और उन्होंने जो सिखाया वह आज की व्यस्त दुनिया में भी महत्वपूर्ण है।

Swami Vivekananda Essay In Hindi 200 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द एक हिंदू भिक्षु थे। वे एक महान गुरु रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। वे आधुनिक भारत में एक अत्यधिक प्रभावशाली आध्यात्मिक नेता के रूप में खड़े हुए। उनकी शिक्षाएँ विश्व स्तर पर लाखों लोगों को प्रभावित करते हुए, सार्वभौमिक भाईचारे, सहिष्णुता और विविध मान्यताओं को स्वीकार करने पर जोर देती हैं।

जो बात स्वामी विवेकानन्द को वास्तव में प्रेरणादायक बनाती है, वह है अपने विश्वासों के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता, विशेषकर ऐसे समय में जब भारतीय संस्कृति को पश्चिम में गलतफहमी का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने स्वयं को शिक्षा देने और सांस्कृतिक अंतरालों को समझाने में समर्पित कर दिया।

उनकी प्रेरणा व्यावहारिक आध्यात्मिकता पर उनके ध्यान से भी उत्पन्न होती है। स्वामी विवेकानन्द ने व्यक्तियों को अपनी प्रतिभा का उपयोग दूसरों की सेवा करने और दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने में योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया।

इसके अलावा गहन विचारों को स्पष्ट, सरल और शक्तिशाली तरीके से व्यक्त करने की उनकी क्षमता उनकी प्रेरणादायक विरासत बढ़ाती है। उनके भाषण और लेख प्रेरणा का एक कालातीत स्रोत बने हुए हैं, जो आध्यात्मिकता की परिवर्तनकारी शक्ति पर जोर देते हैं। स्वामी विवेकानन्द का व्यक्तित्व एसे व्यक्ति के रूप में कार्य करता है, अपने उच्चतम स्तर तक पहुँचने और दुनिया में सकारात्मक योगदान देने की क्षमता रखते हैं। 

स्वामी विवेकानंद के बारे में 500 शब्दों में निबंध

Swami Vivekananda Essay In Hindi 500 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

स्वामी विवेकानन्द का मूल नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में हुआ था। वे एक श्रद्धेय भारतीय संत थे। उन्होंने “उच्च विचार और सादा जीवन” का सार अपनाया था। स्वामी विवेकानन्द न केवल एक गहन दार्शनिक थे, बल्कि दृढ़ सिद्धांतों वाले एक समर्पित व्यक्तित्व भी थे।  उनके उल्लेखनीय दार्शनिक कार्यों में “आधुनिक वेदांत” और “राज योग” शामिल हैं।

रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य के रूप में, उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने पूरे जीवन में, स्वामी विवेकानन्द ने स्वयं को भारतीय संस्कृति के मूल मूल्यों के प्रसार के लिए समर्पित कर दिया। उनकी शिक्षाएं और पहल, सार्थक जीवन के महत्व पर जोर देते हुए पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती हैं।

स्वामी विवेकानंद श्री विश्वनाथ और भुवनेश्वरी देवी के घर में जन्में थे। उनके बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानन्द ने छोटी उम्र से ही असाधारण बौद्धिक कौशल का प्रदर्शन किया था। शिक्षाओं पर पकड़ के कारण अपने गुरुओं द्वारा “श्रुतिधर” के नाम से जाने जाते थे। उन्होने तैराकी और कुश्ती जैसे विभिन्न कौशलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

रामायण और महाभारत की शिक्षाओं से गहराई से प्रभावित होने के कारण, उनके मन में धर्म के प्रति गहरा सम्मान था, और पवन पुत्र हनुमान उनके जीवन आदर्श थे। आध्यात्मिक परिवार में पले-बढ़े होने के बावजूद नरेंद्र का स्वभाव प्रश्न करने वाले व्यक्ति का था। उनकी मान्यताएँ ठोस तर्क पर आधारित थीं और उन्होंने भगवान के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया था। इसके चलते उन्हें कई संतों के पास जाना पड़ा और उन्होंने प्रश्न पूछा, “क्या आपने भगवान को देखा है?”  आध्यात्मिक उत्तरों की उनकी खोज तब तक अनुत्तरित रही जब तक उनका सामना “रामकृष्ण परमहंस” से नहीं हुआ।

स्वामी विवेकानन्द की पहली मुलाकात रामकृष्ण परमहंस से तब हुई जब वे कोलकाता में एक मित्र के घर गये। रामकृष्ण ने विवेकानन्द की अलौकिक क्षमता को पहचानते हुए उन्हें दक्षिणेश्वर में आमंत्रित किया, यह महसूस करते हुए कि उनका जीवन विश्व के उत्थान के लिए एक आशीर्वाद है।

गहन आध्यात्मिक खोज के बाद, विवेकानन्द ने रामकृष्ण परमहंस को अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया और अंधकार से प्रकाश की ओर गहन परिवर्तन का अनुभव किया। अपने गुरु की शिक्षाओं के प्रति आभारी होकर, उन्होंने रामकृष्ण के ज्ञान को सभी दिशाओं में साझा करने के लिए बड़े पैमाने पर यात्रा की।

स्वामीजी को शिकागो में अपने ओजस्वी भाषण के लिए व्यापक प्रशंसा मिली, जहां उन्होंने दर्शकों को “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के रूप में संबोधित किया। उन्होंने गर्व से भारतीय धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए सभी लोगों की स्वीकृति और सहिष्णुता के मूल्यों पर जोर दिया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान और अतीत और वर्तमान के बीच सामंजस्य स्थापित करने में स्वामीजी की भूमिका को स्वीकार किया। स्वामीजी का प्रभाव भारत के सांस्कृतिक अलगाव को समाप्त करने तक फैला।

उच्च आदर्शों के प्रतीक स्वामी जी ने भारतीय युवाओं के लिए महान प्रेरणा का काम किया। अपनी शिक्षाओं के माध्यम से, उनका उद्देश्य युवा मन में आत्म-बोध, चरित्र निर्माण, आंतरिक शक्तियों की पहचान, दूसरों की सेवा और अथक प्रयासों की शक्ति पैदा करना था।

स्वामी विवेकानन्द के अन्य महान कार्य

स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध कथनों में शामिल हैं, “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” उनका दृढ़ विश्वास था कि बच्चे के शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए हानिकारक किसी भी चीज़ को जहर की तरह अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए।  उनका ध्यान एक ऐसी शिक्षा प्रणाली पर था जो चरित्र विकास को पोषित करती हो।

“रामकृष्ण मठ” और “रामकृष्ण मिशन” की उनकी स्थापना ने उनके गुरु के प्रति उनकी गहरी भक्ति को दर्शाया। इसने भारत में आत्म-त्याग, तपस्या और गरीबों और वंचितों की सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया।  बेलूर मठ की स्थापना में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।

स्वामीजी ने अथक परिश्रम से देवत्व के संदेश और शास्त्रों के सच्चे सार का प्रचार किया। इस समर्पित और देशभक्त भिक्षु ने 4 जुलाई, 1902 को बेलूर मठ में अंतिम सांस ली।

स्वामीजी ने निस्वार्थ प्रेम और राष्ट्र सेवा जैसी अवधारणाओं पर जोर देते हुए भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म की समृद्ध विरासत से अवगत कराया। महान गुणों से परिपूर्ण उनका प्रेरक व्यक्तित्व युवाओं को आलोकित करता था। उनकी शिक्षाओं ने लोगों के भीतर आत्मा की शक्ति के प्रति जागरूकता पैदा की। उनके आदर्शों के प्रति श्रद्धांजलि के रूप में, हम 12 जनवरी को उनके “जन्म दिवस” को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में उत्साहपूर्वक मनाते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन्स नीचे दी गई है:

  • 12 जनवरी, 1863 को कोलकाता में पैदा हुए स्वामी विवेकानन्द एक महान भारतीय संत और दार्शनिक थे।
  • मूल रूप से उनका नाम नरेंद्रनाथ दत्त था, उन्होंने छोटी उम्र से ही असाधारण बौद्धिक क्षमताएं दिखाईं।
  • स्वामी विवेकानन्द की अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात, उनकी आध्यात्मिक यात्रा को आकार देने में महत्वपूर्ण थी।
  • उन्होंने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध भाषण को वैश्विक प्रशंसा मिली।
  • उनकी शिक्षाओं में धर्मों की एकता, सहिष्णुता और आत्म-प्राप्ति की खोज पर जोर दिया गया।
  • स्वामीजी के उद्धरण जैसे “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए” प्रतिष्ठित और प्रेरणादायक बने हुए हैं।
  • भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता को बढ़ावा देने में उनके योगदान को हर साल 12 जनवरी को मनाए जाने वाले राष्ट्रीय युवा दिवस पर मनाया जाता है।
  • स्वामी विवेकानन्द का 4 जुलाई, 1902 को निधन हो गया।
  • उनका जीवन और शिक्षाएँ निस्वार्थ सेवा और ज्ञान पर जोर देते हुए दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित करती रहती हैं।
  • सबसे पहले स्वामी विवेकानंद का परिचय दें।
  • इसके बाद उनके बचपन के बारे में बताएं।
  • इसके बाद उनकी आध्यात्मिक यात्रा के बारे में बताएं
  • उनके महान कार्यों के बारे में लिखें।
  • अंत में उनके बारे में बताते हुए उपसंहार कर दें।

स्वामी विवेकानन्द, भारत के एक प्रमुख हिंदू भिक्षु और दार्शनिक थे। उन्होंने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

स्वामी विवेकानन्द को 1893 में शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपने प्रेरक भाषण के लिए जाना जाता है। उनके प्रसिद्ध भाषण में, दर्शकों को “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के रूप में संबोधित करते हुए भाषण दिया था जिससे विश्व धर्म संसद में उन्हें बहुत अधिक सराहा गया। 

स्वामी विवेकानन्द की शिक्षाओं में धर्मों की एकता, आत्म-बोध के महत्व और ज्ञान की खोज पर जोर दिया गया।  उन्होंने व्यक्ति के चरित्र के विकास की वकालत की और आध्यात्मिकता की शक्ति में विश्वास किया।

भारत में हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द के जन्मदिन के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।  

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में Swami Vivekananda Essay In Hindi के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी प्रकार के अन्य निबंध से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

swami vivekananda essay in hindi 200 words

By विकास सिंह

essay on swami vivekananda in hindi

स्वामी विवेकानंद एक महान धार्मिक हिंदू संत और एक नेता थे जिन्होंने रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। हम हर साल 12 जनवरी को उनकी जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, short essay on swami vivekananda in hindi (100 शब्द)

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 1863 में 12 जनवरी को विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी के रूप में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में हुआ था। वह आध्यात्मिक विचारों वाला एक असाधारण बालक था। उनकी शिक्षा अनियमित थी लेकिन उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज, कोलकाता से बैचलर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री पूरी की। उनका धार्मिक और भिक्षु जीवन तब शुरू हुआ जब वे श्री रामकृष्ण से मिले और उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया। बाद में उन्होंने वेदांत आंदोलन का नेतृत्व किया और पश्चिमी देशों में हिंदू धर्म के भारतीय दर्शन को पेश किया।

11 सितंबर, 1893 को विश्व धर्म संसद में उनका शिकागो भाषण जहां उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया, वहीं हिंदू धर्म को एक महत्वपूर्ण विश्व धर्म के रूप में स्थापित करने में मदद की। वह हिंदू शास्त्रों (वेदों, उपनिषदों, पुराणों, भागवत गीता, आदि) के गहन ज्ञान वाले बहुत बुद्धिमान व्यक्ति थे। कर्म योग, भक्ति योग, राज योग और ज्ञान योग उनके कुछ प्रमुख और प्रसिद्ध कार्य हैं।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, essay on swami vivekananda in hindi (150 शब्द)

स्वामी विवेकानंद एक महान देशभक्त नेता थे, जिनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में हुआ था। वह अपने माता-पिता विश्वनाथ दत्ता और भुवनेश्वरी देवी के आठ भाई-बहनों में से एक थे। वह बहुत बुद्धिमान लड़का था और संगीत, जिम्नास्टिक और पढ़ाई में सक्रिय था। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और पश्चिमी दर्शन और इतिहास सहित विभिन्न विषयों के बारे में ज्ञान प्राप्त किया।

वह योगिक स्वभाव से पैदा हुए थे और ध्यान का अभ्यास करते थे और बचपन से ही ईश्वर के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक थे। एक बार, जब वह किसी आध्यात्मिक संकट से गुज़र रहे थे, तो वे श्री रामकृष्ण परमहंस से मिले और उनसे एक प्रश्न पूछा कि क्या उन्होंने भगवान को देखा है और श्री रामकृष्ण ने उन्हें उत्तर दिया “हाँ, मेरे पास है। मैं उसे उतने ही स्पष्ट रूप से देखता हूं जितना कि मैं आपको देखता हूं, केवल एक गहन अर्थ में। ” उनकी दिव्य आध्यात्मिकता से प्रभावित होकर विवेकानंद श्री रामकृष्ण के महान अनुयायियों में से एक बन गए और उनकी शिक्षाओं का पालन करने लगे।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, 200 शब्द:

प्रस्तावना:.

स्वामी विवेकानंद का जन्म 18 जनवरी को 1863 में कलकत्ता में नरेंद्र नाथ दत्त के रूप में हुआ था। उनके माता-पिता के नाम विश्वनाथ दत्ता (कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील) और भुवनेश्वरी देवी (एक धार्मिक गृहिणी) थे। वह एक सबसे लोकप्रिय हिंदू भिक्षु, भारत के देशभक्त संत और रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे।

स्वामी विवेकानंद के कार्य:

उनकी शिक्षाएं और मूल्यवान विचार भारत की सबसे बड़ी दार्शनिक संपत्ति हैं। आधुनिक वेदांत और राज योग के उनके दर्शन युवाओं के लिए बहुत प्रेरणा हैं। उन्होंने बेलूर मठ, रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो विवेकानंद की धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षाओं का प्रसार करता है और शैक्षिक और सामाजिक कार्यों में भी संलग्न है।

स्वामी विवेकानंद की जयंती 1985 के बाद से हर साल 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह उत्सव युवा पीढ़ियों को प्रेरित करने के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों में विवेकानंद के धर्मपरायण आदर्शों को उभारने में मदद करता है।

निष्कर्ष:

स्वामी विवेकानंद एक महान नेता और दार्शनिक थे जिन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और वैश्विक दर्शकों का दिल जीता। उनकी शिक्षाएं और दर्शन भारत के युवाओं के लिए मार्गदर्शक प्रकाश हैं। उनके विचारों ने हमेशा लोगों को प्रेरित किया है और हमेशा भविष्य की पीढ़ियों के लिए ऊर्जा के स्रोत के रूप में काम करेंगे।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, essay on swami vivekananda in hindi (250 शब्द)

परिचय.

स्वामी विवेकानंद, दुनिया भर में लोकप्रिय भिक्षु, 1863 में 12 जनवरी को कलकत्ता में पैदा हुए थे। उन्हें बचपन में नरेंद्रनाथ दत्त कहा जाता था। उनकी जयंती को भारत में हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे विश्वनाथ दत्ता के आठ भाई-बहनों में से एक थे, जो कलकत्ता के उच्च न्यायालय के एक वकील और भुवनेश्वरी देवी थे। वह एक उज्ज्वल छात्र होने के साथ-साथ बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक व्यक्ति थे, अपने संस्कृत ज्ञान के लिए लोकप्रिय थे।

स्वामी विवेकानंद की रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात:

विवेकानंद बचपन से ही स्वभाव से बहुत बौद्धिक थे और उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व पर भी सवाल उठाया था। एक दिन उनकी मुलाकात श्री रामकृष्ण से हुई जो दक्षिणेश्वर काली मंदिर में पुजारी थे। उनके आध्यात्मिक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर विवेकानंद पूरी तरह से बदल गए और उन्होंने रामकृष्ण को अपना आध्यात्मिक गुरु स्वीकार कर लिया। अपनी मृत्यु से पहले रामकृष्ण ने अपने शिष्यों से विवेकानंद को अपने नेता के रूप में देखने और वेदांत के दर्शन का प्रसार करने के लिए कहा।

स्वामी विवेकानन्द शिकागो अधिवेशन में:

अपने गुरु की मृत्यु के बाद, विवेकानंद ने 1893 में शिकागो धर्म संसद के अधिवेशन में भाग लिया, जहाँ उन्होंने हिंदू धर्म को दुनिया के सामने पेश किया, जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा। उन्हें न्यूयॉर्क के अखबारों में से एक धर्म संसद में सबसे बड़ा व्यक्ति माना गया। शिकागो में उनका भाषण भारत को दुनिया का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक महान ऐतिहासिक कदम माना जाता है।

स्वामी विवेकानंद पूरे देश में एक महान देशभक्त और महान आध्यात्मिक व्यक्ति थे, जो दुनिया में एक वास्तविक विकास, वैश्विक आध्यात्मिकता और शांति चाहते थे। उन्होंने 1897 में 1 मई को founded रामकृष्ण मिशन ’की स्थापना की जो व्यावहारिक वेदांत और विभिन्न सामाजिक सेवाओं के प्रचार में शामिल है। 04 जुलाई 1902 को, स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि प्राप्त की और इस दुनिया को छोड़ दिया लेकिन उनकी महान शिक्षाओं ने हमेशा दुनिया को प्रेरित किया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, 300 शब्द:

स्वामी विवेकानंद का जन्म 18 जनवरी 1863 को कलकत्ता में शिमला रैली में नरेंद्रनाथ दत्त के नाम से हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक वकील थे, और माता भुवनेश्वरी देवी एक गृहिणी थीं। वह श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्य अनुयायी थे और बाद में रामकृष्ण मिशन के संस्थापक बने। वह वह व्यक्ति था जो यूरोप और अमेरिका में वेदांत और योग के हिंदू दर्शन को शुरू करने में सफल रहा और आधुनिक भारत में हिंदू धर्म को पुनर्जीवित किया।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन:

स्वामी विवेकानंद अपने पिता के तर्कसंगत दिमाग और अपनी माँ के धार्मिक स्वभाव से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने अपनी माँ से आत्म-नियंत्रण सीखा और बाद में ध्यान में एक विशेषज्ञ बन गए। उन्होंने अपनी युवावस्था में एक उल्लेखनीय नेतृत्व गुणवत्ता भी विकसित की थी। वह ब्रह्म समाज में जाने के बाद श्री रामकृष्ण के संपर्क में आए। वह बारानगर मठ में अपने भिक्षु-भाइयों के साथ रहे। अपने बाद के जीवन में, उन्होंने भारत का दौरा करने का फैसला किया और जगह-जगह से भटकना शुरू कर दिया और सभी धर्मों के लोगों के साथ रहे और भारतीय संस्कृतियों और धर्मों के गहन ज्ञान को प्राप्त किया।

विश्व धर्म संसद में संबोधन:

विश्व धर्म संसद के लिए विवेकानंद 31 मई 1893 को शिकागो के लिए रवाना हुए। उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया और दुनिया को हिंदू धर्म का परिचय देने वाले सम्मेलन में एक भाषण दिया जिसने उन्हें बहुत लोकप्रिय बना दिया। जब स्वामी विवेकानंद ने “अमेरिका की बहनों और भाइयों” के साथ अपने भाषण की शुरुआत की, तो 7000 दर्शकों की भीड़ से दो मिनट तालियाँ बजीं।

उन्होंने अपना भाषण जारी रखा और भारत की प्राचीन संस्कृति, सहिष्णुता, सार्वभौमिक भाईचारे आदि के बारे में बात की। विवेकानंद के इस भाषण ने विश्व दर्शकों का ध्यान खींचा और उन्हें सम्मेलन में सबसे महान और प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में चित्रित किया। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर कई प्रभावी भाषण और व्याख्यान भी दिए।

स्वामी विवेकानंद भारत के एक महान व्यक्तित्व थे जिन्होंने हमारे राष्ट्र को दुनिया के सामने दिखाया और वैश्विक दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया। उनका शिक्षण और दर्शन आज भी वर्तमान समय में प्रासंगिक है और आधुनिक युग के युवाओं का मार्गदर्शन करता है। उन्होंने रामकृष्ण मिशन, रामकृष्ण मठ की भी स्थापना की और विभिन्न प्रेरणादायक पुस्तकें भी लिखीं। वह एक महान संत, दार्शनिक और भारत के अग्रणी नेता थे।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध, long essay on swami vivekananda in hindi (400 शब्द)

स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता में 12 जनवरी, 1863 को एक पारंपरिक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का जन्म नाम नरेंद्रनाथ दत्ता (जिन्हें नरेंद्र या नरेन भी कहा जाता था) था। वह अपने माता-पिता विश्वनाथ दत्ता के नौ भाई-बहनों में से एक थे, जो कलकत्ता उच्च न्यायालय और भुवनेश्वरी देवी के वकील थे। उन्होंने अपने पिता के तर्कसंगत रवैये और अपनी माँ के धार्मिक स्वभाव के तहत प्रभावी व्यक्तित्व का विकास किया था।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

वह लगभग सभी विषयों में एक बहुत ही उज्ज्वल छात्र था। उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपीय इतिहास, पश्चिमी दर्शन, संस्कृत शास्त्र और बंगाली साहित्य का अध्ययन किया। वह अपने समय के भटकते तपस्वियों और भिक्षुओं से भी प्रेरित थे। वे हिंदू धर्मग्रंथों (वेद, रामायण, भगवद गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण, आदि) में रुचि रखने वाले बहुत धार्मिक व्यक्ति थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय थे। उन्हें विभिन्न अवसरों पर अपने स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा भी सराहा गया।

विवेकानंद और हिंदू धर्म:

विवेकानंद हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साही थे और भारत और विदेशों दोनों में हिंदू धर्म के बारे में लोगों के बीच नई समझ बनाने में बहुत सफल रहे। वह अपने गुरु, रामकृष्ण परमहंस से बहुत प्रभावित थे जिनसे वे भामा समाज की यात्रा के दौरान मिले थे। 1893 में ‘विश्व धर्म संसद’ के दौरान स्वामी विवेकानंद द्वारा दिए गए शिकागो संबोधन ने हिंदू धर्म को शुरू करने, ध्यान, योग को बढ़ावा देने और पश्चिम में आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक तरीके को बढ़ावा देने में मदद की।

एक समाचार पत्र के अनुसार उन्हें “संसद में एक महान व्यक्ति” माना जाता था। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे। उन्होंने अपने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया और भारतीय आध्यात्मिक रूप से जागृत करने के लिए श्री अरबिंदो द्वारा भी प्रशंसा की गई। उन्हें महात्मा गांधी द्वारा हिंदू धर्म को बढ़ावा देने वाले महान हिंदू सुधारकों में से एक के रूप में भी प्रशंसा मिली।

स्वामी विवेकानंद के प्रभावी लेखन ने कई भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं जैसे कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरबिंदो घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया था। उन्हें सुभाष चंद्र बोस द्वारा “आधुनिक भारत का निर्माता” कहा गया था।

विवेकानंद द्वारा स्थापित संगठन अभी भी अपनी शिक्षाओं और दर्शन का प्रसार कर रहे हैं और समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए भी काम कर रहे हैं। स्वामी विवेकानंद का जीवन और शिक्षाएं भारत के साथ-साथ दुनिया के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। वे आध्यात्मिकता, शांति, सद्भाव और सार्वभौमिक भाईचारे के प्रवर्तक थे।

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विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

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sir apne jo jankari di hai usme sabhi mahtpurn information hai

बहुत बढ़िया लिखा है नीस Nice Article , स्वामी विवेकानंद जी से जुडी रोचक जानकारियां जानने के लिए यहां किल्क करें।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay In Hindi)

स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay In Hindi)

In this Article

स्वामी विवेकानंद पर 10 लाइन (10 Lines On Swami Vivekananda In Hindi)

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भारत में कई महान व्यक्ति हैं, जिनका जिक्र हर देशवासी बहुत ही गर्व के साथ करता है। उन्हीं महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानंद का नाम भी शामिल है। स्वामी विवेकानंद तत्वों का ज्ञान रखने वाले, सच्चे देशभक्त अथवा बेहतरीन वक्ता थे। इनका जन्म 12 जनवरी 1863 में एक बंगाली परिवार में कोलकाता में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘विश्वनाथ दत्त’ और माता का नाम ‘भुवनेश्वरी देवी’ था। इनके माता-पिता ने बचपन में इनका नाम ‘नरेंद्र दत्त’ रखा था। लेकिन बाद में इनके गुरु ‘श्री रामकृष्ण परमहंस जी’ ने इन्हें स्वामी विवेकानंद नाम दिया। इन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दू धर्म के प्रचार में बिताया और विश्वभर में हिंदुत्व के बारे में जानकारी देने का प्रयास किया है। यह एक बेतरीन वक्ता थे, जिनके भाषण ने भारत का नाम रोशन किया है। आज भी लोग इनकी बातों को एक सीख मानकर चलते हैं और एक अच्छा प्रेरणावादक मानते हैं। इनका जन्मदिवस ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में हर साल मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद एक महान व्यक्ति थे जिनके बारे में बच्चों को जानकारी होनी चाहिए। यहां पर हिंदी में स्वामी जी पर 10 वाक्य लिखें हैं, जिन्हें आपको अपने बच्चे को जरूर सुनाना चाहिए।

  • स्वामी विवेकानंद एक महान ज्ञानी और सच्चे देशभक्त थे।
  • इनका जन्म 12 जनवरी 1863 में कोलकाता में हुआ था।
  • इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।
  • स्वामी जी के बचपन का नाम नरेंद्र दत्त है।
  • विद्यालय में स्वामी जी एक अच्छे विद्यार्थी थे।
  • इनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस थे, जिन्होंने इन्हे ‘स्वामी विवेकानंद’ का नाम दिया था।
  • इन्होनें अपने भाषण द्वारा पूरे विश्व में भारत का नाम रौशन किया है।
  • इनका जन्मदिवस पूरे विश्व में ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
  • इनका पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार में बीता था।
  • स्वामी जी ने अपनी अंतिम सांस 4 जुलाई 1902 को ली थी।

