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भारतीय अर्थव्यवस्था

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भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों में सुधार

  • 02 Aug 2022
  • 13 min read
  • वृद्धि एवं विकास
  • आधारिक संरचना
  • संसाधनों का संग्रहण
  • सामान्य अध्ययन-III

यह एडिटोरियल 01/08/2022 को ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ में प्रकाशित “Core constraints: On economic recovery” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों और आर्थिक सुधार से संबंधित चिंताओं के बारे में चर्चा की गई है।

5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का भारत का स्वप्न औद्योगिक क्षेत्र के विकास पर उल्लेखनीय रूप से निर्भर करेगा। भारत में आठ औद्योगिक क्षेत्र हैं जिन्हें प्रमुख क्षेत्र या कोर सेक्टर (Core Sectors) माना जाता है।

  • कोर सेक्टर औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production- IIP) में 40% हिस्सेदारी रखते हैं; इस प्रकार औद्योगिक गतिविधि के प्रमुख संकेतक का निर्माण करते हैं। इस्पात और कच्चे तेल को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों के स्वस्थ प्रदर्शन के साथ कोर सेक्टर ने जून, 2022 में कोविड के स्तर से 8% की वृद्धि दर्ज की।
  • चूँकि उद्योग 4.0 (Industry 4.0) का दौर है तो भारत के औद्योगिक विकास में, विशेष रूप से कोर क्षेत्रों में, विद्यमान बाधाओं को स्वीकार करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि मांग आपूर्ति से अधिक होती जा रही है।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) क्या है?

  • यह एक संकेतक है जो एक निश्चित अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादों के उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन की माप करता है। इसका आधार वर्ष 2011-2012 है।
  • इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
  • व्यापक क्षेत्र (Broad sectors): खनन, विनिर्माण और बिजली।
  • उपयोग-आधारित क्षेत्र (Use-Based Sectors): बुनियादी वस्तुएँ, पूंजीगत वस्तुएँ और मध्यवर्ती वस्तुएँ।
  • मासिक ICI आठ प्रमुख उद्योगों में उत्पादन के सामूहिक और व्यक्तिगत प्रदर्शन की माप करता है।
  • रिफाइनरी उत्पाद> बिजली> इस्पात> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।

भारत में औद्योगिक क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • दूरसंचार सुविधाएँ मुख्य रूप से बड़े शहरों तक ही सीमित हैं। अधिकांश राज्य बिजली बोर्ड घाटे में चल रहे हैं और दयनीय स्थिति में हैं।
  • रेल परिवहन पर अत्यधिक भार है जबकि सड़क परिवहन कई प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है।
  • समान अवसर बनाए रखना: MSME क्षेत्र मध्यम एवं वृहत स्तर के औद्योगिक क्षेत्रों और सेवा क्षेत्रों की तुलना में ऋण उपलब्धता एवं कार्यशील पूंजी की ऋण लागत के मामले में अपेक्षाकृत कम अनुकूल स्थिति रखता है। इस जारी पूर्वाग्रह को दूर करने की ज़रूरत है।
  • भारत में उपभोक्ता वस्तुओं का कुल औद्योगिक उत्पादन 38% का योगदान देता है। सिंगापुर, दक्षिण कोरिया और मलेशिया जैसे नव औद्योगिक देशों में यह प्रतिशत क्रमशः 52, 29 और 28 है।
  • इससे पता चलता है कि आयात प्रतिस्थापन अभी भी देश के लिये एक दूर का लक्ष्य है।
  • अनुपयुक्त अवस्थिति आधार: कई उदाहरण हैं जहाँ लागत प्रभावी बिंदुओं के संदर्भ के बिना ही औद्योगिक अवस्थिति तय कर ली गई। प्रत्येक राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के अंतर्गत प्रमुख उद्योगों की स्थापना अपने सीमा-क्षेत्र में कराने के लिये प्रयासरत रहता है और स्थान चयन संबंधी निर्णय प्रायः राजनीति से प्रेरित होते हैं।
  • लेकिन लालफीताशाही और तनावपूर्ण श्रम-प्रबंधन संबंधों से ग्रस्त अप्रभावी नीति कार्यान्वयन के कारण इनमें से अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम घाटे में चल रहे हैं।
  • प्रत्येक वर्ष सरकार को इस घाटे की भरपाई के लिये और कर्मचारियों को वेतन देने के दायित्वों की पूर्ति के लिये भारी व्यय करना पड़ता है।

भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिये प्रमुख सरकारी पहलें:

  • उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) – घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिये।
  • पीएम गति शक्ति – राष्ट्रीय मास्टर प्लान - मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी अवसंरचना परियोजना।
  • भारतमाला परियोजना – उत्तर-पूर्व भारत में कनेक्टिविटी में सुधार के लिये
  • स्टार्ट-अप इंडिया – भारत में स्टार्टअप संस्कृति को उत्प्रेरित करने के लिये
  • मेक इन इंडिया 2.0 – भारत को वैश्विक डिज़ाइन और विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिये।
  • आत्मनिर्भर भारत अभियान – आयात निर्भरता में कमी लाने के लिये
  • विनिवेश योजनाएँ – भारत के आर्थिक पुनरुद्धार का समर्थन करने के लिये
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र – अतिरिक्त आर्थिक गतिविधि सृजन और वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये।
  • MSME इनोवेटिव स्कीम – इन्क्यूबेशन और डिज़ाइन इंटरवेंशन के माध्यम से विचारों को नवोन्मेष में विकसित कर संपूर्ण मूल्य शृंखला को बढ़ावा देने के लिये
  • घाटकोपर और वर्सोवा के बीच मुंबई मेट्रो की पहली लाइन पीपीपी मॉडल पर बनाई गई थी।
  • अवसंरचनात्मक बाधा को दूर करना: भौतिक अवसंरचना क्षेत्रों में क्षमता वृद्धि की धीमी दर औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि को बाधित कर रही है। कोर सेक्टर में क्षमता वृद्धि और अवसंरचनात्मक बाधाओं को दूर करने से मध्यम अवधि और दीर्घावधि में औद्योगिक क्षेत्र के उत्पादन में तेज़ी आएगी।
  • भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश का इष्टतम उपयोग: कुल जनसंख्या में युवा कामकाजी आबादी की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ भारत अपनी चरम विनिर्माण क्षमता हासिल कर सकता है क्योंकि अगले दो-तीन दशकों में इसके जनसांख्यिकीय लाभांश और एक बड़े कार्यबल से इसे लाभ प्राप्त होने की उम्मीद है।
  • ‘अनुसंधान और विकास’ में सुधार लाना: औद्योगिक अनुसंधान और विकास को सामान्य रूप से और विशेष रूप से औद्योगिक क्षेत्र-विशेष के लिये सशक्त करने की आवश्यकता है ताकि औद्योगिक क्षेत्र अधिक मांग-प्रेरित हो सके।
  • इंजीनियरों की बड़ी संख्या, युवा श्रम शक्ति और कम मज़दूरी (चीन से लगभग आधी) भारत को एक ‘ग्लोबल पावरहाउस’ बनने के लिये सुदृढ़ करती है।
  • औद्योगिक नीति में सुधार: मध्यावधि से लेकर दीर्घावधि तक दोहरे अंकों की उत्पादन वृद्धि को बनाए रखने और मुख्य क्षेत्र की कमज़ोरियों को कम करने के लिये एक प्रभावी औद्योगिक नीति ढाँचा तैयार करने की आवश्यकता है ताकि बहुआयामी सुधारों के एक और दौर की शुरुआत हो।

अभ्यास प्रश्न: भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ कौन-सी हैं? गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान भारत को अपने कोर सेक्टर में सुधार लाने में कैसे मदद कर सकता है?

 

 

 

(a) कोयला उत्पादन 
(b) बिजली उत्पादन 
(c) उर्वरक उत्पादन 
(d) इस्पात उत्पादन 

 

 

"औद्योगिक विकास दर सुधार के बाद की अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि में पिछड़ गई है" कारण बताएँऔद्योगिक नीति में हाल के परिवर्तन औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) 

आम तौर पर देश कृषि से उद्योग में और फिर बाद में सेवाओं में स्थानांतरित हो जाते हैं, लेकिन भारत सीधे कृषि से सेवाओं में स्थानांतरित हो गयादेश में उद्योग की तुलना में सेवाओं की भारी वृद्धि के क्या कारण हैं? क्या मज़बूत औद्योगिक आधार के बिना भारत एक विकसित देश बन सकता है? (2014)

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The Anveshan: A Multidisciplinary Journal in Hindi [ISSN: 2581-4044 (online)]

The Anveshan: A Multidisciplinary Journal in Hindi [Peer Reviewed Journal *** ISSN: 2581-4044 (online)]

The Anveshan: A Multidisciplinary Journal in Hindi  is a peer review, open access journal that provides multidisciplinary platform for those academicians, researchers and young scientists to promote, share & discuss research & innovation done on any area related to science, technology, management, arts, medical, pharmacy and engineering, who have done good contribution in form of research in their respective domains to scientific community but hesitate to come forward to publish their work because of not having good command in English language.  The  Anveshan is an attempt to motivate those researchers from multidisciplinary backgrounds & bring them together to publish their articles in Hindi/Hinglish language. 

General approaches, formalism's, algorithms or techniques should be complemented with lucid illustrations allowing easy comprehension and subsequent suitable applicability. Although the main emphasis of The   Anveshan is on original research papers, theoretical and integrative review articles, book reviews, and high-quality position papers are also published to keep readers up-to-date on the latest ideas, designs, and developments in these allied fields. Special review articles will be granted consideration based on the stage of evolvement of their respective fields.

All manuscripts submitted in  The   Anveshan  are pre-reviewed by the editor, and if found appropriate, they are sent for a blind peer review. All the manuscripts are critically reviewed before they are published. Contributions must be original, not previously or simultaneously published elsewhere. Papers, which must be written in Hindi/Hinglish, should have proper grammar and terminologies. 

We warmly invite you to submit your manuscripts to  Anveshan and share the results of your endeavor with other researchers accross the globe.

Focus & Scope

The Anveshan: A Multidisciplinary Journal in Hindi  covers all the key issues on any area related to science, technology, management, arts, medical, pharmacy and engineering including: 

All possible branches of science including: earth & space science, social science, life science, physical science and formal science and their domains like Astrophysics, Astronomy, Astrogeology, Astronautics, Analytical Chemistry, Biochemistry, Biology, Botany, Chemistry, Cellular Biology, Electrochemistry, Electromagnetics, Functional Biology, Geology, Geochemistry, Geoscience, Inorganic Chemistry, Kinetics, Mechanics, Mathematics, Meteorology, Organic Chemistry,  Physics, Physical Chemistry, Paleontology, Psychology, Sociology, Thermodynamics, Zoology.