विश्व भर में स्वामी विवेकानंद की छवि एक महान संत, देशभक्त और विचारधारक की है और लाखों युवा उनसे आज भी प्रभावित है, यदि आप भी अपने बच्चे को इनके बारे में जानकारी देना चाहते हैं तो उसे हमारे द्वारा लिखे कम शब्दों वाले निबंध को जरूर पढ़ाएं।

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता मे हुआ था। स्वामी जी एक सच्चे देशभक्त, महान संत और नेता थे। इनके माता-पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और भुवनेश्वरी देवी था, जो कोलकाता के एक बंगाली परिवार से संबंध रखते हैं। स्वामी जी को बचपन में नरेंद्र नाथ दत्त के नाम से जाना जाता था। इनकी बुद्धि हमेशा से बहुत तेज रही है। यह युवाओं के लिए हमेशा से एक प्रेरणाश्रोत रहे है, इसलिए इनका जन्म दिन हर साल ‘युवा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद एक होशियार छात्र थे और उन्हें संस्कृत का बहुत ज्ञान था। सिर्फ शिक्षा में नहीं बल्कि खेल-कूद में भी इन्हे बहुत दिलचस्पी थी। विवेकानंद जी बचपन से ही काफी आध्यात्मिक थे और जब वह कोलकाता में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे थे तभी उनकी मुलाकात गुरु रामकृष्ण परमहंस से हुई थी। उनका हिंदुत्व और हिन्दू धर्म को लेकर, भगवान के प्रति भक्ति को देखते हुए गुरु परमहंस ने उन्हें अपना शिष्य बना लिया था। वह सिर्फ एक संत ही नहीं बल्कि सच्चे देशभक्त, विचारक और लेखक थे। उन्होंने ‘उठो जागो, और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए’ जैसे मूलमंत्र भारत के वासियों को दिए। स्वामी जी ने अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में लगा दिया और युवाओं के लिए एक बेहतरीन प्रेरणाश्रोत बनकर उभरे। स्वामी विवेकानंद जी ने न सिर्फ भारत बल्कि अन्य देशों में भी हिन्दू धर्म का प्रचार और प्रसार किया। भारत के लिए किये गए उनके प्रयासों को लोग आज भी याद करते हैं।

Short Essay on Swami Vivekananda in Hindi

आपके बच्चे को स्वामी विवेकानंद पर अच्छा हिंदी निबंध लिखना है? आपको यहां स्वामी विवेकानंद पर हिंदी निबंध का बेहतरीन सैंपल दिया गया है जिसकी मदद से आपका बच्चा खुद भी एक अच्छा निबंध लिख सकता है।

स्वामी विवेकानंद भारत के उन व्यक्तियों में से एक है जिन्होंने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है। वह शुरू से ही हिन्दू धर्म को अधिक महत्त्व देते थे और दुनिया भर में इन्होंने हिन्दुत्व का बहुत प्रचार और प्रसार भी किया है। यह युवाओं के लिए एक प्रेरणाश्रोत छवि बनकर सामने आए और लोग आज भी इनके योगदानों को याद कर के गर्व महसूस करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इनके जन्म दिवस पर हर साल ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। आइए नीचे उनके जीवन से जुड़े कुछ पहलुओं को विस्तार में जानते हैं।

स्वामी विवेकानंद का शुरूआती जीवन और बचपन (Early Life and Childhood of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के बंगाली कायस्थ परिवार में 12 जनवरी 1868 को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। विवेकानंद के 9 भाई-बहन थे। उनके पिता कोलकाता हाई कोर्ट में वकील थे और उनके दादा श्री दुर्गाचरण दत्त संस्कृत व फारसी के विद्वान थे, उन्होंने 25 साल की उम्र में संन्यास ग्रहण कर लिया था। परिवार के अच्छे विचार व परवरिश के कारण विवेकानंद को सोच और नई दिशा मिली। उन्हें बचपन में नरेंद्र नाथ दत्त के नाम जाना जाता था, वे पढ़ाई में काफी बुद्धिमान व असल जीवन में नटखट थे। उनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत के किस्से सुनाया करती थी।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा (Education of Swami Vivekananda)

उन दिनों अंग्रेजी शिक्षा बेहद प्रभावशाली थी, इसलिए उनके पिता अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार से प्रभावित होकर उन्हें यह शिक्षा देना चाहते थे। लेकिन स्वामी विवेकानंद जी की रूचि संस्कृत और अध्यात्म के प्रति अधिक थी, उन्होंने साथ साथ इनका भी अध्ययन किया। साल 1884 में उन्होंने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। असेम्बली कॉलेज के अध्यक्ष विलियम हेस्टी का कहना था कि उनके जैसा दर्शन शास्त्र में मेधावी छात्र और नहीं है। उन्हें भगवान को पाने की चाह बचपन से ही थी, इसी वजह से उन्होंने उस दौरान प्रसिद्ध संत रामकृष्ण परमहंस के विचारों से प्रभावित होकर उन्हें अपना गुरु मान लिया था और सिर्फ 25 साल की उम्र में उन्होंने संत जीवन को अपना लिया और दुनिया भर में हिंदुत्व का प्रचार और प्रसार करने निकल पड़े।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण (Chicago Speech Of Swami Vivekananda)

स्वामी विवेकानंद अपने ज्ञान और विचारों की वजह से पूरे विश्व में बेहद प्रसिद्ध है। हिन्दू धर्म के प्रति उनका नजरिया बेहद अलग था और वह लोगों को भी इसके महत्व का ज्ञात कराने का प्रयास करते थे। शिकागो में दिए गए भाषण की शुरुआत से हर कोई प्रभावित हो गया था। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत, “मेरे अमेरिका के भाइयों और बहनों”, से की थी जिसको सुनने के बाद हर कोई भाषण सुनने को मजबूर हो गया और भारत में यह दिन एक ऐतिहासिक दिन के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह दिन भारत के लिए बेहद गर्व और सम्मान की बात थी।

राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth day)

स्वामी विवेकानंद भारत के युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नहीं है, उनके विचारों और शब्दों से प्रभावित होकर लोग देश के हित में कार्य करते थे। इसी कारण स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इसकी शुरुआत साल 1984 में की गई थी और उस दौरान की सरकार का ऐसा मानना था कि स्वामी जी के विचार, आदर्श और उनके काम करने का तरीका भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का एक स्रोत हो सकते हैं। इसी वजह से 12 जनवरी 1984 से स्वामी विवेकानंद की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की गई थी।

स्वामी विवेकानंद ने अपने विचारों और सिद्धांतों द्वारा पूरी दुनिया में भारत तथा हिंदुत्व का नाम रोशन किया। वह एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके जीवन से हम हमेशा से कुछ ना कुछ सीख ही सकते हैं। यहीं कारण है कि आज भी युवाओं के लिए यह एक प्रेरणाश्रोत व्यक्ति बने हुए हैं।

  • स्वामी जी के मठ में कोई भी महिला प्रवेश नहीं कर सकती थी, यहाँ तक कि उनकी माँ भी नहीं।
  • स्वामी विवेकानन्द को चाय पीने का बहुत शौक था, इतना ही नहीं उन्होंने अपने मठ में चाय पीने की अनुमति भी दी थी।
  • 39 साल के जीवन में स्वामी जी को मधुमेह, अस्थमा, गुर्दे की बीमारियाँ, आदि लगभग 31 बिमारियों का सामना करना पड़ा था।
  • स्वामी जी, पश्चिमी दुनिया में वेदांत और योग की शुरूआत करने वाले प्रमुख व्यक्ति थे।
  • स्वामी विवेकानंद को भारत के सर्वश्रेष्ठ वक्ताओं में से एक माना जाता है।
  • स्वामी जी संन्यासी बने तो उनका नाम नरेंद्र से “स्वामी विविदिशानंद” था, लेकिन शिकागो जाने से पहले उन्होंने अपना नाम बदलकर “विवेकानंद” रख लिया।

1. 1893 में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध भाषण का विषय क्या था?

विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानन्द के प्रसिद्ध भाषण का विषय सभी धर्मों में एकता होना था।

2. स्वामी जी ने शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपना प्रसिद्ध भाषण कब दिया था?

स्वामी विवेकानन्द ने शिकागो में विश्व धर्म संसद में अपना प्रसिद्ध भाषण साल 1893 में दिया था।

3. विवेकानन्द ‘आधुनिक भारत के निर्माता हैं’ यह किसने कहा था?

नेताजी शुभाष चंद्र बोस ने स्वामी जो को आधुनिक भारत का निर्माता कहा था।

स्वामी विवेकानंद के इस निबंध से बच्चों को इतिहास में मौजूद महान विचारक और देश प्रेमी के बारे में जानने को मिलेगा। उनके द्वारा भारत के किए गए योगदानों का ज्ञात बच्चों को होगा और वह उन्हें एक प्रेरणा की तरह मानेंगे और उनका मन भी देश के लिए कुछ बेहतर करने के लिए प्रेरित होगा। साथ ही इस निबंध के माध्यम से बच्चे स्वामी जी पर स्पष्ट शब्दों का एक अच्छा निबंध लिखना भी सीख सकते हैं।

यह भी पढ़ें:

मदर टेरेसा पर निबंध (Mother Teresa Essay in Hindi) महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay In Hindi) सुभाष चंद्र बोस पर निबंध (Subhash Chandra Bose Essay In Hindi)

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में | Swami Vivekananda Essay in Hindi

Swami Vivekananda Essay

Swami Vivekananda Essay in Hindi:- स्वामी विवेकानंद को संयुक्त राज्य अमेरिका (United Nation America) में 1893 की विश्व धर्म संसद में उनके महत्वपूर्ण भाषण (Speech) के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने America में Hindu Religion का परिचय दिया और धार्मिक सहिष्णुता और कट्टरता को समाप्त करने का आह्वान किया था। Swami Vivekananda को नरेंद्रनाथ दत्त के नाम से भी जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मिशन के संस्थापक थे। 12 जनवरी के पूरे देश में Swami Vivekananda राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day ) के तौर पर मनाया जाएगा। Swami Vivekananda jayanti पर हम आपके लिए इस लेख के जरिए निबंध लेकर आए है। इस लेख में आपको स्वामी विवेकानंद जी के जीवन के बारे में सारी जानकारियां देंगे। इस निबंध में हमने स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में , Essay on Swami Vivekananda in Hindi Swami Vivekananda Essay in Hindi, स्वामी विवेकानंद पर निबंध 250 शब्द (Swami Vivekananda Essay in 250 words), स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100 शब्द (Swami Vivekananda Essay in 100 Words) इन सभी बिंदूओं पर तैयार किया है। स्वामी जी के बारे में और जानने के लिए इस लेख को पूरा पढ़े।

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद जयंती
स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में
स्वामी विवेकानंद कोट्स हिंदी में
स्वामी विवेकानंद के विचार
स्वामी विवेकानंद का भाषण
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय
राष्ट्रीय युवा दिवस निबंध
राष्ट्रीय युवा दिवस पर भाषण
राष्ट्रीय युवा दिवस

स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में

Swami Vivekananda India में एक आध्यात्मिक नेता और एक हिंदू भिक्षु (Hindu Monk) थे।  वे उच्च विचार और सादा जीवन व्यतीत करते थे। स्वामी जी महान सिद्धांतों और धर्म परायण व्यक्तित्व वाले एक महान दार्शनिक थे। वह रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे और उनके दार्शनिक कार्यों में राजयोग और आधुनिक वेदांत शामिल हैं। Kolkata में रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ के संस्थापक थे। भारत में हर साल 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती के रूप में राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) मनाया जाता है। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो (Chicago) में धर्म संसद में हिंदू धर्म प्रस्तुत किया, जिसने उन्हें काफी प्रसिद्ध बना दिया।

टाइटलस्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में 
लेख प्रकारनिबंध
साल2023
स्वामी विवेकानंद का जन्म12 जनवरी 1863 
स्वामी विवेकानंद  जन्म स्थानकोलकाता
स्वामी विवेकानंद बचपन का नामनरेंद्र दत्ता 
स्वामी विवेकानंद  मृत्यु1902 
स्वामी विवेकानंद कौन से मिशन के संस्थापक थेरामकृष्ण मिशन 
स्वामी विवेकानंद जयंती किस नाम से मनाई जाती हैराष्ट्रीय युवा दिवस 
स्वामी विवेकानंद किस के गुरु कौन थेरामकृष्ण परमहंस

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 250 शब्द

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

Swami Vivekananda का जन्म ब्रिटिश सरकार (British Government) के दौरान 12 जनवरी 1863 को Kolkata में नरेंद्रनाथ दत्त के रूप में हुआ था। उनके पिता विश्वनाथ दत्त एक वकील थे, वह बंगाली परिवार से थे। माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो मजबूत चरित्र, गहरी भक्ति के साथ अच्छे गुण वाली महिला थी। स्वामी जी ने 1984 में Kolkata University से Graduation की पढ़ाई पूरी की। विवेकानंद का जन्म योग प्रकृति के साथ हुआ था इसलिए वे हमेशा ध्यान करते थे, जिससे उन्हें मानसिक शक्ति प्राप्त होती थी। उन्होंने इतिहास, संस्कृत, बंगाली साहित्य और पश्चिमी दर्शनशास्त्र सहित विभिन्न विषयों में ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें भगवत गीता, वेद, रामायण, उपनिषद और महाभारत जैसे हिंदू शास्त्रों का गहरा ज्ञान था। स्वामी जी एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, जिन्हे संगीत, अध्ययन, तैराकी और जिमनास्टिक का ज्ञान था।

रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात

Swami Vivekananda भगवान को देखने और भगवान के अस्तित्व के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक थे। जब वे दक्षिणेश्वर में रामकृष्ण से मिले तो उन्होंने पूछा कि क्या उन्होंने भगवान को देखा है? रामकृष्ण ने स्वामी जी के पूर्व कर्मों को देखते हुए कहा कि हां उन्होंने भगवान को देखा है, वैसे ही जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं। Ramkrishna Paramhans ने बताया कि भगवान हर इंसान के भीतर मौजूद है। स्वामी जी ने रामकृष्ण से दीक्षा ली और उन्हें अपना गुरु बनाया और यहीं से एक आध्यात्मिक यात्रा शुरू हुई। जब उन्होंने सन्यास की दीक्षा ली तब वह 25 वर्ष के थे और उनका नाम Swami Vivekananda रखा गया।

बाद में अपने जीवन में उन्होंने रामकृष्ण मिशन (Ramkrishna Mission) की स्थापना की,  जो धर्म, जाति और पंथ के बावजूद गरीबों और संकट ग्रस्त लोगों को सुरक्षित सामाजिक सेवा (Secure social service) प्रदान कर रहा है। 1893 में Chicago में आयोजित विश्व धर्म संसद में विवेकानंद जी ने भाग लिया और विश्व प्रसिद्ध भाषण दिया। अपने भाषण में उन्होंने “अमेरिका के भाइयों और बहनों” के रूप में संबोधित कर सभी का दिल जीत लिया। स्वामी जी का प्रसिद्ध वाक्य है ” उठो जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए”।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100 शब्द

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु.

Swami Vivekananda  ने 4 जुलाई 1902 को बेलूर मठ में अंतिम सांस ली। उन्होंने घोषणा की कि वह 40 वर्ष की आयु तक नहीं पहुंचेंगे। उन्होंने 39 वर्ष की आयु में अपना नश्वर सभी छोड़ दिया और “महासमाधि” प्राप्त की।  लोगों ने कहा कि वह 31 बीमारियों से पीड़ित थे। उन्होंने India के भीतर और बाहर Hindu Religion का प्रसार किया।

स्वामी विवेकानंद जयंती कैसे मनाई जाती है?

इस दिन India के हर एक स्कूल और विश्वविद्यालयों में Swami Vivekananda के दिए गए भाषण और मोटिवेशनल स्पीच (Motivational Speech) का आयोजन किया जाता है। हर सरकारी विभाग में उनकी फोटो और मूर्तियों पर माल्यार्पण करके इस दिन Youth Day के रूप में मनाया जाता है। युवाओं को विवेकानंद जी के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है। उनके भाषण और मोटिवेशनल स्पीच से लोगों में एक नई चेतना का जागरण होता है। निराश व्यक्ति भी एक अलग तरह की ऊर्जा से भर जाता है। इस दिन स्कूल कॉलेजों में तरह-तरह के आयोजन किए जाते हैं। लोगों को वेदांत की दीक्षा दी जाती है।

FAQ’s Swami Vivekananda Essay in Hindi

Q. स्वामी विवेकानंद कौन है.

Ans. स्वामी विवेकानंद भारत में एक आध्यात्मिक नेता और एक हिंदू भिक्षु थे।  वे महान दार्शनिक थे।

Q. स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम क्या था?

Ans. नरेंद्रनाथ दत्त स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम था।

Q. स्वामी विवेकानंद के गुरु कौन थे?

Ans.  रामकृष्ण परमहंस स्वामी विवेकानंद के गुरु थे।

Q. स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहां हुआ था?

Ans. स्वामी जी का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था।  वे बंगाली परिवार से थे।

Q. रामकृष्ण मठ, बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन के संस्थापक कौन थे?

Ans. स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण मठ, बेलूर मठ और रामकृष्ण मिशन के संस्थापक थे।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (essay on swami vivekananda in hindi) :.

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भूमिका : हमारे भारत देश में अनेक योगियों, ऋषियों, मुनियों, विद्वानों, महान पुरुषों और महात्माओं ने जन्म लिया है जिन्होंने भारत को सम्मानपूर्ण स्थान दिलाया है। इन महान पुरुषों में से एक स्वामी विवेकानंद भी थे। उन्होंने अमेरिका जैसे देश में भारत माता का नाम रोशन किया था। स्वामी विवेकानंद जी एक महान आयोजक और वक्ता थे।

इस देश में और विदेशों में गरीबों के लिए उनका दिल धराशायी है। वेदांत को विदेशों में संदेश भेजने में सफलतापुर्वक श्रेय जाता है। स्वामी जी को एक बौद्धिक दिग्गज के रूप में देखा जा सकता है जिसने पूर्वी और पश्चिम के बीच एक पुल बनाया है। इसके साथ-साथ तर्क और विश्वास के बीच भी पुल बनाया था।

लेकिन इन सभी के पीछे उनकी बुनियादी प्रेरणा और उनकी आध्यात्मिक प्राप्ति थी। आधुनिक युग में भारत देश के युवा बहुत से महान पुरुषों के विचारों को आदर्श मानकर उनसे प्रेरित होते हैं युवाओं के वे मार्गदर्शक और भारतीय गौरव होते हैं उन्हीं में से एक स्वामी विवेकानंद भी थे। भारत की गरिमा को वैश्विक स्तर पर सम्मान के साथ बरकार रखने के लिए स्वामी विवेकानंद जी ने बहुत प्रयास किये थे।

स्वामी जी का जन्म : स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। स्वामी जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता था। स्वामी विवेकानंद जी का नाम नरेन्द्र नाथ दत्ता रखा गया था। स्वामी जी के पिता पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने बेटे को भी अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे।

5 साल की उम्र में उन्हें मेट्रोपोलीयन इंस्टीट्यूट में प्रवेश दिलाया गया था। सन् 1879 में उन्हें जनरल असेम्बली कालेज में उच्च शिक्षा पाने के लिए प्रवेश दिलाया गया। यहाँ पर उन्होंने इतिहास, दर्शन, साहित्य आदि बहुत से विषयों का अध्धयन किया। स्वामी जी ने बी०ए० की परीक्षा को प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया था।

प्रारंभिक जीवन : स्वामी जी को उनके प्रारंभिक जीवन में नरेंद्रनाथ के नाम से पहचाना जाता था। संपन्न और धार्मिक परिवार में बालक का पालन-पोषण बड़े लाड-प्यार से हुआ था। अत: यह बालक बचपन से ही हठी बन गया था। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने काम और प्रेरणा के लिए अपनी स्वंय की आत्मा की आध्यात्मिक गहराई के साथ एक मजबूत स्पर्श से ज्ञान को प्राप्त किया।

यह उनके व्यक्तित्व का वह पहलू था जो सभी को पोषण प्रदान करता है। उन्होंने अपने पिता से बहुत कुछ सीखा था। स्वामी जी सत्ता और धर्म को शंका की दृष्टि से देखते थे। लेकिन स्वामी जी एक जिज्ञासु प्रवृति के व्यक्ति थे।

रामकृष्ण के शिष्य : रामकृष्ण परमहंस जी की प्रशंसा सुनकर स्वामी जी पहले उनसे तर्क करने के विचार से मिलने गये थे लेकिन परमहंस जी ने स्वामी को देखते ही पहचान लिया था कि वे वही थे जिनका उनको कई दिनों से इंतजार था। जब स्वामी जी रामकृष्ण के सामने एक युवा के रूप में आए तो उन्होंने कहा था कि उनकी आँखें एक योगी की आँखें हैं और अपने दूसरे शिष्यों से नरेंद्र या विवेकानंद को बुलाने के लिए कहा था।

रामकृष्ण जी एक उच्च कर्म के आध्यात्मिक व्यक्तित्व थे। जब श्री रामकृष्ण ने उनकी आँखों में देखा तो पाया कि उनकी आखें खुली हुईं थीं और उनका आधा दिमाग भीतर कुछ देख रहा था और सिर्फ दूसरा आधा दिमाग ही दुनिया के बारे में जानता था। श्री रामकृष्ण जी ने कहा – यह महान योगियों की आँखों की विशेषता थी।

स्वामी जी को इस अंतर की जरूरत थी जो निरंतर उसे भीतर की आत्मा के करीब खींचती थी। विवेकानंद जी आध्यात्मिक आनंद का आनंद लेना चाहते थे लेकिन रामकृष्ण जी ने उन्हें बताया कि वह किसी अलग उद्देश्य के लिए किया गया था और वह एक सामान्य संतों की तरह नहीं था।

जो वो खुद के लिए आध्यात्मिक उत्साह का आनंद ले रहे थे। स्वामी जी एक ऐसे व्यक्ति थे जो भारत और विदेशों में लाखों लोगों के प्रेरणा के स्त्रोत थे। परमहंस जी की कृपा से उन्हें आत्म-साक्षात्कार हुआ जिसकी वजह से वे परमहंस के प्रमुख शिष्य बन गए थे।

ईश्वर प्रेम : स्वामी जी की बुद्धि बचपन से ही बहुत तेज थी और परमात्मा को पाने की इच्छा भी उनके मन में बहुत प्रबल थी। इसी वजह से वे सबसे पहले ब्राह्मण समाज में गए थे लेकिन वहाँ पर उनके मन को संतोष नहीं हुआ। स्वामी जी ने उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त की थी। सन् 1884 में पिता जी के निधन के बाद उन्हें संसार से अरुचि पैदा हो गयी थी।

स्वामी जी ने रामकृष्ण परमहंसा से दीक्षा ले सन्यासी बनने की इच्छा प्रकट की। परमहंस जी ने उन्हें समझाया था कि सन्यास का सच्चा उद्देश्य मानव सेवा करना होता है। मानव सेवा से ही जीवन में मुक्ति मिल सकती है। परमहंस ने उन्हें दीक्षा दे दी और उनका नाम विवेकानंद रख दिया था।

सन्यास लेने के बाद उन्होंने सभी धर्मों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करना शुरू कर दिया था। श्री रामकृष्ण के पैरों पर बैठकर उन्होंने गुणों को विकसित किया और उच्चतम आध्यात्मिक प्राप्ति के आदमी बन गए थे। स्वामी विवेकानंद जी अपना जीवन अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस जी को अर्पित कर चुके थे।

जब गुरु देव के शरीर त्याग के दिन निकट थे तो अपने घर और कुटुम्ब की नाजुक हालत की और खुद के भोजन की परवाह न करते हुए गुरु की सेवा में हमेशा हाजिर रहे। गुरूजी का शरीर बहुत कमजोर हो गया था। कैंसर की वजह से गले से थूक, रक्त, कफ निकलता था जिसकी सफाई का स्वामी जी बहुत अधिक ध्यान रखते थे।

एक बार किसी ने गुरु देव की सेवा में नफरत और लापरवाही दिखाई और नफरत से नाक भौहें सिकोडी। यह सब कुछ देखकर स्वामी जी को गुस्सा आ गया। स्वामी जी ने उस गुरुभाई को पाठ पढ़ाते हुए और गुरुदेव की प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दर्शाते हुए उनके सिराने पर रखी रक्त और कफ की पूरी थूकदानी को पी गये थे। गुरु के प्रति ऐसी अनन्य भक्ति और निष्ठा के प्रताप से ही उन्होंने अपने शरीर और उनके आदर्शों की उत्तम सेवा की थी।

व्यक्तित्व : पिता जी की मृत्यु के बाद घर का सारा भार स्वामी जी के कंधों पर आ गया। उस समय घर की दशा बहुत खराब थी। लेकिन कुशल यही था कि स्वामी जी का विवाह नहीं हुआ था। बहुत अधिक गरीबी में भी स्वामी जी बड़े अथिति सेवी थे। स्वामी जी खुद भूखे रहकर अथिति को भोजन कराते थे और खुद बाहर वर्षा में भीगते रहते थे और अथिति को सोने के लिए अपना बिस्तर दे देते थे।

स्वामी जी ने अपने चरित्र का भवन आध्यात्मिकता की चट्टान की बुनियाद पर बनाया था। जो कि बुद्धिमता और क्षीण दिल के सशक्त व्यक्तित्व में अभिव्यक्ति प्राप्त करता था। कोई भी व्यक्ति इस बिंदु पर बल देने में मदद नहीं कर सकता क्योंकि स्वामी जी के कई व्यक्तित्व थे और वे विभिन्न रंगों में प्रकट हो सकते थे।

उनकी महानता के बारे में बहुत कुछ अनंत था। यह उपलब्धियों की दुनिया में परिचित उत्तीर्ण महानता के विपरीत है। इस प्रकार की महानता को समय का प्रवाह एक अजीब तरह से प्रभावित करता है। यह इसे कमजोर करने और नष्ट करने की जगह और मजबूत करता है।

वेदों में जड़ें और वहां से पौष्टिकता पैदा करने से इस प्रकार के पुरुषों और महिलाओं के व्यक्तित्व और काम कुछ आकर्षक लगने लगते हैं और उनके पास एक स्थाई चरित्र होता है। स्वामी जी ने आत्मिक प्राप्ति के सागर में गहराई से डुबकी लगाई थी, स्वामी जी ने उसी संदेश को नहीं दिया था बल्कि एक ही रूप में संदेश दिया था जैसा कि पश्चिम को दिया था।

स्वामी जी ने लोगों की जरूरतों के अनुरूप अपने संदेशों को अलग किया लेकिन इन सभी रूपों में एक केंद्रीय विषय की अभिव्यक्ति होती है और वह है आध्यात्मिकता। स्वामी जी अपने आप को गरीबों का सेवक कहते थे। स्वामी जी का स्वरूप बड़ा ही सुंदर और भव्य था। स्वामी जी का शरीर गठा हुआ था। उनके मुखमंडल पर तेज था। उनका स्वभाव अति सरल और व्यवहार अति विनम्र था।

विश्व धर्म सम्मेलन में भाग : स्वामी जी ने शिकांगों में सन् 1883 में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लिया था और भाषण भी दिया था। स्वामी विवेकानंद जी वहां पर भारत के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे थे। भाषण का आरंभ उन्होंने बहनों और भाईयों शब्द से किया था। इस संबोधन से ही लोगों ने तालियाँ बजानी शुरू कर दी थीं।

स्वामी जी के भाषण को लोगों ने बहुत ही ध्यानपूर्वक सुना था। स्वामी जी ने कहा था कि संसार में एक ही धर्म होता है वह है मानव धर्म। राम, कृष्ण, मुहम्मद भी इसी धर्म का प्रचार करते रहे हैं। धर्म का उद्देश्य पानी मात्र को शांति देना होता है। शांति को प्राप्त करने के लिए द्वेष, नफरत, कलह उपाय नहीं होते हैं बल्कि प्रेम होता है। हिंदू धर्म का यही संदेश होता है। सभी में एक ही आत्मा का निवास होता है। स्वामी जी के इस भाषण से सभी बहुत प्रभावित हुए थे।

अमेरिका में प्रचार : यूरोप और अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत ही हीन दृष्टि से देखते थे। वहाँ के लोगों ने बहुत कोशिशें की कि स्वामी जी को सर्वधर्म सम्मेलन में बोलने का अवसर ही न मिले। एक अमेरिकन प्रोफेसर पर उन्हें थोडा समय मिला लेकिन उनके विचारों को सुनकर सभी विद्वान् हैरान रह गये।

उसके बाद अमेरिका में उनका बहुत स्वागत किया गया। वहां पर स्वामी जी के भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया था। स्वामी जी तीन साल तक अमेरिका में रहे थे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्वज्ञान की अद्भुत ज्योति प्रदान करते रहे थे। इसके बाद स्वामी जी ने बहुत से स्थानों पर व्याख्यान दिए हैं।

ऐसी अनेक संस्थाओं की स्थापना हुई जिनका उद्देश्य वेदांत का प्रचार करना था। स्वामी जी ने जापान, फ्रांस और इंग्लेंड में भी मानव धर्म का प्रचार किया था। स्वामी जी की एक शिष्या भी थी जिनका नाम निवेदिता था। उन्होंने कलकत्ता में रहकर सेवा कार्य किया था।

देशवासियों को पत्र : जब स्वामी जी 25 वर्ष के थे तो उन्होंने गेरुआ रंग के वस्त्र पहन लिए इसके बाद उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की थी। स्वामी जी ने जापान में अपने देशवासियों के नाम पत्र लिखा था। उस पत्र में स्वामी जी ने लिखा था कि तुम बातें बहुत करते हो लेकिन करते कुछ नहीं हो। उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा जापानवासियों को देखो इससे तुम सभी की आँखें खुल जाएँगी। उठो जागो और रुढियों के बंधन को काट दो। तुम्हारा जीवन सिर्फ सम्पत्ति कमाने के लिए नहीं बल्कि देश प्रेम की बलिदेवी पर समर्पित करने के लिए है।

राम कृष्ण मिशन की स्थापना : स्वामी जी चार साल तक अमेरिका और यूरोप में हिंदू धर्म का प्रचार करते रहे। इसके बाद वे भारत लौट आए थे। स्वामी जी ने कलकत्ता में राम कृष्ण मिशन की स्थापना की थी। इस मिशन की अनेक शाखाएं देश के विभिन्न भागों में स्थित हैं।

संदेश : भारतीय संदर्भ में उन्होंने देखा था कि आध्यात्मिकता का मार्ग भौतिक और सामाजिक उन्नति के माध्यम से होता है। इस समाप्ति के लिए स्वामी जी वेदांत को एक सामाजिक दर्शन और दृष्टिकोण, एक बार गतिशील और व्यवहारिक रूप से आकर्षित करते थे। भारत के लिए स्वामी जी ने मानव-निर्मित धर्म का संदेश दिया और राष्ट्र का विश्वास तथा संकल्प लिया।

प्यार और करुणा : जब स्वामी जी को पराने भारत की महिमा पर गर्व महसूस हुआ तो वे उसे अवन्ती और दुर्भाग्य की गहराई में देखने के लिए गंभीर रूप से पीड़ित थे। अपने देशवासियों के प्रति प्रेम, उनकी उम्र में पुरानी भुखमरी, अज्ञानता और सामाजिक विकलांगों के दुःख उन्हें बहुत गहराई में ले गये।

इस स्थिति के साथ सामना करने के लिए उनकी सारी मात्रा में आध्यात्मिकता और गतिशील दर्शन होने चाहिए। आध्यात्मिकता और गतिशील दर्शन में करुणा और प्रेम के प्रवाह में प्रलोभन और सेवा के एक राष्ट्रिय संदेश के रूप में पहुंचे थे। वेदांत एक बार फिर गतिशील और व्यवहारिक बन गया। यह स्वामी जी को सिर्फ एक महान ऋषि नहीं बनाता है बल्कि एक देशभक्त और युगनिर्माता भी बनाता है।

समाजिक जागरूकता : स्वमी जी के द्वारा राष्ट्रिय जागरूकता की एक लहर बही थी। स्वामी जी के द्वारा देशप्रेम और आम आदमी के बहुत से सुधार करने के लिए एक महान संघर्ष जारी रखा था। हमने जो भी राजनीतिक स्वतंत्रता के माध्यम से प्राप्त किया है वह सामाजिक जागरूकता के माध्यम से और राष्ट्रिय एकता के रूप में स्वामी जी द्वारा दिए गये भारत की आध्यात्मिकता के प्राचीन संदेश की ओर उन्मुखीकरण से आया है।

स्वामी जी मृत्यु : बहुत ज्यादा परिश्रम की वजह से स्वामी जी का स्वास्थ्य गिरने लगा था। 4 जुलाई, 1902 में स्वामी जी की मृत्यु हो गयी थी। स्वामी जी ने जीवन के थोड़े से समय में यह कमाल कर दिखाया था जिसे लंबा जीवन होने के बाद भी लोग नहीं कर पाते हैं।

उपसंहार : स्वामी विवेकानंद जी महामानव के रूप में अवतरित हुए। स्वामी जी ने प्रचार-प्रसार में जो भूमिका प्रस्तुत की है वह अतुलनीय है। स्वामी जी भारत माँ के सच्चे पुत्र थे। स्वामी जी ने भारत का गौरव बढ़ाया और संसार के समक्ष भारत की एक अनुपम तस्वीर प्रस्तुत की थी।

स्वामी जी ने सच्चे धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था कि धर्म वह होता है जो भूखे को अन्न दे सके और दुखियों के दुखों को दूर कर सके। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने स्पर्श के साथ दुनिया में एक गतिशील विश्व प्रेमी के रूप में गये थे। भारत के गौरव को देश-देशांतरों में उज्ज्वल करने के लिए उन्होंने हमेशा प्रयास किया था।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध | swami vivekananda in hindi essay | 150-250-500-1000 words.

Swami Vivekananda In Hindi Essay

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध / Essay on Swami Vivekananda in Hindi

swami vivekananda essay in hindi 200 words

स्वामी विवेकानंद पर निबंध / Essay on Swami Vivekananda in Hindi!

स्वामी विवेकानंद की गिनती भारत के महापुरुषों में होती है । उस समय जबकि भारत अंग्रेजी दासता में अपने को दीन-हीन पा रहा था, भारत माता ने एक ऐसे लाल को जन्म दिया जिसने भारत के लोगों का ही नहीं, पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया । उन्होंने विश्व के लोगों को भारत के अध्यात्म का रसास्वादन कराया । इस महापुरुष पर संपूर्ण भारत को गर्व है ।

इस महापुरुष का जन्म 12 जनवरी, 1863 ई. में कोलकाता के एक क्षत्रिय परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के यहाँ हुआ था । विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के नामी वकील थे । माता-पिता ने बालक का नाम नरेन्द्र रखा । नरेन्द्र बचपन से ही मेधावी थे । उन्होंने 1889 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर कोलकाता के ‘ जनरल असेम्बली ’ नामक कॉलेज में प्रवेश लिया । यहाँ उन्होंने इतिहास, दर्शन, साहित्य आदि विषयों का अध्ययन किया । नरेन्द्र ने बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की ।

ADVERTISEMENTS:

नरेन्द्र ईश्वरीय सत्ता और धर्म को शंका की दृष्टि से देखते थे । लेकिन वे जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे । वे अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए ब्रह्मसमाज में गए । यहाँ उनके मन को संतुष्टि नहीं मिली । फिर नरेन्द्र सत्रह वर्ष की आयु में दक्षिणेश्वर के संत रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए । परमहंस जी का नरेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा । नरेन्द्र ने उन्हें अपना गुरु बना लिया ।

इन्ही दिनों नरेन्द्र के पिता का देहांत हो गया । नरेन्द्र पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई । परंतु अच्छी नौकरी न मिलने के कारण उन्हें आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । नरेन्द्र गुरु रामकृष्ण की शरण में गए । गुरु ने उन्हें माँ काली से आर्थिक संकट दूर करने का वरदान माँगने को कहा । नरेन्द्र माँ काली के पास गए परंतु धन की बात भूलकर बुद्धि और भक्ति की याचना की । एक दिन गुरु ने उन्हें अपनी साधना का तेज देकर नरेन्द्र से विवेकानन्द बना दिया ।

रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद विवेकानन्द कोलकाता छोड़ वरादनगर के आश्रम में रहने लगे । यहाँ उन्होंने शास्त्रों और धर्मग्रंथों का अध्ययन किया । इसके बाद वे भारत की यात्रा पर निकल पड़े । वे उत्तर प्रदेश, राजस्थान, जूनागढ़, सोमनाथ, पोरबंदर, बड़ौदा, पूना, मैसूर होते हुए दक्षिण भारत पहुँचे । वहाँ से वे पांडिचेरी और मद्रास पहुँचे ।

सन् 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में विश्व धर्म-सम्मेलन हो रहा था । शिष्यों ने स्वामी विवेकानन्द से उसमें भाग लेकर हिन्दू धर्म का पक्ष रखने का आग्रह किया । स्वामी जी कठिनाइयों को झेलते हुए शिकागो पहुँचे । उन्हें सबसे अंत में बोलने के लिए बुलाया गया । परंतु उनका भाषण सुनते ही श्रोता गद्‌गद् हो उठे । उनसे कई बार भाषण कराए गए । दुनिया में उनके नाम की धूम मच गई । इसके बाद उन्होंने अमेरिका तथा यूरोपीय देशों का भ्रमण किया । अमेरिका के बहुत से लोग उनके शिष्य बन गए ।

चार वर्षों में विदेशों में धर्म-प्रचार के बाद विवेकानन्द भारत लौटे । भारत में उनकी ख्याति पहले ही पहुंच चुकी थी । उनका भव्य स्वागत किया गया । स्वामी जी ने लोगों से कहा – ” वास्तविक शिव की पूजा निर्धन और दरिद्र की पूजा में है, रोगी और दुर्बल की सेवा में है । ” भारतीय अध्यात्मवाद के प्रचार और प्रसार के लिए उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । मिशन की सफलता के लिए उन्होंने लगातार श्रम किया, जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया । 4 जुलाई, 1902 ई. को रात्रि के नौ बजे, 39 वर्ष की अल्पायु में ‘ ॐ ‘ ध्वनि के उच्चारण के साथ उनके प्राण-पखेरू उड़ गए । परंतु उनका संदेश कि ‘ उठो जागो और तब तक चैन की साँस न लो जब तक भारत समृद्ध न हो जाय ‘ – हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा ।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

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रुपरेखा : प्रस्तावना - स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय - स्वामी विवेकानंद की शिक्षा - स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र को योगदान - स्वामी विवेकानंद के विचार - उपसंहार।

एक समान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्रनाथ ने अपने ज्ञान तथा तेज के बल पर विवेकानंद बने। स्वामी विवेकानंद भारत के कई महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने विश्व भर में भारत का नाम रोशन करने का कार्य किया। अपने भाषण द्वारा उन्होंने पूरे विश्व भर में हिंदुत्व के विषय में लोगो को जानकारी प्रदान की तथा अपने महान कार्यों द्वारा उन्होंने पाश्चात्य जगत में सनातन धर्म, वेदों तथा ज्ञान शास्त्र को काफी ख्याति दिलायी और विश्व भर में लोगो को अमन तथा भाईचारे का संदेश दिया। इसके साथ ही उनका जीवन भी हम सबके लिए एक सीख है।

भारत अनेक संतों, विद्वानों एवं दार्शनिकों का साक्षी रहा है। स्वामी विवेकानंद स्वयं एक महान संत, विद्वान् और दार्शनिक थे। स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता (कोलकाता) में शिमला पल्लै में 12 जनवरी 1863 को हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जोकि कलकत्ता (कोलकाता) उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करत थे और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्य अनुयायियों में से एक थे। इनका जन्म से नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। वह भारतीय मूल के व्यक्ति थे, जिन्होंने वेदांत के हिन्दू दर्शन और योग को यूरोप व अमेरिका में परिचित कराया। उन्होंने आधुनिक भारत में हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया। उनके प्रेरणादायक भाषणों का अभी भी देश के युवाओं द्वारा अनुसरण किया जाता है। उन्होंने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में हिन्दू धर्म को परिचित कराया था।

स्वामी विवेकानंद अपने पिता के तर्कपूर्ण मस्तिष्क और माता के धार्मिक स्वभाव से प्रभावित थे। उन्होंने अपनी माता से आत्मनियंत्रण सीखा और बाद में ध्यान में विशेषज्ञ बन गए। उनका आत्म नियंत्रण वास्तव में आश्चर्यजनक था, जिसका प्रयोग करके वह आसानी से समाधी की स्थिति में प्रवेश कर सकते थे। उन्होंने युवा अवस्था में ही उल्लेखनीय नेतृत्व की गुणवत्ता का विकास किया। वह युवा अवस्था में ब्रह्मसमाज से परिचित होने के बाद श्री रामकृष्ण के सम्पर्क में आए। वह अपने साधु-भाईयों के साथ बोरानगर मठ में रहने लगे। अपने बाद के जीवन में, उन्होंने भारत भ्रमण का निर्णय लिया और जगह-जगह घूमना शुरु कर दिया और त्रिरुवंतपुरम् पहुँच गए, जहाँ उन्होंने शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय किया। कई स्थानों पर अपने प्रभावी भाषणों और व्याख्यानों को देने के बाद वह पूरे विश्व में लोकप्रिय हो गए। उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1902 को हुई थी ऐसा माना जाता है कि, वह ध्यान करने के लिए अपने कक्ष में गए और ध्यान के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई।

नरेंद्रनाथ ने प्रायः घर पर ही पढ़ाई की। अध्ययन के अलावा वे अभिनय, खेल एवं कुश्ती में भी रुचि रखते थे। वे अनेक कलाओं में प्रवीण थे। वे अपनी बाल्यवस्था से ही ऊर्जा से परिपूर्ण थे। वे संस्कृत भाषा में प्रवीण थे। उन्होंने कलकत्ता (कोलकाता) के प्रेसिडेंसी कॉलेज में अध्ययन किया। वे दर्शनशास्त्र में अच्छे थे। वे ब्रह्म-समाज से जुड़े। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। इसने उनके मन को काफी व्याकुल कर दिया। इन सबके दौरान, वे संत रामकृष्ण परमहंस से दक्षिणेश्वर में मिले और उनके शिष्य बन गए। 'निर्विकल्प समाधि' से गुजरने के बाद वे विवेकानंद बने। बाद में, उन्होंने संत रामकृष्ण के मठ का प्रभार लिया। वे देश भर के बहुत-से तीर्थ स्थानों पर गए। १८९३ ई. में वे शिकागो के धर्मसंसद में शामिल हुए। वहाँ उन्होंने पूरब की संस्कृति और विशेषताओं के बारे में बताया। 'शून्य' पर किया गया उनका भाषण आज भी सराहा जाता है।

१८९७ ई. में उन्होंने 'रामकृष्ण मिशन' की स्थापना की। यहाँ अनुयायिओं को वैदिक धर्म के बारे में पढ़ाया जाता था। मिशन ने सामाजिक सेवाएँ भी की। गरीबों के लिए विद्यालय, अस्पताल, अनाथालय आदि खोले गए। मिशन का लक्ष्य भारतीय संस्कृति के बारे में जागरूकता फैलानी थी। वह हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित थे और हिन्दू धर्म के बारे में देश के अंदर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच में नई सोच का निर्माण करने में सफल हुए। वह पश्चिम में ध्यान, योग, और आत्म-सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने में सफल हो गए। वह भारत के लोगों के लिए राष्ट्रवादी आदर्श थे।

स्वामी विवेकानंद के विचार अधिक प्रेरणादायक है। वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे क्यूंकि हिन्दू शास्त्रों (जैसे - वेद, रामायण, भगवत गीता, महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि) में रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल, शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी रुचि रखते थे। उन्होंने राष्ट्रवादी विचारों के माध्यम से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित किया। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरबिंद ने उनकी प्रशंसा की थी। महान हिंदू सुधारक के रुप में, जिन्होंने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया, महात्मा गाँधी ने भी उनकी प्रशंसा की। उनके विचारों ने लोगों को हिंदु धर्म का सही अर्थ समझाने का कार्य किया और वेदांतों और हिंदु अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरिये को भी बदला था। उनके इन्हीं कार्यों के लिए चक्रवर्ती राजगोपालाचारी (वह स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे) ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म तथा भारत को बचाया था। उनके प्रभावी लेखन ने बहुत से भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ताओं जैसे - नेताजी सुभाष चंद्र बोस, बाल गंगाधर तिलक, अरविंद घोष, बाघा जतिन, आदि को प्रेरित किया।

स्वामी विवेकानंद जी ने विश्व को भारतीय संस्कृति और परंपरा का सम्मान करना सिखलाया। वे एक महान संत, दार्शनिक और सच्चे देशभक्त थे। स्वामी विवेकानंद जी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपने जीवन के बाद भी लोगो को निरंतर प्रेरित करने का कार्य करते हैं तथा जिनके जीवन से हम सदैव कुछ ना कुछ सीख सकते हैं। उनका जन्म-दिवस 'राष्ट्रीय युवा दिवस' के रूप में मनाया जाता है।

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध | Essay on Swami Vivekananda in Hindi

नमस्कार आज का निबंध, स्वामी विवेकानंद पर निबंध Essay on Swami Vivekananda in Hindi पर दिया गया हैं. आज हम परम पूज्य स्वामी विवेकानंद जिन्हें आध्यात्मिक गुरु कहा जाता हैं.

इस निबंध में हम स्वामी विवेकानंद के जीवन के बारे में सरल भाषा में जानेगे. उम्मीद करते है विवेकानंद पर लिखा यह निबंध आपको पसंद आएगा.

स्वामी विवेकानंद पर निबंध Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद पर निबंध Essay on Swami Vivekananda in Hindi

आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन का उद्भव व धर्म सुधार आन्दोलन से जुड़ा हुआ है जिसकी शुरुआत स्वामी विवेकानंद ने की थी.

विदेशी शासन व पश्चिमी चिंतन धाराओं ने भारतीय चिंतन व संस्कृति की उपादेयता के सम्बन्ध में जो चुनौती प्रस्तुत की गई उसकी एक प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई.

प्राचीन काल से भारत में धर्म को मानवतावादी सार्वभौमिक रूप प्रकट किया गया. भारतीय राष्ट्रवादियों पर वेदांत हिन्दू धर्म का स्पष्ट प्रभाव पड़ा.

स्वामी विवेकानंद ने अपने चिंतन में कई पूर्वकालीन अवधारणाओ को समकालीन सन्दर्भ में परिभाषित किया और एक नई सामाजिक राजनीतिक समझ को जन्म दिया.

मूलतः धर्म से जुड़े विचारक होने के कारण स्वामी विवेकानंद के राजनीतिक चिंतन की हमेशा से प्रष्टभूमि धर्म ही रहा.

इसी आधार पर स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र की स्वतंत्रता एवं आत्मसम्मान को को सबसे अधिक मूल्यवान मानते हुए धार्मिक पहलू को स्थापित किया जो उन्हें पश्चिमी राष्ट्रवादी चिंतन से अलग कर देता हैं.

क्योकि पश्चिम में राष्ट्रवाद का विकास, महत्वपूर्ण सांस्कृतिक तत्व धर्म से होकर हुआ हैं. स्वामी विवेकानंद से पूर्व विभिन्न कालों में धर्म के स्वरूप व व्यवस्था में रूढ़िया गई थी.

जिन्होंने न केवल व्यक्ति मात्र की स्थिति बदत्तर हुई वरन समाज व राष्ट्र भी लम्बे समय तक अज्ञान रुपी अन्धकार में रहे. ऐसी स्थिति में विवेकानंद ने धर्म के व्यवहारिक रूप को पहचानने पर बल दिया.

धर्म में व्यक्तिगत एवं सामाजिक दोनों पहलुओं को महत्व दिया. वेदांत के आधार पर स्वामी विवेकानंद ने समानता, कर्तव्य, अधिकार एवं न्याय इत्यादि राजनीतिक अवधारणाओ की व्याख्या की.

स्वामी विवेकानंद ने धर्म के माध्यम से पुनः राष्ट्र को जागृत करने का प्रयास किया. अपने इस कार्य में विवेकानंद ने धर्म में निर्भीक, संगठित एवं स्वावलंबी मूल्यों को स्थापित करने का प्रयत्न किया.

इन्होने धर्म को व्यक्तिगत विकास का आधार न मानते हुए इसे सामाजिक ढांचा प्रदान किया. धर्म में व्याप्त सामाजिक विषमता, रूढ़िवादिता, संकीर्ण कट्टरता, असहिष्णुता, साम्प्रदायिकता, जातीयता तथा निर्बलता को खत्म कर एक आदर्श सनातन का स्वरूप बनाया.

स्वामी विवेकानंद पर सरल निबंध Short Essay on Swami Vivekananda in Hindi

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के एक कुलीन परिवार में हुआ था. उनका वास्तविक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था.

विवेकानंद नाम उन्होंने सन्यास ग्रहण करने के बाद शिकागो के धर्म संसद में भाग लेने हेतु मुंबई जाते समय ग्रहण किया था. उनका व्यक्तित्व प्रभावोंत्पादक, मुखमंडल तेजोमय था. उनकी बुद्धि प्रखर थी और स्मृति विलक्षण.

उनके सम्बन्ध में यह प्रसिद्ध है कि उन्हें एनसाईंक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के ग्यारह खंड कंठस्थ थे. स्वामी विवेकानंद अपने महाविद्यालयी जीवन में एक अच्छे वक्ता के रूप में जाने जाते थे.

उनके पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत करते थे. उनकी माता हिन्दू धर्म की महत्ता में विश्वास करने वाली विदुषी महिला था. माता के सद्गुणों का इन पर विशेष प्रभाव पड़ा.

उन्होंने जे एस मिल, हीगल, डेविड हयूम, कांट व फक्ते, सिप्नोजो, शोपेन होवर आदि पश्चिमी दार्शनिक की रचनाओं का विशद् व गहन अध्ययन किया. स्वामी विवेकानंद ब्रह्म समाज के विचारों से प्रभावित थे.

लेकिन वैचारिक अंतर्द्वंद के चलते वे नास्तिकतावाद व सशंयवाद की ओर भी प्रवृत हुए. अपने मित्र ब्रजेन्द्रनाथ सील की प्रेरणा से उन्होंने शेले व वुड्सवर्थ को पढ़ा और साथ में परम ब्रह्मा के तत्व ज्ञान की ओर प्रवृत हुए.

स्वामी विवेकानंद के विचारों में बुद्धिवाद, वेदांत के अद्वैतवाद, हीगल के द्वन्द्वात्मक परमतत्व तथा फ़्रांस राज्य की क्रांति के ध्येय वाक्य स्वतंत्रता, समानता, भ्रातत्व का स्वरूप दिखाई देता हैं. उन्होंने व्यक्तिवाद के स्थान पर सार्वभौमिक विवेक को श्रेष्ठ माना.

वे सत्यज्ञान की खोज में नवम्बर 1881 में रामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आए. 1886 में रामकृष्ण की मृत्यु के समय विवेकानंद उनके प्रमुख शिष्य बने.

उन्होंने गृहस्थाश्रम का त्याग कर दिया और हिमालय के जंगलों में साधना करने लगे. 6 वर्ष तक अत्यधिक कठोर संयम में रहे.

परिव्राजक के रूप में इन्होने भारत में भ्रमण किया. जिससे उन्हें साधारण जनता के भयंकर कष्टों और उनकी तकलीफों का पता चला.