Engineering and Technology

Astronautics, Aeronautics, Agricultural, Aircraft Maintenance, Architecture, Automation, Biological Engineering, Biomedical, Bio-Technology, Chemical, Civil, Computer Science, Computer, Control System, Communication, Earthquake, Electrical, Electronics, Communication, Engineering Mathematics, Environmental, Fire Protection, Food Technology, Forensic Science, Genetic, Industrial Engineering, Information Technology, Instrumentation, Image Processing, Manufacturing, Maintenance, Marine Engineering, Mechatronics, Material Science, Mechanical, Military, Mining, Nanotechnology, Nuclear, Ocean Engineering, Operations Research, Petroleum Engineering, Plastic, Polymer, Production, Reverse Engineering, Robotics, Software, Soft Computing, Structural, System Design, Telecom, and Textile Engineering.

Management and Commerce

Accounting and Financial Analysis, Business for Professionals, Business Environment, Business Laws, Business processes management, business statics, Continuous improvement, Company Accounting, Cost Accounting, Creating marketing orientation, Database Management System, E-business, E-management practices, Energy Management, Entrepreneurship Development, Enterprise, Ethics & CSR, Finance, Foreign Exchange Economics, financial Institution and services, Financial planning and analysis, Financing business, General management, Government policy on Companies, Hospitality Management, Human Resource, Human Resource management, Industrial Relations and labour Enactment, Information technology, Industrial Law, Infrastructure finance, Instilling creativity, International business, International marketing, Insurance and Risk Management, Logistics, Managing business relationships, Managing globalisation and work, place, Managing learning and improvement, Marketing, market of services, marketing research, Operations Management, Negotiation and counselling, Operation research, Organization Behaviour Studies, Personal growth and Training & development, sales and distribution management, Strategic Management, Supply chain management, Procurement, Production and operation, Quality management, Rural Management, Research Methodology, Restructuring Business management, Retail Management, security Analysis, Social impact of business, Strategy, Supply chain management, Tax planning, Team building and Leadership, Tourism Management, Travel management, working capital.

Anthropology, Archaeology, Business Studies, Communication Studies, Corporate Governance, Corporate Organization, Criminology, Cross Cultural Studies, Demography, Development Studies, Economics, Education, Educational Research, English, Literature, Entrepreneurship, Geography, History, Human Tribes, Industrial Relations, Information Science, International Relations, International Studies, Law, Legal Management, Library Science, Linguistics, Literature, Local Languages, Media Studies, Music, Paralegal Studies, Paralegal, Performing Arts ( i.e. Dance Theatre and Music), Philosophical Research, Philosophy, Physical Geography, Physical Education, Political Science, Population Studies, Psychology, Public Administration, Publications and Advertising, Regional, Planning and Studies, Social Welfare, Sociology, Special Education, Sport Management, Visual Arts, Women Studies

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भारत में आर्थिक योजना

आज़ादी के बाद देश उन्नति के मार्ग पर बढ़ सके और हर वर्ग के लिये समावेशी विकास को सुनिश्चित किया जा सके इस उद्देश्य से आर्थिक योजना प्रणाली को अपनाया गया । योजन का यह मॉडल सोवियत रूस से प्रभावित था जिसने पंच-वर्षीय योजना पद्धति को अपनाया था | हालाँकि भारत में आर्थिक आयोजन को संवैधानिक समर्थन प्राप्त है | संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यह लिखित है कि “राज्य अपनी नीति का संचालन विशेष तौर पर निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करेगा : 1. नागरिकों को (पुरुषों और स्त्रियों, दोनों को समान रूप से) जीवन-निर्वाह के पर्याप्त साधनों का अधिकार प्राप्त होगा, 2. समाज के भौतिक साधनों के स्वामित्व का वितरण और नियन्त्रण इस प्रकार किया जाएगा कि सर्वोत्तम रूप में सबका भला हो ; 3.आर्थिक प्रणाली की कार्यान्विति का परिणाम ऐसा न हो कि धन और उत्पादन के साधनों का संकेन्द्रण (Concentration of wealth) आम जनता के हितों के विरुद्ध हो ; 4.उत्पादन को अधिकतम सम्भव सीमा तक बढ़ाया जाए ताकि राष्ट्रीय एवं प्रति व्यत्ति आय के उच्च स्तर को प्राप्त किया जा सके; 5.पूर्ण रोजगार प्राप्त करना; 6.आय तथा सम्पत्ति की असमानताओं को कम करना; और 7.सामाजिक न्याय उपलब्ध कराना।

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भारत में आर्थिक नियोजन का इतिहास