स्वामी जी ने 1893 में विश्व धर्म संसद के शिकागो सम्मेलन में भाग लेने का निर्णय लिया. खेतड़ी के तत्कालीन ठाकुर साहब ने शिकागो सम्मेलन में सम्मिलित होने का व्यय वहन किया.

वह सम्मेलन स्वामी विवेकानंद के जीवन का एक स्वर्णिम अध्याय बन गया. भारतीय वेदांत की आधुनिक अर्थों में व्याख्या कर स्वामी विवेकानंद ने दिव्य संदेश दिया. उनका भाषण भारत की सार्वदेशिकता और विशाल ह्रद्यता से ओतप्रेत था.

वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पश्चिम की भौतिकवादी जनता के सम्मुख भारत के आध्यात्मवाद का महान आदर्श उपस्थित कर देश के वास्तविक स्वरूप का चित्र पश्चिम के सामने रखकर उन्हें चकित कर दिया.

1895 में भारत लौटने पर उन्होंने हिन्दू जाति की अंतरात्मा को जगाने का प्रयत्न किया. और अंधविश्वासों व कुप्रथाओं को दूर करने के लिए कार्य किया. 1897 में कलकत्ता के पास बैलूर में उन्होंने विख्यात रामकृष्ण मिशन की स्थापना की.

एक वर्ष पश्चात इन्होने सान फ्रांसिस्को, पेरिस व मिस्र की यात्राएं की. संस्कृत व वेदांत के अध्ययन के लिए उन्होंने बनारस में एक पाठशाला की स्थापना की.

अत्यधिक कार्यभार के कारण स्वामी विवेकानंद का स्वास्थ्य निरंतर गिरने लगा, लेकिन इसकी परवाह किये बिना वे अपने कार्य में लगे रहे.

अन्तः 39 वर्ष की अल्पायु में 4 जुलाई 1902 को उनका देहावसान हो गया. भारतीय चिंतन में कर्मयोग में उनका संदेश आज भी प्रेरक शक्ति हैं.

स्वामी विवेकानंद के विचारों पर निबंध Essay on Swami Vivekananda’s Thoughts in Hindi

धर्म एक शाश्वत अवधारणा के रूप में मानव इतिहास में अवस्थित रहा हैं. यह केवल दर्शन अथवा ईश्वरीय साधना का विषय मात्र नहीं है.

वर्ण जीवन के समस्त पहलुओं से सम्बन्धित हैं. भारत में धर्म एक विशिष्ठ उपासना पद्धति तक ही सीमित नहीं रहा हैं.

वरन उपासना पद्धति उसका एक अंग मात्र हैं. धर्म शब्द की उत्पत्ति धृ धातु से हुई हैं जिसका अर्थ है धारयति इति धर्मः अर्थात धारण किया जाए, जिसे आचरण में धारण कर सके.

धर्म के रूप में विधान नैतिक, सदाचार, सत्कर्म, कर्तव्य, न्याय, पवित्रता, नीति आदि को परिभाषित किया गया हैं.

स्वामी विवेकानंद के धार्मिक विचारों के निर्माण का प्रमुख केंद्र वेद व वेदांत दर्शन रामकृष्ण परमहंस का प्रभाव व स्वयं के निजी अनुभव था. उन्होंने दर्शन को व्यवहारिक रूप देने का प्रयास किया.

उनका मानना था कि वेदांत उस ईश्वर में विश्वास नहीं करता जो मृत्यु के पश्चात तो स्वर्ग के समस्त सुख दे सके, किन्तु जीवित व्यक्ति के लिए रोटी उपलब्ध नहीं करवा सके.

उनका मानना था कि मानव की वास्तविक प्रकृति ईश्वरीय है और वेदान्त संसार त्यागने के स्थान पर समस्त विश्व को ब्रह्मामय बनाने का पाठ सिखाते हैं.

उन्होंने अपने समय के अन्य विचारकों से अलग ईश्वर के निर्गुण और सगुण दोनों रूपों को स्वीकार किया हैं. ईशावस्यतिदम सर्वम की धारणा से उनके विचारों में अद्वैत एवं विशिष्ठद्वैत दोनों का अद्भुत मिश्रण दिखाई देता हैं.

स्वामी विवेकानंद ने कहा कि वेदों ने शुद्ध प्रेम की शिक्षा दी हैं. इसी आधार पर शिकागो धर्म संसद में संबोधित करते हुए उन्होंने कहा – हे अमृत के पुत्रगण तुम्हे पापी कहना अस्विकारता हैं.

तुम तो ईश्वर की सन्तान हो, अमर आनन्द के हो, पवित्र और पूर्ण आत्मा हो. तुम इस भूमि के देवता हो, तुम भला पापी कैसे हो सकते हो. मनुष्य को पापी कहना ही पाप है. वह मानव स्वभाव पर घोर लांछन हैं.

विवेकानंद और हिन्दू धर्म

प्राचीन काल में हिन्दू शब्द का प्रयोग किसी धर्म के रूप में नहीं, विशेष लोगों के सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ हैं. एक विशेष धर्म के रूप में हिन्दू शब्द का प्रयोग बहुत बाद में आरम्भ हुआ.

हिन्दू धर्म में मौजूद विभिन्न मत मतांतर इसे दुरूह पंथों, कर्मकांडों, अंधविश्वासों परम्परागत मतों व आदिम कर्मकांडों का पुंज मानते थे. इसलिए यूरोपीय इनकी आलोचना करते थे.

स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म की व्याख्या किसी संकुचित अर्थ, उपासना पद्धति या विशेष कर्मकाण्ड के आधार पर नहीं की. उनका कहना था हम लोग हिन्दू है.

मैं हिन्दू शब्द का प्रयोग किसी बुरे अर्थ में नही कर रहा और मैं उन लोगों से कदापि सहमत नहीं, जो उससे कोई बुरा अर्थ समझते हैं. प्राचीन काल में इस शब्द का अर्थ था सिन्धु नदी के दूसरी ओर बसने वाले.

स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू धर्म को महत्व दिया. उन्होंने धर्म व हिन्दू इन दोनों शब्दों को समानार्थ माना, उनका मानना था कि यदि कोई हिन्दू धार्मिक नहीं है तो वह उसे हिन्दू नहीं मानते हैं. उनका कहना था कि प्रत्येक धर्म में ईश्वर को माना जाता है,

लेकिन धर्म से जुड़ा व्यक्ति स्वयं के धर्म को ही श्रेष्ठ समझता हैं. ठीक वैसे ही जैसे एक कुँए का मेढ़क अपने कुँए को ही सम्पूर्ण संसार मानता हैं.

जबकि हिन्दू धर्म में माना जाता है कि विभिन्न नदियाँ भिन्न भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार विभिन्न टेड़े मेडे अथवा सीधे रास्ते से जाने वाले लोग अंत में ईश्वर में ही आकर मिल जाते हैं.

स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त दर्शन को इस तरह विकसित किया जिससे समस्त संघर्षों को दूर किया जा सके. और इससे मानव जाति का बहुमुखी विकास हो सके.

उन्होंने भारत की विशिष्ठता को धर्म के रूप में प्रतिष्ठित किया. धर्म की विशद व्याख्या में मानवतावादी, सार्वभौमिक स्वरूप, वैज्ञानिकता और आचरण के नियमों को प्रस्तुत किया.

उन्होंने विश्व के सम्मुख भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की श्रेष्ठता को प्रतिपादित किया. उनके मन में मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम था.

उन्होंने पश्चिम के विपरीत राष्ट्रवाद का आधार धर्म को बनाते हुए आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की अवधारणा विकसित की.

राष्ट्रवाद के उन्नयन में अभयम आत्मबल और आत्मविश्वास को अत्यधिक महत्व दिया. उन्होंने अस्प्रश्यता, शोषण, स्त्रियों की गिरती दशा, शिक्षा के अभाव आदि को सामाजिक विषमता व गिरती स्थिति के लिए उत्तरदायी माना तथा अवसरों की समानता को सिद्धांत स्वीकार किया.

स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को कर्मयोग की महत्ता समझाई. दरिद्रनारायण की सेवा को राष्ट्रवाद से जोड़ने का उनका विचार गाँधी चिंतन में स्पष्ट दिखाई देता हैं.

उन्होंने संकीर्ण राष्ट्रवाद से दूर रहकर राष्ट्रीय एकीकरण पर बल दिया. वे भारत के एक ऐसे राष्ट्रवादी हैं. जो धर्म के माध्यम से भारत में राष्ट्रवाद को पुनर्जाग्रत करना चाहते थे.

स्वामी विवेकानंद परम्परागत अर्थों में दार्शनिक या समाज सुधारक नहीं थे. वास्तव में वे धार्मिक व्यक्ति थे.

जिन्होंने धर्म की व्याख्या इस तरह से की, कि आपसी संघर्ष, साम्प्रदायिकता, सामाजिक दुरावस्था व राष्ट्रीय परतन्त्रता का समाधान स्वतः ही हो जाए.

One comment

sir apne jo jankari di hai usme sabhi mahtpurn information hai

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध

Essay On Swami Vivekananda In Hindi : स्वामी विवेकानंद ऐसे महान व्यक्तियों में से हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के नाम को रोशन किया। भारत की संस्कृत के ऐसे महान विद्वान थे, जिन्होंने अपने ज्ञान से सभी भारत के युवाओं को मार्गदर्शन किया।

आज भी यह भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं। इन्हें पावर हाउस कहा जाता है। इनकी संकल्प शक्ति, जिज्ञासा तथा खोज की प्रवृत्ति आज भी हर युवा के लिए प्रेरणा है। स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी ना जाने कई ऐसी घटनाएं है, जो प्रेरणा से भरी हुई है।

Essay On Swami Vivekananda In Hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Essay On Swami Vivekananda In Hindi)

स्वामी विवेकानंद का जन्म तारीख 12 जनवरी हर साल युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन स्कूल कॉलेजों में भी बच्चों को स्वामी विवेकानंद के जीवन पर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है ताकि बच्चे स्वामी विवेकानंद के जीवन घटनाओं से अवगत होकर वे भी विवेकानंद की तरह ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दृढ़ निश्चय कर सके और तब तक ना रुके जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।

आज के इस लेख में हम स्वामी विवेकानंद पर निबंध हिंदी में 100, 250, 300, 500, 850 एवं 1000 शब्दों में निबंध लिखकर आए। यह स्वामी विवेकानंद पर निबंध (Swami Vivekananda Essay in Hindi) बहुत ही सरल भाषा में लिखे गये हैं, जो सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 100 शब्द

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे महान भारतीय युवा थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन सन्यासी रूप में बिता दिया और इसी जीवन में इन्होंने अपने ज्ञान शक्ति से विश्व भर को प्रकाशित किया। स्वामी विवेकानंद का जन्म बंगाल की राजधानी कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को हुआ था।

इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, वे पेशे से कोलकाता उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करते थे। इनकी माता का नाम भुनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था लेकिन बाद में भी अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के शरण में जाने के बाद स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रख्यात हुए।

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही अपने पिता के तर्कपूर्ण स्वभाव और माता के धार्मिक स्वभाव से परिचित थे। इसलिए बचपन से ही इन्हें भी तर्क करने की आदत थी। इनके जीवन में इनकी माता की अहम भूमिका रही। इन्होंने अपनी माता से आत्म नियंत्रण सीखा।

कम उम्र में ही स्वामी विवेकानंद ने गृह त्याग कर भारत भ्रमण करने का निर्णय लिया। यह जगह-जगह पर घूमे और भारत की संस्कृति से परिचित हुए। इसी दौरान 1893 में स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासभा में दुनिया के सभी लोगों को हिंदू धर्म से परिचित करवाया था।

शिकागो धर्म सम्मेलन के बाद स्वामी विवेकानंद काफी ज्यादा लोकप्रिय हुए। आगे भी इन्होंने कई जगहों पर भारतीय संस्कृति के महत्व संदर्भ में भाषण दिए। अंत में 4 जुलाई 1902 को ध्यान करते हुए इन्होंने अपने नश्वर शरीर का परित्याग किया।

Essay On Swami Vivekananda In Hindi

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स्वामी विवेकानंद पर निबंध 250 शब्द

उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कोलकाता में न्यायालय में वकील थे और वह हमेशा सच्च की लड़ाई के लिये लोगों को न्यायालय में न्याय दिलाते थे और उनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। उनकी माता धार्मिक स्थलों में ज्यादा रूचि रखती थी, वह हमेशा शिव जी की पूजा अर्चना में अपना जीवन व्यतीत करना चाहती थी। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र दत्त हुआ करता था।

उनकी माता धार्मिक स्थलों में अर्चना पूजा करती थी, वहीँ सब देख कर स्वामी विवेकानंद घर में होने वाली पूजा, रामायण, कीर्तन आदि के ओर खींचे चले जा रहे थे और उनकी इन सब में रूचि बढ़ने लगी। स्वामी विवेकानंद को 16 वर्ष की उम्र में कोलकाता के प्रेसिडेसी कॉलेज में दाखिला कराया और हिन्दू धर्म के सभी ग्रंथों के बारे में अच्छी तरह अध्ययन किया।

उनको शिक्षा के अलावा खेल-कूद प्रणायाम आदि में उनको बहुत अधिक रूचि थी। हिंदी और संस्कृति के अलावा अन्य सभ्यता और संस्कृति का भी अध्ययन करके उनको काफ़ी अनुभव रहा है। ये सब का अध्ययन करके स्वामी जी ने बहुत सारी डिग्री प्राप्त की थी।

स्वामी विवेकानंद के बारे में आज हर कोई जनता है, उनके द्वारा किये गए कार्य प्रशंसनीय रहे है। स्वामी विवेकानंद जिनको महान पुरुष माना जाता है। सभी सरकारी कार्यालयों में स्वामी विवेकानंद के फोटो लगे होते है।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 300 शब्द

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे भारत के विद्वान थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन जनकल्याण को समर्पित कर दिया। स्वामी विवेकानंद शारीरिक रूप से जितने मजबूत थे, उतने ही वह बौद्धिक रूप से भी मजबूत है। इन्होंने युवाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत रहने की प्रेरणा दी।

क्योंकि उनका मानना था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। इन्होंने समाज में व्याप्त कई बुराई और कुप्रभाव को दूर करने का प्रयास किया। आज ये हर भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं।

स्वामी विवेकानंद का जन्म

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को नरेंद्र दत्त एवं उनकी पत्नी भुनेश्वरी देवी के यहां हुआ था। पिता कोलकाता में उच्च न्यायालय में वकालत का कार्य करते थे। बुद्धि के मामले में विवेकानंद पर इनके पिता का प्रभाव पड़ा था। क्योंकि उनके पिता को भी बचपन से तर्क पूछने की काफी आदत थी।

शुरुआत में विवेकानंद का नाम नरेंद्र था। नरेंद्र के पिता हमेशा से ही इन्हें अंग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के अनुसार जीना सिखाना चाहते थे लेकिन नरेंद्र ऐसा न करते हुए ब्रह्म समाज को स्वीकार किया। क्योंकि बचपन से ही इनकी बुद्धि बहुत तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी बहुत प्रबल थी।

1884 में विवेकानंद के पिता की मृत्यु हो गई, जिसके कारण घर की सारी जिम्मेदारी इन्हीं पर आ गई। घर की आर्थिक स्थिति भी काफी दयनीय हो गई थी। लेकिन इसके बावजूद विवेकानंद कभी भी अपनी दुखद स्थिति से घबराए नहीं। गरीबी में जीने के बावजूद यह हमेशा ही स्वयं भूखे रहकर दूसरों को भोजन कराते थे।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही काफी ज्यादा बुद्धिमान थे लेकिन इनके शिक्षा में काफी ज्यादा रुकावट आई। इन्होंने विद्यालय से ज्यादा अपने घर पर ही पढ़ाई की, उसके बाद कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से इन्होंने आगे की पढ़ाई दर्शनशास्त्र में पूरी की। पिता की मृत्यु के बाद यह अपनी आत्मा की शांति के लिए ब्रह्म समाज में जाकर जुड़ गए।

स्वामी विवेकानंद के गुरु

नरेंद्र जब ब्रह्म समाज में जुड़े हुए थे और जब उन्हें वहां भी अपने प्रश्नों का जवाब नहीं मिल रहा था। तब इन्हें दक्षिणेश्वर काली मंदिर के पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस के लोकप्रियता के बारे में पता चला, जिसके बाद नरेंद्र शुरुआत में तर्क करने के विचार से रामकृष्ण परमहंस जी के पास पहुंचे।

लेकिन वहां पहुंचने के बाद विवेकानंद पर रामकृष्ण परमहंस आध्यात्मिक ज्ञान का काफी ज्यादा प्रभाव पड़ा। इसके बाद यह उनके शिष्य बन गए और आगे स्वामी विवेकानंद के नाम से संयासी जीवन व्यतीत करने लगे।

संयासी जीवन में प्रवेश करने के बाद स्वामी विवेकानंद ने आगे का अपना पूरा जीवन अपने गुरु राम किशन परमहंस को समर्पित कर दिया। उनके अंतिम दिनों में भी विवेकानंद अपने घर और कुटुंब के नाजुक हालत की परवाह किए बिना गुरु की सेवा करते रहे। अंततः 4 जुलाई 1902 को बेलूर स्थित एक मठ में ध्यान के दौरान इन्होंने भी अपना शरीर त्याग दिया।

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 500 शब्द

स्वामी विवेकानंद एक महान विद्वान हिंदू संत थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैलाया। एक सामान्य बालक की तरह अपना बचपन का जीवन बिताते हुए आगे इन्होंने युवावस्था में संयास ले लिया और अपने पूरे जीवन को जनसेवा में समर्पित कर दिया।

अपने ज्ञान की रोशनी से इन्होंने हर एक भारतीय युवाओं को जीवन का सही मार्ग दिखाया। आज भी यह युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत हैं। विवेकानंद का जीवन सफर आज भी युवाओं को खूब प्रभावित करते हैं।

स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन

स्वामी विवेकानंद पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर से थे। कोलकाता में इनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। इनकी माता का नाम भुनेश्वरी देवी था और पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो पेशे से कोलकाता के उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। विवेकानंद अपने आठ भाई बहनों में से एक थे।

विवेकानंद पर मानसिक रूप से इनके पिता का काफी ज्यादा ज्यादा प्रभाव था। बुद्धि के मामले में यह बिल्कुल अपने पिता के समान ही गए थे। बचपन से ही इन्हें विभिन्न तरह के तर्क करने की आदत थी। इन्होंने अपनी माता से आत्म नियंत्रण करना सीखा था और आत्म नियंत्रण में इतने माहिर हो चुके थे कि ये जब चाहे तब अपने आपको समाधी में ढाल सकते थे। विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र था।

1884 में नरेंद्र के पिता की मृत्यु हो जाने के बाद घर की स्थिति काफी ज्यादा नाजुक हो गई, जिसके कारण इन्हें आगे गरीबी में अपना जीवन बिताना पड़ा। लेकिन इसके बावजूद विवेकानंद हमेशा अपने दृढ़ शक्ति दिखाते ही रहे।

यह कभी भी अपनी गरीबी जीवन से घबराए नहीं और खुद भूखे रहकर दूसरों को भोजन कराएं, स्वयं के दुख को भूलकर दूसरों के दुख को दूर करने का प्रयत्न करते रहे। समाज में व्याप्त तरह-तरह के कुप्रथा को समाप्त करने के लिए इन्होंने समाज में रहते हुए कई तरह के कार्य किए।

नरेंद्र बचपन से ही अध्ययन में काफी ज्यादा बुद्धिमान थे। इनकी तर्कशक्ति हर किसी को आश्चर्य चकित कर देती थी। हालांकि इनकी शिक्षा काफी अनियमित रूप से हुई। संस्कृत भाषा में यह काफी ज्यादा ज्ञान था। इन्होंने आगे की पढ़ाई कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र के विषय में पूरी की।

हालांकि नरेंद्र को शिक्षा से ज्यादा आत्मशांति के लिए ललाहित थे। आत्म शांति से संबंधित अनेकों तरह के प्रश्न इनके मन में थे, जिसके जवाब को पाने के लिए इन्होंने अपनी पढ़ाई को बीच में ही रोक दिया और ब्रह्म समाज के साथ जुड़ गए।

विवेकानंद के गुरु का नाम राम कृष्ण परमहंस था। ब्रह्म समाज में जब यह थे तब परमेश्वर प्राप्ति को लेकर इनके मन में कई प्रश्न थे, जिसका जवाब उन्हें वहां नहीं मिला। उसी दौरान इन्हें रामकृष्ण परमहंस की लोकप्रियता के बारे में जाना तब इन्होंने रामकृष्ण परमहंस से मिलने का निर्णय लिया।

रामकृष्ण परमहंस से एक बार मिलने पर ही उनके आध्यात्मिक ज्ञान से काफी ज्यादा प्रभावित हुए, जिसके बाद उनके शिष्य बन गए और फिर आगे स्वामी विवेकानंद के नाम से सन्यासी जीवन व्यतीत करने लगे।

स्वामी विवेकानंद की यात्रा

मात्र 25 वर्ष की युवा अवस्था में नरेंद्र गेरुआ वस्त्र पहनकर सन्यासी का रूप धारण कर लिया और फिर पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा पर निकल गए। इस रूप में यह नरेंद्र के बजाय स्वामी विवेकानंद के नाम से जाने जाने लगे।

भारतवर्ष की यात्रा के दरमियां भारत की संस्कृति से पूरी तरीके से परिचित हुए और फिर इसी दौरान 1893 में शिकागो के विश्व धर्म परिषद में इन्हें भारत के प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया।

शिकागो के धर्म परिषद में अपने भाषण के जरिए स्वामी विवेकानंद ने हिंदू धर्म के विषय में लोगों का नजरिया ही बदल दिया और विभिन्न देशों के लोगों को अध्यात्म और वेदांत से परिचित कराया।

स्वामी विवेकानंद का निधन

अमेरिका में लगभग 3 वर्षों तक रहने के पश्चात विवेकानंद ने भारत के तत्व ज्ञान की अद्भुत ज्योति वहां के लोगों को प्रदान करते रहे। अमेरिका में भी इन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाओं को स्थापित किया, उसके बाद यह भारत लौट आए और फिर 4 जुलाई 1902 को मेरठ में ध्यान करते हुए इन्होंने अपना देह त्याग किया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 800 शब्द

भारत के सामान्य परिवार में जन्म लेने वाले नरेंद्र नाथ ने अपने ज्ञान और तेज के बल पर विवेकानंद बन गए। अपने कार्यों द्वारा विश्व भर में भारत का नाम रोशन कर दिया। यही कारण है कि आज के समय में भी विवेकानंद लोगों के लिए एक प्रकार से प्रेरणा के स्रोत है।

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता मकर सक्रांति के शुभ त्यौहार के अवसर परंपरागत कायस्थ बंगाली परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद का बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनको नरेंद्र या नरेन के नाम से भी पुकारा जाता था।

स्वामी विवेकानंद के माता-पिता का नाम विश्वनाथ और भुनेश्वरी देवी था। उनके पिता कोलकाता के उच्च न्यायालय में वकील थे और उनकी माता एक धार्मिक महिला था। वह पिता के तर्कसंगत मन और माता के धार्मिक स्वभाव वाले वातावरण के अन्तर्गत सबसे प्रभावी व्यक्तित्व में विकसित हुए।

वह बाल्यकाल से ही आध्यात्मिक व्यक्ति थे और हिंदू भगवान की मूर्तियां जैसे भगवान शिव हनुमान जी आदि के सामने ध्यान किया करते थे। वह अपने समय के घूमने वाले सन्यासियों और शिक्षकों से भी प्रभावित थे।

स्वामी विवेकानंद बचपन में बहुत शरारती थे और अपने माता-पिता के नियंत्रण से बाहर थे। वह अपनी माता के द्वारा भूत कहे जाते थे। उनके एक कथन के अनुसार “मैंने भगवान शिव से एक पुत्र की प्रार्थना की थी और उन्हें मुझे अपने भूतों में से एक भूत भेज दिया।”

8 साल की उम्र में स्वामी विवेकानंद का चंद्र विद्यासागर महानगर संस्था और 1879 में प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया गया। स्वामी विवेकानंद सामाजिक विज्ञान, इतिहास, कला और साहित्य जैसे विषयों में बहुत अच्छे थे। उन्होंने पश्चिमी तर्क, पश्चिमी संस्कृति और साहित्य का अध्ययन किया था।

स्वामी विवेकानंद कोलकाता में पढ़ाई के लिये गये हुये थे तो कोलकाता शहर मे काली माताजी के मंदिर मे स्वामी विवेकानंद की मुलाक़ात श्री रामकृष्ण परमहंस से हुई। तभी स्वामी विवेकानंद का चरित्र, व्यवहार और ईश्वर के प्रति भक्ति को देखकर रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को अपना शिष्य बनाया।

रामकृष्ण परमहंस से मिलन

रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद से प्रश्न किया कि ईश्वर को खोजने के लिये हमें कौन सा मार्ग अपनाना चाहिये। स्वामी ने जवाब दिया कि इस दुनिया मे ईश्वर का अस्तित्व होता है, अगर मनुष्य ईश्वर को पाना चाहता है तो सच्चे मन से अच्छे कर्म करके, मानवजाति की सेवा करके ईश्वर को खोजा जा सकता है।

1884 में स्वामी विवेकानंद के पिता विश्वनाथ दत्त का देहांत हो गया था, जिस कारण से पूरे परिवार की जिम्मेदारी स्वामी विवेकानंद पर आ गयी थी। उनके घर की आर्थिक समस्याएं बहुत ज्यादा बढ़ गई थी, उनकी परिस्थितियों को देखते हुये रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी जी का साथ दिया।

रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के जिस मंदिर में स्वयं पुजारी हुआ करते थे, अपने साथ स्वामी विवेकानंद को भी ले जाकर पूजा अर्चना करने के लिये पुजारी के रूप मे उनको भी रख लिया। लम्बे समय तक परमहंस कृष्ण गुरु के साथ रहकर स्वामी विवेकानंद भी भगवान की भक्ति लीन हो गये।