  • 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के पूर्व ही आर्थिक नियोजन का सैद्धान्तिक प्रयास प्रारम्भ हो चुका था। इस दिशा में प्रथम प्रयास 1934 में सर एम. विश्वेश्वरैया ने अपनी पुस्तक भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था लिखकर प्रारम्भ किया जिसे “विश्वेश्वरैया प्लान” कहा जाता है। यह एक 10 वर्षीय योजना रूपरेखा थी जिसमें श्रम को कृषि से हटाकर उद्योगों की ओर अधिक से अधिक केंद्रित करने का प्रस्ताव था और साथ ही 10 वर्ष में राष्ट्रीय आय को दोगुनी करने का भी लक्ष्य रखा गया |
  • 1938 में इण्डियन नेशनल कांग्रेस ने पण्डित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आयोजन समिति का गठन किया।
  • राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की आर्थिक विचारधारा से प्रेरित होकर श्रीमन्नारायण ने 1943 में एक योजना प्रस्तुत की, जिसे “गाँधीवादी योजना” (Gandhian Plan) के नाम से जाना जाता है। इसमें मुख्यत: आर्थिक विकेंद्रीकरण ,ग्राम स्वराज तथा कुटीर उद्योग पर अत्यधिक बल दिया गया |
  • प्रसिद्ध समाजवादी विचारक एम. एन. राय ने एक 10 वर्षीय जन योजना (People’s Plan) नामक एक नई योजना प्रस्तुत की।
  • 1944 में बम्बई के 8 प्रमुख उद्योगपतियों (जे. आर. डी. टाटा, जी.डी. बिरला, पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास, लाला श्री राम, कस्तूर भाई लाल भाई,ए.डी.श्रॉफ ,आर्देशिर दलाल एवं जॉन मथाई ) ने मिलकर “ए प्लान फॉर इकोनॉमिक डेवलपमेण्ट इन इण्डिया” नामक एक 15 वर्षीय योजना प्रस्तुत की जिसे “बम्बई प्लान” के नाम से बेहतर जाना जाता है। इसका उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास पर बल देना,भारत की राष्ट्रीय आय को 15 वर्षों में 3 गुना तथा 15 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय को दो-गुना (₹65 से बढ़ाकर ₹130) करना था।
  • इसके बाद जनवरी, 1950 में जयप्रकाश नारायण ने महात्मा गांधी तथा विनोबा भावे के विचारों से प्रेरित होकर “सर्वोदय योजना” के नाम से एक प्रकाशित की। इसमें समाज के चतुर्दिक विकास पर बल दिया गया |
  • अंततः 15 मार्च, 1950 को जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में योजना आयोग का गठन किया गया जो एक संविधानेत्तर निकाय है। 6 अगस्त, 1952 में आर्थिक आयोजन के लिए राज्यों एवं योजना आयोग के बीच सहयोग का वातावरण तैयार करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय विकास परिषद् (N.D.C) नामक एक अन्य संविधानेत्तर संस्था का गठन किया गया। और इस प्रकार भारत में आर्थिक नियोजन की विधिवत प्रक्रिया प्रारम्भ हुई |

भारत की पंच-वर्षीय योजनाएं

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) : भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत प्रथम पंचवर्षीय योजना (वित्तीय वर्ष 1951-52 से वर्ष 1955-56) से हुई। इसमें कुल संवृद्धि की दर बहुत ही कम 2.1% रखी गयी थी क्योंकि भारत तब एक नया स्वतंत्र देश बना था और निम्न कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा, सिंचाई की समस्या जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहा था | अतः प्रथम योजना में कृषि क्षेत्र में संवृद्धि पर सर्वाधिक बल दिया गया | पहली योजना होने के कारण इसके लक्ष्यों को साधारण सा ही रखा गया और ज्यादा बल सुदृढ़ीकरण (consolidation) पर दिया गया। इस योजना में कृषि के विकास के लिए सिंचाई सुविधाओं की बेहतरी को प्राथमिकता दी गई। इस उद्देश्य से ही प्रथम पंचवर्षीय योजना में भाखड़ा नांगल, दामोदर घाटी और हीराकुंड जैसी बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाएँ चालू की गई। 1952 में सामुदायिक विकास योजना का प्रारम्भ किया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना के तहत सिन्दरी उर्वरक कारखाना (तत्कालीन बिहार) की स्थापना की गई। प्रथम पंचवर्षीय योजना “हैरॉल्ड डोमर मॉडल” पर आधारित थी। इस योजना को तैयार करने वाले विशेषज्ञ के गुट में से के.एन राज एक प्रमुख अर्थशास्त्री थे संतुलित विकास के साथ ही मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना देश को गरीबी के मकड़जाल से निकालना भी इस योजना का एक लक्ष्य था। यह एक अत्यंत ही सफल योजना रही क्योंकि इसने 2.1% के लक्ष्य से बढ़कर 3.6 % प्रतिशत की विकास दर को हासिल किया | इस योजना में राष्ट्रीय आय में 18% जबकि प्रति व्यक्ति आय में 11% की वृद्धि देखी गई |

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) : इस योजना में देश के लिए दूरदृष्टि की परिकल्पना को वास्तविक आकार दिया गया | औद्योगिक आधार, औद्योगीकरण के प्रारंभ जैसे प्रयासों की शुरुआत हुई। इसे ‘महालनोबिस मॉडल’ के नाम से जाना गया, जिसके अंतर्गत. सरकार द्वारा पूँजीगत और प्रमुख उद्योग (core industries) दोनों ही क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण क्षमता निर्माण का कार्य शुरू किया गया। इस योजना में (1956-61) में आधारभूत एवं भारी उद्योगों पर विशेष बल के साथ देश के तीव्र औद्योगीकरण को मुख्य लक्ष्य बनाया गया क्योंकि प्रधानमंत्री नेहरु उद्द्योगों व कारखानों को आधुनिक भारत के मन्दिर के नाम से सम्बोधित करते थे | अतः इस योजन में सरकार की प्राथमिकता कृषि से हट कर उद्द्योगों पर केन्द्रित होती साफ़ दिखी । द्वितीय पंचवर्षीय योजना के निर्माण में प्रो. पी सी महालनोबिस ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। इसलिए इस योजना को महालनोबिस मॉडल भी कहा जाता है। इस मॉडल में इस पहलू पर बल दिया गया कि देश को आत्मनिर्भर होना चाहिए और साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम होना चाहिए। यह मॉडल बड़े उद्योगों की स्थापना करके, मझोले और लघु उद्योगों के लिए आधार तैयार करने वाला प्रयास था। इसे ‘शीर्ष से नीचे की ओर’ होने वाले औद्योगीकरण के नाम से भी जाना गया। इसमें अंततः ग्रामीण और कुटीर उद्योगों तक पहुंचने का लक्ष्य रखा गया था। रूस के औद्योगीकरण के नमूने पर आधारित इस मॉडल से, सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े उद्योगों की स्थापना की शुरुआत हुई। ऐसी परिकल्पना भी की गयी थी कि सार्वजनिक क्षेत्र, अर्थव्यवस्था के वृहद् समाज कल्याण के उद्देश्यों को पूरा करने में सफल होगा। यही कारण है की दूसरी योजना को सार्वजनिक क्षेत्र की योजना या औद्योगीकरण के नाम से भी जाना जाता है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में संवृद्धि दर 4.5% लक्षित की गई जबकि प्राप्त विकास दर 4.2% रही। । देश में पेट्रोलियम पदार्थों की माँग में पर्याप्त वृद्धि हो जाने के बाद भी प्रथम पंचवर्षीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में किसी तेलशोधक कारखाने की स्थापना नहीं हुई। लेकिन द्वितीय पंचवर्षीय योजना में ब्रिटिशकालीन टैक्स तेल कम्पनी द्वारा 1957 में विशाखापत्तनम में एक तेलशोधक कारखाना स्थापित किया गया।द्वितीय पंच वर्षीय योजना के दौरान ही 1957 में एटॉमिक एनर्जी कमीशन की स्थापना हुई जिसके प्रथम अध्यक्ष होमी जहांगीर भाभा नियुक्त हुए | इसी योजना में झारखंड की राजधानी रांची में (तत्कालीन बिहार) एच.ई.सी की स्थापना की गई |

1.दुर्गापुर इस्पात संयन्त्र (प. बंगाल) ब्रिटेन के सहयोग से निर्मित
2.राउरकेला इस्पात संयन्त्र (ओडिशा) जर्मनी के सहयोग से निर्मित
3.भिलाई इस्पात संयन्त्र (दुर्ग,छत्तीसगढ़) सोवियत रूस के सहयोग से निर्मित

तृतीय पंचवर्षीय योजना ( 1961-66) : तीसरी पंचवर्षीय योजना अकाल ,सूखा और सबसे अधिक, चीन से भारत के युद्ध (1962) के कारण सफल नहीं हो सकी | इस योजना में 5.6% वृद्धि दर का लक्ष्य निर्धारित किया गया किंतु यह केवल 2.5% वृद्धि दर ही हासिल कर सकी | कुछ विद्वानों के अनुसार इस योजना की असफलता का एक कारण यह भी था कि इस योजना में कृषि और उद्योग दोनों पर ही बल दिया गया या यूं कहें की दोनों में से किसे प्राथमिकता दी जाए यह स्पष्ट नहीं रह गया | इस योजना का उद्देश्य आत्मनिर्भरता पर आधारित विकास की ओर तेजी से आगे बढ़ने का था। इस दौरान दूसरी पंचवर्षीय योजना में स्थापित तीनों इस्पात कारखानों का विस्तार किया गया तथा सोवियत संघ के सहयोग से बोकारो (झारखण्ड) में एक और इस्पात कारखाने की स्थापना की गई | 1962 के चीन युद्ध, 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन और 1965 में भारत-पाक युद्ध के कारण यह योजना विफल रही ।

योजना अवकाश वर्ष (1966-69) : 1966-69 से का समय योजना अवकाश वर्ष के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दौरान कोई भी पंचवर्षीय योजना लागू नहीं की गई या दूसरे शब्दों में इस दौरान तीन वार्षिक योजनाएं लागू की गई | इसका कारण देश की आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिरता थी |

चतुर्थ पंचवर्षीय योजना (1969-74) : चौथी पंचवर्षीय योजना में अर्थव्यवस्था के पुनर्निमाण पर विशेष बल दिया गया। इस अवधि में बहुमूल्य संसाधन, युद्ध के कारण अन्यत्र उपयोग कर लिए गये थे। अतः इस योजना का उद्देश्य स्थिरता एवं अधिक आत्मनिर्भरता, विशेषकर रक्षा क्षेत्र में रखा गया ताकि भविष्य में यदि पुनः युद्ध की स्थिति पैदा हो तो उससे निपटा जा सके। हालांकि यह योजना भी अपने लक्षित 5.5% के विकास दर को हासिल करने में सफल नहीं हो सकी और केवल 3.3% विकास दर ही हासिल कर सकी | योजना की विफलता का मुख्य कारण मौसम की प्रतिकूलता को माना जाता है | तथापि इस योजना का महत्व यह है कि इसे समाजवादी समाज की स्थापना की दिशा में एक अहम प्रयास माना जाता है |