स्वामी विवेकानंद के विचार

वह बहुत धार्मिक व्यक्ति थे। हिंदू शास्त्रों जैसे रामायण, भागवत गीता, महाभारत, उपनिषदह पुराण आदि में बहुत रुचि रखते थे। वह भारतीय शास्त्रीय संगीत, खेल शारीरिक व्यायाम और अन्य क्रियाओं में भी बहुत रूचि रखते थे। उनको विलियम हैस्टै द्वारा “नरेंद्र वास्तव में एक प्रतिभाशाली है” कहा गया था।

स्वामी विवेकानंद हिंदू धर्म के प्रति बहुत उत्साहित है और हिंदू धर्म के बारे में देश के अंदर और बाहर दोनों जगह लोगों के बीच नई सोच का निर्माण करने में भी सफल हुए थे। वह पश्चिम में ध्यान योग और आत्म सुधार के अन्य भारतीय आध्यात्मिक रास्तों को बढ़ावा देने के लिए भी सफल हुए। स्वामी विवेकानंद भारत के लोगों के लिए एक राष्ट्रवादी आदर्श थे।

उनके राष्ट्रवादी विचारों से कई भारतीय नेताओं का ध्यान आकर्षित हुआ। भारत की आध्यात्मिक जागृति के लिए श्री अरविंद ने उनकी प्रशंसा भी की थी। स्वामी विवेकानंद को महान हिंदू सुधारक के रूप में भी जाना जाता है और उन्होंने हिंदू धर्म का बढ़ावा भी दिया।

महात्मा गांधी द्वारा भी स्वामी विवेकानंद की प्रशंसा की गई। उनके विचारों ने लोगों को हिंदू धर्म का सही अर्थ समझने का कार्य किया और वेदांता और हिंदू अध्यात्म के प्रति पाश्चात्य जगत के नजरियों को भी बदला।

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु

स्वामी विवेकानंद के अनेक कार्यों के लिए उन्हें चक्रवर्ती राजगोपालाचारी स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल ने कहा कि “स्वामी विवेकानंद वह व्यक्ति थे, जिन्होंने हिंदू धर्म तथा भारत को बचाया है।” उन्होंने सुभाष चंद्र बोस के द्वारा आधुनिक भारत का निर्माता भी कहा गया। ऐसा भी कहा जाता है कि 4 जुलाई 1902 में उन्होंने बेलूर मठ में 3 घंटे ध्यान साधना करते हुए अपने प्राणों का त्याग भी कर दिया था।

स्वामी विवेकानंद के जीवन में कई भिन्न-भिन्न प्रकार की विपत्तियां आई, लेकिन उन सभी विपत्तियों के बावजूद भी स्वामी विवेकानंद कभी सत्य के मार्ग से नहीं हटे और अपने जीवन भर लोगों को ज्ञान देने का कार्य किया। साथ ही अपने इन्हीं विचारों से उन्होंने पूरे विश्व को भी प्रभावित किया तथा भारत और हिंदुत्व का नाम रोशन करने का कार्य किया।

स्वामी विवेकानंद पर निबंध 1000 शब्द

स्वामी विवेकानंद एक महान हिंदू संत और नेता थे, जो आज भी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा है। इन्होंने अपने ज्ञान के बलबूते देश विदेश तक भारतीय संस्कृति को फैलाया और भारत के प्रति लोगों के नजरिए को बदला।

विवेकानंद का जन्म पश्चिम बंगाल राज्य के कोलकाता शहर में 12 जनवरी 1863 को विश्वनाथ दत्त के यहां हुआ था। इनकी माता का नाम भुनेश्वरी देवी था। विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। यह अपने 8 भाई बहनों में से एक थे।

इनके पिता पेशे से कोलकाता के उच्च न्यायालय में वकील के रूप में कार्य करते थे। इनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति की थी। अपनी माता से इन्होंने आत्म नियंत्रण और आध्यात्मिकता से संबंधित काफी ज्ञान प्राप्त किया था। अपनी माता से ही इन्हें हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति को करीब से समझने का मौका मिला था।

नरेंद्र की माता बचपन से इन्हें रामायण और महाभारत की कहानियां सुनाया करती थी। इसी कारण नरेंद्र को बचपन से ही आध्यात्मिकता के क्षेत्र में लगाव होने लगा था। जब भी वे इस तरह के धार्मिक कथाओं को सुनते तो उनका मन हर्षोल्लास से भर जाता और ध्यान मग्न हो जाते।

इनके पिता पाश्चात्य संस्कृति को काफी ज्यादा पसंद करते थे। जब तक इनके पिता जीवित थे, घर की स्थिति काफी सुख संपन्न वाली थी। इनके पिता हमेशा से ही नरेंद्र को पाश्चात्य संस्कृति के रंग में ढालना चाहते थे।

इसीलिए वे नरेंद्र को अंग्रेजी भाषा में शिक्षा दिलवाना चाहते थे। लेकिन नरेंद्र को अंग्रेजी भाषा से बिल्कुल लगाव नहीं था। हालांकि ये प्रतिभा के धनी थे, लेकिन इनका असली लक्ष्य तो आत्म शांति और परमात्मा प्राप्ति था।

विवेकानंद ने अपने प्रारंभिक शिक्षा स्कॉटिश चर्च कॉलेज और विद्यासागर कॉलेज से की। उसके बाद इन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए एंट्रेंस एग्जाम दिया, जिसमें विवेकानंद प्रथम स्थान पर आए थे।

यहां पर इन्होंने दर्शनशास्त्र से आगे की पढ़ाई पूरी की। हालांकि इसके अतिरिक्त इन्हें सामाजिक विज्ञान, कला, धर्म, साहित्य, इतिहास, संस्कृत और बंगाली साहित्य में भी बहुत दिलचस्पी थी।

स्वामी विवेकानंद की उनके गुरु से मुलाकात

स्वामी विवेकानंद को हमेशा से ही आत्मज्ञान चाहिए था और उन्हें इससे संबंधित कई तरह के प्रश्न थे, जिसके जवाब को पाने के लिए ब्राह्मण समाज के साथ जुड़े। लेकिन इन्हें वहां भी कोई जवाब नहीं मिला तब इन्होंने ब्रह्म समाज के नेता महा ऋषि देवेंद्रनाथ ठाकुर के द्वारा दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसा सुनी।

इन्होंने विवेकानंद को कहा कि उनके पास सभी तरह के प्रश्नों का उत्तर है। तब विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस को मिलने के लिए जाते हैं। पहली मुलाकात में ही विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस से पूछते हैं कि क्या आपने ईश्वर को देखा है?

दरअसल विवेकानंद से इस प्रश्न को कई लोगों ने पूछा था लेकिन उनके पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था। इसीलिए वे रामकृष्ण परमहंस को यह प्रश्न पूछ कर उनके ज्ञान से बारे में अवगत होना चाहते थे।

विवेकानंद के प्रश्न पर रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें उत्तर दिया कि हां मैंने ईश्वर को देखा है, मैं तुम में ईश्वर देख सकता हूं। ईश्वर सभी के अंदर व्याप्त है। विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के इस उत्तर से संतुष्ट होते हैं। उनके मन को शांति मिल जाती है, जिसके बाद वे रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बना लेते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने मात्र 25 वर्ष की उम्र में अपना साधारण जीवन छोड़ सन्यासी जीवन को अपना लिया था। उससे पहले वे नरेंद्र के नाम से जाने जाते थे लेकिन सन्यासी जीवन ग्रहण करने के बाद ये स्वामी विवेकानंद कहलाए।

उसके बाद इन्होंने भारत दर्शन का निर्णय लिया और फिर निकल पड़े पैदल भारत दर्शन करने और भारतवर्ष की यात्रा करके उन्होंने भारत कि सनातन धर्म भारत की संस्कृति से पूरी तरीके से परिचित हुए।

स्वामी विवेकानंद और श्री रामकृष्ण परमहंस

सन 1893 में स्वामी विवेकानंद भारत के प्रतिनिधि के रूप में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म परिषद में गए थे और वहां पर उनके द्वारा दिया गया भाषण आज भी युवा पीढ़ी को प्रेरित करती है। शिकागो के भाषण के माध्यम से उन्होंने भारतीय संस्कृति को पहली बार दुनिया के सामने रखा और हिंदुत्व धर्म से लोगों को परिचित कराया।

वहां पर विश्व के कई धर्मगुरु आए थे, जो अपने धर्म कीकिताबें लेकर गए थे। स्वामी विवेकानंद अपने साथ भागवत गीता लेकर गए थे। कहा जाता है कि यूरोप अमेरिका के लोग उस समय पराधीन भारतवासियों को बहुत तुच्छ नजर से देखते थे।

जिस कारण वहां पर स्वामी विवेकानंद की निंदा करने के लिए लोगों ने बहुत प्रयत्न किया कि उन्हें सम्मेलन में बोलने का ही मौका ना दिया जाए। लेकिन एक अमेरिकन प्रोफेसर स्वामी विवेकानंद ने अनुरोध किया कि उन्हें केवल दो ही मिनट चाहिए, उतने में ही वे अपने भाषण को पूरा कर लेंगे।

हालांकि वह प्रोफेसर आचार्य चकित रह गया कि इतने कम समय में ये कैसे अपने धर्म से लोगों को अवगत करा पाएंगे। लेकिन विवेकानंद के लिए इतना समय काफी था और इतने समय में उनके द्वारा बोले गये दो शब्द भाइयों और बहनों को ही सुनकर श्रोता गणों के तालियों की गड़गड़ाहट से सम्मेलन का भवन पूरी तरह गूंज उठा।

इस तरह उसके बाद स्वामी विवेकानंद ने वैदिक दर्शन का ज्ञान दिया, सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इस भाषण से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की एक नई छवि सामने आई।

इतना ही नहीं अमेरिका में स्वामी विवेकानंद लगभग 3 सालों तक रहे और 3 वर्षों तक वे वहां के लोगों में भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म के बारे में जानकारी देते रहे। वहां पर उन्होंने रामकृष्ण मिशन की कई शाखाएं भी स्थापित की। इस तरह अमेरिका में भी कई अमेरिकन विद्वान विवेकानंद के शिष्य बने।

स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण

धर्म के नाम पर कट्टरता की भावना रखने वाले संप्रदायिक लोगों के ली विवेकानंद ने कहा था कि जिस तरह भिन्न भिन्न नदियां अंत में एक समुद्र में ही जाकर मिल जाती है, ठीक उसी तरह विश्व की जितनी भी धर्म है, अंत में वह ईश्वर तक ही पहुंचती है। इसीलिए धर्म के नाम पर कट्टरता की भावना को त्याग कर सौहार्द और भाईचारा की भावना रखनी चाहिए तभी विश्व और मानवता का विकास हो सकता है।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना

रामकृष्ण परमहंस के शरण में आने के बाद स्वामी विवेकानंद ने अपना पूरा जीवन उनके सेवा में समर्पित कर दिया। अंत समय में रामकृष्ण परमहंस कैंसर जैसी भयानक बीमारी से ग्रसित हो गए और ऐसे स्थानों में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु की बहुत देखभाल की।

जब उनकी मृत्यु हो गई तब उन्होंने अपने गुरु को समर्पित रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो बाद में रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन के नाम से जाना गया। इस मिशन की स्थापना इन्होंने 1 मई 1998 में की थी, जिसका लक्ष्य नए भारत का निर्माण करना था। इस मिशन के तहत कई स्कूल, कॉलेज और अस्पताल का निर्माण किया गया। विवेकानंद ने इसके बाद बेलूर मठ की स्थापना की।

स्वामी विवेकानंद युवाओं को हमेशा शारीरिक मजबूती पर जोर देने के लिए कहते थे। उनका मानना था कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। इसीलिए गीता पढने से अच्छा फुटबॉल खेलना है।

लेकिन कहा जाता है कि अंत समय में स्वामी विवेकानंद खुद भी एक बीमारी से ग्रसित हो गए थे, जिस कारण मेरठ के मठ में 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।

विवेकानंद एक ऐसे महान और विद्वानों संत थे, जिन्होंने अपने ज्ञान और शब्दों के द्वारा विश्व भर में हिंदू धर्म के विषय में लोगों का नजरिया ही बदल दिया। स्वामी विवेकानंद ने सभी को सच्चे धर्म की व्याख्या करते हुए कहा था कि सच्चा धर्म वह होता है, जो भूखे को अन्न दें, दुनिया के दुखों को दूर करें।

यहां तक कि विवेकानंद ने स्वयं समाज के लोगों के बीच रहते हुए समाज में व्याप्त कुप्रथा को खत्म करने का प्रयास किया। स्वामी विवेकानंद ने अपने ज्ञान के बलबूते एक ऐसी मशाल को प्रज्वलित की, जो सदैव आलौकिक रहेगा और जीवन पर्यंत वे अमर रहेंगे, उनके विचार अमर रहेंगे।

आज के आर्टिकल में आपको स्वामी विवेकानंद पर निबंध इन हिंदी (Essay On Swami Vivekananda In Hindi) के बारे सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई है। हमें पूरी उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। यदि आपका इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar

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Swami vivekananda biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani

स्वामी विवेकानंद जी का संपूर्ण जीवन परिचय, उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों तथा घटनाओं का भी अध्ययन करेंगे।

यह जीवन परिचय युवा प्रेरणा स्रोत , ऊर्जावान स्वामी विवेकानंद जी के जीवन पर आधारित है। इस लेख के माध्यम से आप नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद बनाने की कहानी जान सकेंगे। उनकी स्मरण शक्ति और उनके जीवन शैली को इस लेख के माध्यम से विस्तृत अध्ययन का प्रयत्न किया गया है।

प्रस्तुत लेख स्वामी विवेकानंद जी के संकल्प शक्ति, विचारों के ऊर्जा, अध्यात्म, आत्मविश्वास आदि का विस्तार है। उन्होंने अल्पायु से लेकर अपने जीवन काल तक जिस मार्ग को अपनाया, उसे आज युवा प्रेरणा के रूप में ग्रहण करते हैं। स्वामी जी आज करोड़ों देशवासियों के मार्गदर्शक और प्रेरणा के स्रोत हैं। उनको पसंद करने वाले देश ही नहीं अभी तो विदेश में भी है। उनकी विचारधारा ऐसी थी जिसे भारत ही नहीं विदेश में भी पसंद किया गया।

यह लेख स्वामी जी के जीवन पर विस्तृत प्रकाश डालने में सक्षम है.

Table of Contents

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय – Swami Vivekananda biography in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी किसी परिचय के मोहताज नहीं है, उनकी स्मरण शक्ति और दृढ़ प्रतिज्ञा बेजोड़ है। बचपन में उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त हुआ करता था। उनकी कुशाग्र बुद्धि ने उन्हें स्वामी विवेकानंद बनाया। एक छोटे से जगह पर जन्मे और देश-विदेश में अपनी ख्याति को सिद्ध करने वाले स्वामी आज करोड़ों देशवासियों के लिए आदर्श व्यक्ति हैं। देश-विदेश में उनकी ख्याति है , उनको पसंद करने वाले किसी एक सीमा में बंधे नहीं है। स्वामी जी की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि, उन्होंने आधुनिक वेद-वेदांत धर्म आदि की सभी महत्वपूर्ण पुस्तकों का अध्ययन किया था।

Read Swami Vivekananda biodata below  which includes birth date, birth place, mother and father’s name, education, early life, full name, nationality, religion, famous quotes, stories, and some unknown facts.

12 जनवरी 1863
कोलकाता ( बांग्ला )
नरेंदर नाथ दत्त
सनातन हिन्दू
भारतीय
भुवनेश्वरी
विश्वनाथ दत्त ( प्रसिद्ध वकील )
दुर्गा चरण दत्त
रामकृष्ण परमहंस
रामकृष्ण मिशन
4 जुलाई 1902 में महासमाधि में लीन हुए ( आयु 39 ) बेलूर मठ पश्चिम बंगाल

स्वामी विवेकानंद जी का पारिवारिक जीवन – Swami Vivekananda family life

Swami Vivekananda jivani and family life

स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता के कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ। कुछ विद्वानों के अनुसार उनका जन्म मकर संक्रांति के दिन हुआ था। यह दिन हिंदू मान्यता का महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। सूर्य की दिशा कुछ इस प्रकार होती है जो , वर्ष भर में मात्र एक बार अनुभव करने को मिलती है। विवेकानंद जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

जन्म के उपरांत उन्हें वीरेश्वर के नाम से जाना जाता था। 

शिक्षा शिक्षा के लिए औपचारिक नाम नरेंद्रनाथ दत्त रखा गया। विवेकानंद उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का दिया हुआ नाम था।

जैसा कि उपरोक्त विदित हुआ स्वामी जी का परिवार मध्यमवर्गीय था।

पिता विश्वनाथ दत्त कोलकाता हाईकोर्ट के मशहूर वकीलों में से एक थे। उनकी वकालत काफी लोकप्रिय थी, अधिवक्ता समाज उन्हें आदरणीय मानता था। विवेकानंद जी के दादा दुर्गा चरण दत्त काफी विद्वान थे। उन्होंने कई भाषाओं में अपनी मजबूत पकड़ बनाई हुई थी। उन्हें संस्कृत , फारसी, उर्दू का विद्वान माना जाता था। उनकी रुचि धार्मिक विषयों में अधिक थी, जिसका परिणाम यह हुआ उन्होंने अपने युवावस्था में सन्यास धारण किया।

पच्चीस वर्ष की युवावस्था में दुर्गा चरण दत्त अपना परिवार त्याग कर सन्यासी बन गए।

स्वामी जी की माता भुवनेश्वरी दत्त धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी।

वह विशेष रूप से शिव की उपासना किया करती थी। यही कारण है उनके घर में निरंतर पूजा-पाठ, हवन, कीर्तन-भजन आदि का कार्यक्रम हुआ करता था। रामायण, महाभारत और कथा वाचन नित्य प्रतिदिन का कार्य था।

स्वामी विवेकानंद जी का पालन पोषण इस परिवेश में हुआ।

उनकी जिज्ञासु प्रवृत्ति और धर्म के प्रति लगाव , घर में बने वातावरण के कारण था । वह सदैव जानने की प्रवृत्ति को अपने भीतर रखते थे। वह अपने माता-पिता या कथावाचक आदि से नित्य प्रतिदिन ईश्वर, धर्म और संस्कृति के बारे में प्रश्न पूछा करते थे।

कई बार उनके प्रश्न इस प्रकार हुआ करते थे , जिसका जवाब किसी के पास नहीं होता। स्वामी जी मे दिखने वाली कुशाग्र बुद्धि और जिज्ञासा धर्म-संस्कृति आदि की समझ परिवार की देन ही माना जाएगा।

नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद जी कैसे बने – Swami Vivekananda Childhood

नरेंद्र नाथ दत्त बचपन से खोजी प्रवृत्ति के थे, उन्हें किसी एक विषय में रुचि नहीं थी। वह विषय के उद्गम और विस्तार को कारणों सहित जानने के जिज्ञासु थे । नरेंद्र नाथ कि इसी प्रवृत्ति के कारण शिक्षक उनसे प्रभावित रहते थे।

उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस थे बालक नरेंद्र नाथ के जिज्ञासा और उनकी उत्सुकता को अपना प्रेम देते थे।

नरेंद्र नाथ दत्त में बहुमुखी प्रतिभा थी, यह सामान्य बालक से बिल्कुल अलग थे। सामान्य बालक जहां एक विषय के अध्ययन में वर्षों निकाल दिया करते थे। नरेंद्र नाथ पूरी पुस्तक का अध्ययन कुछ ही क्षण में कर लिया करते थे। उनका यह अध्ययन सामान्य नहीं था वह पृष्ठ संख्या और अक्षरसः हुआ करता था। इस प्रतिभा से रामकृष्ण परमहंस प्रसन्न होकर नरेंद्र नाथ दत्त को विवेकानंद कहकर पुकारते थे।

यही विवेकानंद भविष्य में स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। जो विवेक का स्वामी हो वही विवेकानंद।

स्वामी विवेकानंद की शिक्षा – Swami Vivekananda Education

Swami vivekananda education in Hindi - स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा

स्वामी विवेकानंद की आरंभिक शिक्षा कोलकाता में हुई। विद्यालय से पूर्व उनका ज्ञान संस्कार घर पर ही किया गया। दादा तथा माता-पिता की देख-रेख में उन्होंने विद्यालय से पूर्व ही, सामान्य बालकों से अधिक जानकारी प्राप्त कर ली थी।

आठ वर्ष की आयु में, उन्हें ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्थान कोलकाता में प्राथमिक ज्ञान के लिए विद्यालय भेजा गया। यह समय 1871 का था। कुछ समय पश्चात 1877 में परिवार किसी कारणवश रायपुर चला गया। दो वर्ष के पश्चात 1879 मे कोलकाता वापस आ गया।  यहां स्वामी विवेकानंद ने प्रसिद्ध प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में उच्चतम अंक प्राप्त किए।

यह बेहद ही सराहनीय सफलता थी, अन्य विद्यार्थियों के लिए यह सपना हुआ करता था।

स्वामी विवेकानंद इस समय तक

  • राजनीति विज्ञान
  • समाजिक विज्ञान
  • अनेक हिंदू धर्म के ग्रंथ तथा साहित्य का अक्षरसः गहनता से अध्ययन कर लिया था।

स्वामी जी ने पश्चिमी साहित्य के धार्मिक और विचारों तथा क्रांतिकारी घटनाओं का व्याख्यात्मक विश्लेषण भी सूक्ष्मता से अध्ययन किया था।

स्वामी विवेकानंद शास्त्रीय कला में भी निपुण थे , उन्होंने शास्त्रीय संगीत में परीक्षा को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया। वह शास्त्रीय संगीत को जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए स्वीकार करते हैं। वह जीवन के किसी भी क्षेत्र को नहीं छोड़ना चाहते थे।

यही कारण है उनका स्वयं के शरीर से काफी लगाव था।

वह योग, कसरत, खेल, संगीत आदि को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार किया करते थे। उनका मानना था अगर मस्तिष्क को संतुलित रखना है तो, शरीर को स्वस्थ रखना ही होगा। जिसके लिए वह योग और कसरत पर विशेष बल दिया करते थे। स्वामी जी खेल में भी निपुण थे, वह विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेते तथा प्रतियोगिता को अपने बाहुबल से जितते भी थे।

स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देश के धर्म, संस्कृति, विचारधारा और महान लेखकों के साहित्य का विस्तार पूर्वक अध्ययन किया था। उन्होंने यूरोप, अमेरिका, फ्रांस, रूस, जर्मनी आदि विकसित देशों के महान दार्शनिकों की पुस्तकें और उनके शोध को गहनता से अध्ययन किया था।

1881 में विवेकानंद जी ने ललित कला की परीक्षा दी, जिसमें वह सफलतापूर्वक उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए।

1884 में उनका स्नातक भी सफलतापूर्वक पूर्ण हो गया था।

स्वामी जी का शिक्षा के प्रति काफी लगाव था, जिसके कारण उन्होंने संस्कृत के साहित्य को विकसित किया। क्षेत्रीय भाषा बांग्ला में अनेकों साहित्य का अनुवाद किया। संभवत उपन्यास, कहानी, नाटक और महाकाव्य हिंदी साहित्य में बांग्ला साहित्य के माध्यम से ही आया था।

Swami vivekananda biography in Hindi - स्वामी विवेकानंद

सामाजिक दृष्टिकोण – Swami Vivekananda views towards society

स्वामी विवेकानंद की सामाजिक दृष्टि समन्वय भाव की थी। वह सभी जातियों को एक समान दृष्टि से देखते थे। यही कारण है सभी जाती और मानव कल्याण के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की। उन्होंने वेद-वेदांत, धर्म, संस्कृति आदि की शिक्षा प्राप्त की थी। वह ईश्वर को एक मानते थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है, उसे पूजने और मानने का तरीका अलग-अलग है। उन्होंने अनेक मठ की स्थापना धर्म के विकास के लिए ही किया था।

स्वामी जी मूर्ति पूजा का विरोध किया करते थे, उन्होंने अपने भीतर ईश्वर की मौजूदगी का एहसास दिलाया था। उन्होंने स्पष्ट किया था कि ब्रह्मांड की सभी सार्थक शक्तियां व्यक्ति के भीतर निहित होती है। अपनी साधना और शक्ति के माध्यम से उन सभी दिव्य शक्तियों को जागृत किया जा सकता है।

इसलिए वह सदैव कर्मकांड और बाह्य आडंबरों, पुरोहितवाद पर चोट करते थे।

समाज के कल्याण के लिए वह जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे थे। जहां एक और समाज में जाति-धर्म व्यवस्था आदि की पराकाष्ठा थी। वही स्वामी जी ने उन सभी जाति धर्म और वर्ण में समन्वय स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किया। स्वामी जी ने समाज कल्याण के लिए जमीनी स्तर पर सराहनीय कार्य किया। ब्रह्म समाज की स्थापना कर उन्होंने समाज में बहिष्कृत जाति आदि को मान्यता दी।

स्वामी विवेकानंद एक ऐसे समाज का सपना देखते थे जहां भेदभाव जाति के आधार पर ना हो। वह इसीलिए ब्रह्मावाद, भौतिकवाद, मूर्ति पूजा पर, अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए धर्म और अनाचार के विरुद्ध वह सदैव कार्य कर रहे थे। उन्होंने समाज में युवाओं द्वारा किया जा रहा मदिरापान तथा अन्य व्यसनों को दूर करने के लिए कार्य किया। कई उपदेश दिए और अपने सहयोगियों के साथ उन सभी केंद्रों को बंद करवाया।

वह अमीरी-गरीबी, ऊंच-नीच आदि को समाज से दूर करना चाहते थे।

उन्होंने सेठ महाजन ओ आदि के द्वारा किया जा रहा , सामान्य जनता पर अत्याचार आदि को भी दूर करने का प्रयत्न किया । स्वामी जी ने नर सेवा को ही नारायण सेवा मानकर समाज के प्रति अपना सम्मान जनक दृष्टिकोण रखा।