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना ( 1974-79) : इस योजना का महत्व यह है कि इसमें पहली बार, गरीबी निवारण को सबसे प्रमुख उद्देश्य बनाया गया। इसी योजना के दौरान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बहुचर्चित 20 सूत्री कार्यक्रम की शुरुआत की और देश में राष्ट्रीय आपातकाल की भी घोषणा इसी पंचवर्षीय योजना के दौरान हुई | शुरू में इस योजना के दौरान विकास लक्ष्य 5.5% रखा गया किंतु बाद में इसे संशोधित कर 4.4% किया गया | यह योजना अपने लक्षित विकास दर को पाने में सफल रही किंतु गरीबी निवारण की दिशा में यह योजना कुछ खास काम नहीं कर सकी | इसी योजना के उपरांत तत्कालीन इंदिरा सरकार से असंतुष्ट होकर जनता ने मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार को सत्ता में बिठाया |

छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) : हालांकि गरीबी निवारण छठी पंचवर्षीय योजना का भी केंद्र बिंदु रहा लेकिन इस योजना में यह महसूस किया जाने लगा कि गरीबी उन्मूलन के लिए केवल आर्थिक संवृद्धि /विकास का होना ही पर्याप्त नहीं है। अतः अर्थव्यवस्था की ढांचागत विषमताओं को दूर करने की योजना भी बनाई गई । इस योजना के दौरान ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने “गरीबी हटाओ” का प्रसिद्ध नारा दिया था। यह पंचवर्षीय योजना, संसाधनों को कल्याणकारी कार्यक्रम,जैसे सामुदायिक विकास कार्यक्रम विशेषतः गरीबी उन्मूलन के लिए हस्तांतरित करने के पहले गंभीर प्रयास के लिए जानी जाती है। इसके अंतर्गत कोई नयी योजना नहीं शुरू की गयी, बल्कि उस समय तक की लागू विभिन्न योजनाओं को एकीकृत करके एक योजना के रूप में लागू किया गया और इसे एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (Integrated Rural Development Programme (IRDP)) का नाम दिया गया। यह पहली ऐसी कार्यकारी योजना थी जिसमें लिंग भेद, महिला सशक्तिकरण राज्यों के बीच बढ़ती असमानता और अंतर क्षेत्रीय असंतुलन पर ध्यान केंद्रित किया गया।

सातवीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) : 7वीं पंचवर्षीय योजना के 3 मुख्य लक्ष्य थे- पहला, व्यापक स्तर पर कृषि क्षेत्र की ओर उन्मुखता, ताकि कृषि उत्पादन और उत्पादक दोनों में वृद्धि की जा सके , दूसरा, सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश में कमी और तीसरा रोजगार के अधिकाधिक अवसरों का सृजन । इस योजना में जी.डी.पी. में 5% वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया था | सातवीं योजना पहली ऐसी योजना थी जिसमें कृषि समेत कुल वृद्धि दर उच्चतम 10.4% पाई गई । इस दौरान प्रति-व्यक्ति आय में 3.6% प्रति वर्ष की दर से वृद्धि हुई | हालाँकि यह भी उल्लेखनीय है कि इसी दौरान अर्थव्यवस्था में पहली बार आयात-निर्यात में भारी असंतुलन का अनुभव हुआ। इससे भुगतान संतुलन का संकट (BoP Crisis) पैदा हुआ और भारत को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से ऋण लेना पड़ा। लेकिन इसके बदले में IMF ने देश के सामने कई शर्तें रखीं जिन्हें पूरी करने के लिए भारत को आर्थिक सुधारों की घोषणा करनी पड़ी जिसे नयी आर्थिक नीति 1991 के नाम से जाना गया। नयी आर्थिक नीति पर देखें हमारा हिंदी लेख LPG Reforms in Hindi

उपरोक्त वर्णित परिस्थितियों में भुगतान संतुलन की समस्या उत्पन्न होने से सरकार को पुनः वर्ष 1990 से वर्ष 1992 तक योजना अवकाश लेना पड़ा। इस के बाद से सभी योजनाओं में सार्वजनिक क्षेत्र पर किये जाने वाले व्यय में क्रमशः कमी की जाने लगी जिसके फलस्वरूप निजी क्षेत्र की भूमिका में बढ़ोतरी हुई जिससे नयी आर्थिक नीति के एक लक्ष्य निजीकरण अथवा विनिवेश को प्राप्त किया जा सके । इसके अंतर्गत जिस क्षेत्र में अधिक निवेश की आवश्यकता हो, उसमें प्राथमिकता के आधार पर निजी क्षेत्र द्वारा मिलने की अपेक्षा की गयी।

आठवीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) : आठवीं पंचवर्षीय योजना में ढांचागत विकास, विशेषकर ऊर्जा, परिवहन एवं दूर-संचार को मजबूत करने की आवश्यकता के साथ साथ सार्वभौम मानव संसाधन विकास , शिक्षा , परिवार

नियोजन, भूमि विकास, सिचाई , स्वास्थ्य इत्यादि की महत्ता को स्वीकार किया गया। इसी कड़ी में सार्वजनिक क्षेत्र में, स्वैच्छिक रूप से काम करने वाली एजेंसियों को शामिल करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। निजी क्षेत्र की भागीदारी को 55% तक बढ़ा कर दूर संचार, बिजली और गैस के क्षेत्र में इनकी भूमिका में वृद्धि की गयी तथा सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका अब चुने हुए क्षेत्र में सीमित रह गयी थी। यह योजना सफल रही क्योंकि इसमें 5.6% की वृद्धि दर को हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था जबकि 6.7% वास्तविक दर रही |

नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-02) : यह योजना एक प्रकार से आठवीं योजना का विस्तार थी, परंतु इसमें संवृद्धि के अतिरिक्त अर्थव्यवस्था में सामाजिक न्याय और निष्पक्षता को भी केंद्रीय स्वरूप प्रदान किया गया। न्यायपूर्ण वितरण एवं समानता के साथ विकास इस योजना का परम लक्ष्य था | हालाँकि इस योजना में 6.5% की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था लेकिन केवल 5.5% ही हासिल किया जा सका |

दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002- 07) : दसवीं पंचवर्षीय योजना का लक्षित क्षेत्र प्राथमिक शिक्षा एवं उर्जा रहा | इस योजना का उद्देश्य देश में गरीबी और बेरोजगारी समाप्त करना तथा 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय दोगुनी करना था । इस योजना अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में 8% की वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था । योजना के दौरान प्रतिवर्ष 7.5 अरब डालर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश , 5 करोड़ रोजगार के अवसरों का सृजन करना, योजना के अन्त तक साक्षरता दर 75% करना , शिशु मृत्यु-दर 45 /प्रति हजार या इससे कम करना तथा वनाच्छादन 25% करने का लक्ष्य रखा गया था।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) : इस योजना में समावेशी विकास की अवधारणा पर विशेष बल दिया गया और राज्य व केंद्र सरकारों के लिए निरीक्षण योग एवं परिमाणात्मक लक्ष्य निर्धारित किये गये थे । इस योजना में क्षेत्रीय आर्थिक विषमता पर भी चिंता व्यक्त की गई और पिछड़े राज्यों , विशेष रूप से, उत्तर-पूर्वी राज्यों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास उल्लिखित किया गया। देश के सभी गांव में विद्युतीकरण, रोजगार के 7 करोड़ अवसरों का सृजन, शैक्षिक बेरोजगारी को कम करना, अकुशल श्रमिकों की मजदूरी दर में वृद्धि करना, साक्षरता में बढ़ावा, लिंगानुपात में संतुलन, प्रजनन दर को 2.1 के नीचे लाना इत्यादि इस योजना के अन्य मुख्य लक्ष्य थे |

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) : बारहवीं पंच-वर्षीय योजना का मुख्य लक्ष्य ‘संयुक्त संवृद्धि’ पर केंद्रित है। इसके माध्यम से सरकारी खर्च पर देश की कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के क्षेत्रों में विकास को प्रोत्साहन देने का लक्ष्य रखा गया है ताकि विकसित हो रहे निर्माण क्षेत्र में लोगों को और अधिक रोजगार मिल सकेग | योजना में 10% की संवृद्धि दर तथा कृषि उपज में 4% की संवृद्धि दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना के अन्य प्रमुख लक्ष्य इस प्रकार हैं :- आर्थिक विकास, गरीबी एवं बेरोजगारी निवारण, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, स्वास्थ्य के क्षेत्र में बाल मृत्यु दर एवं कुपोषण को कम करना,तथा पर्यावरण के क्षेत्र में टिकाऊ एवं धारणीय विकास को सुनिश्चित करना इत्यादि |

बारहवीं पंच-वर्षीय योजना एक प्रकार से देश की अंतिम पंच वर्षीय योजना थी | इसके बाद योजना बनाने वाली संस्था योजना आयोग को परिवर्तित कर नीति आयोग का नाम दिया गया और पंच वर्षीय योजना के स्थान पर सप्त वर्षीय योजना नीति बनाई गई जिसमे प्रथम त्रि-वर्षीय एक्शन प्लान बनाया गया |

आलोचना : पंच वर्षीय योजनाओं की कई बिन्दुओं पर आलोचना भी की जाती है | इनमें प्रमुख है “निजी क्षेत्र बनाम सार्वजानिक क्षेत्र” और “कृषि बनाम उद्द्योग” पर अनिश्चय | आलोचना का प्रथम बिंदु यह है की योजना निर्माण में यह नीति स्पष्ट नहीं रही की वरीयता कृषि क्षेत्र को दिया जाए या औद्योगिक क्षेत्र को | हम पाते हैं की प्रथम योजना में कृषि क्षेत्र को वरीयता दी गई जबकि दूसरी योजना में उद्योग विकास पर ही बल दिया गया परिणाम स्वरूप देश दोनों में से किसी भी एक लक्ष्य को पाने में सफल नहीं हो सका | तीसरी एवं चौथी पंच वर्षीय योजना में हरित क्रांति की शुरुआत की गई | हरित क्रांति के लागू होने से उत्पादन में वृद्धि तो हुई लेकिन कीटनाशक एवं उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से भी कई समस्याएँ उत्पन्न हुई | योजनाओं की असफलता के पीछे राजनैतिक इच्छा शक्ति का आभाव भी एक अहम कारण रहा है |

योजना आयोग / नीति आयोग

नीति आयोग भारत सरकार की आर्थिक-नीति-निर्माण की शीर्ष ‘थिंक टैंक’ संस्था है | भारत सरकार के लिए रणनीतिक एवं दीर्घकालीन नीतियों एवं कार्यक्रमों का प्रकल्प तैयार करते हुए नीति आयोग केन्द्र एवं राज्यों को प्रासंगिक तकनीकी सलाह भी देता है। 1950 में गठित “योजना आयोग” इसकी मातृ संस्था थी | लेकिन 1 जनवरी, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेत्रित्व वाली सरकार ने 65 वर्ष पुराने योजना आयोग को भंग कर इसके स्थान पर एक उत्तराधिकारी संस्था के रूप में नीति आयोग (N.I.T.I.Aayog : National Institution for Transforming India) के स्थापना की घोषणा की। नीति आयोग योजना आयोग की ही तरह भारत सरकार के एक कार्यकालकीय संकल्प’ (केन्द्रीय मंत्रिमंडल) द्वारा सृजित एक गैर-संवैधानिक (extra -constitutional) निकाय है ।

नीति आयोग का ढांचा (structure)

(1) अध्यक्ष : योजना आयोग की ही तरह नीति आयोग के अध्यक्ष भी भारत के प्रधानमंत्री पदेन रूप से होते हैं (इस प्रकार योजना / नीति आयोग के प्रथम अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरु थे एवं इसके वर्तमान अध्यक्ष नरेंद्र मोदी हैं)

(2) उपाध्यक्ष: ये प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त होते हैं और इनका पद कैबिनेट मंत्री के समकक्ष होता है। वर्तमान में सुमन बेरी इसके नव-नियुक्त उपाध्यक्ष हैं |

(3) शासी परिषद (Governing Council) : सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, केन्द्र शासित क्षेत्रों के मुख्यमंत्री एवं विधायिकाएँ (जैसे-दिल्ली और पुडुचेरी) तथा अन्य केन्द्रशासित क्षेत्रों के उप-राज्यपाल (lieutenant governor) इसके गवर्निंग काउंसिल के सदस्य होते हैं ,

(4) क्षेत्रीय परिषदें : नीति आयोग की क्षेत्रीय परिषद भी होती हैं जिनका गठन एक से अधिक राज्यों या क्षेत्रों से संबंधित विशिष्ट मुद्दों के समाधान के लिए किया जाता है। इनका एक निश्चित कार्यकाल होता है। इनका संयोजकत्व प्रधानमंत्री करते हैं और राज्यों के मुख्यमंत्री एवं केन्द्रशासित क्षेत्रों के उप-राज्यपाल इसमें शामिल रहते हैं। इन परिषदों का सभापतित्व नीति आयोग के अध्यक्ष अथवा उनके द्वारा नामित व्यक्ति करते हैं।

(5) विशिष्ट आमंत्रित (special invitees) : कुछ विशेषज्ञ, जिनके पास संबंधित क्षेत्र में विशेष ज्ञान एवं योग्यता हो, प्रधानमंत्री द्वारा नामित किए जाते हैं। वर्तमान में नितिन गडकरी ,पीयूष गोयल ,वीरेंद्र कुमार ,अश्विनी वैष्णव और राव इंद्रजीत सिंह नीति आयोग के विशिष्ट आमंत्रित सदस्य हैं ,

(6) पूर्णकालिक सदस्य : ये राज्यमंत्री के पद के समकक्ष होते हैं,

(7) अंशकालिक सदस्य : नीति आयोग के 2 अंशकालिक सदस्य भी नियुक्त किए जाते हैं , जो कि प्रमुख विश्वविद्यालयों, शोध संगठनों तथा अन्य प्रासंगिक संस्थाओं से आते हैं और पदेन सदस्य के रूप में कार्य करते हैं।

(8) पदेन सदस्य : प्रधानमंत्री द्वारा केन्द्रीय मंत्रिपरिषद के अधिकतम 4 सदस्य पदेन सदस्य के तौर पर नियुक्त किए जाते हैं ।

(9) मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (C.E.O) : एक निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री द्वारा CEO भी नियुक्त किये जाते हैं जो भारत सरकार के सचिव पद के समकक्ष होते हैं । वर्तमान में अमिताभ कान्त नीति आयोग के CEO हैं |

नीति आयोग के उद्देश्य

नीति आयोग के निम्नलिखित उद्देश्य हैं:

1. राज्यों की सामूहिक व सक्रिय सहभागिता से राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, प्रक्षेत्रों एवं रणनीतियों के प्रति साझा दृष्टिकोण का विकास।

2. सहकारी संघवाद (Cooperative federalism) स्थापित करने के लिए राज्यों के साथ संरचित सहयोग पहलों एवं प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना, क्योंकि मजबूत राज्य ही मजबूत देश का निर्माण कर सकते हैं।

3. ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजनाओं के सूत्रण के लिए प्रक्रियाओं का विकास और इन्हें सरकार के उच्चतर स्तरों तक पहुँचाना।

4.यह सुनिश्चित करना कि जो भी उत्तरदायित्व इसे सौंपे जाते हैं, वे देश की आर्थिक -रणनीति एवं नीति में प्रतिबिम्वित हों ।

5. समाज के कमजोर वर्गों के हितों का विशेष रूप से ध्यान रखना |

6. रणनीतिक एवं दीर्घकालीन आर्थिक -नीति एवं कार्यक्रम रूपरेखा तैयार करना और उनकी प्रगति एवं उनके प्रदर्शन की समीक्षा भी करना।

7. प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय समकक्ष थिंक टैंक संस्थाओं,विशेषज्ञों के साथ साझेदारी को प्रोत्साहित करना ।

8.एक अत्याधुनिक संसाधन सक्षम केन्द्र (state -of-the-art) के रूप में कार्य करना |

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