स्वामी विवेकानंद जी की स्मरण शक्ति – Swami Vivekananda memory powers

Swami Vivekananda memory power

स्वामी जी की स्मरण शक्ति अतुलनीय थी। वह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे, अपनी कक्षा की पाठ्य सामग्री को कुछ ही दिनों में समाप्त कर दिया करते थे। जहां उसके अध्ययन में अन्य बच्चों को पूरा वर्ष लग जाया करता था। बड़े से बड़े धार्मिक ग्रंथ और साहित्य की पुस्तकों को उन्होंने अक्षर से याद किया हुआ था। उनकी स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी कि उनसे पढ़ी हुई पुस्तक को पूछने पर पृष्ठ संख्या सहित प्रत्येक शब्द बता दिया करते थे।

स्मरण शक्ति के पीछे उनके आरंभिक जीवन के ज्ञान का अहम योगदान है।

स्वामी विवेकानंद के दादाजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे, उन्होंने संस्कृत और फारसी पर अच्छी पकड़ बनाई हुई थी। वह इन साहित्यों का गहन अध्ययन कर चुके थे। विवेकानंद जी की माता जी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। उन्होंने पूजा-पाठ, कीर्तन-भजन और धार्मिक पुस्तकों, वेद आदि को नित्य प्रतिदिन पढ़ना और सुनना अपनी दिनचर्या में शामिल किया हुआ था। पिता प्रसिद्ध वकील थे, उनकी वकालत कोलकाता हाईकोर्ट में उच्च श्रेणी की थी।

इन सभी संस्कारों के कारण स्वामी विवेकानंद कुशाग्र बुद्धि के हुए। उन्होंने ईश्वर के प्रति जानने की इच्छा और स्वयं अपने भीतर के ईश्वर को पहचानने का यत्न किया। जिसके कारण उनकी स्मरण शक्ति अतुलनीय होती गई।

स्वामी विवेकानंद जी की तार्किक शक्ति – Swami Vivekananda Logical thinking

जैसा कि हम जानते हैं स्वामी जी का आरंभिक जीवन वेद-वेदांत, भगवत गीता, रामायण आदि को पढ़ते-सुनते बीता था। वह कुशाग्र बुद्धि के थे, उन्होंने अपने घर आने वाले कथा वाचक को ऐसे-ऐसे प्रश्न जाल में उलझाया था।  जिनका जवाब उनके पास नहीं था। वह जीव, माया, ईश्वर, जगत, दुख आदि के विषय में अनेकों ऐसे प्रश्न जान लिए थे जिनका कोई तोड़ नहीं था।

इस कारण स्वामी जी की बौद्धिक शक्ति का विस्तार हुआ। वह सभ्य समाज में बैठने लगे, उनकी ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ती गई। उनके जवाब इस प्रकार के होते, जिसके आगे सामने वाला व्यक्ति निरुत्तर हो जाता। उसे संतुष्टि हो जाती, इस जवाब के अतिरिक्त कोई और जवाब नहीं हो सकता।

उनकी तर्कशक्ति इतनी प्रसिद्ध थी कि, बड़े से बड़े विद्वान, नीतिवान और चिंतकों ने स्वामी विवेकानंद से शास्त्रार्थ किया।

योग के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण – Swami Vivekananda view towards Yoga

Swami Vivekananda views on Yoga in Hindi

स्वामी जी का स्पष्ट मानना था स्वस्थ मस्तिष्क के लिए , स्वस्थ शरीर का होना अति आवश्यक है। योग साधना पर उन्होंने विशेष बल दिया था। योग के माध्यम से व्यक्ति अपने शरीर के भीतर निहितदिव्य शक्तियों को जागृत कर बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है। स्वयं स्वामी विवेकानंद प्रतिदिन काफी समय तक योग किया करते थे। उनकी बुद्धि और शरीर सभी उनके नियंत्रण से कार्य करती थी। इस प्रकार की दिव्य साधना स्वामी जी ने एकांतवास में किया था।

वह समाज में योग को विशेष महत्व देते हुए, योग के प्रति प्रेरित करते थे। संसार जहां व्यभिचार और व्यसनों में बर्बाद हो रहा है, वही योग का अनुकरण कर ईश्वर की प्राप्ति होती है। योग के द्वारा माया को दूर भी किया जा सकता है। एक सिद्ध योगी अपने शक्तियों के माध्यम से सांसारिक मोह-माया से बचता है, आत्मा-परमात्मा के बीच का भेद मिटाता है।

स्वामी विवेकानंद जी की दार्शनिक विचारधारा – Swami Vivekananda Philosophy

स्वामी विवेकानंद बचपन से ही धर्म-संस्कृति में विशेष रूचि रखते थे। स्वामी जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग धर्म – संस्कृति तथा जीव , माया , ईश्वर आदि को जानने में प्रयोग किया। वह अद्वैतवाद को मानते थे, जिसका संस्कृत में अर्थ है एकतत्ववाद या जिसका दो अर्थ नहीं हो । जो ईश्वर है वही सत्य है, ईश्वर के अलावा सब माया है।

यह संसार माया है, इसमें पडकर व्यक्ति अपना जीवन बर्बाद कर देता है। ईश्वर उस माया को दूर करता है, इस माया को दूर करने का एक माध्यम ज्ञान है। जिसने ज्ञान को हासिल किया वह इस माया से बच गया।

इस प्रकार के विचार स्वामी विवेकानंद के थे, इसलिए उन्होंने अद्वैत आश्रम का मायावती स्थान पर किया था। अनेक मठों की स्थापना उन्होंने स्वयं की। देश-विदेश का भ्रमण करके उन्होंने ईश्वर सत्य जग मिथ्या पर अपना संदेश लोगों को सुनाया।

लोगों ने इसे स्वीकार करते हुए स्वामी जी के विचारों को अपनाया है।

स्वामी जी मूर्ति पूजा के विरोधी थे, उन्होंने युक्ति संगत बातों को समाज के बीच रखा। वेद-वेदांत, धर्म, उपनिषद आदि का सरल अनुवाद लोगों के समक्ष प्रकट किया। उनके साथ उनकी पूरी टोली कार्य किया करती थी।

संभवत वह केशव चंद्र सेन और देवेंद्र नाथ टैगोर के नेतृत्व में भी कार्य करते थे।

1881 – 1884 के दौरान उन्होंने धूम्रपान, शराब और व्यसन से दूर रहने के लिए युवाओं को प्रेरित किया। उनके दुष्परिणामों को उनके समक्ष रखा। जिससे काफी संख्या में युवा प्रभावित हुए, आज से पूर्व उन्हें इस प्रकार का ज्ञान किसी और ने नहीं दिया था। देश में फैल रहे अवैध रूप से ईसाई धर्म को भी उन्होंने प्रबल इच्छाशक्ति के साथ रोकने का प्रयत्न किया। ईसाई मिशनरी देश की भोली-भाली जनता को प्रलोभन देकर धर्मांतरण करा रही थी।

इसका विरोध भी स्वामी जी ने किया था।

स्वामी विवेकानंद ने ब्रह्म समाज की स्थापना की थी जिसका मूल उद्देश्य वेदो की ओर लोटाना था।

स्वामी विवेकानंद जी थे धर्म-संस्कृति के प्रबल समर्थक

विवेकानंद जी का बाल संस्कार धर्म और संस्कृति पर आधारित था। उन्हें बाल संस्कार के रूप में वेद – वेदांत, भगवत, पुराण, गीता आदि का ज्ञान मिला था। जिस व्यक्ति के पास इस प्रकार का ज्ञान हो वह व्यक्ति महान हो जाता है। समाज में वह पूजनीय स्थान प्राप्त कर लेता है। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वह किसी और ज्ञान का आश्रित नहीं रह जाता।

उन्होंने विद्यालय शिक्षा अवश्य प्राप्त की थी, किंतु उन्हें विद्यालयी शिक्षा सदैव बोझ लगा। यह केवल समय बर्बादी के अलावा और कुछ नहीं था।  विद्यालयी शिक्षा अंग्रेजी शिक्षा नीति पर आधारित थी। जहां केवल ईसाई धर्म आदि का महिमामंडन किया गया था। यह शिक्षा समाज के लिए नहीं थी।समाज का एक बड़ा वर्ग जहां अशिक्षित था।

शिक्षा की कमी के कारण वह समाज निरंतर विघटन की ओर जा रहा था। 

अतः समाज में ऐसी शिक्षा की कमी थी जो समाज को सन्मार्ग पर ले जाए।

निरंतर सामाजिक मूल्यों का ह्रास हो रहा था, धर्म की हानि हो रही थी। स्वामी जी ने अपने बुद्धि बल का प्रयोग कर समाज को एकजुट करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी मोतियों को एक माला में पिरोने का कार्य किया।

विवेकानंद जी ने जगह-जगह घूमकर धर्म-संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया।

लोगों को, समाज को यह विश्वास दिलाया कि वह महान और दिव्य कार्य कर सकते हैं। बस उन्हें इच्छा शक्ति जागृत करनी है। उन्होंने माया और जगत मिथ्या हे लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया।

ईश्वर की सत्ता को परम सत्य के रूप में प्रकट किया।

स्वामी जी ने मठ तथा आश्रम की स्थापना कर धर्म और संस्कृति के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया। उन्होंने ऐसे सहयोगी तथा शिष्य को तैयार किया। जो समाज के बीच जाकर, उनके बीच फैली हुई अज्ञानता को दूर करते थे।

धर्म तथा संस्कृति के वास्तविक मूल्यों को सामने रखने का प्रयत्न किया।

शरीर के प्रति स्वामी विवेकानंद जी के विचार

स्वस्थ शरीर होने की वकालत सदैव स्वामी विवेकानंद जी करते रहे। वह हमेशा कहते थे , स्वस्थ शरीर के रहते हुए ही स्वस्थ कार्य अर्थात अच्छे कार्य किए जा सकते हैं। अच्छी शक्तियां शरीर के भीतर तभी जागृत होती है, जब मन और शरीर स्वच्छ हो। वह स्वयं खेल-कूद और शारीरिक प्रतियोगिता में भाग लिया करते थे।

शारीरिक कसरत उनकी दिनचर्या में शामिल थी। उनका शरीर, कद-काठी उनके ज्ञान की भांति ही मजबूत और शक्तिशाली थी।

स्वामी विवेकानंद जी का वेदों की और लोटो से आशय

स्वामी जी के समय समाज में व्याप्त आडंबर, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा और विदेशी धर्म संस्कृति, भारतीय सनातन संस्कृति की नींव खोद रही थी। उन्होंने स्वयं वेद-वेदांत, पुराण तथा अन्य प्रकार के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया था। इस अध्ययन में वह निपुण हो गए थे। उन्होंने ईश्वर और जगत के बीच माया-मोह का अंतर जाने लिया था। वह सभी लोगों को ईश्वर की ओर अपना ध्यान लगाने के लिए प्रेरित किया। इसीलिए उन्होंने वेदों की ओर लौटो का नारा बुलंद किया।

इस नारे को लेते हुए वह विदेश भी गए, वहां उन्हें काफी सराहना मिली। अमेरिका, यूरोप, रूस, फ्रांस आदि विकसित देशों ने भी स्वामी जी के विचारों को सराहा। उनके विचारों से प्रेरित हुए, जिसके कारण वहां आश्रम तथा मठ की स्थापना हो सकी। वहां ऐसे शिक्षक तैयार हो सके जो स्वामी जी के विचारों को आगे लेकर जाए।

स्वामी विवेकानंद जी की प्रसिद्धि

स्वामी जी की प्रसिद्धि देश ही नहीं अपितु विदेश में भी थी। उनकी कुशाग्र बुद्धि और तर्कशक्ति का लोहा पूरा भारत तो मानता ही था। जब उन्होंने अमेरिका के शिकागो में अपना ऐतिहासिक भाषण धर्म सम्मेलन में दिया।

उनकी ख्याति रातो-रात विदेश में भी बढ़ गई।

स्वामी जी की प्रसिद्धि अब विदेशों में भी हो गई थी।

उनसे मिलने के लिए विदेश के बड़े से बड़े दार्शनिक, चिंतक, आदि लालायित रहा करते थे।

स्वामी जी से मुलाकात किसी भी विद्वान के लिए सौभाग्य की बात हुआ करती थी। स्वामी जी भारतीय सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करते थे। सनातन धर्म से अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने वाले अनेकों दूसरे धर्म के प्रचारक भेंट करने को आतुर रहते। स्वामी जी के तर्कशक्ति के आगे बड़े से बड़ा विचारक, दार्शनिक आदि धाराशाही हो जाते। वह किसी भी साहित्य को बिना खोले बाहर सही अध्ययन करने की क्षमता रखते थे।

इस प्रतिभा ने स्वामी जी को और प्रसिद्धि दिलाई।

फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका तथा अन्य देशों की ऐसी घटनाएं यह साबित करती है कि उनकी प्रसिद्धि किस स्तर पर थी।

फ़्रांस के महान दार्शनिक के घर जब वह आतिथ्य हुए तब उनकी पंद्रह सौ से अधिक पृष्ठ की पुस्तक को एक घंटे में बिना खोलें अध्ययन किया। यह अध्ययन पृष्ठ संख्या सहित, अक्षरसः था।

इस प्रतिभा से फ्रांस का वह दार्शनिक स्वामी जी का शिष्य हो गया।

अंग्रेजी भाषा के प्रतिस्वामी विवेकानंद जी का दृष्टिकोण

स्वामी विवेकानंद अपनी मातृभाषा के प्रति समर्पित थे। वह बांग्ला, संस्कृत, फ़ारसी आदि भाषाओं को जानते थे। इन भाषाओं में वह काफी अच्छा ज्ञान रखते थे। अंग्रेजी भाषा के प्रति उनका दृष्टिकोण अलग था। वह अंग्रेजी भाषा को कभी भी हृदय से स्वीकार नहीं करते थे। उनका मानना था जिन लुटेरों और आतंकियों ने उनकी मातृभूमि को क्षति पहुंचाई है।

उनकी भाषा को जानना भी पाप है।

इस पाप से वह सदैव बचते रहे।

जब आभास हुआ, भारतीय संस्कृति को तथाकथित अंग्रेजी विद्वानों के सामने रखने के लिए उनकी भाषा की आवश्यकता होगी। स्वामी जी ने उनकी भाषा में, उनको समझाने के लिए अंग्रेजी का अध्ययन किया। वह अंग्रेजी में इतने निपुण हो गए, उन्होंने अंग्रेजी के महान दार्शनिक, चिंतकों और विचारकों के साहित्य को विस्तारपूर्वक अक्षर से अध्ययन किया। इतना ही नहीं उनकी महानता को बताने वाले, सभी धार्मिक साहित्य का भी गहनता से अध्ययन किया। जिसका परिणाम हम अनेकों धर्म सम्मेलनों में देख चुके हैं।

मतिभूमि के प्रति स्वामी विवेकानंद जी का प्रेम

विवेकानंद जी की देशभक्ति अतुलनीय थी। एक समय की बात है ,स्वामी जी विदेश यात्रा कर समुद्र मार्ग से अपने देश लौटे। यहां जहाज से उतर कर उन्होंने मातृभूमि को झुककर प्रणाम किया। यह संत यहीं नहीं रुका।जमीन में इस प्रकार लौटने लगा, जैसे प्यास से व्याकुल कोई व्यक्ति। यह प्यास अपनी मातृभूमि से मिलने की थी, जो उद्गार रूप में प्रकट हुई थी। स्वामी जी अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा और सम्मान की भावना संभवत अपने बाल संस्कारों से लिए थे।

बालक नरेंद्र ने अपने दादा को देखा था।

जिन्होंने पच्चीस वर्ष की अल्पायु में ही अपने परिवार का त्याग कर सन्यास धारण किया था। ऐसा कौन युवा होता है जो इतनी कम आयु में संन्यास लेता है।

संभवत नरेंद्र ने भी राष्ट्रभक्ति का प्रथम अध्याय अपने घर से ही पढ़ा था।

स्वामी विवेकानंद जी के अद्भुत सुविचार

१.  कोई तुम्हारी मदद नहीं कर सकता अपनी मदद स्वयं करो तुम खुद के लिए सबसे अच्छे मित्र हो और सबसे बड़े दुश्मन भी। ।

स्वामी जी कहते हैं तुम्हारी मदद कोई और नहीं कर सकता , जब तक तुम स्वयं की मदद नहीं करते। मनुष्य को यहां तक कि किसी के मदद की आवश्यकता नहीं होती। वह स्वयं अपनी मदद कर सकता है। व्यक्ति स्वयं का जितना अच्छा मित्र होता है, उतना ही बड़ा दुश्मन भी। यह उसके व्यवहार पर निर्भर करता है कि, वह स्वयं से दोस्ती करना चाहता है या दुश्मनी।

२.  हम जितना ज्यादा बाहर जाएंगे और दूसरों का भला करेंगे हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होता जाएगा और परमात्मा उसमें निवास करेंगे। ।

भारत में नर सेवा को नारायण सेवा माना गया है। स्वामी जी इसका पुरजोर समर्थन करते हैं, उन्होंने कहा है व्यक्ति जितना बाहर निकल कर दीन – दुखीयों  और आवश्यक लोगों की सेवा करेगा। उस व्यक्ति का हृदय उतना ही पवित्र होगा। पवित्र हृदय में ही परमात्मा का सच्चा निवास होता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए वह दिन दुखियों की सेवा करे।

३. कुछ ऊर्जावान व्यक्ति एक साल में इतना कर देता है , जितना भीड़ एक हजार साल में नहीं कर सकती। ।

बड़ी सफलता और उपलब्धि हासिल करने वाले कुछ ही लोग होते हैं।

ऐसे ऊर्जावान व्यक्ति कुछ ही समय में ऐसा कार्य कर दिखाते हैं, जो बड़े से बड़ा जनसमूह हजारों साल में नहीं कर सकता। वर्तमान समय में भी ऐसे लोग विद्यमान है।

ऐसे ही लोगों के कारण आज का विज्ञान सूरज और चांद से आगे निकल चुका है।

४. कोई एक विचार लो , और उसे ही जीवन बना लो उसी के बारे में सोचो , उसके सपने देखो उसे मस्तिष्क में , मांसपेशियों में , नसों में और शरीर के हर हिस्से में डूब जाने दो। दूसरे सभी विचारों को अलग रख दो यही सफल होने का तरीका है। ।

स्वामी जी का मानना था किसी एक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसके पीछे दिन-रात की मेहनत लगानी पड़ती है। उसे अपने प्रत्येक इंद्रियों में समाहित करना पड़ता है। उसके प्रति लगन समर्पण का भाव रखना पड़ता है , तब जाकर सफलता प्राप्त होती है। जो इस प्रकार के यत्न नहीं करते उन्हें सफलता दुष्कर लगती है।

५.  विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच एतव प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है जो प्रेम करता है , वह जीता है जो स्वार्थी है , वह मरता है एतव प्रेम के लिए ही प्रेम करो क्योंकि प्रेम ही , जीवन का एकमात्र नियम है। ।

माना जाता है प्रेम से शुद्ध और कोई चीज नहीं होती। व्यक्ति के जीवन में प्रेम अहम भूमिका निभाती है , प्रेम जितना शुद्ध होगा व्यक्ति उतना ही योग्य होगा। जिस व्यक्ति के मन में स्वार्थ और संकोच की भावना होती है , वह मृत्यु के समान बर्ताव करती है। जीवन का एक मात्र सत्य प्रेम है प्रेम के प्रति व्यक्ति को समर्पण भाव रखते हुए स्वीकार करना चाहिए।

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स्वामी विवेकानंद जी के जीवन की महत्वपूर्ण तिथियां

  • 12 जनवरी 1863 – कोलकाता (वर्तमान पश्चिम बंगाल) में जन्म ।
  • 1871 प्राथमिक शिक्षा के लिए ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपॉलिटन संस्था कोलकाता में दाखिला।
  • 1877 परिवार रायपुर चला गया।
  • 1879 प्रेसिडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में अव्वल हुए।
  • 1880 जनरल असेंबली इंस्टिट्यूट में प्रवेश।
  • 1881 ललित कला की परीक्षा उत्तीर्ण की
  • नवंबर 1881 रामकृष्ण परमहंस से भेंट।
  • 1882 – 86 रामकृष्ण परमहंस के सानिध्य में रहे
  • 1884  स्नातक की परीक्षा सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया
  • 1884 पिता का स्वर्गवास
  • 16 अगस्त 1886 रामकृष्ण परमहंस का निधन
  • 1886 वराहनगर मठ की स्थापना किया
  • 1887 वडानगर मठ से औपचारिक सन्यास धारण किया
  • 1890-93 परिव्राजक के रूप में भारत भ्रमण किया
  • 25 दिसंबर 1892 कन्याकुमारी में निवास किया
  • 13 फरवरी 1893 प्रथम व्याख्यान सिकंदराबाद में दिया
  • 31 मई 1893 मुंबई से अमेरिका के लिए जल मार्ग से रवाना हुए
  • 25 जुलाई 1893 कनाडा पहुंचे
  • 30 जुलाई 1893 शिकागो शहर पहुंचे
  • अगस्त 1893 हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन राइट से मुलाकात हुई
  • 11 सितंबर 1893 विश्व धर्म सम्मेलन शिकागो में ऐतिहासिक व्याख्यान
  • 16 मई 1894 हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
  • नवंबर 1894 न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना
  • जनवरी 1895 न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ

अगस्त 1895 वह पेरिस गए

  • अक्टूबर 1895 लंदन में अपना व्याख्यान दिया
  • 6 दिसंबर 1895 न्यूयॉर्क वापस आए
  • 22-25 मार्च 1886 वह पुनः लंदन आ गए
  • मई तथा जुलाई 1896 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान दिया
  • 28 मई 1896 ऑक्सफोर्ड में मैक्स मूलर से भेंट किया
  • 30 दिसंबर 1896 नेपाल से भारत की ओर रवाना हुए
  • 15 जनवरी 1897 कोलंबो श्री लंका पहुंचे
  • जनवरी 1897 रामेश्वरम में उनका जोरदार स्वागत हुआ साथ ही एक व्याख्यान भी
  • 6- 15 1897 मद्रास में भ्रमण किया
  • 19 फरवरी 1897 वह कोलकाता आ गए
  • 1 मई 1897  रामकृष्ण मिशन की स्थापना की
  • मई- दिसंबर 1897 उत्तर भारत की महत्वपूर्ण यात्रा की
  • जनवरी 1898 कोलकाता वापस हो गए
  • 19 मार्च 1899 अद्वैत आश्रम की स्थापना की
  • 20 जून 1899 पश्चिम देशों के लिए दूसरी यात्रा का आरंभ किया
  • 31 जुलाई 1899 न्यूयॉर्क पहुंचे
  • 22 फरवरी 1900 सैन फ्रांसिस्को में वेदांत की स्थापना की
  • जून 1900 न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा का आयोजन हुआ
  • 26 जुलाई 1900 यूरोप के लिए रवाना हुए
  • 24 अक्टूबर 1900 विएना , हंगरी , कुस्तुनतुनिया , ग्रीस , मिश्र आदि देशों की यात्रा किया
  • 26 नवंबर 1900 भारत को रवाना हुए
  • 6 दिसंबर 1900 बेलूर मठ में आगमन हुआ
  • 10 जनवरी 1901 अद्वैत आश्रम में भ्रमण किया
  • मार्च – मई1901 पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थ यात्रा की
  • जनवरी-फरवरी1902 बोधगया और वाराणसी की यात्रा की
  • मार्च 1902 बेलूर मठ वापसी हुई
  • 4 जुलाई 1902 स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि धारण की

स्वामी विवेकानंद जी पर आधारित कहानी

बालक नरेंदर बुद्धि का धनी था। वह अन्य विद्यार्थियों से बिल्कुल अलग था, जानने की जिज्ञासा उसके भीतर सदैव जागृत रहती थी।

स्वभाव से वह खोजी प्रवृत्ति का था।जब तक किसी विषय के उद्गम-अंत आदि का विस्तार से अध्ययन नहीं करता, चुप नहीं बैठा करता ।

यही कारण है उसका नाम  नरेंद्र नाथ दत्त  से  स्वामी विवेकानंद  हो गया ।

विवेकानंद कहलाने के पीछे भी उनके गुरु की अहम भूमिका है।

नरेंद्र बचपन से ही कुशाग्र और तीक्ष्ण बुद्धि के थे। वह किसी भी विषय को बेहद ही सरल और कम समय में अध्ययन कर लिया करते थे। उनका ध्यान विद्यालय शिक्षा पर अधिक नहीं लगता था।

वह उन्हें अरुचिकर विषय जान पड़ता था। 

विद्यालय पाठ्यक्रम को वह कुछ दिन में ही समाप्त कर लिया करते थे। इसके कारण उन्हें फिर भी अन्य विद्यार्थियों के साथ वर्ष भर इंतजार करना पड़ता था , यह उन्हें बोझिल लगता था।

नरेंद्र की स्मरण शक्ति इतनी तीव्र थी , वह कुछ क्षण में पूरी पुस्तक का अध्ययन अक्षरसः कर लिया करते थे। उनकी इस प्रतिभा से उनके  गुरु रामकृष्ण परमहंस  काफी प्रभावित थे। नरेंद्र की इस प्रतिभा को देखते हुए वह प्यार से  विवेकानंद  पुकारा करते थे।

भविष्य में यही नरेंद्र स्वामी विवेकानंद के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

अल्पायु में स्वामी विवेकानंद ने वेद-वेदांत, गीता, उपनिषद आदि का विस्तार पूर्वक अध्ययन कर लिया था।

यह उनके स्मरण शक्ति का ही परिचय है।

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स्वामी विवेकानंद जी की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। मनुष्य होते हुए भी उनमें आलौकिक गुण विद्यमान थे जो उन्हें औरों से अलग बनाता था। भारतीय ही नहीं बल्कि पुराने जमाने में विदेश में भी उनकी प्रशंसा की जाती थी और वहां के लोग विवेकानंद जी पर किताब लिखते थे और उनकी प्रशंसा करते थे।

ऐसे महान व्यक्ति सदी में एक बार जन्म लेते हैं। इनसे जितना हो सके उतना लोगों को सीखना चाहिए और अपने जीवन को बदलना चाहिए। आशा है यह लेख आपको काफी पसंद आया होगा और आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा। आप अपने विचार हम तक कमेंट सेक्शन में लिखकर पहुंचा सकते हैं।

आप हमारे द्वारा लिखी अन्य महान लोगों पर जीवनी भी पढ़ सकते हैं नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से

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अगर आपके मन में कोई भी प्रश्न या फिर दुविधा है इस लेख से संबंधित तो आप हमें नीचे कमेंट सेक्शन में लिखकर सूचित कर सकते हैं।

4 thoughts on “स्वामी विवेकानंद जी की सम्पूर्ण जीवनी, Swami Vivekananda jivani”

महान व्यक्तियों में स्वामी विवेकानंद जी को मैं काफी फॉलो करता हूं और वह मेरे लिए काफी बड़े प्रेरणा के स्रोत हैं. उनके द्वारा कहा गया एक एक शब्द एक किताब के बराबर है जिसके मूल्य को नापना बहुत मुश्किल है. उनकी जीवनी लिखकर आपने बहुत अच्छा काम किया है

स्वामी विवेकानंद जी एक महान व्यक्ति थे जिनका चरित्र चित्रण आपने बहुत अच्छे तरीके से किया है. परंतु इसमें कुछ बातें नहीं लिखी जो मैं चाहता हूं कि आप यहां पर लिखें जैसे कि उन्होंने कौन सी स्पीच दी थी।

स्वामी विवेकानंद जी के गुरू रामकृष्ण परमहंस जी थे जो काली के उपासक थे

बहुत बहुत साधुवाद आपकी पुरी टीम को जिन्होंने इतनी मेहनत कर के हम सभी तक स्वामी जी के जीवन की अमुल्य बातें पहुचाई

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Essay on swami vivekananda in hindi स्वामी विवेकानंद पर निबंध.

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hindiinhindi Essay on Swami Vivekananda in Hindi

Essay on Swami Vivekananda in Hindi 1000 Words

हमारे देश में विश्व-विभूतियों की एक अटूट श्रृंखला रही है। समय-समय पर जन्म लेकर उन्होंने भारतभूमि व सारी मानवता को विभूषित व धन्य किया है। आधुनिक समय के संदर्भ में हम राजा राममोहन राय, महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, सुभाष चन्द्र बोस, स्वामी रामकृष्ण परम हंस, चैतन्य महाप्रभु, सर्वपल्लि राधाकृष्णन, महर्षि अरविन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि कुछ नाम गिना सकते हैं। स्वामी विवेकानन्द इस श्रृंखला की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। उन्होंने अपने जीवन-चरित्र व अनुकरणीय महान् कार्यों से भारत को गौरव प्रदान किया। उन्होंने धार्मिक व सामाजिक क्रांति को आगे बढ़ाया तथा नवजागरण को नया बल और स्फूर्ति प्रदान की।

इस महान विभूति का जन्म 12 जनवरी, 1883 को कलकत्ता के एक सम्पन्न और आधुनिक परिवार में हुआ। इनके बाल्यकाल का नाम नरेन्द्र दत्त था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त एक विद्वान, संगीत प्रेमी और पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति के अच्छे ज्ञाता थे। नरेन्द्र की माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक और सनातन संस्कारों की गुणवान तथा प्रतिभाशाली महिला थीं। माता-पिता के ज्ञान, स्वभाव-संस्कार व गुणों का बालक नरेन्द्र पर बहुत प्रभाव पड़ा। संगीत की प्रारम्भिक प्रेरणा उन्हें अपने पिता से ही मिली थी। उनके बाबा दुर्गाचरण दत्त एक विद्वान व्यक्ति थे। फारसी, बंगला व संस्कृत भाषाओं को उनको गहरा ज्ञान था। ये सभी संस्कार बालक नरेन्द्र को विरासत में मिले और आगे चलकर वे महान् व्यक्ति बने तथा विवेकानन्द के नाम से विख्यात हुए।

उनकी माता ने उन्हें “प्रथम गुरु” के रूप में बहुत अच्छे संस्कार व शिक्षा प्रदान की। उन्हीं से नरेन्द्र ने अंग्रेजी तथा बंगला भाषाएं सीखीं, रामायण और महाभारत की शिक्षाप्रद व प्रेरणादायी कहानियां सुनी। रामायण और राम का उन पर गहरा प्रभाव था। हनुमान भी उनके लिये पूज्य व अनुकरणीय थे। वे शिव की उपासना करते थे। आध्यात्मिक रूचि और जिज्ञासा के अन्तर्गत भारतीय दर्शनशास्त्र का उन्होंने गंभीर अध्ययन किया तथा कालांतार में ब्रह्म समाज के सदस्य बन गये। नरेन्द्र प्रतिभाशाली छात्र थे। जो एक बार पढ़ लेते स्मृति-पटल पर सदैव के लिए अंकित हो जाता।

स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् उनके पिता उनका विवाह कर देना चाहते थे परन्तु नरेन्द्र इस बंधन में नहीं बंधना चाहते थे। वस्तुत: नियति को मान्य नहीं था। परिवार के संकीर्ण घेरे में उनकी प्रतिभा और दैवीगुण सिमट कर रह जायें। ईश्वर ने उन्हें सम्पूर्ण विश्व की सेवा, कल्याण और आध्यात्मिक क्रांति के लिए भेजा था।

रामकृष्ण गंगातट स्थित काली के दक्षिणेश्वर मन्दिर में निवास करते थे। उनकी गहन साधना, तपस्या व उपलब्धियों की चर्चा कलकत्ता में सर्वत्र होती थी। अतः एक दिन वे रामकृष्ण से मिलने दक्षिणेश्वर गये तथा इस महायोगी के दर्शन किये। धीरे-धीरे उनके संपर्क में आने से उनके संदेह, तर्क व जिज्ञासाएं शांत होती चली गईं और उन्होंने अपना गुरु स्वीकार कर लिया। रामकृष्ण ने अपने ज्ञान के आधार पर तुरंत जान लिया कि नरेन्द्र असाधारण प्रतिभा सम्पन्न एक महान् व्यक्ति थे और उनका पृथ्वी पर अवतरण एक विशेष आध्यात्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ था। अंतत: 1881 में उन्होंने संसार का त्याग कर सन्यास ले लिया।

सन् 1884 में पिता के देहान्त से नरेन्द्र के परिवार पर संकट का पहाड़ ही टूर पड़ा परन्तु गुरु कृपा व ईश्वर के आर्शीवाद से नरेन्द्र विचलित नहीं हुए और अपने साधना पथ पर निरन्तर बढ़ते रहे तथा ईश्वर दर्शन का लाभ प्राप्त किया। 16 अगस्त, 1886 को परमहंस रामकृष्ण का देहांत हो गया। विवेकानन्द व उनके अन्य संन्यासी साथियों के लिए यह बड़ा आघात था परन्तु तुरंत ही वे संभल गये और सूक्ष्म रूप में उन्हें अपने गुरु से मार्गदर्शन निरन्तर मिलता रहा।

उन्होंने अपने सन्यासी साथियों तथा दूसरे भक्तजनों के साथ मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस संस्थान ने तब से अब तक अनेक प्रशंसनीय और अभूतपूर्व कार्य देश व विदेशों में सम्पन्न किये हैं। विवेकानन्द का अंग्रेजी तथा बंग्ला भाषाओं पर असाधारण अधिकार था। संस्कृत के भी वे विद्वान थे। ऊपर से उन्हें अपने गुरु व ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त था। हिन्दी भी वे धाराप्रवाह बोल सकते थे। नवजागरण की इस नई लहर से प्रभावित-प्रेरित होकर हजारों स्त्री-पुरूष विवेकानन्द के शिष्य, अनुयायी और प्रशंसक बन गये।

खेतड़ी के राजा के आग्रह पर विवेकानन्द अमेरिका में होने वाले विश्वधर्म सम्मेलन में जाने को तैयार हो गये। 11 सितम्बर, 1893 को इस धर्म संसद का सत्र प्रारम्भ हुआ। विवेकानन्द के ओजस्वी, ज्ञानपूर्ण और मौलिक विचारों को सुनकर श्रोतागण अभिभूत हो गये। उन्होंने बार-बार तालियों की गड़गड़ाहट से स्वामी जी के भाषण का स्वागत किया। उनके प्रवचनों की सारे अमेरिका में धूम मच गई तथा बड़ी संख्या में लोग विवेकानन्द के शिष्य व अनुयायी बनने लगे। लगभग अढाई वर्षों तक वे अमेरिका में रहे और वहां भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते रहे।

भारत लौटने पर विवेकानन्द का देश भर में अपार स्वागत हुआ। सारे देश ने कृतज्ञता से अपना मस्तक उसके सामने झुका दिया। जनसमुदाय हर्ष-विभोर होकर उनकी जयकार करता रही। 4 जुलाई, 1902 को इस कर्मवीर का निधन हो गया। उस समय विवेकानन्द मात्र 39 वर्ष के थे। उनके निधन ने सारे देश को शोक-स्तब्ध कर दिया। उनकी पावन स्मृति में देश तथा विदेश में अनेक स्मारक स्थापित किये गए। उदाहरणार्थ कन्याकुमारी के सागर तट स्थित उनके स्मारक का यहां उल्लेख किया जा सकता है। किसी समय यहीं पर विवेकानन्द ने आकर ध्यान साधना की थी और समाधि में लीन रहे थे।

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Let’s start reading an essay on Swami Vivekananda in Hindi.

विश्व को ज्ञान-रश्मियों से आलोकमण्डित कर हमारा देश जगत् गुरु कहलाया। ज्ञान के अनेक क्षेत्रों में भारतीय मनीषियों ने निरन्तर साधना से विश्व को नए दर्शन पढ़ाए। अपने विश्व व्यापी चिंतन से हमारे महापुरुषों ने विश्व को धर्म की सीमित परिधियों से निकाल उसे विशाल क्षेत्र प्रदान किया। धर्म के कूप-मण्डूक बनकर रहना उन्हें स्वीकार न था। इसलिए विश्व के सम्मुख उन्होंने धर्म और दर्शन की नयी व्याख्या की जिसका आधार विशाल था और जिसमें द्वेष का मालिन्य नहीं था अपितु प्यास की सौरभ थी। स्वामी विवेकानन्द भी ऐसे ही युग-पुरुष हुए हैं जिनका चिंतन और दर्शन विश्व के लिए नवीन पथ तो प्रशस्त करता ही है, एक अखण्डित, कालजयी धर्म की व्याख्या भी करता है।

12 जनवरी सन् 1863 ई. मकर संक्रान्ति के दिन कलकत्ता के एक क्षत्रिय परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के घर में उनकी पत्नी भुवनेश्वरी देवी की कोख से एक बालक का जन्म हुआ जिसका प्यार भरा नाम माँ ने वीरेश्वर’ (बिले) रखा। लेकिन अन्नप्राशन के दिन नाम दिया गया नरेन्द्र नाथ। अनेक मनौतियों के बाद जन्मा बालक सम्पन्न परिवार में बहुत लाड़-प्यार से पाला गया और परिणामतः वह हट्ठी बन गया। बचपन से ही मेधावी नरेन्द्र जिज्ञासु भी था। अत: घर में भी माता-पिता पर प्रश्नों की बौछार करता। धार्मिक वातावरण में महादेव और हनुमान के चरित्रों से वह प्रभावित होता।

घर की आरम्भिक शिक्षा के बाद विद्यालय की शिक्षा आरम्भ हुई। दो वर्ष तक रायपुर में पिता के समीप रहने से बालक नरेन्द्र ने स्वास्थ्य लाभ भी किया और तर्क शक्ति का विकास भी हुआ। मैट्रोपोलिटन इन्स्टीट्यूट से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद असेम्बली इन्स्टीट्यूशन से नरेन्द्र ने एफ. ए. और बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।

इस अध्ययन काल में नरेन्द्र ने वकृत्व शक्ति, शारीरिक और मानसिक शक्ति, तर्क-बुद्धि चिंतन और मनन, ध्यान और उपासना, भारतीय और पाश्चात्य दर्शन, डार्बिन का विकासवाद और स्पेंसर का अज्ञेयवाद, ब्रह्म समाज और परम हंस और काली आदि से जुड़कर उनका अध्ययन विकास की ओर अग्रसर हुआ।

सन 1884 में पिता का निधन होने से परिवार के भरण-पोषण का भार नरेन्द्र पर आ पड़ा। ऋण की परेशानी, नौकरी की निरर्थक हूँढ, मित्रों की विमुखता, ने नरेन्द्र के मन में ईश्वर के प्रति प्रचण्ड विद्रोह जगा दिया लेकिन रामकृष्ण परमहंस के प्रति उसकी श्रद्धा और विश्वास स्थिर रहे। परमहंस से उन्होंने निर्विकल्प समाधि प्राप्त करने की प्रार्थना की लेकिन यह सब कुछ एक दिन स्वयं हो गया। एक दिन ध्यान में डूबे नरेन्द्र की समाधि लग गई और समाधि टूटने पर वह दिव्य आनन्द और शान्ति के प्रचण्ड प्रवाह से विभोर हो गया, पुलकित हो गया। अपनी मृत्यु से तीन-चार दिन पूर्व रामकृष्ण ने नरेन्द्र को अपने प्रभाव से स्वयं समाधिस्थ होकर कहा था – “आज मैंने तुम्हें अपना सब कुछ दे दिया है और अब मैं सर्वस्वहीन एक गरीब फकीर मात्र हैं। इस शक्ति से तुम संसार का महान् कल्याण कर सकते हो और जब तक तुम वह सम्मान प्राप्त न कर लोगे, तब तक तुम न लौटोगे।” उसी क्षण से सारी शक्तियाँ नरेन्द्र के अन्दर संक्रान्त हो गई, गुरु और शिष्य एक हो गए तथा नरेन्द्र ने संन्यास ग्रहण कर लिया। अगस्त 1886 में परमहंस महासमाधि में लीन हो गए।

संन्यास की ओर

अभी तक नरेन्द्र घर से पूर्ण रूप से असम्पृक्त नहीं हुए थे। घर की व्यवस्था संतोषजनक नहीं थी। जब उनके मकान सम्बन्धी मुकद्दमे की अपील का निर्णय उनके पक्ष में हो गया तो दिसम्बर के आरम्भ में नरेन्द्र ने घर-परिवार से स्वयं को पूर्ण रूप से मुक्त कर दिया और वाराहनगर में रहने लगे। इसके बाद दैवी इच्छा से प्रेरित होकर नरेन्द्र ने मठ को त्यागने का फैसला कर लिया। युवक नरेन्द्र परिव्राजक स्वामी विवेकानन्द हो गए।

इसके बाद स्वामी विवेकानन्द की यात्रा आरम्भ हुई। बिहार, उत्तर प्रदेश, काशी, अयोध्या, हाथरस, ऋषिकेश, आदि तीर्थों में घूमने के पश्चात् वे पुन: वाराहनगर मठ में आ गए और रामकृष्ण संघ में सम्मिलित हो गए।

उनकी यात्रा निरन्तर जारी रही और ज्ञानार्जन की पिपासा भी उत्तरोत्तर बढ़ती गई। एक ओर उत्तरी भारत में उत्तरकाशी से लेकर दक्षिण भारत में कन्याकुमारी तक वे सम्पूर्ण राष्ट्र का जीवन देखते रहे समझते रहे तो दूसरी ओर उनकी आध्यात्मिक क्षुधा भी बढ़ती गई। इस संदर्भ में वे कभी पवहारी बाबा से उपदेश प्राप्त करते, उच्चतर आध्यात्मिक चर्चा करते तो दूसरी ओर प्रेमानन्द जी से शास्त्र-चर्चा और शंका-समाधान भी किया करते। एक ओर वे अनेक नरेशों के सम्पर्क में आते तो दूसरी और माँ सारदा देवी जी का पुण्य आशीर्वाद भी मांगते। अष्टाध्यायी और ‘पातंञ्जलि’ का गहन अध्ययन उनकी ज्ञानार्जन की बलवती भावना का प्रमाण है। लोकमान्य तिलक, स्वामीरामतीर्थ जैसे नेताओं और विद्वानों से उनका सामीप्य रहा। कन्याकुमारी में श्रीपादशिला पर समाधिस्थ होना और उसके विदेश प्रस्थान उनके इस भ्रमण के कुछ विशेष महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।

31 मई 1893 ई. को उन्होने बम्बई से प्रस्थान किया। इस यात्रा में जापान जैसे देशों को देखा जो औद्योगिक क्रान्ति से नव्य रूप प्राप्त कर रहा था। शिकागो शहर में गेरुआ वस्त्र धारी तेजस्वी गौर वर्ण व्यक्ति को देखकर उन लोगों के ध्यान को आकर्षित करते। शिकागो धर्म सभा में भाग लेने से पूर्व उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा लेकिन वे विचलित नहीं हुए। 11 सितम्बर 1893 का दिन विश्व के धार्मिक इतिहास के लिए चिरस्मरणीय है जब गैरिक वस्त्रों से विभूषित गौरवर्ण संन्यासी ने प्यार और अपनत्व की ऊर्जामयी भाषा में अमेरिका के लोगों को संबोधित किया था – अमेरिका निवासी भाइयों और बहनों और वह कक्ष कारतल ध्वनि से गूंज उठा था। और इसके पश्चात सम्मेलन मानो विवेकानन्द के ही रंग में रंग गया। हिन्दु धर्म के अनेक पक्षों को जब उन्होने सम्मुख रखा तो समस्त पत्र-पत्रिकाओं ने अपूर्व स्वागत इस दिव्य स्वामी का किया। न्यूयार्क हेराल्ड, प्रेस ऑफ अमेरिका ने स्पष्ट लिखा कि इस चुम्बकीय व्यक्तित्व वाणी और विषय के प्रतिनिधि के सम्मुख अन्य धर्मों के प्रतिनिधि निस्तेज हैं। इसके बाद स्वामी जी ने अमेरिका के विभिन्न शहरों में व्याखान दिए। इंग्लैंड आने पर यहाँ भी उनके प्रवचनों ने अनेक विद्धान जनों, धर्म प्रेमियों को लुभाया। जगद् विख्यात विद्वान मैक्समूलर उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए। जर्मनी के अलावा वे अन्य देशों में वेदान्त प्रचार के पश्चात वे भारत लौटे। चार वर्ष पश्चात् अपनी मातृभूमि में वापस आने पर उनका अभूतपूर्व, भव्य, गौरवमय और प्यार भरा स्वागत किया गया। सम्पूर्ण देश में विवेकानन्द का नाम गूंज उठा। देश और विदेश में अनेक धर्मों के लोग उनके शिष्य बने। रामकृष्ण मिशन की स्थापना के बाद यह महान् विभूति 4 जुलाई 1902 को ओम् की ध्वनि के साथ महाप्रस्थान कर गई।

दर्शन और सिद्धान्त

स्वामी विवेकानन्द का उद्देश्य रामकृष्ण परमहंस के धर्म तत्त्व को विश्वव्यापी बनाना था जिसका आधार वेदान्त था। अत: उन्होंने वेदों के प्रचार और प्रसार के लिए महासंकल्प किया। देश और विदेश में रामकृष्ण मिशन की शाखाएं और प्रचार केन्द्र स्थापित किए। अपने साथियों से उन्होंने एक बार कहा था – “जो लोग दिखावटी भावावेश के धर्म को प्रोत्साहन देते हैं उनमें से अस्सी फीसदी बदमाश और पन्द्रह फीसदी पागल हो जाते हैं।” उनका संन्यास जीवन से दूर नहीं भागता था अपितु संसार के दुःख दारिद्रय को दूर करना तपस्या के समान मानता था। केवल अपनी मुक्ति के लिए तपस्या करना उन्हें स्वार्थ प्रतीत होता था।

वे धर्म के ढोंग-ढकोसला के दलदल से बाहर निकलना चाहते थे। उनका स्पष्ट मत था कि धर्म का व्यवसाय करने वाले पण्डित-पुरोहित ही धर्म के मूल तत्त्वों को नहीं समझते हैं और भारत की धर्म निष्ठा जनता को गुमराह करते हैं।

वे पत्थर हृदय-संन्यासी नहीं संवेदनशील परदुःखकातर योगी थे। अपने गुरु भाई की मृत्यु पर अब वे शोक-विह्वल हुए और प्रमदा दास ने उनके साधारण व्यक्तियों जैसे शोक पर आश्चर्य प्रकट किया तो उन्होंने कहा था-क्या संयासी हृदयहीन होते हैं। मेरे विचार में तो संन्यासी का हृदय अधिक सहानुभूतिशील होता है। ….. पत्थर जैसा अनुभूतिशून्य संन्यासी जीवन तो मेरा आदर्श नहीं है।

वेदान्त के विभिन्न मतों के संबंध में उनका निश्चित मत था कि विभिन्न मतवाद परस्पर विरोधी नहीं है अपितु एक दूसरे के पूरक और समर्थक हैं। उनके इस समन्वयवादी विचार ने सभी धर्मों के श्रेष्ठ तत्त्वों को स्वीकारा किया अत: वे सबके प्रिय बने।

वे समाज को देश को प्रतिगामी रुढ़ियों से निकाल कर प्रगतिशील बनाना चाहते थे। जो नियम और आचार-विचार समाज के विकास और पोषण में बाधक थे उनके त्याग को ही वे स्वीकारते थे। उन्होंने धर्म-द्वन्द्व के त्याग, स्वाधीनता के नाम पर स्वेच्छाचारिता के परित्याग, जातीयता और राष्ट्रीयता के नाम पर दूसरे पर अत्याचार, धर्म के नाम पर दूसरों के धर्म को हेय मानने का निषेध तथा उच्च और उदार मानव धर्म की स्थापना पर बल दिया।

सर्वधर्म समन्वय का उपदेश देते हुए उन्होंने कहा था – प्रत्येक जाति और प्रत्येक धर्म जाति और धर्मों के साथ आदान प्रदान करेगा, कुछ लेगा और कुछ देगा। किन्तु प्रत्येक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करेगा और अपनी अपनी अन्तर्निहित शक्ति के अनुसार आगे बढ़ेगा। उनका आदर्श था – “युद्ध नहीं सहयोग, ध्वज नहीं एकात्मता, भेद नहीं सामंजस्य।” उपसंहार

यह दिग्विजयी संन्यासी, मानवता का उपासक और प्रेमी ज्ञान का प्रकाश पंज, दिव्य शान्तियों के आलोक से विभूषित ब्रह्मचारी केवल 39 वर्ष की अल्पायु में ब्रह्मलोक की ओर महाप्रयाण कर गया। मां भारती के इस पुत्र को देशवासियों ने इसकी इस विशाल प्रतिमा ‘परिव्राजक की प्रतिमा’ स्थापित कर अपने श्रद्धा सुमन और भावाजलियां इसके चरणों में निवेदित की।

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swami vivekananda essay in hindi 200 words

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Paragraph on Swami Vivekananda 100, 150, 200, 250 to 300 Words for Kids, Students, and Children

February 7, 2024 by Prasanna

Paragraph on Swami Vivekananda: Swami Vivekananda was born on 12th January 1863. He was born in a beautiful and holy place in Kolkata. Swami Vivekananda has great recognization of the divine saint of India. Yet, he uses to have high thinking skills even after living an effortless lifestyle.

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Paragraph on Swami Vivekananda – 100 Words for Classes 1, 2, 3 and Kids

Narendra Nath Dutt has born in Calcutta on the date 12th of January in the year 1863. The father’s name of the Swami Vivekananda was Vishwanath Dutt. Swamiji has his mother named Bhuvaneshwari Devi, who was a very spiritual person. Swami Vivekananda has grown up well in abroad, and also, he has pursued his education from abroad. He used a great mission named Ramakrishna Mission for expanding the Hinduism religion. In 1893, he gave a very famous speech in Chicago, which is still recognized by people now. Swami Vivekananda was a great personality, which is why people call them patriotic saints.

Paragraph on Swami Vivekananda - 100 Words for Classes 1, 2, 3 and Kids

Paragraph on Swami Vivekananda – 150 Words for Classes 4 and 5 Children

Swami Vivekananda was a son of Vishwanath Dutt and Bhuvneshwari Devi. Narendranath Dutta has high thinking skills and grasping power. His teachers named him as Shrutidhar because of intellectual knowledge and excellent understanding. He uses to have swimming and wrestling classes for upgrading the different talents. He was a very religious and holy person. He uses to read Mahabharata and Ramayana daily. He has one ideal from Ramayana named Pavan Putra Hanuman.

Swami Vivekananda was an argumentative and mystical personality. He has learned various spiritual questions from Ramkrishna Paramhansa. His humanity was very useful for the upliftment of the World. He has also traveled all the four directions for using the knowledge of his Guru. Swamiji has given the best speech on the topic ‘sisters and brothers of America’ in Chicago. He was very proud of his religion, and that is why he started Ramakrishna Mission abroad.

Paragraph on Swami Vivekananda – 200 Words for Classes 6, 7 and 8 Students

Swamiji has Pre-monastic name Narendra Nath Dutt. On 12th January 1863, Swamiji’s birth took place in the perfect location of Calcutta. His father, named Vishwanath, was a lawyer at the high court of Calcutta. His mother, named Bhuvaneshwari, was a religious and holy housewife. He has also received a great appreciation of Hindu monks from the Hindu people. He was also a disciple of great Guru named Rama Krishna Paramahamsa.

All the valuable ideas and knowledge of Swamiji are great assets of Philosophy. They help youth in knowing about the advanced philosophy of the Vedanta and Raj Yoga. The spiritual knowledge of Swamiji engages in works of social and educational purposes. He has also discovered various mathematical topics for religious teaching. Swamiji has discovered Ramakrishna Math, Melur math, and Ramakrishna Mission.

On the 12th of January, Indians celebrate the birth anniversary of Shri Swami Vivekananda every year. This day has celebrated after the year 1985 to inspire the youth of India. Swamiji has won many hearts in the World because of their religious knowledge. They have gained massive popularity on the international stage. The main motive behind their thinking was to bring the honesty of the Hindu religion in front of the nation.

Paragraph on Swami Vivekananda – 250 Words for Classes 9, 10, 11, 12 and Competitive Exam Students

Swami Vivekananda belongs to a Kayasthas family that was very spiritual. Swamiji has inspired and motivated by the great personality named Ramakrishna Deva. Ramakrishna Deva helped Swamiji to receive an illusion from the darkness. His father’s name was VP Dutta that uses to work in High court. His mother’s name was Bhuvaneshwari Devi, who was a housewife in a religious family. Swamiji has learned vast western philosophy and history. His Guru has taught his new lessons of Hindusim religion. Ramakrishna Deva explained to Swamiji that God builds living beings on earth. Thus, you must serve humankind for serving God. This lesson of Swamiji’s Guru affected their skills, and they decided to serve humanity.

Swamiji has given vast spiritual knowledge of Yoga and Vedanta to the youth of the World. Swamiji believes that women’s development and empowerment are significant for the World. They also founded an organization named Ramakrishna Mission for educating youth and women. This organization of Swami Vivekananda uses to help schools, hospitals, and colleges. Swamiji has also helped in serving victims of earthquakes. Swami Vivekananda uses to believe that Hinduism is a great religion. Hindu religion can accommodate other religions of India. He spent his entire life in the development and growth of humanity for serving God. He uses to live a healthy and sober living for controlling extra stress and anxieties. He believes in patience, purity, generality, simplicity, and perseverance nature. The presence of Swamiji implies moral and spiritual encouragement.

Paragraph on Swami Vivekananda - 250 Words for Classes 9, 10, 11, 12 and Competitive Exam Students

FAQ’s on Paragraph on Swami Vivekananda

Question 1. What was the pre-monastic or real name of Swami Vivekananda?

Answer: The real name of Swami Vivekananda was Narendra Nath Dutt.

Question 2. What was the name and profession of the father of Swami Vivekananda?

Answer: Vishwanath Dutta was the father of Narendra Nath Dutt. His father works as an attorney at law.

Question 3. Who was an ideal of Swami Vivekananda?

Answer: Narendra Nath Dutt has a high ideal from Ramayana was Pavan Putra Hanuman.

Question 4. Which was the first college of Swami Vivekananda?

Answer: Swamiji has studied in the best college of Calcutta named Presidency College.

Question 5. What did Swami Vivekananda ask Shri Ramakrishnan at the first meeting?

Answer: Vivekananda asked Ramakrishnan if he has seen God or not. And in return, the latter replied, “Yes.” Hence, Swami Vivekananda was impressed with the answer by him.

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swami vivekananda essay in hindi। स्वामी विवेकानंद पर निबंध

Swami Vivekananda Essay in Hindi

स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परम हंस जी के सबसे प्रिय शिष्यों में से एक थे। सनातन धर्म के प्रति प्रेम और उनके द्वारा सनातन धर्म की समझ का प्रचार प्रसार उन्होंने पुरे विश्व में किया । सनातन धर्म ही सभी धर्मो का मूल है और सभी धर्मो की जननी है ये बात पुरे विश्व में साबित भी की। आज हम आपके लिए इस पोस्ट में swami vivekananda essay in hindi ले कर आये है । स्वामी विवेकानंद पर निबंध को आप स्कूल और कॉलेज में इस्तेमाल कर सकते है । इस हिंदी निबंध को आप essay on swami vivekananda in hindi for class 1, 2, 3 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 तक के लिए थोड़े से संशोधन के साथ प्रयोग कर सकते है।

Table of Contents

Swami Vivekananda Essay in Hindi

स्वामी विवेकानंद जी ऐसे महापुरुष है जिनके बारे में जीतना जाने उतना कम है। इनके योगदान प्रत्येक व्यक्ति के जीवन मे बदलाव लाते है। इनके बारे में पढ़ना, सुनना, समझना आज की पीढ़ी के लिए सौभाग्य की बात है। यह युवाओं के लिए प्रेरणा के प्रतीक है।हम सभी इनके विचारों को जान फिरसे कुछ नया करने की चाह उत्पन्न कर पाते है। कभी भी संकट के दौर में इनके विचारों के स्मरण मात्र से मनुष्य समस्याओं को जड़ से खत्म करने के लिए प्रेरित होता है। इन्होंने युवाओं को कार्य करने के लिए हमेशा प्रेरित किया। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन मे कई समस्याओं का सामना भी किया। इसके बाद भी उन्होंने कभी हार नही मानी। वह आर्थिक संकट से जूझे परंतु उनके विचारों से, उनकी कला से उन्होंने जीवन मे सब कुछ हासिल किया। उन्होंने समूचे विश्व में भारत का नाम रौशन किया। पूरे  विश्व मे भारत को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिलाया। उनके कार्यो की चर्चा केवल भारत मे नही बल्कि पूरे विश्व मे है। उनके कार्यो की सराहना आज भी देश विदेश में होती रही है। आत्मीय भाव रखने वाले स्वामी विवेकानंद जी लोगो की भावनाओ का सम्मान करते थे। वे अपने से बड़ो व अपने से छोटे सभी के प्रति आदर रखते थे।उन्होंने अपने जीवन में गरीबों के लिए भी बहुत कुछ किया। उनके कारण कई लोगो को जीवन दान भी मिला।

Life history of Swami Vivekananda in Hindi

प्रस्तावना-   स्वामी विवेकानंद जी आध्यात्मिक व्यक्ति थे। वे बचपन से ही ईश्वर में आस्था रखते थे। उनके मन मष्तिष्क में योग, संस्कृत, यजुर्वेद व अनंत ज्ञान का सागर होता था। उन्होंने देश के विकास में अपनी भूमिका सुनिश्चित की। उन्होंने अपनी शिक्षा का इस्तेमाल लोगो के विकास के लिए किया। उनका सीखा हुआ ज्ञान आमजन के काम आया। वह एक प्रखर वक्त थे। जिनके तर्क के आगे कोई खड़ा नही हो पाता था। वे अच्छे वक्ता के साथ पढ़ाई व खेल खुद में भी उज्जवल थे। उन्हें योग्य बनाने में उनके परिवार का विशेष योगदान रहा।उस वक़्त देश के युवा उनके तर्कों से, उनकी वाणी से, उनके विचारों से काफी प्रभावित थे। और यह दौर कभी थमा ही नही क्योंकि आज तक युवाओं को प्रेरणा देने वाले उनके विचार जीवित है। जो हर दूसरे युवा के जीवन को बेहतर बनाने में कार्यरत होते है। जिससे हर दूसरे युवा को हौसला मिलता है, वह अपनी नीव मज़बूत कर पाते है। इसी वजह से उनके जन्म दिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म 12 जनवरी को हुआ था। इसीलिए हर वर्ष उन्हें उस दिन याद किया जाता है। उनके बारे में जान आज भी युवाओं की रूह में, युवाओं के खून में हौसले का संचार निश्चित होता है। 

Swami Vivekananda Education

उनका बचपन एवं पढ़ाई काल- स्वामी विवेकानंद जी बचपन से तेजस्वी बालक थे। उनका जन्म  कलकत्ता में 12 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन हुआ। वह बेंगोली परिवार से थे। उनके 9 भाई बहन थे। उनका बचपन से स्वामी विवेकानंद जी नाम नही था। उनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। उनके पिता विश्व नाथ दत्त कलकत्ता उच्च न्यायालय में अभिवक्ता थे। उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक महिला व गृहिणी थी। वह अपनी माता से बेहद प्रभावित थे। उन्हें उनकी माता के साथ समय व्यतीत करना बेहद पसंद था। उनकी माता से उन्होंने भगवान के बारे में जाना और उनके हृदय में जिज्ञासा पैदा हुई। उनके जीवन मे उनकी माता की विशेष भूमिका रही। स्वामी विवेकानंद जी के दादाजी संस्कृत व फारसी के विद्वान थे। इससे स्वामी विवेकानंद जी का उच्च व्यक्तित्व बना। उनके जीवन को उच्च बनाने के लिए बचपन से ही उन्होंने अपने परिवार से हर छोटी बड़ी सीख ली। उनकी माता के धार्मिक होने के कारण उनकी भी आध्यात्म में रुचि बढ़ी। उन्होंने संगीत में गायन व वाद्य यंत्र को बजाना सीखा। वह काफी छोटी उम्र से ध्यान साधना करते थे। सन्यासियों के प्रति उनमें विशेष प्रेम व श्रद्धा थी। वह दयालु व आत्मीय भाव के व्यक्ति थे। 1871 में जब वह 8 वर्ष के थे तब उनका दाखिल ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन इंस्टिट्यूट में कराया गया। 1879 में उन्होंने मेट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। एक साल बाद कलकत्ता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में दाखिला लिया और फिलोसोफी पढ़नी शुरू की। उनके जीवन का यह समय काफी विशेष था। इस वक़्त उन्होंने पश्चिमी तर्क, यूरोपियन देशों के इतिहास आदि के बारे में विस्तार पूर्वक जाना। इससे उन्होंने काफी ज्ञानार्जन किया। 1884 में उन्होंने बैचलर ऑफ आर्ट की डिग्री प्राप्त की।

Guru of Swami Vivekananda

गुरु का मिलना व देश भ्रमण- उनका जीवन सवालों से भरा हुआ था। ईश्वर की सच्चाई वह जानना चाहते थे। वे ईश्वर पर विश्वास करते थे उन्हें जानना व देखना चाहते थे। इसी बीच काली मां के मंदिर पर स्वामी विवेकानंद जी की मुलाकात बाबा रामकृष्ण परमहंस जी से हुई। स्वामीजी के मन मे ना जाने कितने सवाल थे वह सन्यासियों में श्रद्धा रखते थे इसी वजह से उन्होंने बाबा रामकृष्ण जी से पहली ही मुलाकात एक सवाल किया। क्या आपने कभी भगवान को देखा है? परमहंस जी ने कहा कि हां बिल्कुल देखा है और बिल्कुल वैसे ही दिखा है जैसे तुम्हे अपने समक्ष देख रहा हु। स्वामी विवेकानंद जी को उनकी बातें दिलचस्प और सत्य प्रतीत हुई। इसी प्रकार उन्होंने उनसे कई सारे सवाल किए। जिसका उत्तर बाबा रामकृष्ण जी ने सटीक दिया। वह पहले व्यक्ति थे जिनसे स्वामी विवेकानंद जी प्रभावित हुए थे। इसके बाद बाबा रामकृष्ण परमहंस जी उनके गुरु बने। उनसे स्वामीजी ने बहुत कुछ सीखा और अपने जीवन मे उतारा। आध्यात्म में उनका प्रेम प्रबल होता जा रहा था। 1886 में बाबा रामकृष्ण परमहंस जी की मृत्यु हुई। उनका उत्तराधिकारी उन्होंने स्वामी विवेकानंद जी को बनाया। इसके बाद उन्होंने देश का भ्रमण किया। वह देश के कई हिस्सों में गए। वहां जाकर उन्होंने जातिवाद देखा। विभिन्न भेद भाव देखे।

उन्होंने लोगो को उपदेश दिए और यह ज्ञात कराया कि विकसित भारत के निर्माण के लिए बुराइयों को खत्म करना होगा। युवाओं को मेहनत करने के व संकल्प करने के उपदेश दिए। उनकी वाणी में सत्यता और एकता की भावना रहती थी।उनके व्यक्तित्व के कारण खेत्री के राजा ने उन्हें स्वामी विवेकानंद के नाम से सम्मानित किया। 

Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi

विदेश यात्रा व विश्व मे कीर्ति-  स्वामी विवेकानंद जी केवल भारत देश में प्रसिद्ध नही है। उन्होंने विदेश में भी अपने वर्चस्व को स्थापित किया। 1893 में वह विदेश भ्रमण कर रहे थे। उसी वर्ष अमेरिका के शिकागो में सम्पूर्ण विश्व के धर्मो का सम्मेलन आयोजित हुआ था। सभी ने अपने अपने अपने धर्म की पुस्तकें रखी। उस वक़्त स्वामी विवेकानंद जी ने भी वहां भारत के हिन्दू धर्म की छोटी सी पुस्तक भगवत गीता रखी। धीरे धीरे सभी ने अपने धर्म के भाषण दिए। जब स्वामी विवेकानंद जी की बारी आई तब उनके भाषण सुन सभा मे बैठे सभी लोग अभिभूत हो गए। उनके लिए ज़ोरदार तालियां बजने लगी। कहा जाता है कि वह तालियां सबसे लंबे समय तक बजायी गयी। उनकी वाणी ने चमत्कार कर दिया। लोगो ने हिन्दू धर्म को विदेश में भी सराहा। भारत को स्वामी विवेकानंद जी ने विदेश में कीर्ति दिलाई। हिन्दू धर्म को लोकप्रिय बनाने व आध्यात्म को बढ़ाने का कार्य करने के लिए उन्हें सारे संसार मे जाना जाता है। उनके एक भाषण ने लोगो के हृदय में आत्मीयता भरी। लोग उस वक़्त किसी धर्म के नही थे। सभी मे एकता का भाव था। भागवत गीता को उन्होंने विदेश में पहचान दिलाई। उनके तर्क इतने सटीक थे कि वहां बैठे सभी लोग उनके तर्क की आत्मीयता से भाव विभोर हो गया। ऐसे भाषण हिन्दू धर्म पर पहली बार उन्होंने ही दिए थे। उन्होंने विदेश में हिन्दू धर्म को सम्मान व भारत को आदर दिलाया। 1894 में उन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की। 1895 में योग की कक्षा करने लगे। उनकी प्रमुख शिष्य आयरिश महिला सिस्टर निवेदिता बनी। 1897 में उन्होंने भारत के दक्षिणी क्षेत्र में जगह जगह भाषण दिए। 4 जुलाई को रात्रि 9:10 मिनट पर उनकी मृत्यु हुई। उस दिन उन्होंने अपने शिष्यों को शुक्ल, यजुर्वेद, संस्कृत व्याकरण और योग की फिलोसोफी का ज्ञान दिया था। शाम 7 बजे उन्होंने अपने कक्ष में किसी को आने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। उनके शिष्यों के अनुसार स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि ली थी। 

उपसंहार- स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन से सैंकड़ो लोगो को प्रेरित किया। उन्होंने राष्ट्र के प्रति, विश्व के प्रति, हिन्दू धर्म के प्रति, गरीबों के प्रति, युवाओं के प्रति आजीवन कार्य किये। के मानो दुसरो के जीवन मे बदलाव लाना व मनुष्य कल्याण ही उनका संकल्प रहा हो। उनका कहना था कि हम सभी को अपने जीवन मे एक संकल्प ज़रूर करना चाहिए और उसके प्रति अपना जीवन न्योछावर करना चाहिए। युवाओं से उनका कहना था कि उठो, जागो और तब तक काम करो जब तक तुम्हे सफलता ना मिले। 

ऐसे महापुरुष के बारे में जान हम सभी अभिभूत व भाव विभोर है। स्वामी विवेकानंद जी आज भी उनके विचारों के रूप में हम सभी के बीच है। 12 जनवरी,हर वर्ष युवा दिवस उनके दिए उपदेश को, उनके योगदान को हमे हमेशा याद दिलाता है।

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Essay on Swami Vivekananda in Hindi – स्वामी विवेकानंद पर निबंध

दोस्तों आज की इस आर्टिकल में हम आपको स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में बताएंगे यानी की Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में पूरी जानकारी देंगे यानी की आपको Swami Vivekananda par 1200 words का essay मिलेगा इसलिए ये आर्टिकल पूरा धेयान से पूरा पढ़ना है। आपके लिए हेलफुल साबित होगी।

स्वामी विवेकानंद भारत के सबसे बड़े महापुरुष और धर्म गुरु है उन्होंने हमारी संस्कृति और हिंदू धर्म को पश्चिमी देशों को परिचित कराया आज पूरा विश्व योग दिवस मनाता है और योग को अपनी पहली प्राथमिकता के तौर पर करता है इस योग्य को परिचित भी स्वामी विवेकानंद ने ही पश्चिमी देशों को कराया स्वामी विवेकानंद युवाओं के नेता और मार्गदर्शक थे.

Essay on Swami Vivekananda in Hindi

उन्होंने देश की संस्कृति और देश के विकास के लिए अहम कदम उठाये और कार्य किए। स्वामी विवेकानंद हमारे देश की संस्कृति और वेदांत और आध्यात्मिक के महान ग्रुप है उन्होंने हमारे वेदांत और आध्यात्मिक ज्ञान को पश्चिमी देशों को परिचित कराया।

आज पूरा विश्व संस्कृति और हिंदू धर्म के वेदों और योग के मूल्य को जानता है और उन मूल्यों को पूरे विश्व में लाने का श्रेय स्वामी विवेकानंद को जाता है स्वामी विवेकानंद जी हमारे संस्कृति के प्रचार के लिए पूरे विश्व भर का भ्रमण किया और लोगों को हमारे संस्कृति का परिचय कराया।

19वीं सदी के अंत में हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार और लोगों के आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास और चेतना को जगाने के लिए स्वामी विवेकानंद ने बहुत ही कार्य किए उन्होंने लोगों को जागरूक किया आज पूरा विश्व हिंदू धर्म और इसके रीति रिवाज को जानते हैं।

Swami Vivekananda रामकृष्ण मठ की स्थापना की जो आज भी कार्य कर रही है इस मठ में आज भी हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार किया जाता है आज भी मठ समाज कल्याण में जुड़े हुए हैं। स्वामी विवेकानंद ने मठ का नाम अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रखा.

Swami Vivekananda युवाओं के रोल मॉडल हैं। युवाओं को आगे बढ़ने और युवाओं को अपने आत्मविश्वास के बल से परिचय कराया। स्वामी विवेकानंद ने हमारे युवाओं को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया और इसी के सहारे उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मुहिम भी चलाएं। उन्होंने हमारे देश के लोगों को एक किया और अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ खड़ा किया।

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स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Biography of swami vivekananda in Hindi)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में हुआ था। उस वक्त कोलकाता ब्रिटिश इंडिया की राजधानी थी। स्वामी विवेकानंद जी का बचपन में नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्ता और उनके माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था।

उनके पिता विश्वनाथ दत्ता कोलकाता हाईकोर्ट में कार्यरत उनकी माता एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व वाले थे स्वामी विवेकानंद को अपनी शुरुआत में आध्यात्मिक ज्ञान अपने माता से ही मिले स्वामी विवेकानंद के दादाजी संस्कृत और फारसी के जानकार थे उन्होंने 25 साल की उम्र में अपने परिवार को छोड़कर सन्यासी जीवन को अपना लिया।

Swami Vivekananda को बचपन से ही आध्यात्मिक में बहुत ही उचित है वह भगवान श्री राम और हनुमान जी के तस्वीरों के सामने अध्यन करते रहते थे। इतना ही नहीं नरेंद्र दत्ता बहुत ही नटखट भी थे उनके माता-पिता को बचपन में  संभालना बहुत ही मुश्किल होता था इसीलिए मैंने भगवान शिव से पुत्र मांगा था पर उन्होंने मुझे एक शैतान दे दिया।

1871 में 8 साल की उम्र में उनका दाखिला ईश्वर चंद्र विद्यासागर के स्कूल में हुआ। यहां पर उन्होंने 6 साल तक पढ़ाई की इसके बाद उनका परिवार रायपुर चला गया 1879 में स्वामी विवेकानंद और उनके माता-पिता कोलकाता लौटे और उस वक्त स्वामी विवेकानंद पहले छात्र थे जिन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज के प्रवेश परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन अंक लाए थे।

स्वामी विवेकानंद की पढ़ने की क्षमता बहुत ही अधिक थी वह एक बहुत ही अच्छे reader थे। नरेंद्र दत्त को भारतीय क्लासिक संगीत में रुचि थी। नरेंद्र दत्त को अध्यात्म धार्मिक इतिहास सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों में बहुत ही अधिक रूचि थी उन्हें हिंदू धर्म के वेदांत पुराण महाभारत उपनिषद में भी बहुत ही रुचि थी।

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उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई arts subject से की। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता पश्चिम में अध्यात्म और यूरोपियन इतिहास को भी पढ़ा। नरेंद्र दत्त पढ़ने में बहुत ही अव्वल थे उनके याद रखने की क्षमता बहुत ही अधिक और उनके तेज पढ़ने की क्षमता अतुल्य थी।

Swami Vivekananda तब के धर्मगुरु रामकृष्ण परमहंस से बहुत ही प्रभावित हुए और उन्हें अपना गुरु माना। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक और हिंदू समाज के ज्ञान को स्वर्गीय रामकृष्ण परमहंस से ही प्राप्त किया। उन्होंने अपनी पूरी जीवन को गुरु सेवा में लगा दिया।

आध्यात्मिक और इन सब चीजों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने सन्यासी जीवन को अपनाया उनके गुरु का एक उद्देश्य था भगवान की सेवा मानवता की सेवा में है और स्वामी विवेकानंद ने इस उद्देश्य को अपनी जीवन भर पूरा किया।

स्वामी विवेकानंद ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जिसमें किसी जाति लिंग के आधार पर भेदभाव ना हो जहां पर लोगों को एक अच्छी शिक्षा प्राप्त हो और लोगों के ऊपर अत्याचार ना हो इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने भारत में भ्रमण किया और लोगों को देश के प्रति जागरूक किया।

लोगों को एक दूसरे के प्रति जागरूक 4 देशवासियों को एक किया ताकि पूरा देश मिलकर अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ सके और अपने आजादी को प्राप्त कर सकें।

उन्होंने सदा ही अपने जीवन में नारियों का सम्मान किया उन्होंने समाज में नारी पर हो रहे अत्याचार को कम करने के लिए बहुत ही अहम भूमिका निभाई उन्होंने लोगों को नारी के प्रति जागरूक कराया और नारियों को उनका सम्मान दिलाया।

एक बार की बात है जब स्वामी विवेकानंद कहीं विदेश में एक उपदेश दे रहे थे उनके स्पीच से विदेशी महिलाएं बहुत ही प्रभावित हुई उन्होंने स्वामी विवेकानंद से मिलने की इच्छा जताई जब यह स्त्रियां स्वामी विवेकानंद से मिली तब उन्होंने उनसे कहा जी आप बहुत ही गौरवशाली पुरुष हैं।

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स्वामी विवेकानंद से कहा आप हमसे शादी कर ले और तब हमें आपके जैसा पुत्र प्राप्त होगा तब स्वामी विवेकानंद ने हंसते हुए उत्तर दिया आप सभी तो जानते हैं कि मैं एक सन्यासी हूं भला मैं कैसे शादी कर सकता हूं अगर आपको मेरे जैसा पुत्र चाहिए तो आप मुझे अपना पुत्र बना ले इससे आप की भी इच्छा पूरी हो जाएगी और मेरा भी धर्म नहीं टूटेगा।

यह तो सुनते ही विदेशी महिलाएं Swami Vivekananda के चरणों में जा पड़ी और उन्होंने कहा आप धन्य है प्रभु आप एक ईश्वर के स्वरूप है आप किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म को नहीं छोड़ सकते हैं।

अपने 30 वर्ष की छोटी से आयु में उन्होंने अमेरिका के शिकागो में हो रहे धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और हिंदू धर्म से पश्चिमी देशों को परिचित कराया। उनकी ख्याति इतनी है कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने एक बार कहा था यदि आप भारत के बारे में जानना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को पढ़िए।

Swami Vivekananda भारत के लोगों को और देशवासियों को आवाहन दिया कि आओ साथ चल पड़े और इन दुराचारी अंग्रेजों से अपने देश को आजाद कराएं उन्हें कई शव वाहन का फल महात्मा गांधी के आजादी की लड़ाई में देखा इतना जनसैलाब स्वामी विवेकानंद के आह्वान के कारण आया स्वामी विवेकानंद अपने देश से बहुत अधिक प्रेम करते थे

उनका यह मानना था कि हमारे देश के युवा इस विश्व के सर्वश्रेष्ठ युवाओं में से एक है और हमारे देश के युवा ही हमारे देश की नींव रखेंगे इसीलिए स्वामी विवेकानंद को युवा का नेता भी कहा जाता है और आज हम उनके जन्मदिवस को युवा दिवस के तौर पर मनाते हैं हर साल हम 12 जनवरी को युवा दिवस के तौर पर स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देते हैं।

 मृत्यु:  उन्होंने अपने जीवन काल में कभी भी पढ़ना नहीं छोड़ा वह हर वक्त दो-तीन घंटे पढ़ते ही रहते थे। 4 जुलाई 1902 में अपने पढाई करते वक्त ही उन्होंने महासमाधि ली। उनका अंतिम संस्कार बेलूर मठ में किया गया। उनकी अंत्येष्टि चंदन की लकड़ी से बेलूर मठ वेट किया गया ठीक गंगा नदी के दूसरे तट में 16 वर्ष पूर्व रामकृष्ण परमहंस का अंतिम संस्कार हुआ था।

उनका जीवनकाल पूरी तरह से देश को समर्पित और सामाजिक और हिंदू धर्म को समर्पित था आज हमें स्वामी विवेकानंद के रास्तों पर चलना चाहिए अगर हम सफल होना चाहते हैं तो हमें स्वामी विवेकानंद के दिखाए गए रास्तों में चलना चाहिए इन्होंने समाज को एक आईना दिखाया और नए समाज की परिकल्पना की और इस परिकल्पना को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने जीवन भर कार्य किया।

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मुझे उम्मीद है की स्वामी विवेकानंद पर निबंध सरल भाषा में – Essay on Swami Vivekananda in Hindi के बारे में आपको पूरी जानकारी मिली होगी और साथ ही Swami Vivekananda par Nibandh kaise Likhe इसके बारे में भी खेर अगर आपको अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

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